धन्य व्रत

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धन्यव्रत या धन्यप्रतिपदाव्रत

  • मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को यह व्रत आरम्भ होता है।
  • उस दिन नक्त (एक बार रात्रि में भोजन) और रात्रि में विष्णुमूर्ति (अग्नि के अनुरूप) की पूजा की जाती है।
  • इसके सामने बने कुण्ड में होम किया जाता है।
  • घृत के साथ यावक एवं भोजन का ग्रहण किया जाता है।
  • यही कृत्य कृष्ण पक्ष में भी किया जाता है।
  • चैत्र से लेकर आठ मासों तक यह व्रत किया जाता है।
  • व्रत के अन्त में अग्नि की स्वर्णिम प्रतिमा का दान दिया जाता है।
  • यहाँ तक की अभागा व्यक्ति भी सुख, सम्पत्ति एवं भोजन से युक्त एवं पापमुक्त हो जाता है।
  • कृत्यकल्पतरु[1] ने इसे धन्यप्रतिपदा कहा है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड 38-40)

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