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'''वैशाखी / बैसाखी / Vaishakhi'''<br />
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{{सूचना बक्सा त्योहार
[[चित्र:baisakhi-1.jpg|thumb|250px|वैशाखी <br />Baisakhi]]
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|चित्र=baisakhi-1.jpg
देश विदेश में वैशाखी के अवसर पर, विशेषकर [[पंजाब]] में मेले लगते हैं। लोग सुबह सुबह सरोवरों और नदियों में स्नान कर मंदिरों और गुरुद्वारों में जाते हैं। लंगर लगाये जाते हैं और चारों तरफ लोग प्रसन्न दिखलायी देते हैं। विशेषकर किसान, गेहूँ की फ़सल को देखकर उनका मन नाचने लगता है। गेहूँ को पंजाबी किसान 'कनक' यानि सोना मानते हैं। यह फ़सल किसान के लिए सोना ही होती है, उसकी मेहनत का रंग दिखायी देता है। वैशाखी पर गेहूँ की कटाई शुरू हो जाती है। वैशाखी पर्व 'बंगाल में पैला ( पीला) बैसाख' नाम से, दक्षिण में 'बिशु' नाम से और 'केरल, तमिल, असम में बिहू' के नाम से मनाया जाता है। अंग्रेज़ी कलैंडर में तारीखों के बदलाव के कारण अब बैसाखी 14 अप्रॅल को मनायी जाती है।
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|चित्र का नाम= वैशाखी
==बैसाखी कब==
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|अन्य नाम = 'पैला बैसाख' [[पश्चिम बंगाल]], 'बिशु' ([[केरल]] और [[तमिलनाडु]]), [[बिहू]] ([[असम]]) 
*विशेषज्ञों का मानना है कि हिन्दू पंचाग के अनुसार गुरु गोविन्दसिंह ने वैशाख माह की षष्ठी तिथि के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसी दिन मकरसंक्रांति भी थी। इसी कारण से बैसाखी का पर्व सूर्य की तिथि के अनुसार मनाया जाने लगा। सूर्य मेष राशि में प्राय: 13 या 14 अप्रैल को प्रवेश करता है, इसीलिए बैशाखी भी इसी दिन मनायी जाती है।
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|अनुयायी = [[सिक्ख धर्म|सिक्ख समुदाय]]
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|उद्देश्य =  [[पंजाब]] और [[हरियाणा]] के किसान सर्दियों की फसल काट लेने के बाद [[नववर्ष]] की खुशियाँ मनाते हैं। इसीलिए बैसाखी पंजाब और आसपास के प्रदेशों का सबसे बड़ा त्योहार है।
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|प्रारम्भ = [[हिन्दू]] [[पंचांग]] के अनुसार [[गुरु गोविन्द सिंह]] ने [[वैशाख]] माह की [[षष्ठी]] [[तिथि]] के दिन [[खालसा पंथ]] की स्थापना की थी। इसी कारण से वैशाखी का पर्व [[सूर्य]] की तिथि के अनुसार मनाया जाने लगा।
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|उत्सव =वैशाखी विश्व भर में पंजाबियों का एक कौमी जश्न माना जाता है। पंजाबी लोगों का यह सबसे बड़ा मेला है। इस दिन लोग रंगबिरंगे कपड़े पहनकर खुशियां मनाते हैं।
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'''वैशाखी''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Vaisakhi'') [[पंजाब]] राज्य, [[भारत]] में [[सिक्ख]] समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहार है। देश विदेश में वैशाखी के अवसर पर, विशेषकर पंजाब में मेले लगते हैं। लोग सुबह-सुबह सरोवरों और नदियों में [[स्नान]] कर मंदिरों और गुरुद्वारों में जाते हैं। लंगर लगाये जाते हैं और चारों तरफ लोग प्रसन्न दिखलायी देते हैं। विशेषकर किसान, [[गेहूँ]] की फ़सल को देखकर उनका मन नाचने लगता है। गेहूँ को पंजाबी किसान '[[कनक]]' यानि [[सोना]] मानते हैं। यह फ़सल किसान के लिए सोना ही होती है, उसकी मेहनत का [[रंग]] दिखायी देता है। वैशाखी पर गेहूँ की कटाई शुरू हो जाती है। वैशाखी पर्व 'बंगाल में पैला (पीला) बैसाख' नाम से, दक्षिण में 'बिशु' नाम से और '[[केरल]], [[तमिलनाडु]], [[असम]] में [[बिहू]]' के नाम से मनाया जाता है। अंग्रेज़ी कलैंडर में तारीखों के बदलाव के कारण अब वैशाखी [[14 अप्रॅल]] को मनायी जाती है।
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==वैशाखी कब==
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*विशेषज्ञों का मानना है कि [[हिन्दू]] [[पंचांग]] के अनुसार [[गुरु गोविन्द सिंह]] ने वैशाख माह की [[षष्ठी]] तिथि के दिन [[खालसा पंथ]] की स्थापना की थी। इसी दिन [[मकर संक्रांति]] भी थी। इसी कारण से वैशाखी का पर्व सूर्य की तिथि के अनुसार मनाया जाने लगा। सूर्य [[मेष राशि]] में प्राय: 13 या 14 अप्रैल को प्रवेश करता है, इसीलिए बैशाखी भी इसी दिन मनायी जाती है।
 
*प्रत्येक 36 साल बाद भारतीय चन्द्र गणना के अनुसार बैशाखी 14 अप्रैल को पड़ती है।
 
*प्रत्येक 36 साल बाद भारतीय चन्द्र गणना के अनुसार बैशाखी 14 अप्रैल को पड़ती है।
 
==इतिहास से==
 
==इतिहास से==
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[[गोविंद सिंह गुरु|गुरु गोविंद सिंह]] जी, वैशाखी दिवस को विशेष गौरव देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने ने 1699 ई. को वैशाखी पर श्री [[आनंदपुर साहिब]] में विशेष समागम किया। इसमें देश भर की संगत ने आकर इस ऐतिहासिक अवसर पर अपना सहयोग दिया। गुरु गोविंद सिंह जी ने इस मौके पर संगत को ललकार कर कहा- 'देश को ग़ुलामी से आज़ाद करने के लिए मुझे एक शीश चाहिए। गुरु साहिब की ललकार को सुनकर पांच वीरों 'दया सिंह खत्री, धर्म सिंह जट, मोहकम सिंह छीवां, साहिब सिंह और हिम्मत सिंह' ने अपने अपने शीश गुरु गोविंद सिंह जी को भेंट किए। ये पांचो सिंह गुरु साहिब के '[[पंच प्यारे]]' कहलाए। गुरु साहिब ने सबसे पहले इन्हें अमृत पान करवाया और फिर उनसे खुद अमृत पान किया। इस प्रकार 1699 की वैशाखी को 'खालसा पंथ' का जन्म हुआ, जिसने संघर्ष करके उत्तर [[भारत]] में [[मुग़ल साम्राज्य]] को समाप्त कर दिया। हर साल वैशाखी के उत्सव पर 'खालसा पंथ' का जन्म दिवस मनाया जाता है।  
[[गोविंद सिंह गुरु|गुरु गोविंद सिंह]] जी, वैशाखी दिवस को विशेष गौरव देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने ने 1699 ई. को वैशाखी पर श्री [[आनंदपुर साहिब]] में विशेष समागम किया। इसमें देश भर की संगत ने आकर इस ऐतिहासिक अवसर पर अपना सहयोग दिया। गुरु गोविंद सिंह जी ने इस मौके पर संगत को ललकार कर कहा- 'देश को गुलामी से आज़ाद करने के लिए मुझे एक शीश चाहिए। गुरु साहिब की ललकार को सुनकर पांच वीरों 'दया सिंह खत्री, धर्म सिंह जट, मोहकम सिंह छीवां, साहिब सिंह और हिम्मत सिंह' ने अपने अपने शीश गुरु गोविंद सिंह जी को भेंट किए। ये पांचो सिंह गुरु साहिब के 'पंच प्यारे' कहलाए। गुरु साहिब ने सबसे पहले इन्हें अमृत पान करवाया और फिर उनसे खुद अमृत पान किया। इस प्रकार 1699 की वैशाखी को 'खालसा पंथ' का जन्म हुआ, जिसने संघर्ष करके उत्तर भारत में मुग़ल साम्राज्य को समाप्त कर दिया। हर साल वैशाखी के उत्सव पर 'खालसा पंथ' का जन्म दिवस मनाया जाता है।  
 
 
==वैशाखी की परम्पराएं==
 
==वैशाखी की परम्पराएं==
वैशाखी पर किसान का घर फ़सल से भर जाता है। इस खुशी में [[ढोल]] बजाये जाते हैं। [[भांगड़ा]] करते बूढ़े, बच्चे और जवान थिरकने लगते हैं।  
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वैशाखी पर किसान का घर फ़सल से भर जाता है। इस खुशी में [[ढोल]] बजाये जाते हैं। [[भांगड़ा नृत्य|भांगड़ा]] करते बूढ़े, बच्चे और जवान थिरकने लगते हैं।  
 
==मेला==
 
==मेला==
वैशाखी विश्व भर में पंजाबियों का एक कौमी जश्न माना जाता है। पंजाबी लोगों का यह सबसे बडा मेला है। इस दिन लोग रंगबिरंगे कपड़े पहनकर खुशियां मनाते हैं। वैशाखी के नाम से दिलों में उत्साह का संचार होता है। चाहे घर में हों या जंग में, देश में या परदेश में, वैशाखी का नाम लेते ही दिलों की धड़कने बढ़ जाती है, तन थिरकने लगते हैं और भांगड़ा होने लगता है।  
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वैशाखी विश्व भर में पंजाबियों का एक कौमी जश्न माना जाता है। पंजाबी लोगों का यह सबसे बड़ा मेला है। इस दिन लोग रंगबिरंगे कपड़े पहनकर खुशियां मनाते हैं। वैशाखी के नाम से दिलों में उत्साह का संचार होता है। चाहे घर में हों या जंग में, देश में या परदेश में, वैशाखी का नाम लेते ही दिलों की धड़कने बढ़ जाती है, तन थिरकने लगते हैं और भांगड़ा होने लगता है।  
 
==भांगड़ा और गिद्दा==
 
==भांगड़ा और गिद्दा==
वक़्त के साथ भांगड़ा और [[गिद्दा]] का स्वरूप बदलता रहा है। किंतु आज भी फ़सल की कटाई के साथ ही ढोल बजने लगता है, ढोल हमेशा से ही पंजाबियों का साथी रहा है। ढोल से धीमे ताल द्वारा मनमोहक संगीत निकलता है। पिछली सदियों में आक्रमणकारियों से होशियार करने के लिए ढोल बजाया जाता था। इसकी आवाज दूर तक जाती थी। ढोल की आवाज़ से लोग नींद से जाग जाते थे। संकट समय ढोल की आवाज लोगों को सूचना दे देती थी और घरों से निकलकर वे दुश्मन पर टूट पड़ते थे। गुरु गोविंद सिंह जी ने दुश्मनों से लोगों को होशियार कराने के लिए [[नगाड़ा]] बनवाया था। नगाड़ा गधे या ऊंट की खाल से बनाया जाता था।  
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वक़्त के साथ [[भांगड़ा]] और [[गिद्दा]] का स्वरूप बदलता रहा है। किंतु आज भी फ़सल की कटाई के साथ ही ढोल बजने लगता है, ढोल हमेशा से ही पंजाबियों का साथी रहा है। ढोल से धीमे ताल द्वारा मनमोहक संगीत निकलता है। पिछली सदियों में आक्रमणकारियों से होशियार करने के लिए ढोल बजाया जाता था। इसकी आवाज़ दूर तक जाती थी। ढोल की आवाज़ से लोग नींद से जाग जाते थे। संकट समय ढोल की आवाज़ लोगों को सूचना दे देती थी और घरों से निकलकर वे दुश्मन पर टूट पड़ते थे। गुरु गोविंद सिंह जी ने दुश्मनों से लोगों को होशियार कराने के लिए [[नगाड़ा]] बनवाया था। नगाड़ा गधे या ऊँट की खाल से बनाया जाता था।  
 
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[[चित्र:Gurudwara.jpg|thumb|250px|वैशाखी <br />Baisakhi]]
 
देश की परतंत्रता की परिस्थितियां में लोग जूझने के लिए अपने आप को तैयार रखते थे। वैशाखी का त्योहार बलिदान का त्योहार है। 1699 ई. की वैशाखी से, हर साल वैशाखी देश की सुरक्षा के लिए लोगों को जगाती आयी है। मुग़ल शासक [[औरंगज़ेब]] ने जुल्म, अन्याय व अत्याचार करते हुए श्री [[तेगबहादुर सिंह गुरु|गुरु तेगबहादुर सिंह]] जी को [[दिल्ली]] के चाँदनी चौक पर शहीद कर दियाथा, तभी गुरु गोविंदसिंह जी ने अपने अनुयायियों को संगठित कर 'खालसा पंथ' की स्थापना की थी। 1716 ई. में '[[बंदा सिंह बहादुर|बंदा बहादुर]]' की शहादत के बाद तो पंजाब सिखों की वीरता की मिसाल बन गया।
 
देश की परतंत्रता की परिस्थितियां में लोग जूझने के लिए अपने आप को तैयार रखते थे। वैशाखी का त्योहार बलिदान का त्योहार है। 1699 ई. की वैशाखी से, हर साल वैशाखी देश की सुरक्षा के लिए लोगों को जगाती आयी है। मुग़ल शासक [[औरंगज़ेब]] ने जुल्म, अन्याय व अत्याचार करते हुए श्री [[तेगबहादुर सिंह गुरु|गुरु तेगबहादुर सिंह]] जी को [[दिल्ली]] के चाँदनी चौक पर शहीद कर दियाथा, तभी गुरु गोविंदसिंह जी ने अपने अनुयायियों को संगठित कर 'खालसा पंथ' की स्थापना की थी। 1716 ई. में '[[बंदा सिंह बहादुर|बंदा बहादुर]]' की शहादत के बाद तो पंजाब सिखों की वीरता की मिसाल बन गया।
 
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'मिसलदार' प्रत्येक साल  वैशाखी के अवसर पर श्री [[अमृतसर]] में '[[स्वर्ण मंदिर अमृतसर|हरमिंदर साहिब]]' में वर्ष भर का हिसाब देते थे। सिख मिसलों का समय 1716 से लेकर 1799 तक का रहा है। सभी मिसलदार वैशाखी पर एकत्र होते थे। 13 अप्रैल, 1919 को सैकड़ों लोग '[[जलियांवाला बाग़]]' में देश की आज़ादी के लिए जनरल डायर के सैनिकों की गोलियों के आगे निशस्त्र सीना तान कर खड़े रहे और शहीद हो गए। आज वैशाखी पर दिये गया बलिदान पूरे देश के देशवासी जानते हैं और वैशाखी के पर्व पर शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं।
'मिसलदार' प्रत्येक साल  वैशाखी के अवसर पर श्री [[अमृतसर]] में '[[स्वर्ण मंदिर अमृतसर|हरमिंदर साहिब]]' में वर्ष भर का हिसाब देते थे। सिख मिसलों का समय 1716 से लेकर 1799 तक का रहा है। सभी मिसलदार वैशाखी पर एकत्र होते थे। 13 अप्रैल, 1919 को सैकड़ों लोग '[[जलियांवाला बाग़]]' में देश की आज़ादी के लिए जनरल डायर के सैनिकों की गोलियों के आगे निशस्त्र सीना तान कर खड़े रहे और शहीद हो गए। आज वैशाखी पर दिये गया बलिदान पूरे देश के देशवासी जानते हैं और वैशाखी के पर्व पर शहीदों को श्रद्धांजलि देते है।
 
 
==विशेष बातें==  
 
==विशेष बातें==  
*रात्रि के समय आग जलाकर उसके चारों तरफ इकट्ठे होकर नई फ़सल की खुशियाँ मनायी जाती हैं और नये अन्न को [[अग्निदेव|अग्नि]] को समर्पित किया जाता है और पंजाब का परंपरागत नृत्य भांगड़ा और गिद्दा किया जाता है।
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*रात्रि के समय आग जलाकर उसके चारों तरफ इकट्ठे होकर नई फ़सल की खुशियाँ मनायी जाती हैं और नये अन्न को [[अग्निदेव|अग्नि]] को समर्पित किया जाता है और पंजाब का परंपरागत नृत्य भांगड़ा और गिद्दा किया जाता है।
 
*गुरुद्वारों में अरदास के लिए श्रद्धालु जाते हैं। आनंदपुर साहिब में, जहां खालसा पंथ की नींव रखी गई थी, विशेष अरदास और पूजा होती है।
 
*गुरुद्वारों में अरदास के लिए श्रद्धालु जाते हैं। आनंदपुर साहिब में, जहां खालसा पंथ की नींव रखी गई थी, विशेष अरदास और पूजा होती है।
*गुरुद्वारों में [[गुरु ग्रंथ साहब]] को समारोह पूर्वक बाहर लाकर दूध और जल से प्रतीक रूप से स्नान करवा कर गुरु ग्रंथ साहिब को तख्त पर प्रतिष्ठित किया जाता है। इसके बाद पंच प्यारे 'पंचबानी' गायन करते हैं।
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*गुरुद्वारों में [[गुरु ग्रंथ साहब]] को समारोह पूर्वक बाहर लाकर दूध और जल से प्रतीक रूप से स्नान करवा कर गुरु ग्रंथ साहिब को तख्त पर प्रतिष्ठित किया जाता है। इसके बाद [[पंच प्यारे]] 'पंचबानी' गायन करते हैं।
 
*अरदास के बाद गुरु जी को कड़ा प्रसाद का भोग लगाया जाता है। प्रसाद भोग लगने के बाद सब भक्त 'गुरु जी के लंगर' में भोजन करते हैं। भक्त 'कार सेवा' करते हैं।  
 
*अरदास के बाद गुरु जी को कड़ा प्रसाद का भोग लगाया जाता है। प्रसाद भोग लगने के बाद सब भक्त 'गुरु जी के लंगर' में भोजन करते हैं। भक्त 'कार सेवा' करते हैं।  
 
*पूरे दिन गुरु गोविंदसिंह जी और 'पंच प्यारों' के सम्मान में शबद और कीर्तन गाए जाते हैं।
 
*पूरे दिन गुरु गोविंदसिंह जी और 'पंच प्यारों' के सम्मान में शबद और कीर्तन गाए जाते हैं।
  
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
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*[http://hindi.webdunia.com/religion-occasion-others/%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97-%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5-1120413017_1.htm रंग-रंगीला बैसाखी पर्व]
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==संबंधित लेख==
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{{पर्व और त्योहार}}{{व्रत और उत्सव}}
 
[[Category:पर्व_और_त्योहार]]
 
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[[Category:पंजाब की संस्कृति]]
 
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06:34, 7 मार्च 2021 के समय का अवतरण

वैशाखी
वैशाखी
अन्य नाम 'पैला बैसाख' पश्चिम बंगाल, 'बिशु' (केरल और तमिलनाडु), बिहू (असम)
अनुयायी सिक्ख समुदाय
उद्देश्य पंजाब और हरियाणा के किसान सर्दियों की फसल काट लेने के बाद नववर्ष की खुशियाँ मनाते हैं। इसीलिए बैसाखी पंजाब और आसपास के प्रदेशों का सबसे बड़ा त्योहार है।
प्रारम्भ हिन्दू पंचांग के अनुसार गुरु गोविन्द सिंह ने वैशाख माह की षष्ठी तिथि के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसी कारण से वैशाखी का पर्व सूर्य की तिथि के अनुसार मनाया जाने लगा।
तिथि 14 अप्रॅल (2021)
उत्सव वैशाखी विश्व भर में पंजाबियों का एक कौमी जश्न माना जाता है। पंजाबी लोगों का यह सबसे बड़ा मेला है। इस दिन लोग रंगबिरंगे कपड़े पहनकर खुशियां मनाते हैं।
अन्य जानकारी प्रत्येक 36 साल बाद भारतीय चन्द्र गणना के अनुसार वैशाखी 14 अप्रैल को पड़ती है।

वैशाखी (अंग्रेज़ी:Vaisakhi) पंजाब राज्य, भारत में सिक्ख समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहार है। देश विदेश में वैशाखी के अवसर पर, विशेषकर पंजाब में मेले लगते हैं। लोग सुबह-सुबह सरोवरों और नदियों में स्नान कर मंदिरों और गुरुद्वारों में जाते हैं। लंगर लगाये जाते हैं और चारों तरफ लोग प्रसन्न दिखलायी देते हैं। विशेषकर किसान, गेहूँ की फ़सल को देखकर उनका मन नाचने लगता है। गेहूँ को पंजाबी किसान 'कनक' यानि सोना मानते हैं। यह फ़सल किसान के लिए सोना ही होती है, उसकी मेहनत का रंग दिखायी देता है। वैशाखी पर गेहूँ की कटाई शुरू हो जाती है। वैशाखी पर्व 'बंगाल में पैला (पीला) बैसाख' नाम से, दक्षिण में 'बिशु' नाम से और 'केरल, तमिलनाडु, असम में बिहू' के नाम से मनाया जाता है। अंग्रेज़ी कलैंडर में तारीखों के बदलाव के कारण अब वैशाखी 14 अप्रॅल को मनायी जाती है।

वैशाखी कब

  • विशेषज्ञों का मानना है कि हिन्दू पंचांग के अनुसार गुरु गोविन्द सिंह ने वैशाख माह की षष्ठी तिथि के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसी दिन मकर संक्रांति भी थी। इसी कारण से वैशाखी का पर्व सूर्य की तिथि के अनुसार मनाया जाने लगा। सूर्य मेष राशि में प्राय: 13 या 14 अप्रैल को प्रवेश करता है, इसीलिए बैशाखी भी इसी दिन मनायी जाती है।
  • प्रत्येक 36 साल बाद भारतीय चन्द्र गणना के अनुसार बैशाखी 14 अप्रैल को पड़ती है।

इतिहास से

गुरु गोविंद सिंह जी, वैशाखी दिवस को विशेष गौरव देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने ने 1699 ई. को वैशाखी पर श्री आनंदपुर साहिब में विशेष समागम किया। इसमें देश भर की संगत ने आकर इस ऐतिहासिक अवसर पर अपना सहयोग दिया। गुरु गोविंद सिंह जी ने इस मौके पर संगत को ललकार कर कहा- 'देश को ग़ुलामी से आज़ाद करने के लिए मुझे एक शीश चाहिए। गुरु साहिब की ललकार को सुनकर पांच वीरों 'दया सिंह खत्री, धर्म सिंह जट, मोहकम सिंह छीवां, साहिब सिंह और हिम्मत सिंह' ने अपने अपने शीश गुरु गोविंद सिंह जी को भेंट किए। ये पांचो सिंह गुरु साहिब के 'पंच प्यारे' कहलाए। गुरु साहिब ने सबसे पहले इन्हें अमृत पान करवाया और फिर उनसे खुद अमृत पान किया। इस प्रकार 1699 की वैशाखी को 'खालसा पंथ' का जन्म हुआ, जिसने संघर्ष करके उत्तर भारत में मुग़ल साम्राज्य को समाप्त कर दिया। हर साल वैशाखी के उत्सव पर 'खालसा पंथ' का जन्म दिवस मनाया जाता है।

वैशाखी की परम्पराएं

वैशाखी पर किसान का घर फ़सल से भर जाता है। इस खुशी में ढोल बजाये जाते हैं। भांगड़ा करते बूढ़े, बच्चे और जवान थिरकने लगते हैं।

मेला

वैशाखी विश्व भर में पंजाबियों का एक कौमी जश्न माना जाता है। पंजाबी लोगों का यह सबसे बड़ा मेला है। इस दिन लोग रंगबिरंगे कपड़े पहनकर खुशियां मनाते हैं। वैशाखी के नाम से दिलों में उत्साह का संचार होता है। चाहे घर में हों या जंग में, देश में या परदेश में, वैशाखी का नाम लेते ही दिलों की धड़कने बढ़ जाती है, तन थिरकने लगते हैं और भांगड़ा होने लगता है।

भांगड़ा और गिद्दा

वक़्त के साथ भांगड़ा और गिद्दा का स्वरूप बदलता रहा है। किंतु आज भी फ़सल की कटाई के साथ ही ढोल बजने लगता है, ढोल हमेशा से ही पंजाबियों का साथी रहा है। ढोल से धीमे ताल द्वारा मनमोहक संगीत निकलता है। पिछली सदियों में आक्रमणकारियों से होशियार करने के लिए ढोल बजाया जाता था। इसकी आवाज़ दूर तक जाती थी। ढोल की आवाज़ से लोग नींद से जाग जाते थे। संकट समय ढोल की आवाज़ लोगों को सूचना दे देती थी और घरों से निकलकर वे दुश्मन पर टूट पड़ते थे। गुरु गोविंद सिंह जी ने दुश्मनों से लोगों को होशियार कराने के लिए नगाड़ा बनवाया था। नगाड़ा गधे या ऊँट की खाल से बनाया जाता था।

वैशाखी
Baisakhi

देश की परतंत्रता की परिस्थितियां में लोग जूझने के लिए अपने आप को तैयार रखते थे। वैशाखी का त्योहार बलिदान का त्योहार है। 1699 ई. की वैशाखी से, हर साल वैशाखी देश की सुरक्षा के लिए लोगों को जगाती आयी है। मुग़ल शासक औरंगज़ेब ने जुल्म, अन्याय व अत्याचार करते हुए श्री गुरु तेगबहादुर सिंह जी को दिल्ली के चाँदनी चौक पर शहीद कर दियाथा, तभी गुरु गोविंदसिंह जी ने अपने अनुयायियों को संगठित कर 'खालसा पंथ' की स्थापना की थी। 1716 ई. में 'बंदा बहादुर' की शहादत के बाद तो पंजाब सिखों की वीरता की मिसाल बन गया। 'मिसलदार' प्रत्येक साल वैशाखी के अवसर पर श्री अमृतसर में 'हरमिंदर साहिब' में वर्ष भर का हिसाब देते थे। सिख मिसलों का समय 1716 से लेकर 1799 तक का रहा है। सभी मिसलदार वैशाखी पर एकत्र होते थे। 13 अप्रैल, 1919 को सैकड़ों लोग 'जलियांवाला बाग़' में देश की आज़ादी के लिए जनरल डायर के सैनिकों की गोलियों के आगे निशस्त्र सीना तान कर खड़े रहे और शहीद हो गए। आज वैशाखी पर दिये गया बलिदान पूरे देश के देशवासी जानते हैं और वैशाखी के पर्व पर शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं।

विशेष बातें

  • रात्रि के समय आग जलाकर उसके चारों तरफ इकट्ठे होकर नई फ़सल की खुशियाँ मनायी जाती हैं और नये अन्न को अग्नि को समर्पित किया जाता है और पंजाब का परंपरागत नृत्य भांगड़ा और गिद्दा किया जाता है।
  • गुरुद्वारों में अरदास के लिए श्रद्धालु जाते हैं। आनंदपुर साहिब में, जहां खालसा पंथ की नींव रखी गई थी, विशेष अरदास और पूजा होती है।
  • गुरुद्वारों में गुरु ग्रंथ साहब को समारोह पूर्वक बाहर लाकर दूध और जल से प्रतीक रूप से स्नान करवा कर गुरु ग्रंथ साहिब को तख्त पर प्रतिष्ठित किया जाता है। इसके बाद पंच प्यारे 'पंचबानी' गायन करते हैं।
  • अरदास के बाद गुरु जी को कड़ा प्रसाद का भोग लगाया जाता है। प्रसाद भोग लगने के बाद सब भक्त 'गुरु जी के लंगर' में भोजन करते हैं। भक्त 'कार सेवा' करते हैं।
  • पूरे दिन गुरु गोविंदसिंह जी और 'पंच प्यारों' के सम्मान में शबद और कीर्तन गाए जाते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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