"विदूरथ": अवतरणों में अंतर
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*शाल्व ने अपने 'सौभ' नामक विमान से द्वारका पर आक्रमण करने के लिए प्रस्थान कर दिया था। दन्तवक्र ने यह [[करुष]] पहुँचते ही सुन लिया। उसने अपने भाई विदूरथ से कहा- "शाल्व का क्या होगा नहीं जानता, किन्तु मैं इस बार [[कृष्ण]] को मार न सका तो लौटूँगा नहीं।" | *शाल्व ने अपने 'सौभ' नामक विमान से द्वारका पर आक्रमण करने के लिए प्रस्थान कर दिया था। दन्तवक्र ने यह [[करुष]] पहुँचते ही सुन लिया। उसने अपने भाई विदूरथ से कहा- "शाल्व का क्या होगा नहीं जानता, किन्तु मैं इस बार [[कृष्ण]] को मार न सका तो लौटूँगा नहीं।" | ||
*[[दन्तवक्र]] तत्काल ही द्वारका के लिए चल पड़ा। अपने छोटे भाई विदूरथ को उसने कुछ कहने का समय ही नहीं दिया। विदूरथ भी जितनी शीघ्रता कर सकता था, करके बड़े भाई के लगभग पीछे ही रथ में बैठकर भागा।<ref> | *[[दन्तवक्र]] तत्काल ही द्वारका के लिए चल पड़ा। अपने छोटे भाई विदूरथ को उसने कुछ कहने का समय ही नहीं दिया। विदूरथ भी जितनी शीघ्रता कर सकता था, करके बड़े भाई के लगभग पीछे ही रथ में बैठकर भागा।<ref>श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह चक्र पृ. 199</ref> | ||
*गदा युद्ध में [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] दन्तवक्र को सद्गति देकर अभी अपने | *गदा युद्ध में [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] दन्तवक्र को सद्गति देकर अभी अपने रथ पर बैठने ही जा रहे थे कि दन्तवक्र का छोटा भाई विदूरथ आ पहुँचा। वह रथ दौड़ाता ही आया था, किन्तु दूर से उसने बड़े भाई को गिरते देख लिया था। रथ त्यागकर तलवार-ढाल लेकर वह श्रीकृष्ण पर टूट पड़ा। | ||
*विदूरथ तलवार का धनी था, किन्तु नेत्रों के सम्मुख बड़े भाई को मरते देखकर धर्मयुद्ध के नियम भूल गया था। श्रीकृष्ण पैदल थे और उनके कर में केवल [[गदा शस्त्र|गदा]] थी। विदूरथ को गदायुद्ध नहीं करना था तो उसे पुकारकर श्रीकृष्ण को तलवार उठाने के लिए सावधान करना चाहिए था और इतना समय देना चाहिए था। उसने क्रोधावेश में ऐसा कुछ नहीं किया। वह तो चाहे जैसे बने अपने अग्रज को मारने वाले को मार देना चाहता था। | *विदूरथ तलवार का धनी था, किन्तु नेत्रों के सम्मुख बड़े भाई को मरते देखकर धर्मयुद्ध के नियम भूल गया था। श्रीकृष्ण पैदल थे और उनके कर में केवल [[गदा शस्त्र|गदा]] थी। विदूरथ को गदायुद्ध नहीं करना था तो उसे पुकारकर श्रीकृष्ण को तलवार उठाने के लिए सावधान करना चाहिए था और इतना समय देना चाहिए था। उसने क्रोधावेश में ऐसा कुछ नहीं किया। वह तो चाहे जैसे बने अपने अग्रज को मारने वाले को मार देना चाहता था। | ||
*जब प्रतिपक्षी धर्मयुद्ध का ध्यान न रखे तो दूसरा भी स्वतंत्र हो जाता है। श्रीकृष्ण का [[सुदर्शन चक्र|चक्र]] तो हाथ उठाते ही उनके करों में आ जाता है। उन्होंने विदूरथ का मस्तक चक्र से काट फेंका। इस प्रकार [[शाल्व]], [[दन्तवक्र]], विदूरथ तीनों कुछ ही क्षण के अंतर में वहाँ रणभूमि में मारे गये।<ref> | *जब प्रतिपक्षी धर्मयुद्ध का ध्यान न रखे तो दूसरा भी स्वतंत्र हो जाता है। श्रीकृष्ण का [[सुदर्शन चक्र|चक्र]] तो हाथ उठाते ही उनके करों में आ जाता है। उन्होंने विदूरथ का मस्तक चक्र से काट फेंका। इस प्रकार [[शाल्व]], [[दन्तवक्र]], विदूरथ तीनों कुछ ही क्षण के अंतर में वहाँ रणभूमि में मारे गये।<ref>श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह चक्र पृ. 200</ref> | ||
10:55, 13 मई 2016 के समय का अवतरण
विदूरथ का उल्लेख हिन्दू पौराणिक महाकाव्य 'महाभारत' में हुआ है, जिसके अनुसार ये एक यादव वीर[1] और दन्तवक्र के छोटे भ्राता थे। जब शाल्व ने द्वारका पर आक्रमण किया, तब उसके मित्र दन्तवक्र और विदुरथ भी उसका साथ देने युद्ध में सम्मिलित हुए थे, किंतु दोनों ही श्रीकृष्ण द्वारा मारे गये।
- शाल्व ने अपने 'सौभ' नामक विमान से द्वारका पर आक्रमण करने के लिए प्रस्थान कर दिया था। दन्तवक्र ने यह करुष पहुँचते ही सुन लिया। उसने अपने भाई विदूरथ से कहा- "शाल्व का क्या होगा नहीं जानता, किन्तु मैं इस बार कृष्ण को मार न सका तो लौटूँगा नहीं।"
- दन्तवक्र तत्काल ही द्वारका के लिए चल पड़ा। अपने छोटे भाई विदूरथ को उसने कुछ कहने का समय ही नहीं दिया। विदूरथ भी जितनी शीघ्रता कर सकता था, करके बड़े भाई के लगभग पीछे ही रथ में बैठकर भागा।[2]
- गदा युद्ध में श्रीकृष्ण दन्तवक्र को सद्गति देकर अभी अपने रथ पर बैठने ही जा रहे थे कि दन्तवक्र का छोटा भाई विदूरथ आ पहुँचा। वह रथ दौड़ाता ही आया था, किन्तु दूर से उसने बड़े भाई को गिरते देख लिया था। रथ त्यागकर तलवार-ढाल लेकर वह श्रीकृष्ण पर टूट पड़ा।
- विदूरथ तलवार का धनी था, किन्तु नेत्रों के सम्मुख बड़े भाई को मरते देखकर धर्मयुद्ध के नियम भूल गया था। श्रीकृष्ण पैदल थे और उनके कर में केवल गदा थी। विदूरथ को गदायुद्ध नहीं करना था तो उसे पुकारकर श्रीकृष्ण को तलवार उठाने के लिए सावधान करना चाहिए था और इतना समय देना चाहिए था। उसने क्रोधावेश में ऐसा कुछ नहीं किया। वह तो चाहे जैसे बने अपने अग्रज को मारने वाले को मार देना चाहता था।
- जब प्रतिपक्षी धर्मयुद्ध का ध्यान न रखे तो दूसरा भी स्वतंत्र हो जाता है। श्रीकृष्ण का चक्र तो हाथ उठाते ही उनके करों में आ जाता है। उन्होंने विदूरथ का मस्तक चक्र से काट फेंका। इस प्रकार शाल्व, दन्तवक्र, विदूरथ तीनों कुछ ही क्षण के अंतर में वहाँ रणभूमि में मारे गये।[3]