देवानंद

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देवानंद
देव आनंद
पूरा नाम धर्मदेव आनंद
प्रसिद्ध नाम 'देवानंद' अथवा 'देव आनंद'
अन्य नाम देव साहब
जन्म 26 सितंबर, 1923
जन्म भूमि पंजाब के गुरदासपुर ज़िले (अब पाकिस्तान में)
मृत्यु 3 दिसम्बर 2011 (88 वर्ष)
मृत्यु स्थान लंदन, इंग्लैंड
अभिभावक पिशौरीमल आनंद
पति/पत्नी कल्पना कार्तिक
संतान सुनील आनंद
कर्म भूमि मुंबई
कर्म-क्षेत्र फ़िल्म निर्माता-निर्देशक, अभिनेता
मुख्य फ़िल्में 'गाइड', 'हम दोनों', 'बाज़ी', 'काला बाज़ार', 'असली नक़ली', 'ज्वेलथीफ़', 'जॉनी मेरा' नाम आदि।
शिक्षा स्नातक
विद्यालय गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर
पुरस्कार-उपाधि दो बार फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार, पद्म भूषण, दादा साहब फाल्के पुरस्कार
नागरिकता भारतीय
अद्यतन‎

देवानंद पूरा नाम धर्मदेव आनंद (जन्म- 26 सितंबर, 1923, पंजाब; मृत्यु- 3 दिसम्बर, 2011, लंदन) भारतीय सिनेमा के शुरुआती दौर के प्रसिद्ध अभिनेता थे जो जीवन भर सक्रिय और चर्चित रहे। वे अभिनेता के साथ-साथ निर्माता-निर्देशक भी थे। वे बॉलीवुड में 'देव साहब' के नाम से एक ज़िन्दादिल और भले इंसान के रूप में प्रसिद्ध थे। भारतीय सिनेमा में दो पीढ़ियों तक लगातार हीरो बने रहने वाले कलाकार के विषय में यदि विचार करें तो केवल एक ही नाम उभरता है और वह है देव आनंद। कभी अपनी एक फ़िल्म में उन्होंने एक गीत गुनगुनाया था 'मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फ़िक्र को धुंए में उड़ाता चला गया' और शायद यही गीत उनके जीवन को सबसे अच्छी तरह परिभाषित भी करता है। देव आनंद का नाम हिंदी सिने जगत् के आकाश में स्टाइल गुरु बनकर जगमगाता है। सदाबहार अभिनेता देव आनंद को लोग 'एवरग्रीन देव साहब' कह कर पुकारते हैं। सदाबहार देवानंद का जलवा अब भी बरक़रार है। छह दशक से अधिक समय तक रुपहले परदे पर राज करने वाले देवानंद साहब का 26 सितंबर को जन्मदिन पड़ता है और 88 वर्ष की उम्र हृदयगति रुक जाने से 3 दिसम्बर 2011 को उनका देहावसान हुआ।

जीवन परिचय

जन्म और बचपन

बॉलीवुड सदाबहार हीरो देव आनंद का पूरा नाम धर्मदेव पिशौरीमल आनंद है। देव आनंद जो कि भारतीय सिनेमा के महान् कलाकार, निर्माता व निर्देशक हैं, का जन्म अविभाजित पंजाब के गुरदासपुर ज़िले (अब पाकिस्तान में) में 26 सितंबर, 1923 को एक मध्यम वर्गीय परिवार में और प्रसिद्ध वकील पिशौरीमल आनंद नामक एक संपन्न घर हुआ था। उनका बचपन का नाम धर्मदेव (देवदत्त) पिशौरीमल आनंद था।

उनका बचपन परेशानियों से घिरा रहा। बचपन से ही उनका झुकाव अपने पिता के पेशे वकालत की ओर न होकर अभिनय की ओर था। एक वकील और आज़ादी के लिए लड़ने वाले पिशौरीमल के घर पैदा होने वाले देव ने रद्दी की दुकान से जब बाबूराव पटेल द्वारा सम्पादित 'फ़िल्म इंडिया' के पुराने अंक पढ़े तो उन की आंखों ने फ़िल्मों में काम करने का सपना देख डाला और वह माया नगरी मुम्बई के सफर पर निकल पड़े।

शिक्षा

देव आनंद ने अंग्रेज़ी साहित्य में अपनी स्नातक की शिक्षा 1942 में लाहौर के मशहूर गवर्नमेंट कॉलेज से पूरी की। इस कॉलेज ने फ़िल्म और साहित्य जगत् को बलराज साहनी, चेतन आनंद, बी. आर. चोपड़ा और खुशवंत सिंह जैसे शख़्सियतें दी हैं। इसके बाद वे उच्च शिक्षा हासिल करना चाहते थे लेकिन पिता के पास इतने पैसे नहीं थे।

नौकरी

देव आनंद को अपनी पहली नौकरी मिलिट्री सेन्सर ऑफिस (आर्मी करेस्पांडेंस सेंसर डिपार्टमेंट) में एक लिपिक के तौर पर मिली जहाँ उन्हें सैनिकों द्वारा लिखी चिट्ठियों को उनके परिवार के लोगों को पढ़ कर सुनाना पड़ता था। इस काम के लिए देव आनंद को 165 रुपये मासिक वेतन के रूप में मिला करता था जिसमें से 45 रुपये वह अपने परिवार के खर्च के लिए भेज दिया करते थे। लगभग एक वर्ष तक मिलिट्री सेन्सर में नौकरी करने के बाद और परिवार की कमज़ोर आर्थिक स्थिति को देखते हुए वह 30 रुपये जेब में ले कर पिता के मुंबई जाकर काम न करने की सलाह के विपरीत देव अपने भाई चेतन आनंद के साथ फ्रंटियर मेल से 1943 में मुंबई पहुँच गये। चेतन आनंद उस समय भारतीय जन नाटय संघ इप्टा से जुड़े हुए थे। उन्होंने देव आनंद को भी अपने साथ इप्टा में शामिल कर लिया।

फ़िल्मी सफर

देव आनंद और उनके छोटे भाई विजय आनंद को फ़िल्मों में लाने का श्रेय उनके बड़े भाई चेतन आनंद को जाता है। देव ने ये सपने में भी न सोचा होगा कि कामयाबी इतनी जल्दी उनके क़दम चूमेगी मगर ये तीस रुपए रंग लाए और जाएँ तो जाएँ कहाँ का राग अलापने वाले देव आनंद को माया नगरी मुम्बई में आशियाना मिल गया। गायक बनने का सपना लेकर मुंबई पहुंचे देवानंद अभिनेता बन गए। देवआनंद के भाई, चेतन आनंद और विजय आनंद भी भारतीय सिनेमा में सफल निर्देशक रहे हैं। उनकी बहन शील कांता कपूर प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक शेखर कपूर की माँ है।

पहली फ़िल्म

फ़िल्मी दुनिया में क़दम रखने के बाद उनका नाम सिमट कर हो गया देवानंद। देव आनंद को अभिनेता के रूप में पहला ब्रेक 1946 में प्रभात स्टूडियो की फ़िल्म ‘हम एक हैं’ से मिला। लेकिन इस फ़िल्म के असफल होने से वह दर्शकों के बीच अपनी पहचान नहीं बना सके। इस फ़िल्म के निर्माण के दौरान प्रभात स्टूडियो में उनकी मुलाकात बाद के मशहूर फ़िल्म निर्माता-निर्देशक गुरुदत्त से हुई जो उन दिनों फ़िल्मी दुनिया में कोरियोग्राफर के रूप में स्थान बनाने के लिए संघर्षरत थे। वहाँ दोनों की दोस्ती हुई और एक साथ सपने देखते इन दोनों दोस्तों ने आपस में एक वादा किया कि अगर गुरुदत्त फ़िल्म निर्देशक बनेंगे तो वे देव को अभिनेता के रूप में लेंगे और अगर देव निर्माता बनेंगे तो गुरुदत्त को निर्देशक के रूप में लेंगे।

फ़िल्म निर्माण

देव आनंद का फ़िल्मी सफ़र
वर्ष फ़िल्म
1952 जाल
आँधियाँ
तमाशा
जलजला
1953 पतिता
राही
हमसफर
अरमान
1954 बादबान
टैक्सी ड्राइवर
फेरी
1955 फरार
हाउस नंबर 44
मुनीम जी
इंसानियत
मिलाप
1956 फंटूश
सीआईडी
पॉकेटमार
1957 पेइंग गेस्ट
दुश्मन
बारिश
नौ दो ग्यारह
1958 सोलहवाँ साल
अमर दीप
काला पानी
1959 लव मैरिज
1960 जाली नोट
एक के बाद एक
मंज़िल
सरहद
बम्बई का बाबू
काला बाज़ार
1961 जब प्यार किसी से होता है
हम दोनों
1962 बात एक रात की
माया
रूप की रानी चोरों का राजा
1963 असली नकली
तेरे घर के सामने
1964 शराबी
किनारा किनारे
1965 तीन देवियाँ
गाइड
1966 प्यार मोहब्बत
1967 ज्वेलथीफ
1968 कहीं और चल
फरेब
1969 दुनिया
महल
1970 जॉनी मेरा नाम
प्रेम पुजारी
1971 गैम्बलर
तेरे मेरे सपने
1972 अच्छा बुरा
हरे रामा हरे कृष्णा
यह गुलिस्तां हमारा
1973 छुपा रुस्तम
शरीफ़ बदमाश
जोशीला
1974 इश्क इश्क इश्क
हीरा पन्ना
प्रेम शास्त्र
अमीर ग़रीब
1975 वारंट
1976 जानेमन
1977 कलाबाज
डार्लिंग डार्लिंग
बुलेट
1978 देस परदेस
1980 मनपसंद
साहेब बहादुर
लूटमार
1982 स्वामी दादा
1984 आनंद और आनंद
1986 हम नौजवान
1989 सच्चे का बोलबाला
लश्कर
1990 अव्वल नंबर
1991 सौ करोड़
1995 गैंगस्टर
1996 रिटर्न ऑफ ज्वेलथीफ
1998 मैं सोलह बरस की
2001 सेंसर
2003 लव एट टाइम्स स्क्वेयर
2005 मि.प्राइम मिनिस्टर

वर्ष 1948 में प्रदर्शित फ़िल्म 'जिद्दी' (1948) में अभिऩेत्री कामिनी कौशल के साथ देव आनंद के फ़िल्मी कैरियर की पहली हिट फ़िल्म साबित हुई। जिद्दी ने देव आनंद को नई ऊंचाइयाँ दिलायी। इस फ़िल्म की कामयाबी के बाद उन्होंने फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में क़दम रख दिया। सन् 1949 में उन्होंने 'नवकेतन' बैनर नाम से स्वयं की फ़िल्म निर्माण संस्था खोल ली और उसके अंतर्गत साल दर साल फ़िल्में बनाने में सफल हुये। नवकेतन के बैनर तले उन्होंने वर्ष 1950 में अपनी पहली फ़िल्म 'अफसर' का निर्माण किया जिसके निर्देशन की ज़िम्मेदारी उन्होंने अपने बड़े भाई चेतन आनंद को सौंपी। इस फ़िल्म के लिए उन्होंने उस ज़माने की जानी मानी अभिनेत्री सुरैया का चयन किया जबकि अभिनेता के रूप में देव आनंद खुद ही थे। हालाँकि फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर कोई करिश्मा नहीं दिखा पाई।

इसके बाद उनका ध्यान गुरुदत्त को किए गए वायदे की तरफ़ गया। और सन् 1951 में उन्होंने अपनी अगली फ़िल्म 'बाज़ी' के निर्देशन की ज़िम्मेदारी गुरुदत्त को सौंप दी। फ़िल्म सुपरहिट हुई और दोनों दोस्तों की किस्मत चमक गई। फ़िल्म बाज़ी की कहानी बलराज साहनी ने लिखी थी। बाज़ी फ़िल्म की सफलता के बाद देव आनंद फ़िल्म इंडस्ट्री में एक अच्छे अभिनेता के रूप में शुमार होने लगे। देव यहीं से दिलीप कुमार और राजकुमार की क़तार में जा खड़े हुए और इस त्रिमूर्ति ने लंबे समय तक हिंदी फ़िल्मी दुनिया पर राज किया। जाल, राही, आंधियां, (1952), पतिता (1953), व अन्य फ़िल्मों के साथ स्‌न 1954 में अभिनेत्री कल्पना कार्तिक के साथ आई फ़िल्म "टैक्सी ड्राइवर" बड़ी हिट फ़िल्म थी।

देवानंद और गुरुदत्त

'बाज़ी' के हिट होने के बाद देव आनंद ने गुरुदत्त के निर्देशन में वर्ष 1952 में फ़िल्म जाल में भी अभिनय किया। इस फ़िल्म के निर्देशन के बाद गुरुदत्त ने यह फैसला किया कि वह केवल अपनी निर्मित फ़िल्मों का निर्देशन करेंगे। बाद में देव आनंद ने अपनी निर्मित फ़िल्मों के निर्देशन की ज़िम्मेदारी अपने छोटे भाई विजय आनंद को सौंप दी। विजय आनंद ने देव आनंद की कई फ़िल्मों का निर्देशन किया। इन फ़िल्मों में काला बाज़ार, तेरे घर के सामने, गाइड, तेरे मेरे सपने, छुपा रुस्तम प्रमुख हैं।

पहली रंगीन फ़िल्म 'गाइड'

देव आनंद

देव आनंद प्रख्यात उपन्यासकार आर. के. नारायण से काफ़ी प्रभावित रहा करते थे और उनके उपन्यास गाइड पर फ़िल्म बनाना चाहते थे। आर. के. नारायणन की स्वीकृति के बाद देव आनंद ने हॉलीवुड के सहयोग से इसी नाम से एक फ़िल्म बनाई जिसका निर्देशन किया था उनके छोटे भाई विजय आनंद (गोल्डी) ने किया था, जो खुद भी एक अभिनेता थे तथा अभिनेत्री वहीदा रहमान थी। हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में फ़िल्म गाइड का निर्माण किया जो देव आनंद के सिने कैरियर की पहली रंगीन फ़िल्म थी। इस फ़िल्म ने आलोचकों को बहुत प्रभावित किया। गाइड का प्रदर्शन सन् 1965 में होने के बाद उनका नाम ही पड़ गया 'राजू गाइड', जो युवाओं में बहुत लोकप्रिय हुआ। इस फ़िल्म के लिए देव आनंद को उनके जबर्दस्त अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्म फेयर पुरस्कार भी दिया गया। यह फ़िल्म अभी भी हिन्दी सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ निर्देशित व सम्पादित फ़िल्मों में से एक मानी जाती है।

निर्देशक के रूप में

वर्ष 1970 में फ़िल्म 'प्रेम पुजारी' के साथ देव आनंद ने निर्देशन के क्षेत्र में भी क़दम रख दिया। हालांकि यह फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से नकार दी गई, बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। इसके बाद वर्ष 1971 में फ़िल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा' का भी निर्देशन किया जिसमें 'दम मारो दम' गीत ने धूम मचाई। इस फ़िल्म के कामयाबी के बाद देवानंद को एक बेहतरीन निर्देशक के रूप में स्थापित कर दिया और उन्होंने अपनी कई फ़िल्मों का निर्देशन भी किया। इस फ़िल्म के ज़रिए उन्होंने युवा पीढ़ी को राष्ट्रप्रेम के लिए पुकारा। इन फ़िल्मों में हीरा पन्ना, देश परदेस, लूटमार, स्वामी दादा, सच्चे का बोलबाला, अव्वल नंबर, लव एट टाइम्स स्क्वैर, मैं सोलह बरस की, गैंगस्टर और हम नौजवान जैसी फ़िल्में शामिल हैं।

देव आनंद ने कई फ़िल्मों की पटकथा भी लिखी। जिसमें वर्ष 1952 में प्रदर्शित फ़िल्म 'आंधियां' के अलावा 'हरे रामा हरे कृष्णा', 'हम नौजवान', 'अव्वल नंबर', 'प्यार का तराना' (1993 में), 'गैंगेस्टर', 'मैं सोलह बरस की', 'सेन्सर' आदि फ़िल्में शामिल हैं।

देवानंद और नई अभिनेत्रियाँ

देवानंद एक समय बाद नई अभिनेत्रियों को पर्दे पर उतारने के लिए मशहूर हो गए। 'हरे रामा हरे कृष्णा' के ज़रिए उन्होंने ज़ीनत अमान की खोज की और टीना मुनीम, नताशा सिन्हा व एकता जैसी अभिनेत्रियों को मैदान में उतारने का श्रेय भी देव साहब को ही जाता है। बाद में जीनत अमान को राज कपूर का साथ मिल गया और ये बात देवानंद को अच्छी नहीं लगी। फ़िल्म निर्माण में उतरे देवानंद ने कई नई प्रतिभाओं टीना मुनीम से लेकर तब्बू तक का फ़िल्मी दुनिया से साक्षात्कार कराया। उन्होंने पांच दशकों में सुरैया, गीता बाली, मधुबाला, मीना कुमारी, नूतन, वैजयंती माला, मुमताज़, हेमा मालिनी, वहीदा रहमान से लेकर मधुबाला और ज़ीनत अमान तक सभी उत्कृष्ट नायिकाओं के साथ अभिनय किया और हर अभिनेत्री के साथ उनकी जोड़ी को खूब सराहा गया।

हाल के सालों में देवानंद अपनी प्रोडक्शन कंपनी 'नवकेतन' के तले कई फ़िल्में बनाने में व्यस्त थे। वह लगातार अपने बैनर के तले फ़िल्में बना रहे थे जिसके लीड हीरो वह खुद ही होते थे। नवकेतन बैनर तले उन्होंने हाल के सालों में 'हरे रामा हरे कृष्णा', 'अव्वल नंबर' जैसी सुपरहिट फ़िल्में दी हैं।

ग्रेगरी पॅक से समानता

हॉलीवुड अभिनेता ग्रेगरी पॅक के अभिनय से प्रेरित होकर देवानंद फ़िल्मों में काम करने के उद्देश्य से अपना नगर छोड़कर फ़िल्म नगरी में आये थे। देवानंद को कई लोग हॉलीवुड के मशहूर अभिनेता ग्रेगरी पॅक से भी जोड़ कर देखते हैं। भारतीय दर्शकों को अपने चहेते अभिनेता देवानंद में ग्रेगरी पॅक की झलक नज़र आई और वे उनके दीवाने हो गए। देवानंद के बालों का स्टाइल, चलने, बोलने का तरीक़ा सब में ग्रेगरी पॅक की झलक मिलती थी।

देवानंद और रोमांस

देव आनंद अपनी ख़ास स्टाइल के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपने किरदारों में नौजवानों की उमंगों, तरंगों और चंचलता को बहुत ही ख़ूबसूरत अंदाज़से पेश किया है। देव आनंद आदर्शवाद और व्यवहारवाद में नहीं उलझते और न ही उन का किरदार प्रेम की नाकामियों से दो-चार होता है। अपनी अदाकाराओं के साथ छेड़खानी, शरारत और फ्लर्ट करने वाला आम नौजवान देव का नायक रहा। देव ने अपने किरदारों में हर मौसम का लुत्फ लिया और नौजवानों के चहेते बन गए।

कहते हैं बॉलीवुड में अगर कोई असली रोमांटिक हीरो है तो वह हैं सिर्फ देवानंद। ना सिर्फ पर्दे पर बल्कि असल ज़िंदगी में भी देवानंद की दिल्लगी का कोई सानी नहीं है। नौजवानों के जज़्बात को परदे पर पेश करने वाले ख़ूबसूरत देव हमेशा ही ख़ूबसूरत लडकियों से घिरे रहे। हज़ारों दिलों की धड़कन रहे देव हसीनाओं का सपना बन चुके थे। अभिनेत्रियों के साथ अपने रोमांस को लेकर भी वे चर्चा में रहे। चाहे सुरैया हो या ज़ीनत अमान दोनों के साथ उनके प्रेम के चर्चे खूब आम हुए। खुद देवानंद भी मानते हैं कि सुरैया उनका पहला प्रेम थीं और ज़ीनत को भी वह पसंद करते थे। यही नहीं सुरैया भी देव की दीवानी थी। 1948 में बनी ‘विद्या’ फ़िल्म की नायिका सुरैया थी।[1]

देवानंद और सुरैया

फ़िल्म अफसर के निर्माण के दौरान देव आनंद का झुकाव फ़िल्म गायिका-अभिनेत्री सुरैया की ओर हो गया था। इसके सेट पर ही दोनों में प्यार हुआ। एक गाने की शूटिंग के दौरान देव आनंद और सुरैया की नाव पानी में पलट गई जिसमें उन्होंने सुरैया को डूबने से बचाया। इसके बाद सुरैया देव आनंद से बेइंतहा मोहब्बत करने लगीं लेकिन सुरैया की नानी की इजाज़त न मिलने पर यह जोड़ी परवान नहीं चढ़ सकी। 1951 तक दोनों ने सात फ़िल्मों में साथ काम किया। मगर अफ़सोस दोनों के साथ रहने का ख्वाब पूरा ना हो सका। देव ने अपने टूटे प्यार का इजहार कई बार किया है। बाद के वर्ष 1954 में ‘टैक्सी ड्राइवर’ की हिरोइन मोना याने कल्पना कार्तिक से फ़िल्म के सेट पर देव आनंद ने शादी कर ली। मगर सुरैया ने देव के अलावा किसी और को गवारा ना किया और उनकी याद में आजीवन विवाह नहीं किया। 50 साल बाद देव आनंद ने स्वीकार किया कि उनका दिल हमेशा सुरैया के लिए धड़कता रहता था। वर्ष 2005 में जब सुरैया का निधन हुआ तो देवानंद उन लोगों में से एक थे जो उनके जनाज़े के साथ थे।

देवानंद के जानदार और शानदार अभिनय की बदौलत परदे पर जीवंत आकार लेने वाली प्रेम कहानियों ने लाखों युवाओं के दिलों में प्रेम की लहरें पैदा कीं लेकिन खुद देवानंद इस लिहाज़ से ज़िंदगी में काफ़ी परेशानियों से गुजरे। उन्हें 'सदाबहार अभिनेता' कह कर पुकारा गया तो वह भी यों ही नहीं था। उन्होंने जिन अभिनेत्रियों के साथ नायक के रूप में काम किया था कुछ वर्षों पहले तक वे उनकी पोतियों के साथ भी उसी भूमिका में देखे गए।[1]

देवानंद का स्टाइल

देव आनंद का हस्ताक्षर

देव आनंद को राजेश खन्ना से भी पहले सिनेमा का 'पहला चॉकलेटी नायक' होने का गौरव मिला। देव आनंद की लोकप्रियता का आलम ये था कि उन्होंने जो भी पहना, जो भी किया वो एक स्टाइल में तब्दील हो गया। फिर चाहे वो उनका बालों पर हाथ फेरने का अंदाज़हो या काली कमीज की पहनने का या फिर अपनी अनूठी शैली में जल्दी-जल्दी संवाद बोलने का। मुनीम जी (1955), फंटुश, सीआईडी (1956), पेइंगगेस्ट (1957) ने उन्हें सफलतम स्टायलिश स्टार बना दिया। इनकी झुककर चलने की अदा, एक सांस में लम्बे डायलॉग बोलना और तिरछे होकर सिर हिलाना उनका ट्रेडमार्क बन गया।

देवानंद और काला कोट

अपने दौर के सबसे सफल अभिनेता देवानंद अपने काले कोट की वजह से बहुत सुर्खियों में आए थे। बात उस समय की है जब देवानंद अपने अलग अंदाज़और बोलने के तरीके के लिए काफ़ी मशहूर थे। उनके सफेद कमीज और काले कोट के फैशन को तो जनता ने जैसे अपना ही बना लिया था और इसी समय एक ऐसा वाकया भी देखने को मिला जब न्यायालय ने उनके काले कोट को पहन कर घूमने पर पाबंदी लगा दी। वजह थी कुछ लडकियों का उनके काले कोट के प्रति आसक्ति के कारण आत्महत्या कर लेना। दीवानगी में दो-चार लडकियों ने जान दे दी। इससे एक बात साफ़ थी कि देवानंद का किरदार हो या उनका पहनावा हमेशा सदाबहार ही रहा।[1]

देवानंद का निजी जीवन

देवानंद ने कल्पना कार्तिक के साथ शादी की थी लेकिन उनकी शादी अधिक समय तक सफल नहीं हो सकी। दोनों साथ रहे लेकिन बाद में कल्पना ने एकाकी जीवन को गले लगा लिया। अन्य फ़िल्मी अभिनेताओं की तरह देवानंद ने भी अपने बेटे सुनील आनंद को फ़िल्मों में स्थापित करने के लिए बहुत प्रयास किए लेकिन सफल नहीं हो सके। कुछ वर्ष पहले अपने जन्मदिन के अवसर पर ही उन्होंने 'रोमांसिंग विद लाइफ' नाम से अपनी जीवनी बाज़ार में उतारी थी। आमतौर पर मशहूर हस्तियों की जीवनियों के प्रसंग विवादों का विषय बनते हैं लेकिन उनकी जीवनी हर अर्थ में बेदाग़ रही बिल्कुल उनके जीवन की तरह।

सम्मान और पुरस्कार

देव आनंद, दिलीप कुमार और राज कपूर के 1950 दशक के बड़े स्टार रहे हैं। देव आनंद को अपने अभिनय के लिए दो बार फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। देव आनंद को सबसे पहला फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार वर्ष 1958 में प्रदर्शित फ़िल्म 'काला पानी' के लिए दिया गया। इसके बाद वर्ष 1965 में भी देव आनंद फ़िल्म 'गाइड' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए। सन् 1991 में देव आनंद को फ़िल्म फेयर पुरस्कार मिला। वर्ष 2001 में देव आनंद को भारत सरकार की ओर से कला क्षेत्र (फ़िल्म जगत् में योगदान) में पद्म भूषण सम्मान प्राप्त हुआ। वर्ष 2002 में उनके द्वारा हिन्दी सिनेमा में महत्त्वपूर्ण योगदान को देखते हुए उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

निधन

भारतीय सिनेमा के सदाबहार अभिनेता देवानंद का लंदन में दिल का दौरा पड़ने से 3 दिसंबर 2011 को 88 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 एक सदाबहार अभिनेता की सदाबहार कहानी: देवानंद (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) जागरण junction। अभिगमन तिथि: 4 दिसंबर, 2011।

बाहरी कड़ियाँ

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