प्रथूदक एक देव तीर्थ है, जहाँ स्वामी कार्तिकेय, सनतकुमार, व्यास, रशंगु ऋषि ने जप-तप का विधान किया था। यहाँ जाप से मृत्यु से पश्चाताप नहीं होता है। महर्षि अर्ष्टिषेण ने यहाँ से सिद्धियाँ प्राप्त की थीं।
- इस देव तीर्थ स्थान पर ही ऋषि सिंधुद्वीप, देवापि और तपस्वी विश्वामित्र ने ब्राह्मत्व पाया था।
- राजा वेण के पुत्र प्रथु से भी इस स्थान का गहरा सम्बन्ध रहा है।
- यही कारण है कि यह क्षेत्र 'प्रथूदक' (प्रथु-उदक) कहलाता है।
- प्रथु ने द्वादश दिन तक वेण की मृत्यु के बाद उदक क्रिया की थी।
- रशंगु ऋषि ने यहाँ देह-न्यास किया था।
- बलराम ने इस स्थान के दर्शन किये और प्रचुर मात्रा में दान-दक्षिणा की थी।
- यहाँ स्नान व तप से अश्वमेध के समान फल की प्राप्ति होती है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 514 |