कविराज श्यामलदास

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कविराज श्यामलदास (अंग्रेज़ी: Kaviraj Shyamaldas, जन्म- 1836; मृत्यु- 1893) एक चरण, जिन्हें लोकप्रिय रूप से कविराज (कवियों का राजा) के रूप में जाना जाता है। वह भारत के राजस्थान क्षेत्र के इतिहास और संस्कृति का दस्तावेजीकरण करने वाले शुरुआती लेखकों में से एक थे। श्यामलदास को 'महामहोपाध्याय' की उपाधि से सम्मानित किया गया और ब्रिटिश सरकार द्वारा 'केसर-ए-हिंद' (भारत का शेर) से सम्मानित किया गया।

परिचय

कविराज श्यामलदास का जन्म आषाढ़ में कृष्ण पक्ष की सप्तमी को 1836 को राजस्थान के ढोकलिया ग्राम में हुआ था, जो वर्तमान में भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा तहसील में पड़ता है। इनके तीन भाई और दो बहिनें थीं। इनका अध्ययन घर पर ही हुआ। नौ वर्ष की आयु से ही श्यामलदास ने सारस्वत व अमरकोष का अध्ययन करते हुए काव्य तर्कशास्त्र, गणित, ज्योतिष विज्ञान, खगोलशास्त्र, चिकित्साशास्त्र एवं महाकाव्यों का अध्ययन किया। परम्परा से प्राप्त प्रतिभा तो इनमें भरपूर थी। फ़ारसी और संस्कृत में उनका विशेष अध्ययन हुआ।

विवाह

श्यामलदास का प्रथम विवाह साकरड़ा ग्राम के भादा कलू की बेटी के साथ हुआ। इनसे एक पुत्री का जन्म हुआ। दूसरा विवाह मेवाड़ के भड़क्या ग्राम के गाड़ण ईश्वरदास की बेटी के साथ हुआ। इनसे सन्तानें तो कई हुई, पर उसमें से दो पुत्रियां ही जीवित रहीं।

प्रधान पद

पिता के देहावसान के समय श्यामलदास की आयु 34 वर्ष की थी। पिता की मृत्यु के पश्चात् श्यामलदास गांव से उदयपुर आ गये और पिता के दायित्व का निर्वहन करने लगे। इसी वर्ष आषाढ़ में महाराणा शम्भुसिंह मातमपूर्सी के लिए श्यामलदास की हवेली पर पधारे। तब से महाराणा की सेवा में रहने लगे। राणाजी का स्वर्गवास वि. स. 1931 में हो गया। श्यामलदास इससे बड़े निराश हुए। शम्भुसिंह की मृत्यु के बाद सज्जन सिंह गद्दी पर बैठे। सज्जनसिंह अल्पवयस्क होते हुए भी विलक्षण बुद्धि वाले थे, अतः वे श्यामलदास जी के व्यक्तित्व पर मुग्ध थे। गद्दी पर बैठते ही राणा ने श्यामलदास को उसी प्रेम से अपनाया। महाराणा सज्जनसिंह का राजत्व काल बहुत लम्बा नहीं रहा, पर उनके उस काल को मेवाड़ का यशस्वी राजत्व काल कहा जा सकता है, जिसका श्रेय तत्कालीन प्रधान श्यामलदास को जाता है।

लेखन कार्य

कविराज श्यामलदास ने अपने पिता कमजी दधिवाड़िया सहित मेवाड़ के डौडिया राजपूतों के विषय में 'दीपंग कुल प्रकाश' नामक विस्तृत कविता की रचना की थी। उदयपुर राज्य के शासक महाराणा सज्जन सिंह ने मेवाड़ के प्रामाणिक इतिहास लेखन का उत्तरदायित्व कविराज श्यामलदास को सौंपा था। 'वीर विनोद' नामक यह पुस्तक मेवाड़ में लिखित प्रथम विस्तृत इतिहास है।

महाराणा सज्जन सिंह के उत्तराधिकारी महाराणा फ़तेह सिंह इस इतिहास के प्रकाशन के प्रति उदासीन थे। इस कारण यह पुस्तक 1930 ई. तक प्रकाशित नहीं हो पाई। 'वीरविनोद' के अलावा श्यामलदास ने दो और पुस्तकों की रचना की थी- 'पृथ्वीराज रासो की नवीनता' तथा 'अकबर के जन्मदिन में सन्देह'। ये दोनों पुस्तिकाएँ बंगाल की एशियाटिक सोसायटी तथा बम्बई (वर्तमान मुम्बई) की प्रसिद्ध संस्थाओं से समादृत हुईं थीं।


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