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सौंह कियें ढरकौहे से नैन, टकी न टटै हिलकी हलियै।
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टकी न टटै हिलकी हलियै।
  
मुँह आगै हू आये न सूझयौ कछू ,सु कहयौ कछु ये सुति साँभल ए।
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मुँह आगै हू आये न सूझयौ कछू,
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सु कहयौ कछु ये सुति साँभल ए।
  
भौर ते साँझि भई न अजौं, घरि भतिर बाहर कौ ढलिए।
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घरि भतिर बाहर कौ ढलिए।
  
रहे गेह की देहरी ठाढ़े दोऊ, उर लागी दुहून चलौ चलिए।।  
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उर लागी दुहून चलौ चलिए।।  
  
 
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07:40, 8 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

सौंह कियें ढरकौहे से नैन -बिहारी लाल
बिहारी लाल
कवि बिहारी लाल
जन्म 1595
जन्म स्थान ग्वालियर
मृत्यु 1663
मुख्य रचनाएँ बिहारी सतसई
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
बिहारी लाल की रचनाएँ

सौंह कियें ढरकौहे से नैन,
टकी न टटै हिलकी हलियै।

मुँह आगै हू आये न सूझयौ कछू,
सु कहयौ कछु ये सुति साँभल ए।

भौर ते साँझि भई न अजौं,
घरि भतिर बाहर कौ ढलिए।

रहे गेह की देहरी ठाढ़े दोऊ,
उर लागी दुहून चलौ चलिए।।















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