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केदार शर्मा

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केदार शर्मा
केदार शर्मा
पूरा नाम केदार शर्मा
जन्म 12 अप्रैल, 1910
जन्म भूमि पंजाब
मृत्यु 29 अप्रैल, 1999
मृत्यु स्थान मुंबई
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र निर्माता-निर्देशक और अभिनेता
मुख्य फ़िल्में देवदास, औलाद, चित्रलेखा, नीलकमल, जोगन, जलदीप,
शिक्षा स्नातक
विद्यालय ख़ालसा कॉलेज, अमृतसर
पुरस्कार-उपाधि राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार 1956, लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवार्ड, महाराष्ट्र सरकार द्वारा राज कपूर पुरस्कार 1999
प्रसिद्धि फ़िल्म निर्माता
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी केदार ने बच्चों के लिए भी कई फ़िल्में बनाईं, जिनमें जलदीप, गंगा की लहरें, गुलाब का फूल, 26 जनवरी, एकता, चेतक, मीरा का चित्र, महातीर्थ और खुदा हाफ़िज़ शामिल हैं।

केदार शर्मा (अंग्रेज़ी: Kedar Sharma, जन्म: 12 अप्रैल, 1910, पंजाब; मृत्यु: 29 अप्रैल, 1999, मुंबई) भारतीय फ़िल्म निर्देशक, निर्माता, पटकथा लेखक और हिंदी फ़िल्मों के गीतकार थे। उन्हें बॉलीवुड में ऐसे फ़िल्मकार के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने राज कपूर, भारत भूषण, मधुबाला, माला सिन्हा और तनुजा को फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। केदार शर्मा ने कई फ़िल्मों में अपने अभिनय से भी दर्शकों का दिल जीता। इन फ़िल्मों में इंकलाब, पुजारिन, विद्यापति, बड़ी दीदी, नेकी और बदी शामिल हैं।[1]

परिचय

केदार शर्मा का जन्म 12 अप्रैल, 1910 को पंजाब के नरौल शहर (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर से पूरी की। इसके बाद वह नौकरी की तलाश में मुंबई आ गए, लेकिन वहां काम नहीं मिलने के कारण वह अमृतसर लौट गए। इस बीच उन्होंने अमृतसर के ख़ालसा कॉलेज से स्नाकोत्तर की पढ़ाई पूरी की।

फ़िल्मी कॅरियर की शुरुआत

वर्ष 1933 में केदार शर्मा को देवकी बोस निर्देशित फ़िल्म 'पुराण भगत' देखने का अवसर मिला। इस फ़िल्म से वह इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने निश्चय किया कि वह फ़िल्मों में ही अपना करियर बनाएंगे। अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए केदार कलकत्ता चले गए। कलकत्ता में केदार की मुलाकात फ़िल्मकार देवकी बोस से हुई और उनकी सिफ़ारिश से उन्हें न्यू थियेटर में बतौर छायाकार शामिल कर लिया गया। वर्ष 1934 में प्रदर्शित फ़िल्म 'सीता' बतौर छायाकर केदार की पहली फ़िल्म थी। इसके बाद न्यू थियेटर की फ़िल्म 'इंकलाब' में केदार को एक छोटी सी भूमिका निभाने का अवसर मिला। वर्ष 1936 में प्रदर्शित फ़िल्म 'देवदास' केदार शर्मा के सिने कैरियर की अहम फ़िल्म साबित हुई। इस फ़िल्म में वह बतौर कथाकार और गीतकार की भूमिका में थे। फ़िल्म हिट रही और केदार फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए।

निर्देशक के रूप में

केदार शर्मा को 1940 में फ़िल्म 'तुम्हारी जीत' को निर्देशित करने का मौका मिला, लेकिन दुर्भाग्य से यह फ़िल्म पूरी नहीं हो सकी। इसके बाद उन्होंने 'औलाद' फ़िल्म को निर्देशित किया, जिसकी सफलता के बाद वह कुछ हद तक बतौर निर्देशक अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए। वर्ष 1941 में उन्हें 'चित्रलेखा' फ़िल्म को निर्देशित करने का मौका मिला। इस फ़िल्म की सफलता के बाद केदार शर्मा बतौर निर्देशक फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए। इन सबके साथ ही फ़िल्म 'चित्रलेखा' का स्नान दृश्य बहुत चर्चित हुआ था, जो फ़िल्म अभिनेत्री मेहताब पर फ़िल्माया गया था। इस फ़िल्म के बाद मेहताब दर्शकों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुई थीं, लेकिन फ़िल्म के शुरूआत के समय मेहताब स्नान दृश्य के फ़िल्मांकन के लिए तैयार नही थीं। केदार ने जब मेहताब के समक्ष स्नान दृश्य के फ़िल्मांकन का प्रस्ताव रखा तो मेहताब बोलीं, यह सीन आप दर्शकों के लिए रखना चाहते हैं या सिर्फ अपनी खुशी के लिए। केदार ने तब मेहताब को समझाया, देखो सेट पर अभिनेत्री और निर्देशक का रिश्ता पिता-पुत्री का होता है। केदार की यह बात मेहताब के दिल को छू गई और उसने केदार के सामने यह शर्त रखी कि दृश्य के फ़िल्मांकन के समय सेट पर केवल वहीं मौजूद रहेंगे।

फ़िल्म निर्माण

केदार शर्मा ने वर्ष 1947 में फ़िल्म 'नीलकमल' के जरिए राजकपूर को रूपहले पर्दे पर पहली बार पेश किया। राजकपूर इसके पूर्व केदार की यूनिट में क्लैपर बॉय का काम किया करते थे। वर्ष 1950 में केदार ने फ़िल्म 'बावरे नैन' का निर्माण किया और अभिनेत्री गीता बाली को पहली बार बतौर अभिनेत्री काम करने का अवसर दिया। वर्ष 1950 में ही केदार की एक और सुपरहिट फ़िल्म 'जोगन' प्रदर्शित हुई। फ़िल्म में दिलीप कुमार और नरगिस मुख्य भूमिका में थे। केदार की यह विशेषता रहती थी कि जिस अभिनेता-अभिनेत्री के काम से वह खुश होते उसे पीतल की दुअन्नी देकर सम्मानित किया करते थे। राजकपूर, दिलीप कुमार, गीता बाली और नरगिस को यह सम्मान प्राप्त हुआ था।

अभिनेता के तौर पर

केदार शर्मा ने कई फ़िल्मों में अपने अभिनय से भी दर्शकों का दिल जीता। इन फ़िल्मों में इंकलाब, पुजारिन, विद्यापति, बड़ी दीदी, नेकी और बदी शामिल हैं।

बाल फ़िल्म निर्माण

केदार शर्मा ने कई फ़िल्मों के लिए गीत भी लिखे। उन्होंने बच्चों के लिए भी कई फ़िल्में बनाईं, जिनमें जलदीप, गंगा की लहरें, गुलाब का फूल, 26 जनवरी, एकता, चेतक, मीरा का चित्र, महातीर्थ और खुदा हाफ़िज़ शामिल हैं।

काम के प्रति समर्पित

केदार शर्मा पूरी इंडस्ट्री में अपने दबंग स्वभाव के लिए मशहूर थे। उन्होंने राजकपूर सहित इंडस्ट्री के बड़े-बड़े सूरमाओं के कस-बल ढीले कर दिए थे। तनुजा के उनके निर्देशन में बनने वाली फ़िल्म 'हमारी याद आएगी' में राजकपूर के अपोजिट कास्ट किया गया था। तनुजा सेट पर हमेशा हंसी-मजाक में ही व्यस्त रहती थीं, जबकि केदार शर्मा को सेट पर ऐसा माहौल बिलकुल पसंद नहीं था। इसके अलावा तनुजा को डायलॉग याद करने से भी जबरदस्त एलर्जी होती थीं, जिसकी वजह से केदार शर्मा काफ़ी परेशान हो चुके थे। दरअसल तनुजा अपने कॅरियर को संजीदगी से लेती ही नहीं थीं। उन पर हमेशा अपनी माँ और बहन का स्टारडम हावी रहता था। इसी फ़िल्म के एक सीन में उन्हें राजकपूर के सामने रोना था लेकिन जब सीन शूट होने लगता तनुजा रोने के बजाय हंसने लगती। केदार शर्मा की बार-बार हिदायत के बाद तनुजा ने उनसे कहा कि आज मेरा रोने का मूड नहीं है। बेहतर है कि इस सीन को बाद में शूट किया जाए, बस इतना सुनना था, कि केदार शर्मा का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया और उन्होंने ना आंव देखा ना ताव और एक झन्नाटेदार थप्पड़ तनुजा के गालों पर रसीद कर दिया। केदार शर्मा के इस गुस्से से पूरी यूनिट सन्न रह गयी।[2]

पुरस्कार और सम्मान

केदार शर्मा को निम्नलिखित पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए थे-

  • राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार 1956 में सर्वश्रेष्ठ बाल फ़िल्म के जलदीप के लिये दिया गया।
  • इंडियन फ़िल्म डायरेक्टर्स एसोसिएशन लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवार्ड
  • भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए 1982 में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी से स्वर्ण पुरस्कार
  • महाराष्ट्र सरकार द्वारा राज कपूर पुरस्कार (उनकी मृत्यु के बाद 1999 में दिया गया)

निधन

लगभग पांच दशक तक अपनी फ़िल्मों के जरिए दर्शकों के दिल पर राज करने वाले महान् फ़िल्मकार केदार शर्मा 29 अप्रैल, 1999 को इस दुनिया से अलविदा कह गए।[1]


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