"फ़िरोज़ ख़ान": अवतरणों में अंतर
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'''फ़िरोज़ ख़ान''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Feroz Khan'', जन्म: [[25 सितंबर]], [[1939]] – मृत्यु: [[27 अप्रैल]], [[2009]]) हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता एवं फ़िल्म निर्माता-निर्देशक थे। फ़िरोज़ ख़ान अपनी ख़ास शैली, अलग अंदाज़ और किरदारों के लिए जाने जाते रहे। | {{सूचना बक्सा कलाकार | ||
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'''फ़िरोज़ ख़ान''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Feroz Khan'', जन्म: [[25 सितंबर]], [[1939]] – मृत्यु: [[27 अप्रैल]], [[2009]]) हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता एवं फ़िल्म निर्माता-निर्देशक थे। फ़िरोज़ ख़ान अपनी ख़ास शैली, अलग अंदाज़ और किरदारों के लिए जाने जाते रहे। फ़िल्मों में कहीं वो एक सुंदर हीरो की भूमिका में हैं तो कहीं खूंखार विलेन के रोल में दोनों ही चरित्रों में फ़िरोज़ ख़ान जान डाल देते थे। | |||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
फ़िरोज़ ख़ान का जन्म 25 सितंबर, 1939 को [[बेंगलूर]] में हुआ था। अफगानी पिता और ईरानी माँ के बेटे | फ़िरोज़ ख़ान का जन्म 25 सितंबर, 1939 को [[बेंगलूर]] में हुआ था। अफगानी पिता और ईरानी माँ के बेटे फ़िरोज़ बेंगलूर से हीरो बनने का सपना लेकर [[मुंबई]] पहुंचे। उनके तीन भाई संजय ख़ान (अभिनेता-निर्माता), अकबर ख़ान और समीर ख़ान हैं। उनकी एक बहन हैं, जिनका नाम दिलशाद बीबी है। फ़िरोज़ की भतीजी और संजय ख़ान की बेटी सुजैन ख़ान की शादी ऋतिक रोशन से हुई, जो फ़िल्मकार राकेश रोशन के पुत्र हैं। फ़िरोज़ ख़ान ने सुंदरी के साथ जिंदगी का सफर 1965 में शुरू किया। दोनों 20 साल तक साथ रहे। 1985 में उनके बीच तलाक हो गया। फ़िरोज़ ख़ान के पुत्र फ़रदीन ख़ान भी अभिनेता हैं। | ||
==कॅरियर== | ==कॅरियर== | ||
[[बॉलीवुड]] में | [[बॉलीवुड]] में फ़िरोज़ ख़ान ने अपने कैरियर की शुरूआत 1960 में बनी फ़िल्म 'दीदी' से की। शुरुआती कुछ फ़िल्मों में अभिनेता का किरदार निभाने के बाद उन्होंने कुछ समय के लिए खलनायकों की भी भूमिका अदा की खास तौर पर गांव के गुंडों की। वर्ष 1962 में फ़िरोज़ ने अंग्रेज़ी भाषा की एक फ़िल्म 'टार्जन गोज टू इंडिया' में काम किया। इस फ़िल्म में नायिका सिमी ग्रेवाल थीं। 1965 में उनकी पहली हिट फ़िल्म 'ऊंचे लोग' आई जिसने उन्हें सफलता का स्वाद चखाया। अभिनय के लिहाज से फ़िरोज़ ख़ान के लिए 70 का दशक खास रहा। फ़िल्म 'आदमी और इंसान' (1970) में अभिनय के लिए फ़िरोज़ को फ़िल्म फेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक कलाकार का पुरस्कार मिला। 70 के दशक में उन्होंने आदमी और इंसान, मेला, धर्मात्मा जैसी बेहतरीन फ़िल्में दीं। इसी दशक में उन्होंने निर्माता-निर्देशक के रूप में अपना सफर शुरू किया। उनके इस सफर की शुरुआत फ़िल्म धर्मात्मा से हुई। वर्ष 1980 की फ़िल्म क़ुर्बानी से उन्होंने एक सफल निर्माता-निर्देशक के रूप में सभी को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। क़ुर्बानी उनके कैरियर की सबसे सफल फ़िल्म रही। इसमें उनके साथ विनोद खन्ना भी प्रमुख भूमिका में थे। क़ुर्बानी ने [[हिंदी सिनेमा]] को एक नया रूप दिया। क़ुर्बानी ने ही हिंदी सिनेमा में अभिनेत्रियों को भी हॉट एंड बोल्ड होने का अवसर दिया। फ़िल्म में फ़िरोज़ और जीनत अमान की बिंदास जोड़ी को दर्शकों ने खूब पसंद किया।<ref name="ISN">{{cite web |url=http://www.insighttvnews.com/newsdetails.php?show=17171 |title= स्टाइलिश और बिंदास अभिनेता थे फ़िरोज़ ख़ान |accessmonthday=26 सितम्बर |accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=insighttvnews |language=हिंदी }}</ref>[[चित्र:Feroz-khan-family.jpg|thumb|left|फ़िरोज़ ख़ान अपने परिवार (पत्नी सुंदरी, पुत्र फ़रदीन एवं पुत्री लैला) के साथ]] | ||
==फ़िल्म निर्माण एवं निर्देशन== | ==फ़िल्म निर्माण एवं निर्देशन== | ||
फ़िल्मों से अभिनय के बाद उन्होंने निर्देशन की तरफ रुख किया। उन्होंने लीक से हट कर फ़िल्में बनाई। 70 से 80 के दशक के बीच उनके निर्देशन में बनी फ़िल्में धर्मात्मा, क़ुर्बानी, जांबाज और दयावान बॉक्स ऑफिस पर हिट हुई। वर्ष 1975 में बनी धर्मात्मा पहली भारतीय फ़िल्म थी जिसकी शूटिंग [[अफगानिस्तान]] में की गई। यह एक निर्माता निर्देशक के रूप में फ़िरोज़ की पहली हिट फ़िल्म भी थी। यह फ़िल्म हॉलीवुड की फ़िल्म गॉडफादर पर आधारित थी। 1998 में फ़िल्म प्रेम अगन से उन्होंने अपने बेटे को फ़िल्मों में लाने का काम किया पर उनके बेटे फ़रदीन ख़ान उनकी तरह शोहरत बटोरने में विफल रहे। 2003 में उन्होंने अपने बेटे और स्पोर्ट्स प्यार के लिए फ़िल्म 'जानशीं' बनाई पर फ़िल्म में अभिनय करने के बाद भी वह अपने बेटे को हिट नहीं करवा सके। फ़िरोज़ ख़ान ने आखिरी बार फ़िल्म वेलकम में काम किया। फ़िल्म वेलकम में भी उनका वही बिंदास स्टाइल नजर आया जिसके लिए वह जाने जाते हैं।<ref name="ISN"/> फ़िरोज़ ख़ान को बालीवुड की ऐसी शख्सियत के रूप में याद किया जाता हैै जिन्होंने फ़िल्म निर्माण की अपनी विशेष शैैली बनाई थी। फ़िरोज़ ख़ान की निर्मित फ़िल्मों पर नजर डालें तो उनकी फ़िल्में बड़े बजट की हुआ करती थीं। जिनमें बड़े-बड़े सितारे, आकर्षक औैर भव्य सेट, खूबसूरत लोकेशन, दिल को छू लेने वाला गीत, संगीत औैर उम्दा तकनीक देखने को मिलती थी। अभिनेता के रूप में भी फ़िरोज़ ख़ान ने बालीवुड के नायक की परम्परागत छवि के विपरीत अपनी एक विशेष शैैली गढ़ी जो आकर्षक औैर तड़क-भड़क वाली छवि थी। उनकी अकड़कर चलने की अदा औैर काउब्वाय वाली इमेज दर्शकों के मन में आज भी बसी हुई हैै। फ़िल्म निर्माण औैर निर्देेशन के क्रम में फ़िरोज़ ख़ान ने हिन्दी फ़िल्मों में कुछ नई बातों का आगाज किया। अपराध फ़िल्म में भारत की पहली फ़िल्म थी जिसमें जर्मनी में कार रेस दिखाई गई थी। धर्मात्मा की शूटिंग के लिए वह अफगानिस्तान के खूबसूरत लोकेशनों पर गए। इससे पहले भारत की किसी भी फ़िल्म का वहां फ़िल्मांकन नहीं किया गया था। अपने कैरियर की सबसे हिट फ़िल्म क़ुर्बानी से फीरोज ख़ान ने पाकिस्तान की पॉॅप गायिका नाजिया हसन के संगीत कैरियर की शुरुआत कराई। वर्ष 2003 में फ़िरोज़ ख़ान ने अपने पुत्र फ़रदीन ख़ान को लांच करने के लिये जानशीं का निर्माण किया। बॉलीवुड में लेडी किलर के नाम से मशहूर फ़िरोज़ ख़ान ने चार दशक लंबे सिने कैरियर में लगभग 60 फ़िल्मों में अभिनय किया। उनकी उल्लेखनीय फ़िल्मों में कुछ हैं आग, प्यासी शाम, सफर, मेला, खोटे सिक्के, गीता मेरा नाम, इंटरनेशनल क्रुक, काला सोना, शंकर शंभु, नागिन, चुनौती, क़ुर्बानी वेलकम आदि।<ref>{{cite web |url=http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/2853/7/70#.VCUId1cqIhB |title= फ़िल्म निर्माण की विशिष्ट शैली बनाई थी फ़िरोज़ ख़ान ने|accessmonthday=26 सितम्बर |accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=देशबंधु|language=हिंदी }}</ref> | |||
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फ़िरोज़ ख़ान का नाम सुनते ही एक आकर्षक, छरहरे और जांबाज जवान का चेहरा रूपहले पर्दे पर चलता-फिरता दिखाई पड़ने लगता है। बूट, हैट, हाथ में रिवॉल्वर, गले में लाकेट, कमीज के बटन खुले हुए, ऊपर से जैकेट और शब्दों को चबा-चबा कर संवाद बोलते फ़िरोज़ ख़ान को हिंदी फ़िल्मों का काउ ब्वाय कहा जाता था। हालीवुड में क्लिंट ईस्टवुड की जो छवि थी, उसका देशी रूपांतरण थे फ़िरोज़ ख़ान। फ़िरोज़ कभी सुपर स्टार नहीं रहे लेकिन उनकी स्टाइल के लोग दीवाने थे और उनकी फ़िल्मों का इंतज़ार करते थे। जब अपनी आखिरी फ़िल्म में जब वे लोगों को ठहाके लगाने पर मजबूर कर रहे थे तो दर्शकों को एहसास भी था कि उनकी जिंदगी के बहुत कम दिन बचे हैं। कैंसर जैसी बीमारी का पता चलने के बाद भी उन्होंने 'वेलकम' फ़िल्म साइन की और अपना काम हंसते हुए किया। कहते हैं कि उन्होंने अभिनय की कोई फार्मल ट्रेनिंग नहीं ली थी फिर भी उन्हें यह पता था कि कैमरे के सामने कैसे खुद को लाना है। वे हॉलीवुड अभिनेता क्लिंट ईस्टवुड से इतने ज़्यादा प्रभावित थे कि 70 के दशक में उन्होंने उसी अंदाज़ को अपनी अभिनय की शैली में शामिल कर लिया। उस दौरान आई 'काला सोना', 'अपराध', और 'खोटे सिक्के' में उनका यह अंदाज दर्शकों को खूब पसंद आया। कुछ यही स्टाइल बाद में 'यलगार' फ़िल्म में भी दिखी।<ref name=>{{cite web |url=http://www.amarujala.com/news/multiplex/celebrity/indian-clint-eastwood-feroz-khan/ |title= फ़िरोज़ ख़ान यानी भारत का क्लिंट ईस्टवुड |accessmonthday=26 सितम्बर |accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=अमर उजाला|language=हिंदी }}</ref> | |||
==बिंदास और बेखौफ मिजाज== | ==बिंदास और बेखौफ मिजाज== | ||
ख़ुद को किसी दायरे में बांध कर नहीं रखने वाले ही एक दिन दुनिया को अपने सम्मोहन से बांध देते हैं। बॉलीवुड की दुनिया में जहां अभिनेता | ख़ुद को किसी दायरे में बांध कर नहीं रखने वाले ही एक दिन दुनिया को अपने सम्मोहन से बांध देते हैं। बॉलीवुड की दुनिया में जहां अभिनेता फ़िल्में खो देने के डर से अपनी छवि में बंधे रहते हैं वहां एक अभिनेता ऐसा भी था जिसने कभी खुद को किसी छवि में बंधने नहीं दिया। अभिनेता फ़िरोज़ ख़ान ने बॉलीवुड में स्टाइलिश और बिंदास होने के जो पैमाने रखे उस तक आज भी कोई नहीं पहुंच पाया है। राजसी अंदाज में उन्होंने एक अर्से तक दर्शकों के दिलों पर राज किया है। फ़िल्म इंडस्ट्री में ऐसे कई प्रसंग और किस्से हैं, जिनमें फ़िरोज़ ख़ान ने बेधड़क दिल की बात रखी। अपने इस बिंदास और बेखौफ मिजाज के कारण वे आलोचना के शिकार हुए और कई बेहतरीन फ़िल्में उनके हाथों से निकल गई। कहते हैं कि संगम के निर्माण के समय [[राज कपूर]] ने [[राजेंद्र कुमार]] के पहले उनके नाम पर विचार किया था। पुरानी और नयी पीढ़ी के अभिनेताओं के बीच फ़िरोज़ एक योजक की तरह रहे। उन्हें अपने मुखर, खुले, आक्रामक और एक हद तक अहंकारी स्वभाव के कारण बदनामी झेलनी पड़ी। इसके बावजूद उन्होंने छवि सुधारने की कोशिश नहीं की। अपने लापरवाह अंदाज में जीते रहे। फ़िरोज़ एक मंझे हुए अभिनेता के साथ ही अपनी स्पष्ट राय रखने के लिए जाने जाते थे। कुछ वर्ष पहले उन्होंने [[पाकिस्तान]] की स्थिति को लेकर बयान दिया तो वहां के शासकों की नजर में वह चुभ गए। यही वजह रही कि उन्हें पाकिस्तान का वीजा न देने का फैसला हुआ। इसके बावजूद वह अपनी बेबाक राय पर अडिग रहे। हालांकि फ़िरोज़ ख़ान ने असल जिंदगी में काफी संघर्ष भी किया है।<ref name="ISN"/> | ||
==सम्मान एवं पुरस्कार== | ==सम्मान एवं पुरस्कार== | ||
* उन्हें वर्ष 1970 में | * उन्हें वर्ष 1970 में फ़िल्म 'आदमी और इंसान' के लिए फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता का पुरस्कार दिया। | ||
* वर्ष 2000 में | * वर्ष 2000 में फ़िरोज़ को लाइफटाइम अचीवमेंट का फ़िल्मफेयर पुरस्कार दिया गया। | ||
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अपने बेटे | अपने बेटे फ़रदीन के करियर को चमकाने की उन्होंने कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी। कुछ फ़िल्मों में फ़िरोज़ ने चरित्र रोल भी निभाए, लेकिन 'शेर भले ही बूढ़ा हो जाए, वह घास नहीं खाता' अंदाज में फ़िरोज़ ने अपनी आन-बान-शान हमेशा कायम रखी। फ़िरोज़ ख़ान कैंसर से पीड़ित थे और [[मुंबई]] में उनका लंबे समय तक इलाज चला। [[27 अप्रैल]], [[2009]] को उन्होंने [[बेंगलूर]] स्थित अपने फार्म हाउस में अंतिम सांस ली। | ||
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*[http://www.livehindustan.com/news/entertainment/entertainmentnews/article1-I-always-miss-feroz-khan-:-vinod-khanna-28-28-168264.html | *[http://www.livehindustan.com/news/entertainment/entertainmentnews/article1-I-always-miss-feroz-khan-:-vinod-khanna-28-28-168264.html फ़िरोज़ ख़ान की कमी महसूस होती है: विनोद खन्ना] | ||
*[http://www.patrika.com/news/bollywood-actor-feroz-khan-died-on-today-27-april-2009/1003507 बॉलीवुड के पहले फैशन आईकन थे | *[http://www.patrika.com/news/bollywood-actor-feroz-khan-died-on-today-27-april-2009/1003507 बॉलीवुड के पहले फैशन आईकन थे फ़िरोज़ ख़ान] | ||
*[http://hindi.webdunia.com/bollywood-focus/%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%9C-%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%AC%E0%A5%89%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A5%81%E0%A4%A1-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%88%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%B5%E0%A5%81%E0%A4%A1-109042700025_1.htm | *[http://hindi.webdunia.com/bollywood-focus/%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%9C-%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%AC%E0%A5%89%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A5%81%E0%A4%A1-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%88%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%B5%E0%A5%81%E0%A4%A1-109042700025_1.htm फ़िरोज़ ख़ान : बॉलीवुड के ईस्टवुड] | ||
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08:14, 26 सितम्बर 2014 का अवतरण
फ़िरोज़ ख़ान
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पूरा नाम | फ़िरोज़ ख़ान |
अन्य नाम | लेडी किलर |
जन्म | 25 सितंबर, 1939 |
जन्म भूमि | बैंगलोर (अब बेंगळूरू), कर्नाटक |
मृत्यु | 27 अप्रैल, 2009 |
मृत्यु स्थान | बेंगळूरू, कर्नाटक |
पति/पत्नी | सुंदरी |
संतान | फ़रदीन ख़ान और लैला ख़ान |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | अभिनेता, फ़िल्म निर्माता-निर्देशक |
मुख्य फ़िल्में | क़ुर्बानी, दयावान, धर्मात्मा, सफर, मेला, खोटे सिक्के, काला सोना, नागिन, वेलकम आदि |
पुरस्कार-उपाधि | वर्ष 1970 में फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता और वर्ष 2000 में फ़िरोज़ को लाइफटाइम अचीवमेंट का फ़िल्मफेयर पुरस्कार दिया गया। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | फ़िरोज़ ख़ान हॉलीवुड अभिनेता क्लिंट ईस्टवुड से इतने ज़्यादा प्रभावित थे कि 70 के दशक में उन्होंने उसी अंदाज़ को अपनी अभिनय की शैली में शामिल कर लिया। |
फ़िरोज़ ख़ान (अंग्रेज़ी: Feroz Khan, जन्म: 25 सितंबर, 1939 – मृत्यु: 27 अप्रैल, 2009) हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता एवं फ़िल्म निर्माता-निर्देशक थे। फ़िरोज़ ख़ान अपनी ख़ास शैली, अलग अंदाज़ और किरदारों के लिए जाने जाते रहे। फ़िल्मों में कहीं वो एक सुंदर हीरो की भूमिका में हैं तो कहीं खूंखार विलेन के रोल में दोनों ही चरित्रों में फ़िरोज़ ख़ान जान डाल देते थे।
जीवन परिचय
फ़िरोज़ ख़ान का जन्म 25 सितंबर, 1939 को बेंगलूर में हुआ था। अफगानी पिता और ईरानी माँ के बेटे फ़िरोज़ बेंगलूर से हीरो बनने का सपना लेकर मुंबई पहुंचे। उनके तीन भाई संजय ख़ान (अभिनेता-निर्माता), अकबर ख़ान और समीर ख़ान हैं। उनकी एक बहन हैं, जिनका नाम दिलशाद बीबी है। फ़िरोज़ की भतीजी और संजय ख़ान की बेटी सुजैन ख़ान की शादी ऋतिक रोशन से हुई, जो फ़िल्मकार राकेश रोशन के पुत्र हैं। फ़िरोज़ ख़ान ने सुंदरी के साथ जिंदगी का सफर 1965 में शुरू किया। दोनों 20 साल तक साथ रहे। 1985 में उनके बीच तलाक हो गया। फ़िरोज़ ख़ान के पुत्र फ़रदीन ख़ान भी अभिनेता हैं।
कॅरियर
बॉलीवुड में फ़िरोज़ ख़ान ने अपने कैरियर की शुरूआत 1960 में बनी फ़िल्म 'दीदी' से की। शुरुआती कुछ फ़िल्मों में अभिनेता का किरदार निभाने के बाद उन्होंने कुछ समय के लिए खलनायकों की भी भूमिका अदा की खास तौर पर गांव के गुंडों की। वर्ष 1962 में फ़िरोज़ ने अंग्रेज़ी भाषा की एक फ़िल्म 'टार्जन गोज टू इंडिया' में काम किया। इस फ़िल्म में नायिका सिमी ग्रेवाल थीं। 1965 में उनकी पहली हिट फ़िल्म 'ऊंचे लोग' आई जिसने उन्हें सफलता का स्वाद चखाया। अभिनय के लिहाज से फ़िरोज़ ख़ान के लिए 70 का दशक खास रहा। फ़िल्म 'आदमी और इंसान' (1970) में अभिनय के लिए फ़िरोज़ को फ़िल्म फेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक कलाकार का पुरस्कार मिला। 70 के दशक में उन्होंने आदमी और इंसान, मेला, धर्मात्मा जैसी बेहतरीन फ़िल्में दीं। इसी दशक में उन्होंने निर्माता-निर्देशक के रूप में अपना सफर शुरू किया। उनके इस सफर की शुरुआत फ़िल्म धर्मात्मा से हुई। वर्ष 1980 की फ़िल्म क़ुर्बानी से उन्होंने एक सफल निर्माता-निर्देशक के रूप में सभी को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। क़ुर्बानी उनके कैरियर की सबसे सफल फ़िल्म रही। इसमें उनके साथ विनोद खन्ना भी प्रमुख भूमिका में थे। क़ुर्बानी ने हिंदी सिनेमा को एक नया रूप दिया। क़ुर्बानी ने ही हिंदी सिनेमा में अभिनेत्रियों को भी हॉट एंड बोल्ड होने का अवसर दिया। फ़िल्म में फ़िरोज़ और जीनत अमान की बिंदास जोड़ी को दर्शकों ने खूब पसंद किया।[1]

फ़िल्म निर्माण एवं निर्देशन
फ़िल्मों से अभिनय के बाद उन्होंने निर्देशन की तरफ रुख किया। उन्होंने लीक से हट कर फ़िल्में बनाई। 70 से 80 के दशक के बीच उनके निर्देशन में बनी फ़िल्में धर्मात्मा, क़ुर्बानी, जांबाज और दयावान बॉक्स ऑफिस पर हिट हुई। वर्ष 1975 में बनी धर्मात्मा पहली भारतीय फ़िल्म थी जिसकी शूटिंग अफगानिस्तान में की गई। यह एक निर्माता निर्देशक के रूप में फ़िरोज़ की पहली हिट फ़िल्म भी थी। यह फ़िल्म हॉलीवुड की फ़िल्म गॉडफादर पर आधारित थी। 1998 में फ़िल्म प्रेम अगन से उन्होंने अपने बेटे को फ़िल्मों में लाने का काम किया पर उनके बेटे फ़रदीन ख़ान उनकी तरह शोहरत बटोरने में विफल रहे। 2003 में उन्होंने अपने बेटे और स्पोर्ट्स प्यार के लिए फ़िल्म 'जानशीं' बनाई पर फ़िल्म में अभिनय करने के बाद भी वह अपने बेटे को हिट नहीं करवा सके। फ़िरोज़ ख़ान ने आखिरी बार फ़िल्म वेलकम में काम किया। फ़िल्म वेलकम में भी उनका वही बिंदास स्टाइल नजर आया जिसके लिए वह जाने जाते हैं।[1] फ़िरोज़ ख़ान को बालीवुड की ऐसी शख्सियत के रूप में याद किया जाता हैै जिन्होंने फ़िल्म निर्माण की अपनी विशेष शैैली बनाई थी। फ़िरोज़ ख़ान की निर्मित फ़िल्मों पर नजर डालें तो उनकी फ़िल्में बड़े बजट की हुआ करती थीं। जिनमें बड़े-बड़े सितारे, आकर्षक औैर भव्य सेट, खूबसूरत लोकेशन, दिल को छू लेने वाला गीत, संगीत औैर उम्दा तकनीक देखने को मिलती थी। अभिनेता के रूप में भी फ़िरोज़ ख़ान ने बालीवुड के नायक की परम्परागत छवि के विपरीत अपनी एक विशेष शैैली गढ़ी जो आकर्षक औैर तड़क-भड़क वाली छवि थी। उनकी अकड़कर चलने की अदा औैर काउब्वाय वाली इमेज दर्शकों के मन में आज भी बसी हुई हैै। फ़िल्म निर्माण औैर निर्देेशन के क्रम में फ़िरोज़ ख़ान ने हिन्दी फ़िल्मों में कुछ नई बातों का आगाज किया। अपराध फ़िल्म में भारत की पहली फ़िल्म थी जिसमें जर्मनी में कार रेस दिखाई गई थी। धर्मात्मा की शूटिंग के लिए वह अफगानिस्तान के खूबसूरत लोकेशनों पर गए। इससे पहले भारत की किसी भी फ़िल्म का वहां फ़िल्मांकन नहीं किया गया था। अपने कैरियर की सबसे हिट फ़िल्म क़ुर्बानी से फीरोज ख़ान ने पाकिस्तान की पॉॅप गायिका नाजिया हसन के संगीत कैरियर की शुरुआत कराई। वर्ष 2003 में फ़िरोज़ ख़ान ने अपने पुत्र फ़रदीन ख़ान को लांच करने के लिये जानशीं का निर्माण किया। बॉलीवुड में लेडी किलर के नाम से मशहूर फ़िरोज़ ख़ान ने चार दशक लंबे सिने कैरियर में लगभग 60 फ़िल्मों में अभिनय किया। उनकी उल्लेखनीय फ़िल्मों में कुछ हैं आग, प्यासी शाम, सफर, मेला, खोटे सिक्के, गीता मेरा नाम, इंटरनेशनल क्रुक, काला सोना, शंकर शंभु, नागिन, चुनौती, क़ुर्बानी वेलकम आदि।[2]
फ़िल्मी सफ़र

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भारत के क्लिंट ईस्टवुड

फ़िरोज़ ख़ान का नाम सुनते ही एक आकर्षक, छरहरे और जांबाज जवान का चेहरा रूपहले पर्दे पर चलता-फिरता दिखाई पड़ने लगता है। बूट, हैट, हाथ में रिवॉल्वर, गले में लाकेट, कमीज के बटन खुले हुए, ऊपर से जैकेट और शब्दों को चबा-चबा कर संवाद बोलते फ़िरोज़ ख़ान को हिंदी फ़िल्मों का काउ ब्वाय कहा जाता था। हालीवुड में क्लिंट ईस्टवुड की जो छवि थी, उसका देशी रूपांतरण थे फ़िरोज़ ख़ान। फ़िरोज़ कभी सुपर स्टार नहीं रहे लेकिन उनकी स्टाइल के लोग दीवाने थे और उनकी फ़िल्मों का इंतज़ार करते थे। जब अपनी आखिरी फ़िल्म में जब वे लोगों को ठहाके लगाने पर मजबूर कर रहे थे तो दर्शकों को एहसास भी था कि उनकी जिंदगी के बहुत कम दिन बचे हैं। कैंसर जैसी बीमारी का पता चलने के बाद भी उन्होंने 'वेलकम' फ़िल्म साइन की और अपना काम हंसते हुए किया। कहते हैं कि उन्होंने अभिनय की कोई फार्मल ट्रेनिंग नहीं ली थी फिर भी उन्हें यह पता था कि कैमरे के सामने कैसे खुद को लाना है। वे हॉलीवुड अभिनेता क्लिंट ईस्टवुड से इतने ज़्यादा प्रभावित थे कि 70 के दशक में उन्होंने उसी अंदाज़ को अपनी अभिनय की शैली में शामिल कर लिया। उस दौरान आई 'काला सोना', 'अपराध', और 'खोटे सिक्के' में उनका यह अंदाज दर्शकों को खूब पसंद आया। कुछ यही स्टाइल बाद में 'यलगार' फ़िल्म में भी दिखी।[3]
बिंदास और बेखौफ मिजाज
ख़ुद को किसी दायरे में बांध कर नहीं रखने वाले ही एक दिन दुनिया को अपने सम्मोहन से बांध देते हैं। बॉलीवुड की दुनिया में जहां अभिनेता फ़िल्में खो देने के डर से अपनी छवि में बंधे रहते हैं वहां एक अभिनेता ऐसा भी था जिसने कभी खुद को किसी छवि में बंधने नहीं दिया। अभिनेता फ़िरोज़ ख़ान ने बॉलीवुड में स्टाइलिश और बिंदास होने के जो पैमाने रखे उस तक आज भी कोई नहीं पहुंच पाया है। राजसी अंदाज में उन्होंने एक अर्से तक दर्शकों के दिलों पर राज किया है। फ़िल्म इंडस्ट्री में ऐसे कई प्रसंग और किस्से हैं, जिनमें फ़िरोज़ ख़ान ने बेधड़क दिल की बात रखी। अपने इस बिंदास और बेखौफ मिजाज के कारण वे आलोचना के शिकार हुए और कई बेहतरीन फ़िल्में उनके हाथों से निकल गई। कहते हैं कि संगम के निर्माण के समय राज कपूर ने राजेंद्र कुमार के पहले उनके नाम पर विचार किया था। पुरानी और नयी पीढ़ी के अभिनेताओं के बीच फ़िरोज़ एक योजक की तरह रहे। उन्हें अपने मुखर, खुले, आक्रामक और एक हद तक अहंकारी स्वभाव के कारण बदनामी झेलनी पड़ी। इसके बावजूद उन्होंने छवि सुधारने की कोशिश नहीं की। अपने लापरवाह अंदाज में जीते रहे। फ़िरोज़ एक मंझे हुए अभिनेता के साथ ही अपनी स्पष्ट राय रखने के लिए जाने जाते थे। कुछ वर्ष पहले उन्होंने पाकिस्तान की स्थिति को लेकर बयान दिया तो वहां के शासकों की नजर में वह चुभ गए। यही वजह रही कि उन्हें पाकिस्तान का वीजा न देने का फैसला हुआ। इसके बावजूद वह अपनी बेबाक राय पर अडिग रहे। हालांकि फ़िरोज़ ख़ान ने असल जिंदगी में काफी संघर्ष भी किया है।[1]
सम्मान एवं पुरस्कार
- उन्हें वर्ष 1970 में फ़िल्म 'आदमी और इंसान' के लिए फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता का पुरस्कार दिया।
- वर्ष 2000 में फ़िरोज़ को लाइफटाइम अचीवमेंट का फ़िल्मफेयर पुरस्कार दिया गया।
निधन
अपने बेटे फ़रदीन के करियर को चमकाने की उन्होंने कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी। कुछ फ़िल्मों में फ़िरोज़ ने चरित्र रोल भी निभाए, लेकिन 'शेर भले ही बूढ़ा हो जाए, वह घास नहीं खाता' अंदाज में फ़िरोज़ ने अपनी आन-बान-शान हमेशा कायम रखी। फ़िरोज़ ख़ान कैंसर से पीड़ित थे और मुंबई में उनका लंबे समय तक इलाज चला। 27 अप्रैल, 2009 को उन्होंने बेंगलूर स्थित अपने फार्म हाउस में अंतिम सांस ली।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 स्टाइलिश और बिंदास अभिनेता थे फ़िरोज़ ख़ान (हिंदी) insighttvnews। अभिगमन तिथि: 26 सितम्बर, 2014।
- ↑ फ़िल्म निर्माण की विशिष्ट शैली बनाई थी फ़िरोज़ ख़ान ने (हिंदी) देशबंधु। अभिगमन तिथि: 26 सितम्बर, 2014।
- ↑ फ़िरोज़ ख़ान यानी भारत का क्लिंट ईस्टवुड (हिंदी) अमर उजाला। अभिगमन तिथि: 26 सितम्बर, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
- फ़िरोज़ ख़ान की कमी महसूस होती है: विनोद खन्ना
- बॉलीवुड के पहले फैशन आईकन थे फ़िरोज़ ख़ान
- फ़िरोज़ ख़ान : बॉलीवुड के ईस्टवुड
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