"हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों -रामधारी सिंह दिनकर" के अवतरणों में अंतर
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कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। | कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। | ||
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श्रवण खोलो¸ | श्रवण खोलो¸ | ||
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रूक सुनो¸ विकल यह नाद | रूक सुनो¸ विकल यह नाद | ||
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कहां से आता है। | कहां से आता है। | ||
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है आग लगी या कहीं लुटेरे लूट रहे? | है आग लगी या कहीं लुटेरे लूट रहे? | ||
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वह कौन दूर पर गांवों में चिल्लाता है? | वह कौन दूर पर गांवों में चिल्लाता है? | ||
जनता की छाती भिदें | जनता की छाती भिदें | ||
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और तुम नींद करो¸ | और तुम नींद करो¸ | ||
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अपने भर तो यह जुल्म नहीं होने दूँगा। | अपने भर तो यह जुल्म नहीं होने दूँगा। | ||
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तुम बुरा कहो या भला¸ | तुम बुरा कहो या भला¸ | ||
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मुझे परवाह नहीं¸ | मुझे परवाह नहीं¸ | ||
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पर दोपहरी में तुम्हें नहीं सोने दूँगा।। | पर दोपहरी में तुम्हें नहीं सोने दूँगा।। | ||
हो कहां अग्निधर्मा | हो कहां अग्निधर्मा | ||
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नवीन ऋषियो? जागो¸ | नवीन ऋषियो? जागो¸ | ||
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कुछ नयी आग¸ | कुछ नयी आग¸ | ||
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नूतन ज्वाला की सृष्टि करो। | नूतन ज्वाला की सृष्टि करो। | ||
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शीतल प्रमाद से ऊंघ रहे हैं जो¸ उनकी | शीतल प्रमाद से ऊंघ रहे हैं जो¸ उनकी | ||
− | + | मखमली सेज पर चिनगारी की वृष्टि करो। | |
− | मखमली सेज पर | ||
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− | चिनगारी की वृष्टि करो। | ||
गीतों से फिर चट्टान तोड़ता हूं साथी¸ | गीतों से फिर चट्टान तोड़ता हूं साथी¸ | ||
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झुरमुटें काट आगे की राह बनाता हूँ। | झुरमुटें काट आगे की राह बनाता हूँ। | ||
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है जहां–जहां तमतोम | है जहां–जहां तमतोम | ||
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सिमट कर छिपा हुआ¸ | सिमट कर छिपा हुआ¸ | ||
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चुनचुन कर उन कुंजों में | चुनचुन कर उन कुंजों में | ||
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आग लगाता हूँ। | आग लगाता हूँ। | ||
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==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== |
10:58, 23 अगस्त 2011 का अवतरण
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कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। |
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