पीतल

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पीतल का लोटा

पीतल एक मिश्र धातु है, जो जस्ते और ताँबे के संयोग से बनायी जाती है। ताँबे में जस्ता मिलाने से ताँबे की सामर्थ्य, चौमड़पन और कठोरता बढ़ जाती है। यह वृद्धि 36 प्रतिशत जस्ते तक नियमित रूप से होती है, लेकिन बाद में केवल सामर्थ्य में वृद्धि अधिक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। पीतल में 2 से लेकर 36 प्रतिशत तक जस्ता रहता है। आज बाज़ार में बर्तनों की दुकानों पर इस्पात (स्टील) के अतिरिक्त पीतल के बर्तनों की भी अधिक माँग है। पीतल का कारोबार दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। पीतल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इससे निर्मित वस्तुएँ अधिक टिकाऊ और आकर्षक होती हैं।

प्रकार

ताँबा जस्ते के साथ दो निश्चित यौगिक Cu2Zn3 और CuZn बनाता है और दो किस्म के ठोस विलयन बनते हैं, जिन्हें 'ऐल्फा विलियन' और 'बीटा विलयन' कहते हैं। पीतल प्रधानत: दो किस्म का होता है। एक में ताँबा 64 प्रतिशत से अधिक रहता है। यह समावयव ऐल्फाविलयन होता है। दूसरे में ताँबा 55.64 प्रतिशत रहता है। इसमें 'ऐल्फा' और 'बीटा' दोनों विलयन रहते हैं। साधारणत: पहले प्रकार के पीतल में 70 प्रतिशत ताँबा और 30 प्रतिशत जस्ता और दूसरे किस्म के पीतल में 60 प्रतिशत ताँबा और 40 प्रतिशत जस्ता रहता है।[1]

रंग व कलई

पीतल ताँबे की अपेक्षा अधिक मजबूत होता है। इसका रंग भी अधिक आकर्षक होता है। कुछ पीतल सफ़ेदी लिए पीले रंग के और कुछ लाली लिए पीले रंग का होता है। अन्य धातुओं के रहने से रंग और चीमड़पन बहुत कुछ बदल जाता है। पीतल तन्य होता है और आसानी से पीटा और खरादा जा सकता है। इस पर कलई भी भली प्रकार से चढ़ती है। विशेष कार्यों के लिए पीतल में कुछ अन्य धातुएँ, जैसे- वर्ग, सीसा, ऐल्युमिनियम, मैंगनीज़, लोहा और निकल धातुएँ भी मिलाई जाती हैं।

धातु मात्रा

पीतल की परात

सामान्य पीतल की चादरों में दो भाग ताँबा और एक भाग जस्ता रहता है। कारतूस पीतल में 70 भाग ताँबा और 30 भाग जस्ता रहता है। निकल पीतल में 50 भाग ताँबा, 45 भाग जस्ता और 5 भाग निकल रहता है। ऐसे पीतल की तनन क्षमता ऊँची होती है। यदि जस्ते की मात्रा 45 प्रतिशत भाग ही रखी जाए, तो 12 प्रतिशत निकल तक तनन क्षमता बढ़ती जाती है। 45 भाग ताँबा, 45 भाग जस्ता और 10 भाग निकल वाला पीतल सफ़ेद रंग का होता हैं। इसे 'निकल पीतल' या 'जर्मन सिल्वर' भी कहते हैं। 'आइख' धातु में 60 भाग ताँबा, 38 भाग जस्ता और 2 भाग लोहा रहता है। 'स्टेरो' धातु में कुछ अधिक लोहा रहता है।[1]

निर्मित वस्तुएँ

वह पीतल में ताँबा 60-62 भाग, जस्ता 40-38 भाग और सीसा 2-3 भाग रहता है, उस पर खराद अच्छी चढ़ती है। मैंगनीज़ काँसा में 60 भाग ताँबा, 40 भाग जस्ता और अल्प मैंगनीज़ रहता है। यदि मैंगनीज़ 2 प्रतिशत रहे, तो उसका रंग चोकोलेट के रंग-सा हो जाता है। यह खिड़कियों के साँचे बनाने के लिए अच्छा समझा जाता है। पीतल के संघनित्र नलों को बनाने के लिए 70 भाग ताँबा, 29 भाग जस्ता और एक भाग बंग वाला पीतल अच्छा होता है। कम जस्ते वाले पीतल का रंग सुनहरा होता है। ऐसे पीतल 'पिंचबेक'[2], 'टौबैंक'[3] अथवा 'गिल्डिंग धातु'[4] के नाम से बाज़ार में बिकता है। पीतल का अधिकांश प्रयोग थाली, कटोरे, गिलास, लोटे, गगरे, हंडे, देवताओं को मूर्तियाँ, उनके सिंहासन, मन्दिरों के घंटे, अनेक प्रकार के वाद्य यंत्र, ताले, पानी की टोटियाँ, मकानों में लगने वाले सामान और ग़रीबों के लिए गहने बनाने में होता है। पीतल से निर्मित वस्तुएँ लोहे की अपेक्षा अधिक मजबूत होती हैं और इनमें जंग भी नहीं लगता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 वर्मा, फूलदेवसहाय। पीतल (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 09 जून, 2013।
  2. धुँधला सुनहरा, 7-11 भाग जस्ता
  3. सुनहरा, 10-18 भाग जस्ता
  4. 3-8 भाग जस्ता

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