"अब क्या करता वह क्या करता? -बुल्ले शाह" के अवतरणों में अंतर

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वह सर्वव्यापी स्वयं साक्षी है, फिर नर्क किसे ले जाता?
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बात नाज़ुक है, कैसे कहता, न कह सकता न सह सकता,
 
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कैसा सुन्दर वतन जहाँ एक गढ़ता है एक जलता,
 
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10:53, 11 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

अब क्या करता वह क्या करता? -बुल्ले शाह
बुल्ले शाह
कवि बुल्ले शाह
जन्म 1680 ई.
जन्म स्थान गिलानियाँ उच्च, वर्तमान पाकिस्तान
मृत्यु 1758 ई.
मुख्य रचनाएँ बुल्ले नूँ समझावन आँईयाँ, अब हम गुम हुए, किते चोर बने किते काज़ी हो
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
बुल्ले शाह की रचनाएँ

की करदा हुण की करदा,
तुसी कहो खाँ दिलबर की करदा।
इकसे घर विच वसदियाँ रसदियाँ नहीं बणदा हुण पर्दा,
विच मसीत नमाज़ गुज़ारे बुत-ख़ाने जा सजदा,
आप इक्को कई लख घाराँ दे मालक है घर-घर दा,
जित वल वेखाँ तित वल तूं ही हर इक दा संग करदा,
मूसा ते फिरौन बणा के दो हो कियों कर लड़दा,
हाज़र नाज़र खुद नवीस है दोज़ख किस नूं खड़दा,
नाज़क बात है कियों कहंदा ना कह सक्दा ना जर्दा,
वाह वाह वतन कहींदा एहो इक दबींदा इक सड़दा,
वाहदत दा दरीयायो सचव, उथे दिस्से सभ को तरदा,
इत वल आपे उत वल आपे, आपे साहिब आपे बरदा,
बुल्ला शाह दा इश्क़ बघेला, रत पींदा गोशत चरदा।


हिन्दी अनुवाद

अब क्या करता वह क्या करता?
तुम्हीं कहो, दिलबर क्या करता?
एक ही घर में रहतीं बसतीं फिर पर्दा क्या अच्छा,
मस्जिद में पढ़ता नमाज़ वो, पर मन्दिर भी जाता,
एक है वह पर घर लाख अनेक, मालिक वह हर घर का,
चारों ओर प्रभु ही सबके संग नज़र है आता,
मूसा और फरौह को रच के, फिर दो बन क्यों लड़ता?
वह सर्वव्यापी स्वयं साक्षी है, फिरनरककिसे ले जाता?
बात नाज़ुक है, कैसे कहता, न कह सकता न सह सकता,
कैसा सुन्दर वतन जहाँ एक गढ़ता है एक जलता,
अद्वैत और सत्य-सरिता में सब कोई दिखता तरता,
वही इस ओर, वही उस ओर, मालिक और दास वही सबका,
व्याघ्र-सम प्रेम है बुल्ले शाह का, जो पीता है रक्त और मांस है खाता।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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