दयाकिशन सप्रू
दयाकिशन सप्रू
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पूरा नाम | दयाकिशन सप्रू |
प्रसिद्ध नाम | सप्रू |
जन्म | 16 मार्च, 1916 |
जन्म भूमि | कश्मीर, भारत |
मृत्यु | अक्टूबर, 1979 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
संतान | रीमा, तेज सप्रू |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | अभिनय तथा फ़िल्म निर्माण |
मुख्य फ़िल्में | 'कुदरत', 'ज्योति बने ज्वाला', 'नया दौर', 'छैला बाबू', 'अलीबाबा मरजीना', 'धरम वीर', 'ड्रीम गर्ल', 'अदालत', 'रफ़ू चक्कर', 'दीबार', 'मजबूर', 'बेनाम', 'हाथ की सफाई' आदि। |
शिक्षा | बी.ए. |
प्रसिद्धि | अभिनेता तथा खलनायक |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | 'शबिस्तान' वर्ष 1951 की वह फ़िल्म थी, जिसमें दयाकिशन सप्रू ने पहली बार खलनायक का किरदार निभाया था और इस भूमिका में भी दर्शकों ने उनकी जमकर तारीफ़ की थी। |
दयाकिशन सप्रू (अंग्रेज़ी: Dayakishan Sapru, जन्म- 16 मार्च, 1916, कश्मीर, भारत; मृत्यु- 1979, मुम्बई, महाराष्ट्र) हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध अभिनेताओं में से एक थे। अपने फ़िल्मी कॅरियर में उन्हें 'सप्रू' नाम से अधिक जाना गया। 1960 और 1970 के दशक में उन्होंने कई फ़िल्मों में खलनायक की भूमिका निभाई थी, जिससे उन्हें काफ़ी ख्याति मिली थी। खलनायक से पहले दयाकिशन जी ने कई चरित्र किरदार भी निभाए थे। उन्होंने करीब 350 फ़िल्मों में काम किया। चेतन आनन्द की फ़िल्म 'कुदरत' उनकी अंतिम फ़िल्म थी।
विषय सूची
जन्म
दयाकिशन सप्रू का जन्म 16 मार्च, 1916 को कश्मीर, भारत में हुआ था। उनके पिता कश्मीर के महाराजा के दरबार में वित्त विभाग में ऊंचे ओहदे पर थे।
फ़िल्मी शुरुआत
अंग्रेज़ों का जमाना था और उस दौर में बी.ए. करने के बाद युवा दयाकिशन सप्रू ने पी.डब्ल्यू.डी. विभाग में ठेकेदारी शुरू कर दी थी। उसी समय उनके फुफेरे भाई फ़िल्मी पर्दे पर दिखाई देने लगे। दया से भी उनके साथी कॉलेज के जमाने से कह रहे थे कि प्रभावशाली व्यक्तित्व के ऊंचे कद, गोरे-चिट्टे और नीली आँखों वाले इस कश्मीरी लड़के को फ़िल्मों में जाना चाहिए। ऐसे में अक्सर रूपहले पर्दे की कशिश दयाकिशन को अपनी ओर खींचने लगती थी। एक दिन दयाकिशन मुंबई जा पहुंचे, फ़िल्मों में हाथ आजमाने के लिए। वह साल था 1944। उनके फुफेरे भाई ओंकारनाथ धर उर्फ जीवन ने दयाकिशन को फ़िल्म निर्माताओं से खुद जाकर बात करने की सलाह दी। दयाशिन वी. शांताराम से मिलने प्रभात स्टूडियो जा पहुँचे। कमरे के बाहर बैठे दयाकिशन पर नजर पड़ी तो वी. शांताराम ने उन्हें बुला लिया। जब दयाकिशन ने अपना परिचय देने के लिए बोलना शुरू किया तो मंत्रमुग्ध वी. शांताराम उनकी गरजदार आवाज़ को सुनते रहे। वी. शांताराम हिन्दी, पंजाबी, अंग्रेज़ी और उर्दू में धाराप्रवाह बात करने वाले इस जवान से खासे प्रभावित हुए। नतीजा यह हुआ की वी. शांताराम ने अपनी फ़िल्म 'रामशास्त्री' के लिए दयाकिशन को चुन लिया। यही दयाकिशन आगे चलकर 'सप्रू' के रूप में मशहूर हुए।[1]