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− | *स्वर्ण, रजत, पीतल, ताम्र या काष्ठ की लक्ष्मी प्रतिमा या वस्त्र पर लक्ष्मी का चित्र, पुष्पों आदि से सिर से पैर तक की पूजा की जाती है। | + | *स्वर्ण, रजत, [[पीतल]], ताम्र या काष्ठ की लक्ष्मी प्रतिमा या वस्त्र पर लक्ष्मी का चित्र, पुष्पों आदि से सिर से पैर तक की पूजा की जाती है। |
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*प्रत्येक मास में लक्ष्मी के विभिन्न नामों से पूजा की जाती है। | *प्रत्येक मास में लक्ष्मी के विभिन्न नामों से पूजा की जाती है। | ||
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− | *हेमाद्रि<ref>हेमाद्रि व्रतखण्ड 1, 536-576</ref> ने 28 व्रतों के नाम लिये हैं।<ref> कालनिर्णय (186-188); | + | *हेमाद्रि<ref>हेमाद्रि व्रतखण्ड 1, 536-576</ref> ने 28 व्रतों के नाम लिये हैं।<ref> कालनिर्णय (186-188); तिथितत्त्व (32-34); पुरुषार्थचिन्तामणि (95-100); व्रतराज (192-220)।</ref> |
*सभी पंचमी उपवासों (केवल नागपंचमी एवं स्कन्द उपवास को छोड़कर) में चतुर्थी से युक्त पंचमी को वरीयता दी जानी चाहिए।<ref>कालनिर्णय (188); निर्णयामृत (44-45); पुरुषार्थचिन्तामणि (96)।</ref> | *सभी पंचमी उपवासों (केवल नागपंचमी एवं स्कन्द उपवास को छोड़कर) में चतुर्थी से युक्त पंचमी को वरीयता दी जानी चाहिए।<ref>कालनिर्णय (188); निर्णयामृत (44-45); पुरुषार्थचिन्तामणि (96)।</ref> | ||
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08:44, 9 जून 2013 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की पंचमी को सूर्योदय काल में व्रत के नियमों का संकल्प लिया जाता है।
- स्वर्ण, रजत, पीतल, ताम्र या काष्ठ की लक्ष्मी प्रतिमा या वस्त्र पर लक्ष्मी का चित्र, पुष्पों आदि से सिर से पैर तक की पूजा की जाती है।
- सधवा नारियों का पुष्पों, कुंकुम एवं मिष्ठान के थालों से सम्मान।
- एक पसर (प्रस्थ) चावल एवं घृतपूर्ण पात्र का 'श्री का हृदय प्रसन्न हों' के साथ दान दिया जाता है।
- प्रत्येक मास में लक्ष्मी के विभिन्न नामों से पूजा की जाती है।
- प्रतिमा का ब्राह्मण को दान दिया जाता है।[1]
- पंचमी के 7 व्रत होते हैं।[2]
- हेमाद्रि[3] ने 28 व्रतों के नाम लिये हैं।[4]
- सभी पंचमी उपवासों (केवल नागपंचमी एवं स्कन्द उपवास को छोड़कर) में चतुर्थी से युक्त पंचमी को वरीयता दी जानी चाहिए।[5]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
अन्य संबंधित लिंक
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