लक्ष्मीनारायण मंदिर, भोपाल
लक्ष्मीनारायण मंदिर, भोपाल
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विवरण | 'लक्ष्मीनारायण मंदिर' अथवा 'बिड़ला मंदिर' भोपाल का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। अरेरा पहाड़ी पर पाँच दशक पूर्व स्थापित यह मंदिर वर्षों से धार्मिक आस्था का केन्द्र रहा है। | ||
राज्य | मध्य प्रदेश | ||
ज़िला | भोपाल | ||
निर्माता | औद्योगिक बिड़ला परिवार | ||
निर्माण काल | शिलान्यास- 1960, उद्घाटन- 1964 | ||
भौगोलिक स्थिति | मालवीय नगर क्षेत्र में, अरेरा पहाड़ियों के निकट बनी झील के दक्षिण में स्थित। | ||
प्रसिद्धि | हिन्दू धार्मिक स्थल | ||
संबंधित लेख | भोपाल, भोपाल पर्यटन, कैलाशनाथ काटजू, द्वारका प्रसाद मिश्र | समर्पित देव | भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी |
अन्य जानकारी | मंदिर का शिलान्यास वर्ष 1960 में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. कैलाशनाथ काटजू ने किया था और उद्घाटन वर्ष 1964 में मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र के हाथों संपन्न हुआ। | ||
अद्यतन | 13:34, 9 अप्रॅल 2017 (IST)
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लक्ष्मीनारायण मंदिर (अंग्रेज़ी: Laxminarayan Temple) मध्य प्रदेश राज्य के भोपाल शहर में स्थित है। यह मंदिर 'बिरला मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर की स्थापना भारत के प्रमुख औद्योगिक बिड़ला परिवार द्वारा की गई थी। इस मंदिर में भगवान विष्णु, शिव और अन्य अवतारों की पत्थरों की मूर्तियाँ देखी जा सकती हैं।
स्थिति
लक्ष्मीनारायण मंदिर भोपाल के मालवीय नगर क्षेत्र में, अरेरा पहाड़ियों के निकट बनी झील के दक्षिण में स्थित है। मंदिर के निकट ही एक संग्रहालय बना हुआ है, जिसमें मध्य प्रदेश के रायसेन, सेहोर, मंदसौर और सहदोल आदि जगहों से लाई गईं मूर्तियां रखी गईं हैं। मंदिर के निकट बना संग्रहालय सोमवार के अतिरिक्त प्रतिदिन सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है। यह मंदिर पहाड़ियों की चोटी पर बना हुआ है और भोपाल ज़िले के सबसे उच्चतम बिंदु पर स्थित है। मंदिर एक पहाड़ी इलाके में स्थित है, लेकिन मंदिर को जाने वाला रास्ता काफ़ी अच्छी तरीके से बनाया गया है और इसकी चढ़ाई भी आसान है।
स्थापना
इस मंदिर का शिलान्यास वर्ष 1960 में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. कैलाशनाथ काटजू ने किया था और उद्घाटन वर्ष 1964 में मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र के हाथों संपन्न हुआ। मंदिर देवी लक्ष्मी और उनके पति भगवान विष्णु को समर्पित है।
मंदिर विवरण
अरेरा पहाड़ी पर पाँच दशक पूर्व स्थापित यह मंदिर वर्षों से धार्मिक आस्था का केन्द्र रहा है। मंदिर में स्थापित भगवान श्रीहरि विष्णु एवं लक्ष्मी जी की मनोहारी प्रतिमाएँ बरबस ही श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकृष्ट कर रही हैं। करीब 7-8 एकड़ पहाड़ी क्षेत्र में फैले इस मंदिर की ख्याति देश व प्रदेश के विभिन्न शहरों में फैली हुई है। मंदिर के अंदर विभिन्न पौराणिक दृश्यों की संगमरमर पर की गई नक्काशी दर्शनीय तो है ही, उन पर 'गीता' व 'रामायण' के उपदेश भी अंकित हैं। मंदिर में प्रवेश हेतु अर्धमंडप, महामण्डप, परिक्रमापथ तथा गर्भगृह है। मंडप, महामंडप और परिक्रमापथ की दीवारों पर वेद, गीता, रामायण, महाभारत और पुराण आदि के श्लोक लिखे हुऐ है।
मंदिर के अंदर विष्णु व लक्ष्मी की प्रतिमाओं के अलावा एक ओर शिव तथा दूसरी ओर माँ जगदम्बा की प्रतिमा विराजमान हैं। मंदिर परिसर में हनुमान एवं शिवलिंग स्थापित हैं। वहीं मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के सामने बना विशाल शंख भी दर्शनीय है। मंदिर की स्थापना के समय पूर्व मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू ने बिड़ला परिवार को शहर में उद्योग स्थापित करने के लिए जमीन देने के साथ ही यह शर्त भी रखी थी कि वह इस दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में एक भव्य तथा विशाल मंदिर का निर्माण करवाएँ। मंदिर के उद्घाटन के समय यहाँ विशाल विष्णु महायज्ञ भी आयोजित किया गया था, जिसमें अनेक विद्वानों व धर्म शास्त्रियों ने भाग लिया था। आज भी यह मंदिर जन आस्था का मुख्य केन्द्र बिन्दु है। 'जन्माष्टमी' पर यहाँ श्रीकृष्ण जन्म का मुख्य आयोजन होता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होकर विष्णु की आराधना करते है।
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