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==कार्यक्षेत्र==
भालचंद्र गोपाल पेंढारकर ने मराठी फिल्मों को जिस तरह संवारा वह अद्भुत है। [[भारत]] का पहला देसी कैमरा बनाने वाले बाबूराव ने [[1925]] में बनाई गई भारत की पहली प्रयोगवादी फिल्म ‘सावकारी पाश’ को [[1936]] में आवाज दी। ‘सिंहगढ़’ की शूटिंग के लिए उन्होंने पहली बार रिफलेक्टर का इस्तेमाल किया। पेंढारकर [[पुणे]] के सिनेमाघर में गेटकीपर थे। [[1927]] में ‘वंदे मातरम आश्रम’ बनाने की वजह से गिरफ्तार हुए पेंढारकर ने 88 साल की उम्र में अपनी आखिरी फिल्म ‘शाबास सुनवाई’ बनाई।  
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भालजी पेंढारकर
भालजी पेंढारकर
पूरा नाम भालचंद्र गोपाल पेंढारकर
प्रसिद्ध नाम भालजी पेंढारकर
जन्म 1898
जन्म भूमि कोल्हापुर, महाराष्ट्र
मृत्यु 28 नवम्बर, 1994
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र फ़िल्म निर्माता-निर्देशक, पटकथा लेखक
मुख्य फ़िल्में 'नेताजी पालकर', 'थोरतंची कमल', 'छत्रपति शिवाजी', 'मराठा तुतुका मेलवावा', 'ताम्ब्डी माटी' आदि।
पुरस्कार-उपाधि दादा साहब फाल्के पुरस्कार (1991)
नागरिकता भारतीय

भालजी पेंढारकर (अंग्रेज़ी: Bhalji Pendharkar, जन्म: 1898 – मृत्यु: 28 नवम्बर, 1994) प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता-निर्देशक और पटकथा लेखक थे। इन्हें सन् 1991 में सिनेमा के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इनका पूरा नाम 'भालचंद्र गोपाल पेंढारकर' था।

कार्यक्षेत्र

भालचंद्र गोपाल पेंढारकर ने मराठी फ़िल्मों को जिस तरह संवारा वह अद्भुत है। भारत का पहला देसी कैमरा बनाने वाले बाबूराव ने 1925 में बनाई गई भारत की पहली प्रयोगवादी फ़िल्म ‘सावकारी पाश’ को 1936 में आवाज दी। ‘सिंहगढ़’ की शूटिंग के लिए उन्होंने पहली बार रिफलेक्टर का इस्तेमाल किया। पेंढारकर पुणे के सिनेमाघर में गेटकीपर थे। 1927 में ‘वंदे मातरम आश्रम’ बनाने की वजह से गिरफ्तार हुए पेंढारकर ने 88 साल की उम्र में अपनी आखिरी फ़िल्म ‘शाबाश सुनवाई’ बनाई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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