"स्नेह-निर्झर बह गया है -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला" के अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Suryakant Tripathi...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
पंक्ति 31: | पंक्ति 31: | ||
{{Poemopen}} | {{Poemopen}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | स्नेह-निर्झर बह गया है ! | + | स्नेह-निर्झर बह गया है! |
− | रेत ज्यों तन रह गया | + | रेत ज्यों तन रह गया है। |
आम की यह डाल जो सूखी दिखी, | आम की यह डाल जो सूखी दिखी, | ||
− | कह रही है-"अब यहाँ पिक या शिखी | + | कह रही है - "अब यहाँ पिक या शिखी |
नहीं आते; पंक्ति मैं वह हूँ लिखी | नहीं आते; पंक्ति मैं वह हूँ लिखी | ||
नहीं जिसका अर्थ- | नहीं जिसका अर्थ- | ||
− | जीवन दह गया | + | जीवन दह गया है।" |
"दिये हैं मैने जगत को फूल-फल, | "दिये हैं मैने जगत को फूल-फल, | ||
पंक्ति 44: | पंक्ति 44: | ||
पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल-- | पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल-- | ||
ठाट जीवन का वही | ठाट जीवन का वही | ||
− | जो ढह गया | + | जो ढह गया है।" |
अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा, | अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा, | ||
− | श्याम तृण पर बैठने को | + | श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा। |
बह रही है हृदय पर केवल अमा; | बह रही है हृदय पर केवल अमा; | ||
मै अलक्षित हूँ; यही | मै अलक्षित हूँ; यही | ||
− | कवि कह गया | + | कवि कह गया है। |
</poem> | </poem> | ||
{{Poemclose}} | {{Poemclose}} |
10:02, 25 अगस्त 2011 का अवतरण
| ||||||||||||||||||
|
स्नेह-निर्झर बह गया है! |
संबंधित लेख