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जागिये कृपानिधान जानराय, रामचन्द्र!
 
जागिये कृपानिधान जानराय, रामचन्द्र!
जननी कहै बार-बार, भोर भयो प्यारे॥
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जननी कहै बार - बार, भोर भयो प्यारे॥
 
राजिवलोचन बिसाल, प्रीति बापिका मराल,
 
राजिवलोचन बिसाल, प्रीति बापिका मराल,
ललित कमल-बदन ऊपर मदन कोटि बारे॥
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ललित कमल - बदन ऊपर मदन कोटि बारे॥
अरुन उदित, बिगत सर्बरी, ससांक-किरन ही,
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अरुन उदित, बिगत सर्बरी, ससांक - किरन ही,
दीन दीप-ज्योति मलिन-दुति समूह तारे॥
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दीन दीप - ज्योति मलिन - दुति समूह तारे॥
 
मनहुँ ग्यान घन प्रकास बीते सब भव बिलास,
 
मनहुँ ग्यान घन प्रकास बीते सब भव बिलास,
आस त्रास तिमिर-तोष-तरनि-तेज जारे॥
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आस त्रास तिमिर - तोष - तरनि - तेज जारे॥
 
बोलत खग निकर मुखर, मधुर, करि प्रतीति,
 
बोलत खग निकर मुखर, मधुर, करि प्रतीति,
 
सुनहु स्त्रवन, प्रान जीवन धन, मेरे तुम बारे॥
 
सुनहु स्त्रवन, प्रान जीवन धन, मेरे तुम बारे॥
 
मनहुँ बेद बंदी मुनिबृन्द सूत मागधादि बिरुद-
 
मनहुँ बेद बंदी मुनिबृन्द सूत मागधादि बिरुद-
बदत 'जय जय जय जयति कैटभारे'॥
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बदत 'जय जय जय जयति कैटभारे॥
 
बिकसित कमलावली, चले प्रपुंज चंचरीक,
 
बिकसित कमलावली, चले प्रपुंज चंचरीक,
 
गुंजत कल कोमल धुनि त्यगि कंज न्यारे।
 
गुंजत कल कोमल धुनि त्यगि कंज न्यारे।

14:03, 25 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

जागिये कृपानिधान जानराय, रामचन्द्र -तुलसीदास
तुलसीदास
कवि तुलसीदास
जन्म 1532 सन
जन्म स्थान राजापुर, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1623 सन
मुख्य रचनाएँ रामचरितमानस, दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
तुलसीदास की रचनाएँ

जागिये कृपानिधान जानराय, रामचन्द्र!
जननी कहै बार - बार, भोर भयो प्यारे॥
राजिवलोचन बिसाल, प्रीति बापिका मराल,
ललित कमल - बदन ऊपर मदन कोटि बारे॥
अरुन उदित, बिगत सर्बरी, ससांक - किरन ही,
दीन दीप - ज्योति मलिन - दुति समूह तारे॥
मनहुँ ग्यान घन प्रकास बीते सब भव बिलास,
आस त्रास तिमिर - तोष - तरनि - तेज जारे॥
बोलत खग निकर मुखर, मधुर, करि प्रतीति,
सुनहु स्त्रवन, प्रान जीवन धन, मेरे तुम बारे॥
मनहुँ बेद बंदी मुनिबृन्द सूत मागधादि बिरुद-
बदत 'जय जय जय जयति कैटभारे॥
बिकसित कमलावली, चले प्रपुंज चंचरीक,
गुंजत कल कोमल धुनि त्यगि कंज न्यारे।
जनु बिराग पाइ सकल सोक-कूप-गृह बिहाइ॥
भृत्य प्रेममत्त फिरत गुनत गुन तिहारे,
सुनत बचन प्रिय रसाल जागे अतिसय दयाल।
भागे जंजाल बिपुल, दुख-कदम्ब दारे।
तुलसीदास अति अनन्द, देखिकै मुखारबिंद,
छूटे भ्रमफंद परम मंद द्वंद भारे॥

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