कुब्ले ख़ाँ

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कुब्ले ख़ाँ (1216-1294) मंगोल सम्राट तथा चीन के 'युवान वंश' का संस्थापक था। वह भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध चंगेज़ ख़ाँ के सबसे छोटे पुत्र तुली का द्वितीय पुत्र था। कुब्ले ख़ाँ बचपन से ही इतना होनहार था कि चंगेज़ ख़ाँ ने एक बार अपने पुत्रों से कहा था कि- "तुममें से किसी को किसी भी प्रकार की शंका हो तो इस लड़के (कुब्ले) से पूछ लेना"। कुब्ले ने तीन सौ वर्षों से भी अधिक काल तक राज्य करने वाले सूँग शासन को समाप्त कर दिया था और चीन के इतिहास में पहली बार साम्राज्य विदेशी शासन में होते हुए भी एक सूत्र में बांधा, जो प्रजातंत्र स्थापित होने के कुछ दिन पहले तक बना रहा।

वाइसराय

जब तुली का ज्येष्ठ पुत्र मंगु सिंहासन पर बैठा, उसने कुब्ले ख़ाँ को 'किन' नामक प्रांत का वाइसराय नियुक्त किया और दक्षिणी चीन के विरुद्ध, जो सूँग लोगों के आधिपत्य में था, युद्ध संचालन का भार सौंपा। वह यूनान प्रांत में भी शांति स्थापित करने में सफल हुआ। उसके सेनापति उरियांग कटाई-साबुठाई के पुत्र ने कुछ ही दिनों बाद तोंकिंग पर भी अधिकार कर लिया। मंगू के वाइसराय के रूप में कुब्ले ख़ाँ ने युद्ध संचालन का ही भार अपने ऊपर रखा और जीते हुए भागों में शासन का भार उसने चीन के ही अधिकारियों को सौंपा। मंगू को यह रुचिकर न हुआ और उसने कुब्ले को वापस बुला लिया।[1]

साम्राज्य का उत्तराधिकारी

मंगू ने जब सूँग लोगों के विरुद्ध मोर्चा स्थापित किया और दक्षिणी चीन के साम्राज्य पर तीन ओर से आक्रमण किया; उस समय कुब्ले ख़ाँ ने उत्तर में होनान से प्रांरभ करके यांग्तजी नदी के उत्तर वाले भाग पर विजय प्राप्त की और नदी पारकर वू-चांग के बड़े नगर पर भी आक्रमण किया। मंगोलों को सफलता मिली। 'किन' साम्राज्य तथा सूँग लोगों के बीच एक नई सीमा निर्धारित की गई। सूँग लोगों के विरुद्ध यह संघर्ष अभी चल ही रहा था कि 1259 ई. में मंगू की मृत्यु हो गई। तत्काल कुब्ले ने अपने मंगोली संबंधियों से, जो चीन की सेना में उच्चाधिकारी थे, तथा चीन के प्रांतों में जो मंगोल वाइसराय थे, मिलकर अपने ‘खकान’ होने की घोषणा कर दी और चीनी राजकुमारों एवं सेना तथा प्रशासकीय उच्चाधिकारियों द्वारा अपने को ईश्वर का पुत्र घोषित करा दिया और चीन साम्राज्य का भी उत्तराधिकारी बन बैठा। उसने अपना निवास मंगोलिया से हटाकर येनकिंग के विशाल तथा प्राचीन नगर में लाकर संसार पर प्रभुत्व रखने वाली धुरी को अपनी जगह से हटा दिया। इस प्रकार चीन पर प्रभुत्व प्राप्त करने वाले मंगोल ने मंगोलिया को, जो चंगेज़ ख़ाँ के समय संसार के साम्राज्य का केंद्र था, चीन के विस्तृत साम्राज्य का केवल सैनिक महत्व का प्रांत बना दिया और वहाँ के शासन को चीन के अंतर्गत कर दिया।

चीनी रीति-रिवाजों का प्रभाव

कुब्ले ख़ाँ ने तीन सौ वर्षों से भी अधिक काल तक राज्य करने वाले सूँग शासन को समाप्त कर दिया और चीन के इतिहास में पहली बार साम्राज्य विदेशी शासन में होते हुए भी एक सूत्र में बँध गया, जो प्रजातंत्र स्थापित होने के कुछ दिन पहले तक बना रहा। कुब्ले ख़ाँ अपने को चीन का विजेता नहीं मानता था। उस पर चीन के अति प्राचीन रीति-रिवाजों तथा उसकी सभ्यता का इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उसने धीर- धीरे अपनी जाति की राष्ट्रीय परंपराओं को छोड़कर मध्यम राज (चीन) की युगों पुरानी परंपराओं को अपना लिया।[1]

विभिन्न विधाओं का संरक्षक

कुब्ले ख़ाँ ने विज्ञान तथा कला की रक्षा की एवं संसार के प्रधान विद्वानों, चित्रकारों, कवियों, वास्तुविशारदों तथा इंजीनियरों को अपने यहाँ आमंत्रित किया। उसने शाही नहर को खुदवाने का कार्य पूरा कराया, जिसका अधिकांश निचली यांग्तजी को पीली नदी से मिलाने वाले नहरी मार्ग का भाग था तथा जिससें पीकिंग को चावल पहुँचाने में विशेष सहायता मिलती थी। उसने एक वेधशाला भी बनवाई तथा पंचांग में भी संशोधन कराया। उसके समय में ज्यामिति, बीजगणित, त्रिकोणमिति, भूगोल तथा इतिहास के अध्ययन की प्रेरणा मिली। उसके बनवाए शब्दकोश अब भी व्यवहार में लाए जाते हैं। खेती, बागवानी, रेशम के कीड़े पालने तथा पशुपालन पर उसने ग्रंथ लिखवाए। साहित्य की उसके समय में उन्नति हुई तथा उपन्यास लेखन एवं नाट्यकला को भी एक नया मोड़ मिला।

गरीबों को आश्रय

कुब्ले ख़ाँ के समय में प्रति वर्ष राज-कर्मचारी चीन के एक कोने से दूसरे कोने तक जनता की आर्थिक स्थिति तथा फ़सलों का निरीक्षण करते थे। ग़रीबों के लिए चावल तथा ज्वार के अतिरिक्त कपड़े तथा आश्रय का भी प्रबंध करते थे। वृद्ध, अनाथ, रोगी तथा अंगहीनों को राज्य की और से सहायता दी जाती थी। कुब्ले ने गृहहीन बालकों को एकत्र कर उनकी शिक्षा का प्रबंध कराया; साम्राज्य भर में अस्पताल तथा अनाथालय खुलवाए।

व्यापार का प्रसार

चीन के जहाज़ समुद्र में दूर दूर श्रीलंका, अरब तथा अबीसीनिया तक जाया करते थे। स्थल मार्ग से मुस्लिम व्यापारी फ़ारस तथा अरब से व्यापारिक सामग्री, रूस से रोएँदार कपड़े इत्यादि लाते तथा लौटते समय अपने साथ रेशम, बहुमूल्य रत्न तथा मसाले ले जाते। उसके समय में चीन व्यापारिक केंद्र बन गया था। कुब्ले के राज्य काल में तो इसका अद्भुत प्रसार हुआ।[1]

धार्मिक प्रवृत्ति

संसार के इतिहास में यह पहला अवसर था, जब पश्चिमी एशिया तथा चीन-रूस तथा तिब्बत को पृथक् करने के लिए न तो मरुस्थल थे और न परस्पर विरोधी दल अथवा युद्ध के लिए तत्पर सेनाएँ। डकैती और लूटमार का कहीं नाम न था और मंगोल सैनिक यातायात की रक्षा करते थे। धार्मिक विषयों में लोगों को स्वतंत्रता थी। ईसाई, बौद्ध अथवा मुस्लिम कोई भी मत हो, सबके साथ वह पक्षपातरहित हो मित्रभाव रखता था। ईसाई पादरियों के उपदेशों को वह उतनी ही तन्मयता से सुनता था, जितनी बौद्ध पुरोहितों अथवा मुस्लिम मुल्लाओं के उपदेश। यदि कभी उसने किसी पंथ पर विशेष कृपा की तो केवल इसीलिए कि उससे नीति-निर्धारण में सहायता मिलती थी।

मृत्यु

पक्षपातरहित विश्व नागरिक होते हुए भी कुब्ले ख़ाँ व्यावहारिकता को अधिक महत्व देता था। उसके सेवकों में एशिया की सब जातियों के अतिरिक्त वेनिस नगर (इटली) के भी तीन व्यक्ति थे। 34 वर्ष राज्य करने के बाद कुब्ले ख़ाँ की मृत्यु हुई और उसी के इच्छानुसार उसे चीन में न दफनाकर दूर मंगोलिया में 'ओनन' तथा 'केरुलेन' के उद्गम के निकट 'नुरकान काल्दुन पर्वत' पर, जहाँ उसके पितामह चंगेज़ ख़ाँ तथा उसके पिता तुली एवं माँ सियूरकुक-तेनी की समाधियाँ थीं, दफ़नाया गया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 कुब्ले ख़ाँ (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 04 जून, 2014।

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