अबुल फ़ज़ल
अबुल फ़ज़ल
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पूरा नाम | अबुल फ़ज़ल इब्न मुबारक |
प्रसिद्ध नाम | अबुल फ़ज़ल |
जन्म | 14 जनवरी सन् 1551 ई. |
मृत्यु | 12 अगस्त, 1602 |
अभिभावक | शेख़ मुबारक़ नागौरी |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | कवि |
मुख्य रचनाएँ | 'अकबरनामा' एवं 'आइना-ए-अकबरी' |
विषय | इतिहास, दर्शन एवं साहित्य |
पुरस्कार-उपाधि | अकबर के नवरत्न |
विशेष योगदान | अबुल फ़ज़ल ने मुग़लकालीन शिक्षा एवं साहित्य में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। |
अन्य जानकारी | अबुल फ़ज़ल रात्रि में दरवेशों के यहाँ जाता, उनमें अशर्फ़ियाँ बाँटता और अपने धर्म के लिए उनसे दुआ माँगता था। 1602 ई. में बुन्देला राजा वीरसिंहदेव ने शहज़ादा सलीम के उकसाने से अबुल फ़ज़ल की हत्या कर डाली। |
अबुल फ़ज़ल शेख़ मुबारक़ नागौरी का द्वितीय पुत्र था। इनका जन्म 958 हिजरी (6 मुहर्रम, 14 जनवरी सन् 1551 ई.) में हुआ था। वह बहुत पढ़ा-लिखा और विद्वान् था और उसकी विद्वता का लोग आदर करते थे। इनका स्वभाव एकांतप्रिय था, इसलिए इन्हें एकांत अच्छा लगता था। अबुल फ़ज़ल रात्रि में दरवेशों के यहाँ जाते, उनमें अशर्फ़ियाँ बाँटते और अपने धर्म के लिए उनसे दुआ माँगते थे। 1602 ई. में बुन्देला राजा वीरसिंहदेव ने शहज़ादा सलीम के उकसाने से अबुल फ़ज़ल की हत्या कर डाली।
बुद्धि व वाकचातुर्य का धनी
यह अपनी बुद्धि तीव्रता, योग्यता, प्रतिभा तथा वाकचातुर्य से शीघ्र अपने समय का अद्वितीय एवं असामान्य पुरुष हो गया। 15वें वर्ष तक इसने दर्शन शास्त्र तथा हदीस में पूरा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। कहते हैं कि शिक्षा के आरम्भिक दिनों में जब वह 20 वर्ष का भी नहीं हुआ था, तब सिफ़ाहानी या इस्फ़हानी की व्याख्या इसको मिली, जिसका आधे से अधिक अंश दीमक खा गए थे और इस कारण से वह समझ में नहीं आ रहा था। इसने दीमक खाए हुए हिस्से को अलग कर सादे काग़ज़ जोड़े और थोड़ा विचार करके प्रत्येक पंक्ति का आरम्भ तथा अन्त समझ कर सादे भाग को अन्दाज़ से भर डाला। बाद में जब दूसरी प्रति मिल गई और दोनों का मिलान किया गया, तो वे मिल गए। दो–तीन स्थानों पर समानार्थी शब्द–योजना की विभिन्नता थी और तीन-चार स्थानों पर उद्धरण भिन्न थे, पर उनमें भी भाव प्रायः मूल के ही थे। सबको यह देखकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ। इनका स्वभाव एकांतप्रिय था, इसलिए इन्हें एकांत अच्छा लगता था और इन्होंने लोगों से मिलना–जुलना कम कर दिया तथा स्वतंत्र जीवन व्यतीत करना चाहा।