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08:01, 1 अगस्त 2013 के समय का अवतरण
बाजनामठ जबलपुर ज़िला, मध्य प्रदेश में स्थित है, जिसे सिद्ध तांत्रिक मंदिर माना जाता है। जबलपुर से 6 मील (लगभग 9.6 कि.मी.) की दूरी पर संग्राम सागर झील के किनारे स्थित भैरव मंदिर को 'बाजनामठ' भी कहा जाता है। इसका निर्माण गौड़ नरेश संग्राम सिंह ने करवाया था। ये भैरव के उपासक थे। बाजनामठ में स्थित भैरव का मंदिर गौड़ वास्तुकला का प्रारूपिक उदाहरण है। इसका गोल गुंबद भी विशिष्ट गौड़ शैली में बना है। नवरात्र के अवसर पर यहाँ दूर-दूर के तांत्रिक लोग इकट्ठे होते हैं। संग्राम सागर के बीच में 'आमखास' नामक महल एक द्वीप पर बना है। स्थीनीय लोगों का विश्वास है कि यह महल तालाब के अंदर तीन तलों तक गया हुआ है।[1]
निर्माण
बाजनामठ देश का दुर्लभ और सिद्ध तांत्रिक मंदिर है। सिद्ध तांत्रिकों के मतानुसार यह ऐसा तांत्रिक मंदिर है, जिसकी प्रत्येक ईंट शुभ नक्षत्र में मंत्रों द्वारा सिद्ध करके जमाई गई है। इस प्रकार के मंदिर पूरे भारत में कुल तीन ही हैं, जिनमें एक बाजनामठ तथा दो काशी और महोबा में हैं। बाजनामठ का निर्माण 1520 ईस्वी में राजा संग्राम सिंह द्वारा 'बटुक भैरव मंदिर' के नाम से कराया गया था। इस मठ के गुंबद से त्रिशूल से निकलने वाली प्राकृतिक ध्वनि-तरंगों से शक्ति जागृत होती है। कुछ अन्य विद्वानों के मतानुसार यह मठ ईसा पूर्व का स्थापित माना जाता है।[2]
मान्यताएँ
आदि शंकराचार्य के भ्रमण के समय उस युग के प्रचण्ड तांत्रिक अघोरी भैरवनंद का नाम अलौकिक सिद्धि प्राप्त तांत्रिक योगी के रूप में मिलता है। तंत्रशास्त्र के अनुसार भैरव को जागृत करने के लिए उनका आह्वान तथा उनकी स्थापना नौ मुण्डों के आसन पर ही की जाती है, जिसमें सिंह, श्वान, शूकर, भैंस और चार मानव- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इस प्रकार नौ प्राणियों की बली चढ़ाई जाती है। किंतु भैरवनंद के लिए दो बलि शेष रह गई थी। यह भी माना जाता है कि बाजनामठ का जीर्णोद्धार सोलहवीं सदी में गोंड़ राजा संग्राम सिंह के शासन काल में हुआ, किंतु इसकी स्थापना ईसा पूर्व की है। बाजनामठ के विषय में एक जनश्रुति यह भी है कि एक तांत्रिक ने राजा संग्राम सिंह की बलि चढ़ाने के लिए उन्हें बाजनामठ ले जाकर पूजा विधान किया। राजा से भैरव मूर्ति की परिक्रमा कर साष्टांग प्रणाम करने को कहा, राजा को संदेह हुआ और उन्होंने तांत्रिक से कहा कि वह पहले प्रणाम का तरीका बताए। तांत्रिक ने जैसे ही साष्टांग का आसन किया, राजा ने तुरंत उसका सिर काटकर बलि चढ़ा दी।
श्रद्धालुओं का आगमन
मार्गशीर्ष महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भैरव जयंती मनाई जाती है। यह दिन तांत्रिकों के लिए महत्त्वपूर्ण होता है। बाजनामठ की एक विशेषता यह है कि यहाँ पहले केवल शनिवार के दिन ही श्रद्धालुओं की भीड़ रहती थी, किंतु अब हर दिन यहाँ भारी भीड़ रहती है।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 618 |
- ↑ 2.0 2.1 तांत्रिक मंदिर बाजनामठ (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 17 सितम्बर, 2012।