"भगवतीचरण वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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|जन्म=[[30 अगस्त]], [[1903]] | |जन्म=[[30 अगस्त]], [[1903]] | ||
− | |जन्म भूमि=उन्नाव ज़िला, [[उत्तर प्रदेश]] | + | |जन्म भूमि=[[उन्नाव ज़िला]], [[उत्तर प्रदेश]] |
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|कर्म भूमि=[[लखनऊ]] | |कर्म भूमि=[[लखनऊ]] | ||
− | |कर्म-क्षेत्र=साहित्यकार | + | |कर्म-क्षेत्र=[[साहित्यकार]] |
− | |मुख्य रचनाएँ=चित्रलेखा, भूले बिसरे चित्र, सीधे सच्ची बातें, सबहि नचावत राम गुसाई, अज्ञात देश से आना, आज मानव का सुनहला प्रात है, मेरी कविताएँ, मेरी कहानियाँ, मोर्चाबन्दी, वसीयत | + | |मुख्य रचनाएँ='चित्रलेखा', 'भूले बिसरे चित्र', 'सीधे सच्ची बातें', 'सबहि नचावत राम गुसाई', 'अज्ञात देश से आना', 'आज मानव का सुनहला प्रात है', 'मेरी कविताएँ', 'मेरी कहानियाँ', 'मोर्चाबन्दी', 'वसीयत'। |
− | |विषय=उपन्यास, कहानी, कविता, संस्मरण, साहित्य आलोचना, नाटक, | + | |विषय=[[उपन्यास]], [[कहानी]], [[कविता]], [[संस्मरण]], साहित्य आलोचना, [[नाटक]], पत्रकार। |
− | |भाषा=[[ | + | |भाषा=[[हिन्दी]] |
− | |विद्यालय= | + | |विद्यालय=[[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] |
|शिक्षा=बी.ए., एल.एल.बी. | |शिक्षा=बी.ए., एल.एल.बी. | ||
− | |पुरस्कार-उपाधि=साहित्य अकादमी पुरस्कार, [[पद्मभूषण]] | + | |पुरस्कार-उपाधि=[[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]], [[पद्मभूषण]] |
|प्रसिद्धि=उपन्यासकार | |प्रसिद्धि=उपन्यासकार | ||
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}} | }} | ||
− | {{ | + | |- |
− | भगवतीचरण वर्मा (जन्म- [[30 अगस्त]], [[1903]] | + | | style="width:18em; float:right;"| |
+ | <div style="border:thin solid #a7d7f9; margin:10px"> | ||
+ | {| align="center" | ||
+ | ! भगवतीचरण वर्मा की रचनाएँ | ||
+ | |} | ||
+ | <div style="height: 250px; overflow:auto; overflow-x: hidden; width:99%"> | ||
+ | {{भगवतीचरण वर्मा की रचनाएँ}} | ||
+ | </div></div> | ||
+ | |} | ||
+ | '''भगवतीचरण वर्मा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Bhagwaticharan Verma'', जन्म- [[30 अगस्त]], [[1903]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[5 अक्टूबर]], [[1981]]) [[हिन्दी]] जगत् के प्रमुख [[साहित्यकार]] थे। उन्होंने लेखन तथा [[पत्रकारिता]] के क्षेत्र में ही प्रमुख रूप से कार्य किया। [[कवि]] के रूप में भगवतीचरण वर्मा के रेडियो रूपक 'महाकाल', 'कर्ण' और 'द्रोपदी'- जो [[1956]] ई. में 'त्रिपथगा' के नाम से एक संकलन के आकार में प्रकाशित हुए, उनकी विशिष्ट कृतियाँ हैं। यद्यपि उनकी प्रसिद्ध [[कविता]] 'भैंसागाड़ी' का आधुनिक हिन्दी कविता के इतिहास में अपना महत्त्व है। | ||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
− | हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार भगवतीचरण वर्मा का जन्म [[30 अगस्त]], [[1903]] ई. में उन्नाव ज़िले, उत्तर प्रदेश के शफीपुर गाँव में हुआ था। इन्होंने | + | [[हिन्दी]] के प्रसिद्ध साहित्यकार भगवतीचरण वर्मा का जन्म [[30 अगस्त]], [[1903]] ई. में [[उन्नाव ज़िला|उन्नाव ज़िले]], [[उत्तर प्रदेश]] के शफीपुर गाँव में हुआ था। इन्होंने [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] से बी.ए., एल.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की। भगवतीचरण वर्मा जी ने लेखन तथा [[पत्रकारिता]] के क्षेत्र में ही प्रमुख रूप से कार्य किया। इसके बीच-बीच में इनके फ़िल्म तथा [[आकाशवाणी]] से भी सम्बद्ध रहे। बाद में यह स्वतंत्र लेखन की वृत्ति अपनाकर [[लखनऊ]] में बस गये। इन्हें राज्यसभा की मानद सदस्यता प्राप्त करायी गई। |
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+ | भगवतीचरण वर्मा जी ने एक बार अपने सम्बन्ध में कहा था- <blockquote>'''मैं मुख्य रूप से [[उपन्यासकार]] हूँ, कवि नहीं-आज मेरा उपन्यासकार ही सजग रह गया है, कविता से लगाव छूट गया है'''।</blockquote> कोई उनसे सहमत हो या न हो, यह माने या न माने, कि वे मुख्यत: उपन्यासकार हैं और कविता से उनका लगाव छूट गया है। उनके अधिकांश भावक यह स्वीकार करेंगे कि सचमुच ही कविता से वर्माजी का सम्बन्ध विच्छिन्न हो गया है, या हो सकता है। उनकी आत्मा का सहज स्वर कविता का है, उनका व्यक्तित्व शायराना अल्हड़पन, रंगीनी और मस्ती का सुधरा-सँवारा हुआ रूप है। वे किसी 'वाद' विशेष की परिधि में बहुत दिनों तक गिरफ़्तार नहीं रहे। यों एक-एक करके प्राय: प्रत्येक 'वाद' को उन्होंने टटोला है, देखा है, समझने-अपनाने की चेष्टा की है, पर उनकी सहज स्वातन्त्र्यप्रियता, रूमानी बैचेनी, अल्हड़पन और मस्ती, हर बार उन्हें 'वादों' की दीवारें तोड़कर बाहर निकल आने के लिए प्रेरणा देती रही और प्रेरणा के साथ-साथ उसे कार्यान्वित करने की क्षमता और शक्ति भी। यही अल्हड़पन और रूमानी मस्ती इनके कृतित्व में किसी भी विधा के अंतर्गत क्यों न हो जहाँ एक ओर प्राण फूँक देती है, वहीं दूसरी ओर उसके शिल्प पक्ष की ओर से उन्हें कुछ-कुछ लापरवाह भी बना देती है। वे छन्दोबद्ध कविता के हामी हैं, उसी को कविता मानते हैं, पर यह उनकी सहज स्वातन्त्र्यप्रियता के प्रति नियति का हल्का, मीठा सा परिहास ही है। | ||
==विशेषता== | ==विशेषता== | ||
भगवतीचरण वर्मा उपदेशक नहीं हैं, न विचारक के आसन पर बैठने की आकांक्षा ही कभी उनके मन में उठी। वे जीवन भर सहजता के प्रति आस्थावान रहे, जो छायावादोत्तर हिन्दी साहित्य की एक प्रमुख विशेषता रही। एक के बाद एक 'वाद' को ठोक-बजाकर देखने के बाद ज्यों ही उन्हें विश्वास हुआ कि उसके साथ उनका सहज सम्बन्ध नहीं हो सकता, उसे छोड़कर गाते-झूमते, हँसते-हँसाते आगे बढ़े। अपने प्रति, अपने 'अहं' के प्रति उनका सहज अनुराग अक्षुण्ण बना रहा। अनेक टेढ़े-मेढ़े रास्तों से घुमाता हुआ उनका 'अहं' उन्हें अपने सहजधर्म और सहजधर्म की खोज में जाने कहाँ-कहाँ ले गया। उनका साहित्यिक जीवन कविता से भी और छायावादी कविता से आरम्भ हुआ, पर न तो वे छायावादी काव्यानुभूति के अशरीरी आधारों के प्रति आकर्षित हुए, न उसकी अतिशय मृदुलता को ही कभी अपना सके। इसी प्रकार अन्य 'वादों' में भी कभी पूरी तरह और चिरकाल के लिए अपने को बाँध नहीं पाये। अपने 'अहं' के प्रति इतने ईमानदार सदैव रहे कि ज़बरन बँधने की कोशिश नहीं की। किसी दूसरे की मान्यताओं को बिना स्वयं उन पर विश्वास किये अपनी मान्यताएँ नहीं समझा। कहीं से विचार या दर्शन उन्होंने उधार नहीं लिया। जो थे, उससे भिन्न देखने की चेष्टा कभी नहीं की। | भगवतीचरण वर्मा उपदेशक नहीं हैं, न विचारक के आसन पर बैठने की आकांक्षा ही कभी उनके मन में उठी। वे जीवन भर सहजता के प्रति आस्थावान रहे, जो छायावादोत्तर हिन्दी साहित्य की एक प्रमुख विशेषता रही। एक के बाद एक 'वाद' को ठोक-बजाकर देखने के बाद ज्यों ही उन्हें विश्वास हुआ कि उसके साथ उनका सहज सम्बन्ध नहीं हो सकता, उसे छोड़कर गाते-झूमते, हँसते-हँसाते आगे बढ़े। अपने प्रति, अपने 'अहं' के प्रति उनका सहज अनुराग अक्षुण्ण बना रहा। अनेक टेढ़े-मेढ़े रास्तों से घुमाता हुआ उनका 'अहं' उन्हें अपने सहजधर्म और सहजधर्म की खोज में जाने कहाँ-कहाँ ले गया। उनका साहित्यिक जीवन कविता से भी और छायावादी कविता से आरम्भ हुआ, पर न तो वे छायावादी काव्यानुभूति के अशरीरी आधारों के प्रति आकर्षित हुए, न उसकी अतिशय मृदुलता को ही कभी अपना सके। इसी प्रकार अन्य 'वादों' में भी कभी पूरी तरह और चिरकाल के लिए अपने को बाँध नहीं पाये। अपने 'अहं' के प्रति इतने ईमानदार सदैव रहे कि ज़बरन बँधने की कोशिश नहीं की। किसी दूसरे की मान्यताओं को बिना स्वयं उन पर विश्वास किये अपनी मान्यताएँ नहीं समझा। कहीं से विचार या दर्शन उन्होंने उधार नहीं लिया। जो थे, उससे भिन्न देखने की चेष्टा कभी नहीं की। | ||
− | + | ==प्रमुख कृतियाँ== | |
− | ==कृतियाँ== | + | कवि के रूप में भगवतीचरण वर्मा के रेडियो रूपक 'महाकाल', 'कर्ण' और 'द्रोपदी'- जो [[1956]] ई. में 'त्रिपथगा' के नाम से एक संकलन के आकार में प्रकाशित हुए हैं, उनकी विशिष्ट कृतियाँ हैं। यद्यपि उनकी प्रसिद्ध कविता 'भैंसागाड़ी' का आधुनिक हिन्दी कविता के इतिहास में अपना महत्त्व है। मानववादी दृष्टिकोण के तत्व, जिनके आधार पर प्रगतिवादी काव्यधारा जानी-पहचानी जाने लगी, 'भैंसागाड़ी' में भली-भाँति उभर कर सामने आये थे। उनका पहला कविता संग्रह 'मधुकण' के नाम से 1932 ई. में प्रकाशित हुआ। तदनन्तर दो और काव्य संग्रह 'प्रेम संगीत' और 'मानव' निकले। इन्हें किसी 'वाद' विशेष के अंतर्गत मानना ग़लत है। रूमानी मस्ती, नियतिवाद, प्रगतिवाद, अन्तत: मानववाद इनकी विशिष्टता है। |
− | कवि के रूप में भगवतीचरण वर्मा के रेडियो रूपक 'महाकाल', 'कर्ण' और 'द्रोपदी'- जो [[1956]] ई. में 'त्रिपथगा' के नाम से एक संकलन के आकार में प्रकाशित हुए हैं, उनकी विशिष्ट कृतियाँ हैं। यद्यपि उनकी प्रसिद्ध कविता 'भैंसागाड़ी' का आधुनिक हिन्दी कविता के इतिहास में अपना महत्त्व है। मानववादी दृष्टिकोण के तत्व, जिनके आधार पर प्रगतिवादी काव्यधारा जानी-पहचानी जाने लगी, 'भैंसागाड़ी' में भली-भाँति उभर कर सामने आये थे। | + | {| class="bharattable" border="1" |
− | + | |+कृतियाँ | |
− | उनका पहला कविता संग्रह 'मधुकण' के नाम से 1932 ई. में प्रकाशित हुआ। तदनन्तर दो और काव्य संग्रह 'प्रेम संगीत' और 'मानव' निकले। इन्हें किसी 'वाद' विशेष के अंतर्गत मानना ग़लत है। रूमानी मस्ती, नियतिवाद, प्रगतिवाद, अन्तत: मानववाद इनकी विशिष्टता है। | + | |- |
+ | ! उपन्यास | ||
+ | ! अन्य कृतियाँ | ||
+ | |- | ||
+ | | अपने खिलौने | ||
+ | | मेरी कहानियाँ (कहानी) | ||
+ | |- | ||
+ | | पतन | ||
+ | | मोर्चाबन्दी (कहानी) | ||
+ | |- | ||
+ | | तीन वर्ष | ||
+ | | मेरी कविताएँ (कविता) | ||
+ | |- | ||
+ | | चित्रलेखा | ||
+ | | अतीत की गर्त से (संस्मरण) | ||
+ | |- | ||
+ | | भूले बिसरे चित्र | ||
+ | | साहित्य के सिद्धांत तथा रूप (साहित्य आलोचना) | ||
+ | |- | ||
+ | | टेढ़े मेढ़े रास्ते | ||
+ | | मेरे नाटक (कविता) | ||
+ | |- | ||
+ | | सीधी सच्ची बातें | ||
+ | | वसीयत (कविता) | ||
+ | |- | ||
+ | | सामर्थ्य और सीमा | ||
+ | | 'इंस्टालमेण्ट' | ||
+ | |- | ||
+ | | रेखा | ||
+ | | 'दो बाँके' | ||
+ | |- | ||
+ | | वह फिर नहीं आई | ||
+ | | 'राख और चिनगारी' (कहानी 1953 ई.) | ||
+ | |- | ||
+ | | सबहिं नचावत राम गोसाईं | ||
+ | | 'रुपया तुम्हें खा गया' (नाटक 1955 ई.) | ||
+ | |- | ||
+ | | प्रश्न और मरीचिका | ||
+ | | 'वासवदत्ता' (सिनारियों) | ||
+ | |- | ||
+ | | युवराज चूंडा | ||
+ | | - | ||
+ | |- | ||
+ | | धुप्पल | ||
+ | | - | ||
+ | |} | ||
==संगीत== | ==संगीत== | ||
− | वर्माजी का संगीत वीणा या सितार का नहीं, हार्मोनियम का संगीत है, उससे गमक की माँग करना ज़्यादती है। | + | वर्माजी का संगीत वीणा या सितार का नहीं, हार्मोनियम का संगीत है, उससे गमक की माँग करना ज़्यादती है। |
==उपन्यासकार== | ==उपन्यासकार== | ||
− | भगवतीचरण वर्मा मुख्यतया उपन्यासकार हों या कवि, नाम उनका उपन्यासकार के रूप में ही अधिक हुआ है, विशेषतया 'चित्रलेखा' के कारण। 'तीन वर्ष' नयी सभ्यता की चकाचौंध से पथभ्रष्ट युवक की मानसिक व्यथा की कहानी है। '''तीन वर्ष''' और '''टेढ़े-मेढ़े रास्ते''' राजनीतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि में प्राय: यंत्रवत् परिचालित पात्रों के माध्यम से लेखक यह दिखाने की चेष्टा करता है कि समाज की दृष्टि में ऊँची और उदात्त जान पड़नेवाली भावनाओं के पीछे जो प्रेरणाएँ हैं, वे और कुछ नहीं केवल अत्यन्त सामान्य स्वार्थपरता और लोभ की अधम मनोवृत्तियों की ही देन हैं। '''आख़िरी दाँव''' एक जुआरी के असफल प्रेम की कथा है और '''अपने खिलौने''' ([[1957]] ई.) [[नयी दिल्ली]] की 'मॉर्डन सोसायटी' पर व्यंग्यशरवर्षण है। इनका बृहत्तम और सर्वाधिक सफल उपन्यास '''भूले बिसरे चित्र''' ([[1959]]) है, जिसमें अनुभूति और संवेदना की कलात्मक सत्यता के साथ उन्होंने तीन पीढ़ियों का, [[भारत]] के स्वातंत्र्य आन्दोलन के तीन युगों की पृष्ठभूमि में मार्मिक चित्रण किया है। | + | भगवतीचरण वर्मा मुख्यतया [[उपन्यासकार]] हों या [[कवि]], नाम उनका उपन्यासकार के रूप में ही अधिक हुआ है, विशेषतया 'चित्रलेखा' के कारण। 'तीन वर्ष' नयी सभ्यता की चकाचौंध से पथभ्रष्ट युवक की मानसिक व्यथा की कहानी है। '''तीन वर्ष''' और '''टेढ़े-मेढ़े रास्ते''' राजनीतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि में प्राय: यंत्रवत् परिचालित पात्रों के माध्यम से लेखक यह दिखाने की चेष्टा करता है कि समाज की दृष्टि में ऊँची और उदात्त जान पड़नेवाली भावनाओं के पीछे जो प्रेरणाएँ हैं, वे और कुछ नहीं केवल अत्यन्त सामान्य स्वार्थपरता और लोभ की अधम मनोवृत्तियों की ही देन हैं। '''आख़िरी दाँव''' एक जुआरी के असफल प्रेम की कथा है और '''अपने खिलौने''' ([[1957]] ई.) [[नयी दिल्ली]] की 'मॉर्डन सोसायटी' पर व्यंग्यशरवर्षण है। इनका बृहत्तम और सर्वाधिक सफल उपन्यास '''भूले बिसरे चित्र''' ([[1959]]) है, जिसमें अनुभूति और संवेदना की कलात्मक सत्यता के साथ उन्होंने तीन पीढ़ियों का, [[भारत]] के स्वातंत्र्य आन्दोलन के तीन युगों की पृष्ठभूमि में मार्मिक चित्रण किया है। |
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==पुरस्कार== | ==पुरस्कार== | ||
भगवतीचरण वर्मा को भूले बिसरे चित्र पर साहित्य अकादमी पुरस्कार और [[पद्मभूषण]] से सम्मानित किया गया। | भगवतीचरण वर्मा को भूले बिसरे चित्र पर साहित्य अकादमी पुरस्कार और [[पद्मभूषण]] से सम्मानित किया गया। | ||
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==मृत्यु== | ==मृत्यु== | ||
भगवतीचरण वर्मा का निधन [[5 अक्टूबर]], [[1981]] ई. को हुआ था। | भगवतीचरण वर्मा का निधन [[5 अक्टूबर]], [[1981]] ई. को हुआ था। | ||
− | {{ | + | {| width="100%" border="1" class="bharattable-purple" |
− | + | |-valign="top" | |
− | | | + | |+'''रचनाएँ''' |
− | | | + | | valign="top"| |
− | | | + | {| width=100% |
− | | | + | |- |
− | | | + | ! '''तुम मृगनयनी''' |
− | }} | + | |- |
− | {{ | + | |<poem>तुम मृगनयनी, तुम पिकबयनी |
+ | तुम छवि की परिणीता-सी, | ||
+ | अपनी बेसुध मादकता में | ||
+ | भूली-सी, भयभीता सी । | ||
+ | |||
+ | तुम उल्लास भरी आई हो | ||
+ | तुम आईं उच्छ्वास भरी, | ||
+ | तुम क्या जानो मेरे उर में | ||
+ | कितने युग की प्यास भरी । | ||
+ | |||
+ | शत-शत मधु के शत-शत सपनों | ||
+ | की पुलकित परछाईं-सी, | ||
+ | मलय-विचुम्बित तुम ऊषा की | ||
+ | अनुरंजित अरुणाई-सी ; | ||
+ | |||
+ | तुम अभिमान-भरी आई हो | ||
+ | अपना नव-अनुराग लिए, | ||
+ | तुम क्या जानो कि मैं तप रहा | ||
+ | किस आशा की आग लिए । | ||
+ | |||
+ | भरे हुए सूनेपन के तम | ||
+ | में विद्युत की रेखा-सी; | ||
+ | असफलता के पट पर अंकित | ||
+ | तुम आशा की लेखा-सी ; | ||
+ | |||
+ | आज हृदय में खिंच आई हो | ||
+ | तुम असीम उन्माद लिए, | ||
+ | जब कि मिट रहा था मैं तिल-तिल | ||
+ | सीमा का अपवाद लिए । | ||
+ | |||
+ | चकित और अलसित आँखों में | ||
+ | तुम सुख का संसार लिए, | ||
+ | मंथर गति में तुम जीवन का | ||
+ | गर्व भरा अधिकार लिए । | ||
+ | |||
+ | डोल रही हो आज हाट में | ||
+ | बोल प्यार के बोल यहाँ, | ||
+ | मैं दीवाना निज प्राणों से | ||
+ | करने आया मोल यहाँ । | ||
+ | |||
+ | अरुण कपोलों पर लज्जा की | ||
+ | भीनी-सी मुस्कान लिए, | ||
+ | सुरभित श्वासों में यौवन के | ||
+ | अलसाए-से गान लिए , | ||
+ | |||
+ | बरस पड़ी हो मेरे मरू में | ||
+ | तुम सहसा रसधार बनी, | ||
+ | तुममें लय होकर अभिलाषा | ||
+ | एक बार साकार बनी । | ||
+ | |||
+ | तुम हँसती-हँसती आई हो | ||
+ | हँसने और हँसाने को, | ||
+ | मैं बैठा हूँ पाने को फिर | ||
+ | पा करके लुट जाने को । | ||
+ | |||
+ | तुम क्रीड़ा की उत्सुकता-सी, | ||
+ | तुम रति की तन्मयता-सी; | ||
+ | मेरे जीवन में तुम आओ, | ||
+ | तुम जीवन की ममता-सी।<ref>{{cite web |url=http://www.funonthenet.in/forums/index.php?topic=133153.0 |title=भगवतीचरण वर्मा |accessmonthday=[[19 अप्रैल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=फन डॉट |language=[[हिन्दी]] }}</ref></poem> | ||
+ | |} | ||
+ | | valign="top"| | ||
+ | {| width=100% | ||
+ | |- | ||
+ | ! '''कल सहसा यह सन्देश मिला''' | ||
+ | |- | ||
+ | |<poem>कल सहसा यह सन्देश मिला। | ||
+ | सूने-से युग के बाद मुझे॥ | ||
+ | कुछ रोकर, कुछ क्रोधित हो कर। | ||
+ | तुम कर लेती हो याद मुझे॥ | ||
+ | |||
+ | गिरने की गति में मिलकर। | ||
+ | गतिमय होकर गतिहीन हुआ॥ | ||
+ | एकाकीपन से आया था। | ||
+ | अब सूनेपन में लीन हुआ॥ | ||
+ | |||
+ | यह ममता का वरदान सुमुखि। | ||
+ | है अब केवल अपवाद मुझे॥ | ||
+ | मैं तो अपने को भूल रहा। | ||
+ | तुम कर लेती हो याद मुझे॥ | ||
+ | |||
+ | पुलकित सपनों का क्रय करने। | ||
+ | मैं आया अपने प्राणों से॥ | ||
+ | लेकर अपनी कोमलताओं को। | ||
+ | मैं टकराया पाषाणों से॥ | ||
+ | |||
+ | मिट-मिटकर मैंने देखा है | ||
+ | मिट जानेवाला प्यार यहाँ॥ | ||
+ | सुकुमार भावना को अपनी। | ||
+ | बन जाते देखा भार यहाँ॥ | ||
+ | |||
+ | उत्तप्त मरूस्थल बना चुका। | ||
+ | विस्मृति का विषम विषाद मुझे॥ | ||
+ | किस आशा से छवि की प्रतिमा। | ||
+ | तुम कर लेती हो याद मुझे॥ | ||
+ | |||
+ | हँस-हँसकर कब से मसल रहा। | ||
+ | हूँ मैं अपने विश्वासों को॥ | ||
+ | पागल बनकर मैं फेंक रहा। | ||
+ | हूँ कब से उलटे पाँसों को॥ | ||
+ | |||
+ | पशुता से तिल-तिल हार रहा। | ||
+ | हूँ मानवता का दाँव अरे॥ | ||
+ | निर्दय व्यंगों में बदल रहे। | ||
+ | मेरे ये पल अनुराग-भरे॥ | ||
+ | |||
+ | बन गया एक अस्तित्व अमिट। | ||
+ | मिट जाने का अवसाद मुझे॥ | ||
+ | फिर किस अभिलाषा से रूपसि। | ||
+ | तुम कर लेती हो याद मुझे॥ | ||
+ | |||
+ | यह अपना-अपना भाग्य, मिला। | ||
+ | अभिशाप मुझे, वरदान तुम्हें॥ | ||
+ | जग की लघुता का ज्ञान मुझे। | ||
+ | अपनी गुरुता का ज्ञान तुम्हें॥ | ||
+ | |||
+ | जिस विधि ने था संयोग रचा। | ||
+ | उसने ही रचा वियोग प्रिये॥ | ||
+ | मुझको रोने का रोग मिला। | ||
+ | तुमको हँसने का भोग प्रिये॥ | ||
+ | |||
+ | सुख की तन्मयता तुम्हें मिली। | ||
+ | पीड़ा का मिला प्रमाद मुझे॥ | ||
+ | फिर एक कसक बनकर अब क्यों। | ||
+ | तुम कर लेती हो याद मुझे॥<ref>{{cite web |url=http://www.hindikunj.com/2010/03/bhagwati-charan-verma_26.html |title=भगवतीचरण वर्मा |accessmonthday=[[19 अप्रैल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच टी एम एल |publisher=हिन्दीकुंज |language=[[हिन्दी]] }}</ref></poem> | ||
+ | |} | ||
+ | | | ||
+ | {| width=100% | ||
+ | |- | ||
+ | ! '''अज्ञात देश से आना''' | ||
+ | |- | ||
+ | |<poem> | ||
+ | मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ। | ||
+ | अपने प्रकाश की रेखा॥ | ||
+ | |||
+ | तम के तट पर अंकित है। | ||
+ | निःसीम नियति का लेखा॥ | ||
+ | |||
+ | देने वाले को अब तक। | ||
+ | मैं देख नहीं पाया हूँ॥ | ||
+ | |||
+ | पर पल भर सुख भी देखा। | ||
+ | फिर पल भर दु:ख भी देखा॥ | ||
+ | |||
+ | किस का आलोक गगन से। | ||
+ | रवि शशि उडुगन बिखराते॥ | ||
+ | |||
+ | किस अंधकार को लेकर। | ||
+ | काले बादल घिर आते॥ | ||
+ | |||
+ | उस चित्रकार को अब तक। | ||
+ | मैं देख नहीं पाया हूँ॥ | ||
+ | |||
+ | पर देखा है चित्रों को। | ||
+ | बन-बनकर मिट-मिट जाते॥ | ||
+ | |||
+ | फिर उठना, फिर गिर पड़ना। | ||
+ | आशा है, वहीं निराशा॥ | ||
+ | |||
+ | क्या आदि-अन्त संसृति का। | ||
+ | अभिलाषा ही अभिलाषा॥ | ||
+ | |||
+ | अज्ञात देश से आना। | ||
+ | अज्ञात देश को जाना॥ | ||
+ | |||
+ | अज्ञात अरे क्या इतनी। | ||
+ | है हम सब की परिभाषा॥ | ||
+ | |||
+ | पल-भर परिचित वन-उपवन। | ||
+ | परिचित है जग का प्रति कन॥ | ||
+ | |||
+ | फिर पल में वहीं अपरिचित। | ||
+ | हम-तुम, सुख-सुषमा, जीवन॥ | ||
+ | |||
+ | है क्या रहस्य बनने में। | ||
+ | है कौन सत्य मिटने में॥ | ||
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+ | मेरे प्रकाश दिखला दो। | ||
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05:28, 30 अगस्त 2018 के समय का अवतरण
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भगवतीचरण वर्मा (अंग्रेज़ी: Bhagwaticharan Verma, जन्म- 30 अगस्त, 1903, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 5 अक्टूबर, 1981) हिन्दी जगत् के प्रमुख साहित्यकार थे। उन्होंने लेखन तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में ही प्रमुख रूप से कार्य किया। कवि के रूप में भगवतीचरण वर्मा के रेडियो रूपक 'महाकाल', 'कर्ण' और 'द्रोपदी'- जो 1956 ई. में 'त्रिपथगा' के नाम से एक संकलन के आकार में प्रकाशित हुए, उनकी विशिष्ट कृतियाँ हैं। यद्यपि उनकी प्रसिद्ध कविता 'भैंसागाड़ी' का आधुनिक हिन्दी कविता के इतिहास में अपना महत्त्व है।
जीवन परिचय
हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार भगवतीचरण वर्मा का जन्म 30 अगस्त, 1903 ई. में उन्नाव ज़िले, उत्तर प्रदेश के शफीपुर गाँव में हुआ था। इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए., एल.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की। भगवतीचरण वर्मा जी ने लेखन तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में ही प्रमुख रूप से कार्य किया। इसके बीच-बीच में इनके फ़िल्म तथा आकाशवाणी से भी सम्बद्ध रहे। बाद में यह स्वतंत्र लेखन की वृत्ति अपनाकर लखनऊ में बस गये। इन्हें राज्यसभा की मानद सदस्यता प्राप्त करायी गई।
भगवतीचरण वर्मा जी ने एक बार अपने सम्बन्ध में कहा था-
मैं मुख्य रूप से उपन्यासकार हूँ, कवि नहीं-आज मेरा उपन्यासकार ही सजग रह गया है, कविता से लगाव छूट गया है।
कोई उनसे सहमत हो या न हो, यह माने या न माने, कि वे मुख्यत: उपन्यासकार हैं और कविता से उनका लगाव छूट गया है। उनके अधिकांश भावक यह स्वीकार करेंगे कि सचमुच ही कविता से वर्माजी का सम्बन्ध विच्छिन्न हो गया है, या हो सकता है। उनकी आत्मा का सहज स्वर कविता का है, उनका व्यक्तित्व शायराना अल्हड़पन, रंगीनी और मस्ती का सुधरा-सँवारा हुआ रूप है। वे किसी 'वाद' विशेष की परिधि में बहुत दिनों तक गिरफ़्तार नहीं रहे। यों एक-एक करके प्राय: प्रत्येक 'वाद' को उन्होंने टटोला है, देखा है, समझने-अपनाने की चेष्टा की है, पर उनकी सहज स्वातन्त्र्यप्रियता, रूमानी बैचेनी, अल्हड़पन और मस्ती, हर बार उन्हें 'वादों' की दीवारें तोड़कर बाहर निकल आने के लिए प्रेरणा देती रही और प्रेरणा के साथ-साथ उसे कार्यान्वित करने की क्षमता और शक्ति भी। यही अल्हड़पन और रूमानी मस्ती इनके कृतित्व में किसी भी विधा के अंतर्गत क्यों न हो जहाँ एक ओर प्राण फूँक देती है, वहीं दूसरी ओर उसके शिल्प पक्ष की ओर से उन्हें कुछ-कुछ लापरवाह भी बना देती है। वे छन्दोबद्ध कविता के हामी हैं, उसी को कविता मानते हैं, पर यह उनकी सहज स्वातन्त्र्यप्रियता के प्रति नियति का हल्का, मीठा सा परिहास ही है।
विशेषता
भगवतीचरण वर्मा उपदेशक नहीं हैं, न विचारक के आसन पर बैठने की आकांक्षा ही कभी उनके मन में उठी। वे जीवन भर सहजता के प्रति आस्थावान रहे, जो छायावादोत्तर हिन्दी साहित्य की एक प्रमुख विशेषता रही। एक के बाद एक 'वाद' को ठोक-बजाकर देखने के बाद ज्यों ही उन्हें विश्वास हुआ कि उसके साथ उनका सहज सम्बन्ध नहीं हो सकता, उसे छोड़कर गाते-झूमते, हँसते-हँसाते आगे बढ़े। अपने प्रति, अपने 'अहं' के प्रति उनका सहज अनुराग अक्षुण्ण बना रहा। अनेक टेढ़े-मेढ़े रास्तों से घुमाता हुआ उनका 'अहं' उन्हें अपने सहजधर्म और सहजधर्म की खोज में जाने कहाँ-कहाँ ले गया। उनका साहित्यिक जीवन कविता से भी और छायावादी कविता से आरम्भ हुआ, पर न तो वे छायावादी काव्यानुभूति के अशरीरी आधारों के प्रति आकर्षित हुए, न उसकी अतिशय मृदुलता को ही कभी अपना सके। इसी प्रकार अन्य 'वादों' में भी कभी पूरी तरह और चिरकाल के लिए अपने को बाँध नहीं पाये। अपने 'अहं' के प्रति इतने ईमानदार सदैव रहे कि ज़बरन बँधने की कोशिश नहीं की। किसी दूसरे की मान्यताओं को बिना स्वयं उन पर विश्वास किये अपनी मान्यताएँ नहीं समझा। कहीं से विचार या दर्शन उन्होंने उधार नहीं लिया। जो थे, उससे भिन्न देखने की चेष्टा कभी नहीं की।
प्रमुख कृतियाँ
कवि के रूप में भगवतीचरण वर्मा के रेडियो रूपक 'महाकाल', 'कर्ण' और 'द्रोपदी'- जो 1956 ई. में 'त्रिपथगा' के नाम से एक संकलन के आकार में प्रकाशित हुए हैं, उनकी विशिष्ट कृतियाँ हैं। यद्यपि उनकी प्रसिद्ध कविता 'भैंसागाड़ी' का आधुनिक हिन्दी कविता के इतिहास में अपना महत्त्व है। मानववादी दृष्टिकोण के तत्व, जिनके आधार पर प्रगतिवादी काव्यधारा जानी-पहचानी जाने लगी, 'भैंसागाड़ी' में भली-भाँति उभर कर सामने आये थे। उनका पहला कविता संग्रह 'मधुकण' के नाम से 1932 ई. में प्रकाशित हुआ। तदनन्तर दो और काव्य संग्रह 'प्रेम संगीत' और 'मानव' निकले। इन्हें किसी 'वाद' विशेष के अंतर्गत मानना ग़लत है। रूमानी मस्ती, नियतिवाद, प्रगतिवाद, अन्तत: मानववाद इनकी विशिष्टता है।
उपन्यास | अन्य कृतियाँ |
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अपने खिलौने | मेरी कहानियाँ (कहानी) |
पतन | मोर्चाबन्दी (कहानी) |
तीन वर्ष | मेरी कविताएँ (कविता) |
चित्रलेखा | अतीत की गर्त से (संस्मरण) |
भूले बिसरे चित्र | साहित्य के सिद्धांत तथा रूप (साहित्य आलोचना) |
टेढ़े मेढ़े रास्ते | मेरे नाटक (कविता) |
सीधी सच्ची बातें | वसीयत (कविता) |
सामर्थ्य और सीमा | 'इंस्टालमेण्ट' |
रेखा | 'दो बाँके' |
वह फिर नहीं आई | 'राख और चिनगारी' (कहानी 1953 ई.) |
सबहिं नचावत राम गोसाईं | 'रुपया तुम्हें खा गया' (नाटक 1955 ई.) |
प्रश्न और मरीचिका | 'वासवदत्ता' (सिनारियों) |
युवराज चूंडा | - |
धुप्पल | - |
संगीत
वर्माजी का संगीत वीणा या सितार का नहीं, हार्मोनियम का संगीत है, उससे गमक की माँग करना ज़्यादती है।
उपन्यासकार
भगवतीचरण वर्मा मुख्यतया उपन्यासकार हों या कवि, नाम उनका उपन्यासकार के रूप में ही अधिक हुआ है, विशेषतया 'चित्रलेखा' के कारण। 'तीन वर्ष' नयी सभ्यता की चकाचौंध से पथभ्रष्ट युवक की मानसिक व्यथा की कहानी है। तीन वर्ष और टेढ़े-मेढ़े रास्ते राजनीतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि में प्राय: यंत्रवत् परिचालित पात्रों के माध्यम से लेखक यह दिखाने की चेष्टा करता है कि समाज की दृष्टि में ऊँची और उदात्त जान पड़नेवाली भावनाओं के पीछे जो प्रेरणाएँ हैं, वे और कुछ नहीं केवल अत्यन्त सामान्य स्वार्थपरता और लोभ की अधम मनोवृत्तियों की ही देन हैं। आख़िरी दाँव एक जुआरी के असफल प्रेम की कथा है और अपने खिलौने (1957 ई.) नयी दिल्ली की 'मॉर्डन सोसायटी' पर व्यंग्यशरवर्षण है। इनका बृहत्तम और सर्वाधिक सफल उपन्यास भूले बिसरे चित्र (1959) है, जिसमें अनुभूति और संवेदना की कलात्मक सत्यता के साथ उन्होंने तीन पीढ़ियों का, भारत के स्वातंत्र्य आन्दोलन के तीन युगों की पृष्ठभूमि में मार्मिक चित्रण किया है।
पुरस्कार
भगवतीचरण वर्मा को भूले बिसरे चित्र पर साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।
मृत्यु
भगवतीचरण वर्मा का निधन 5 अक्टूबर, 1981 ई. को हुआ था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भगवतीचरण वर्मा (हिन्दी) फन डॉट। अभिगमन तिथि: 19 अप्रैल, 2011।
- ↑ भगवतीचरण वर्मा (हिन्दी) (एच टी एम एल) हिन्दीकुंज। अभिगमन तिथि: 19 अप्रैल, 2011।
- ↑ भगवतीचरण वर्मा (हिन्दी) हिन्दीकुंज। अभिगमन तिथि: 19 अप्रैल, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
- अनुभूति
- कविता कोश
- भारतीय साहित्य संग्रह
- कविता सागर
- हिन्दीकुंज
- ब्रांड बिहार
- vineet-poem
- भारतीय साहित्य संग्रह
- हिन्दीकुंज
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