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एरेख का उल्लेख ईरानी अभिलेखों में भी मिलता है जिससे प्रकट है कि काबुल की ही भाँति यह नगर भी सर्वथा विनष्ट नहीं हुआ और खल्दी राजकुलों के विनष्ट हो जाने के बाद तक बना रहा। अभी हाल की खुदाइयों में वहाँ से 70 ई. पू. के अनेक अभिलेख मिले हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=248 |url=}}</ref> | एरेख का उल्लेख ईरानी अभिलेखों में भी मिलता है जिससे प्रकट है कि काबुल की ही भाँति यह नगर भी सर्वथा विनष्ट नहीं हुआ और खल्दी राजकुलों के विनष्ट हो जाने के बाद तक बना रहा। अभी हाल की खुदाइयों में वहाँ से 70 ई. पू. के अनेक अभिलेख मिले हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=248 |url=}}</ref> |
09:49, 4 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
एरेख, उरूक (सुमेरी), ओर्खेई (ग्रीक)–प्राचीन सुमेर का नगर, आधुनिक वर्का। फरात के पच्छिमी तीर कभी बसा था जिसके निकट से नदी की धारा कई मील पूरब हट गई है। संभवत: इसी उरूक अथवा एरेख से मेसोपोतामिया का नया नाम दजला फरात के द्वाब में इराक या अल्-इराक पड़ा। यह प्राचीन नगर ऊर, कीश, निप्पुर आदि उन प्राचीन नगरों का समकालीन था जो दक्षिणी बाबिलोनिया अथवा प्राचीन सुमेर की भूमि पर सागर के चढ़ आने से जलप्रलय के शिकार हुए थे। डॉ. लोफ़्टर ने 1850 और 1854 में एरेख के पुराने टीलों को खोदकर उसकी प्राचीनता के प्रमाण प्रस्तुत कर दिए। नगर का परकोटा प्राय: छह मील का था जिसके भीतर लगभग 1,100 एकड़ भूमि पर नगर बसा था। आज भी वहाँ अनेकानेक 'तेल' अथवा टीले प्राचीन सभ्यता की समाधि अपने अंतर में दबाए पड़े हैं। संभवत: ई-अन्ना इस नगर का प्रचीनतर नाम था जो इसी के मंदिर से संबंध रखता था। नगर का ज़िग्गुरत अपने आधार में दो सौ फुट वर्गाकार है जो प्राचीन काल में ही टूट चुका था। नगर प्राक्-शर्रुकिन (सार्गोन) राजाओं की राजधानी था और उनसे भी पहले वहाँ पुरोहित राजा (पतेसी) राज करते थे। ई.पू. तीसरी सहस्राब्दी में दक्षिणी ईरान के इलामी आक्रमणों का उत्तर एरेख के निवासियों ने इतनी घनी देशभक्ति से दिया था कि आक्रामकों को निराश लौटना पड़ा था। समीप के ही नगर लारसा में, उसकी राष्ट्रीयता की शक्ति तोड़, इलामियों ने वहीं डेरा डाला। एरेख की सत्ता को सीमित रखने का वहीं से उन्होंने चिरकालीन प्रयत्न किया।
एरेख का उल्लेख ईरानी अभिलेखों में भी मिलता है जिससे प्रकट है कि काबुल की ही भाँति यह नगर भी सर्वथा विनष्ट नहीं हुआ और खल्दी राजकुलों के विनष्ट हो जाने के बाद तक बना रहा। अभी हाल की खुदाइयों में वहाँ से 70 ई. पू. के अनेक अभिलेख मिले हैं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 248 |
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