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गोकुळमां एक रास रच्यो छे। कहां न कुबड्या संग अतक्योरे॥3॥
 
गोकुळमां एक रास रच्यो छे। कहां न कुबड्या संग अतक्योरे॥3॥
 
कालीसी कुबजा ने आंगें छे कुबडी। ये शूं करी जाणे लटकोरे॥4॥
 
कालीसी कुबजा ने आंगें छे कुबडी। ये शूं करी जाणे लटकोरे॥4॥
ये छे काळी ने ते छे। कुबडी रंगे रंग बाच्यो चटकोरे॥५॥
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ये छे काळी ने ते छे। कुबडी रंगे रंग बाच्यो चटकोरे॥5॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। खोळामां घुंघट खटकोरे॥६॥
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मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। खोळामां घुंघट खटकोरे॥6॥
  
  

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कठण थयां रे माधव मथुरां जाई -मीरां
मीरांबाई
कवि मीरांबाई
जन्म 1498
जन्म स्थान मेरता, राजस्थान
मृत्यु 1547
मुख्य रचनाएँ बरसी का मायरा, गीत गोविंद टीका, राग गोविंद, राग सोरठ के पद
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
मीरांबाई की रचनाएँ

कठण थयां रे माधव मथुरां जाई। कागळ न लख्यो कटकोरे॥ध्रु०॥
अहियाथकी हरी हवडां पधार्या। औद्धव साचे अटक्यारे॥1॥
अंगें सोबरणीया बावा पेर्या। शीर पितांबर पटकोरे॥2॥
गोकुळमां एक रास रच्यो छे। कहां न कुबड्या संग अतक्योरे॥3॥
कालीसी कुबजा ने आंगें छे कुबडी। ये शूं करी जाणे लटकोरे॥4॥
ये छे काळी ने ते छे। कुबडी रंगे रंग बाच्यो चटकोरे॥5॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। खोळामां घुंघट खटकोरे॥6॥


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