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मेरो मन हरिजू! हठ न तजै।
 
मेरो मन हरिजू! हठ न तजै।
 
निसिदिन नाथ देउँ सिख बहु बिधि, करत सुभाउ निजै॥1॥
 
निसिदिन नाथ देउँ सिख बहु बिधि, करत सुभाउ निजै॥1॥
ज्यों जुबती अनुभवति प्रसव अति दारुन दुख उपजै।
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ज्यों जुबती अनुभवति प्रसव अति दारुन दु:ख उपजै।
ह्वै अनुकूल बिसारि सूल सठ, पुनि खल पतिहिं भजै॥२॥
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ह्वै अनुकूल बिसारि सूल सठ, पुनि खल पतिहिं भजै॥2॥
 
लोलुप भ्रमत गृहपसु-ज्यों जहॅं-तहॅं सिर पदत्रान बजै।
 
लोलुप भ्रमत गृहपसु-ज्यों जहॅं-तहॅं सिर पदत्रान बजै।
तदपि अधम बिचरत तेहि मारग, कबहुँ न मूढ़ लजै॥३॥
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तदपि अधम बिचरत तेहि मारग, कबहुँ न मूढ़ लजै॥3॥
 
हौं रारयौ करि जतन बिबिध बिधि, अतिसै प्रबल अजै।
 
हौं रारयौ करि जतन बिबिध बिधि, अतिसै प्रबल अजै।
तुलसिदास बस होइ तबहिं जब प्रेरक प्रभु बरजै॥४॥
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तुलसिदास बस होइ तबहिं जब प्रेरक प्रभु बरजै॥4॥
  
 
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14:04, 2 जून 2017 के समय का अवतरण

मेरो मन हरिजू! हठ न तजै -तुलसीदास
तुलसीदास
कवि तुलसीदास
जन्म 1532
जन्म स्थान राजापुर, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1623 सन
मुख्य रचनाएँ रामचरितमानस, दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
तुलसीदास की रचनाएँ

मेरो मन हरिजू! हठ न तजै।
निसिदिन नाथ देउँ सिख बहु बिधि, करत सुभाउ निजै॥1॥
ज्यों जुबती अनुभवति प्रसव अति दारुन दु:ख उपजै।
ह्वै अनुकूल बिसारि सूल सठ, पुनि खल पतिहिं भजै॥2॥
लोलुप भ्रमत गृहपसु-ज्यों जहॅं-तहॅं सिर पदत्रान बजै।
तदपि अधम बिचरत तेहि मारग, कबहुँ न मूढ़ लजै॥3॥
हौं रारयौ करि जतन बिबिध बिधि, अतिसै प्रबल अजै।
तुलसिदास बस होइ तबहिं जब प्रेरक प्रभु बरजै॥4॥

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