"हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों -रामधारी सिंह दिनकर" के अवतरणों में अंतर

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कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो।
 
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो।
 
 
श्रवण खोलो¸
 
श्रवण खोलो¸
 
 
रूक सुनो¸ विकल यह नाद
 
रूक सुनो¸ विकल यह नाद
 
 
कहां से आता है।
 
कहां से आता है।
 
 
है आग लगी या कहीं लुटेरे लूट रहे?
 
है आग लगी या कहीं लुटेरे लूट रहे?
 
 
वह कौन दूर पर गांवों में चिल्लाता है?
 
वह कौन दूर पर गांवों में चिल्लाता है?
  
  
 
जनता की छाती भिदें
 
जनता की छाती भिदें
 
 
और तुम नींद करो¸
 
और तुम नींद करो¸
 
 
अपने भर तो यह जुल्म नहीं होने दूँगा।
 
अपने भर तो यह जुल्म नहीं होने दूँगा।
 
 
तुम बुरा कहो या भला¸
 
तुम बुरा कहो या भला¸
 
 
मुझे परवाह नहीं¸
 
मुझे परवाह नहीं¸
 
 
पर दोपहरी में तुम्हें नहीं सोने दूँगा।।
 
पर दोपहरी में तुम्हें नहीं सोने दूँगा।।
  
  
 
हो कहां अग्निधर्मा
 
हो कहां अग्निधर्मा
 
 
नवीन ऋषियो? जागो¸
 
नवीन ऋषियो? जागो¸
 
 
कुछ नयी आग¸
 
कुछ नयी आग¸
 
 
नूतन ज्वाला की सृष्टि करो।
 
नूतन ज्वाला की सृष्टि करो।
 
 
शीतल प्रमाद से ऊंघ रहे हैं जो¸ उनकी
 
शीतल प्रमाद से ऊंघ रहे हैं जो¸ उनकी
 
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मखमली सेज पर चिनगारी की वृष्टि करो।
मखमली सेज पर
 
 
 
चिनगारी की वृष्टि करो।
 
  
  
 
गीतों से फिर चट्टान तोड़ता हूं साथी¸
 
गीतों से फिर चट्टान तोड़ता हूं साथी¸
 
 
झुरमुटें काट आगे की राह बनाता हूँ।
 
झुरमुटें काट आगे की राह बनाता हूँ।
 
 
है जहां–जहां तमतोम
 
है जहां–जहां तमतोम
 
 
सिमट कर छिपा हुआ¸
 
सिमट कर छिपा हुआ¸
 
 
चुनचुन कर उन कुंजों में
 
चुनचुन कर उन कुंजों में
 
 
आग लगाता हूँ।  
 
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==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==

10:58, 23 अगस्त 2011 का अवतरण

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों -रामधारी सिंह दिनकर
रामधारी सिंह दिनकर
कवि रामधारी सिंह दिनकर
जन्म 23 सितंबर, सन 1908
जन्म स्थान सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार)
मृत्यु 24 अप्रैल, सन 1974
मृत्यु स्थान चेन्नई, तमिलनाडु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो।
श्रवण खोलो¸
रूक सुनो¸ विकल यह नाद
कहां से आता है।
है आग लगी या कहीं लुटेरे लूट रहे?
वह कौन दूर पर गांवों में चिल्लाता है?


जनता की छाती भिदें
और तुम नींद करो¸
अपने भर तो यह जुल्म नहीं होने दूँगा।
तुम बुरा कहो या भला¸
मुझे परवाह नहीं¸
पर दोपहरी में तुम्हें नहीं सोने दूँगा।।


हो कहां अग्निधर्मा
नवीन ऋषियो? जागो¸
कुछ नयी आग¸
नूतन ज्वाला की सृष्टि करो।
शीतल प्रमाद से ऊंघ रहे हैं जो¸ उनकी
मखमली सेज पर चिनगारी की वृष्टि करो।


गीतों से फिर चट्टान तोड़ता हूं साथी¸
झुरमुटें काट आगे की राह बनाता हूँ।
है जहां–जहां तमतोम
सिमट कर छिपा हुआ¸
चुनचुन कर उन कुंजों में
आग लगाता हूँ।







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