बालखिल्य

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बालखिल्य नाम के मुनियों का आकार अंगूठे के बराबर माना जाता है। दक्ष तथा क्रिया से उत्पन्न पुत्री 'सन्नति' से क्रतु ऋषि ने विवाह रचाया था। इसी दम्पत्ति से साठ हज़ार 'बालखिल्य' नाम के पुत्र हुए थे। इन मुनियों ने कश्यप के पुत्र-कामना यज्ञ में भाग लिया था। इसी समय देवराज इन्द्र ने बालखिल्य मुनियों का उपहास किया। इससे रुष्ठ होकर बालखिल्य मुनियों ने एक दूसरे इन्द्र की उत्पत्ति की कामना की थी। बालखिल्य मुनियों के वरदान से ही महर्षि कश्यप के यहाँ गरुड़ का जन्म हुआ।

  • एक समय कश्यप पुत्र कामना से यज्ञ कर रहे थे और देवता भी उनके सहायक थे।
  • कश्यप ने इन्द्र तथा बालखिल्य मुनियों को समिधा लाने का कार्य सौंपा था।
  • इन्द्र तो बलिष्ठ थे, उन्होंने समिधाओं का ढेर लगा दिया।
  • बालखिल्य मुनिगण अंगूठे के बराबर आकार के थे तथा सब मिलकर पलाश की एक टहनी ला रहे थे।
  • उन्हें इस प्रकार पलाश की टहनी लाते देखकर इन्द्र ने उनका परिहास किया।
  • वे सब इन्द्र से रुष्ट होकर किसी दूसरे इन्द्र की उत्पत्ति की कामना से प्रतिदिन विधिपूर्वक आहुति देने लगे।
  • उनकी आकांक्षा थी कि इन्द्र से सौ गुने अधिक शक्तिशाली और पराक्रमी दूसरे इन्द्र की उत्पत्ति हो।
  • इन्द्र बहुत संतप्त होकर कश्यप के पास पहुँचे। कश्यप इन्द्र के साथ बालखिल्य मुनि के पास पहुँचे।
  • इन्द्र को भविष्य में घमंण्ड न करने का आदेश देते हुए कश्यप ने उन सभी ऋषियों को समझाया-बुझाया।
  • बालखिल्य मुनियों की तपस्या भी व्यर्थ नहीं जा सकती थी, अत: उन्होंने कहा-"हे कश्यप! तुम पुत्र के लिए तप कर रहे हो। तुम्हारा पुत्र ही वह पराक्रमी, शक्तिशाली प्राणी होगा, वह पक्षियों का इन्द्र होगा।"
  • इसी वरदान के फलस्वरूप पक्षीराज गरुड़ का जन्म कश्यप के घर में हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय मिथक कोश |लेखक: डॉ. उषा पुरी विद्यावाचस्पति |प्रकाशक: नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 200 |


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