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*[[सूर्य देवता|सूर्य]] की पूजा करनी चाहिए। [[षष्ठी]] को एकभक्त एवं सप्तमी को उपवास रखना चाहिये।
*सप्तमी की रात्रि के अन्त में एक हाथ में दीप लेकर स्थिर जल को हिला दिया जाता है।<ref>हेमाद्रि व्रतखण्ड (1, 643–648)</ref>  
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*सप्तमी की रात्रि के अन्त में एक हाथ में दीप लेकर स्थिर जल को हिला दिया जाता है।<ref>हेमाद्रि व्रतखण्ड (1, 643–648</ref>  
 
*[[कृष्ण]] ने [[युधिष्ठर]] को उस वेश्या इन्दुमती की कथा सुनाई है, जिसने पश्चाताप में आकर अचलासप्तमी का सम्पादन किया जाता है।<ref>भविष्योत्तर पुराण में उद्धरण</ref>
 
*[[कृष्ण]] ने [[युधिष्ठर]] को उस वेश्या इन्दुमती की कथा सुनाई है, जिसने पश्चाताप में आकर अचलासप्तमी का सम्पादन किया जाता है।<ref>भविष्योत्तर पुराण में उद्धरण</ref>
*व्रतार्क, व्रतराज<ref>व्रतराज (253–255)</ref> निर्णयामृत (51) में इसे जयन्ती भी कहा गया है।
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*व्रतार्क, व्रतराज<ref>व्रतराज (253–255</ref> निर्णयामृत (51) में इसे जयन्ती भी कहा गया है।
 
*इस दिन [[भास्कर]] का ध्यान करना चाहिए।  
 
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12:35, 27 जुलाई 2011 का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • माघ शुक्लपक्ष की सप्तमी को करना चाहिए।
  • सूर्य की पूजा करनी चाहिए। षष्ठी को एकभक्त एवं सप्तमी को उपवास रखना चाहिये।
  • सप्तमी की रात्रि के अन्त में एक हाथ में दीप लेकर स्थिर जल को हिला दिया जाता है।[1]
  • कृष्ण ने युधिष्ठर को उस वेश्या इन्दुमती की कथा सुनाई है, जिसने पश्चाताप में आकर अचलासप्तमी का सम्पादन किया जाता है।[2]
  • व्रतार्क, व्रतराज[3] निर्णयामृत (51) में इसे जयन्ती भी कहा गया है।
  • इस दिन भास्कर का ध्यान करना चाहिए।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि व्रतखण्ड (1, 643–648
  2. भविष्योत्तर पुराण में उद्धरण
  3. व्रतराज (253–255

अन्य संबंधित लिंक

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