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− | + | [[एकेश्वरवाद]] की शिक्षा दी जाती है कि अल्लाह एक है और पाक बेऐब है, उस जैसा कोई नहीं। ईद-ए मीलादुन्नबी को हालांकि बड़े पैमाने पर नहीं मनाया जाता है फिर भी मोहम्मद साहब के पैग़ाम को जानने और उस पर अमल करने के लिए इसे ख़ास दिन माना जाता है। लोग इस दिन इबादत करते हैं। हिन्दुस्तान में भी मीलादुन्नबी उत्साह से मनाया जाता है। [[जम्मू-कश्मीर]] के हज़रत बल में बड़ा जलसा होता है। सुबह की [[नमाज़]] (फज्र) के बाद उनकी मुबारक चीज़ों का मुजाहरा किया जाता है। पूरी रात दुआ माँगी जाती है। जिससे हज़ारों लोग शरीक होते हैं। ऐसा ही कुछ नज़ारा [[दिल्ली]] के [[हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह]], अजमेर-ए-शरीफ के हज़रत मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर होता है। इसके अलावा [[लखनऊ]] में बारावफ़ात के दिन [[सुन्नी]] [[मुसलमान]] मध-ए-सहाबा जुलूस निकालते हैं। [[हैदराबाद]] की [[मक्का मस्जिद हैदराबाद|मक्का मस्जिद]] और दूसरी मस्जिदों में इस दिन लोग दुआएं माँगते हैं। | |
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09:59, 11 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
बारावफ़ात
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अन्य नाम | ईद-ए-मीलाद, मीलादुन्नबी |
अनुयायी | मुस्लिम |
उद्देश्य | एकेश्वरवाद की शिक्षा दी जाती है कि अल्लाह एक है और पाक बेऐब है, उस जैसा कोई नहीं। |
तिथि | रबीउल अव्वल की 12वीं तारीख |
धार्मिक मान्यता | इस्लामिक कैलेंडर हिजरी के मुताबिक़ पैग़म्बर मुहम्मद साहब का जन्म इसी दिन हुआ था। |
अन्य जानकारी | लखनऊ में बारावफ़ात के दिन सुन्नी मुसलमान मध-ए-सहाबा जुलूस निकालते हैं। हैदराबाद की मक्का मस्जिद और दूसरी मस्जिदों में इस दिन लोग दुआएं माँगते हैं। |
बारावफ़ात अथवा ईद-ए-मीलाद या 'मीलादुन्नबी' इस्लाम धर्म का प्रमुख त्योहार है। इस अवसर पर पैग़म्बर मुहम्मद का जन्म दिवस को याद किया जाता है और उनका शुक्रिया अदा किया जाता है कि वे तमाम आलम के लिए रहमत बनकर आए थे। ईद-ए-मीलाद यानी ईदों से बड़ी ईद के दिन, तमाम उलेमा और शायर कसीदा-अल-बुरदा शरीफ़ पढ़ते हैं। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक़ पैग़म्बर मुहम्मद साहब का जन्म रबीउल अव्वल महीने की 12वीं तारीख को हुआ था। हालांकि पैग़म्बर मुहम्मद का जन्मदिन इस्लाम के इतिहास में सबसे अहम दिन है। फिर भी न तो पैग़म्बर साहब ने और न ही उनकी अगली पीढ़ी ने इस दिन को मनाया। दरअसल, वे सादगी पंसद थे। उन्होंने कभी इस बात पर ज़ोर नहीं दिया कि किसी की पैदाइश पर जश्न जैसा माहौल या फिर किसी के इंतक़ाल का मातम मनाया जाए।
इतिहास
बारावफ़ात को मनाने की शुरुआत मिस्र में 11वीं सदी में हुई। फातिमिद वंश के सुल्तानों ने इसे मनाना शुरू किया। पैग़म्बर के रुख़्सत होने के चार सदियों बाद शियाओं ने इसे त्योहार की शक्ल दी। अरब के सूफ़ी बूसीरी, जो 13वीं सदी में हुए, उन्हीं की नज़्मों को पढ़ा जाता है। इस दिन की फ़ज़ीलत इसलिए और भी बढ़ जाती है, क्योंकि इसी दिन पैग़म्बर साहब रुख़्सत हुए थे।
बारावफ़ात
भारत के कुछ हिस्सों में इस मौक़े को लोग बारावफ़ात के तौर पर मनाते हैं। अपनी रुख़्सत से पहले पैग़म्बर, बारा यानी बारह दिन बीमार रहे थे। वफात का मतलब है, इंतक़ाल। इसलिए पैग़म्बर साहब के रुख़्सत होने के दिन को बारवफात कहते हैं। उन दिनों उलेमा व मज़हबी दानिश्वर तकरीर व तहरीर के द्वार मुहम्मद साहब के जीवन और उनके आदर्शों पर चलने की सलाह देते हैं। इस दिन उनके पैग़ाम पर चलने का संकल्प लिया जाता है।
उद्देश्य
एकेश्वरवाद की शिक्षा दी जाती है कि अल्लाह एक है और पाक बेऐब है, उस जैसा कोई नहीं। ईद-ए मीलादुन्नबी को हालांकि बड़े पैमाने पर नहीं मनाया जाता है फिर भी मोहम्मद साहब के पैग़ाम को जानने और उस पर अमल करने के लिए इसे ख़ास दिन माना जाता है। लोग इस दिन इबादत करते हैं। हिन्दुस्तान में भी मीलादुन्नबी उत्साह से मनाया जाता है। जम्मू-कश्मीर के हज़रत बल में बड़ा जलसा होता है। सुबह की नमाज़ (फज्र) के बाद उनकी मुबारक चीज़ों का मुजाहरा किया जाता है। पूरी रात दुआ माँगी जाती है। जिससे हज़ारों लोग शरीक होते हैं। ऐसा ही कुछ नज़ारा दिल्ली के हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह, अजमेर-ए-शरीफ के हज़रत मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर होता है। इसके अलावा लखनऊ में बारावफ़ात के दिन सुन्नी मुसलमान मध-ए-सहाबा जुलूस निकालते हैं। हैदराबाद की मक्का मस्जिद और दूसरी मस्जिदों में इस दिन लोग दुआएं माँगते हैं।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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