मरुस्थल

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मरुस्थल

मरुस्थल या 'रेगिस्तान' को भुगोलशास्त्र के अनुसार ऐसी स्थलाकृति के रूप में परिभाषित किया गया है, जहाँ वर्षा, बौछार, हिम, बर्फ आदि रूपों में, बहुत कम लगभग 250 मि.मी. तक होती है। एक और परिभाषा के अनुसार रेगिस्तान या मरुस्थल एक बंजर, शुष्क क्षेत्र है, जहाँ वनस्पति नहीं के बराबर होती है, यहाँ केवल वही पौधे पनप सकते हैं, जिनमें जल संचय करने की अथवा धरती के बहुत नीचे से जल प्राप्त करने की अदभुत क्षमता हो। यहाँ पर उगने वाले पौधे ज़मीन के काफ़ी नीचे तक अपनी जड़ों को विकसित कर लेते हैं, जिस कारण नीचे की नमी को ये आसानी से ग्रहण कर लेते हैं। मिट्टी की पतली चादर, जो वायु के तीव्र वेग से पलटती रहती है और जिसमें कि खाद-मिट्टी प्राय: का अभाव होता है, वह उपजाऊ नहीं होती। इन क्षेत्रों में वाष्पीकरण की क्रिया से वाष्पित जल, वर्षा से प्राप्त कुल जल से अधिक हो जाता है, तथा यहाँ वर्षा बहुत कम और कहीं-कहीं ही हो पाती है। अंटार्कटिका क्षेत्र को छोड़कर अन्य स्थानों पर सूखे की अवधि एक साल या इससे भी अधिक भी हो सकती है। इस क्षेत्र में बेहद शुष्क व गर्म स्थिति किसी भी पैदावार के लिए उपयुक्त नहीं होती है।

प्रकार

विश्व के प्रमुख मरुस्थल
नाम देश क्षेत्रफल (किमी.)
सहारा उत्तरी अफ्रीका 9065000
लिबयान उत्तरी अफ्रीका 1683500
आस्ट्रेलियन ऑस्ट्रेलिया 1554000
ग्रेट विक्टोरिया ऑस्ट्रेलिया 338,000
अटाकामा उत्तरी चिली 180000
पेंटागोनियन अर्जेंटीना 6,73,000
सीरियन अरब 323800
अरब रेगिस्तान अरब 230,00,00
गोबी मंगोलिया 1036000
रब आल खाली अरब 647500
कालाहारी बोत्स्वाना 518000
ग्रेट सेंडी ऑस्ट्रेलिया 3,40,000
ताकला माकन चीन 3,27,000
अरुनता ऑस्ट्रेलिया 310800
कराकुम दक्षिण-पश्चिमी तुर्किस्तान 2,97,900
नूबियन उत्तरी अफ्रीका 259000
थार उत्तरी-पश्चिमी भारत 259000
किजिलकुल मध्य तुर्किस्तान 233100
तनामी ऑस्ट्रेलिया 37,500
नेगेव इजराइल 12,170
मोजावे अमेरिका -
दि ग्रेट बेसिन अमेरिका 4,09,000
नामीब नामीबिया 1,35,000
डेथ वैली कैलिफ़ोर्निया -
चिहोहुआ उत्तरी अमेरिका 5,18,000
सिम्पसन ऑस्ट्रेलिया 170,000
गिब्सन पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया 156,000
स्टुअर्ट पथरीला ऑस्ट्रेलिया -

विभिन्न प्रकार की भौगोलिक स्थलाकृतियों के आधार पर मरुस्थल निम्न प्रकार के होते हैं-

  1. वास्तविक मरुस्थल- इसमें बालू की प्रचुरता पाई जाती है।
  2. पथरीले मरुस्थल- इसमें कंकड़-पत्थर से युक्त भूमि पाई जाती है। इन्हें अल्जीरिया में रेग तथा लीबिया में सेरिर के नाम से जाना जाता है।
  3. चट्टानी मरुस्थल- इसमें चट्टानी भूमि का हिस्सा अधिकाधिक होता है। इन्हें सहारा क्षेत्र में हमादा कहा जाता है।

विश्व में जितने भी प्रकार के रेगिस्तान हैं, उतने ही प्रकार की उनकी वर्गीकरण पद्धतियाँ प्रचलित हैं। रेगिस्तान ठंडे व गर्म दोनों प्रकार के होते हैं। धरती पर तरह-तरह के गर्म व ठंडे रेगिस्तान हैं। जिस क्षेत्र का औसत तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है, उन्हें 'गर्म रेगिस्तान' कहा जाता है। प्रायः अध्रुवीय क्षेत्रों के रेगिस्तान गर्म होते हैं। अध्रुवीय रेगिस्तानों में पानी बहुत ही कम होता है, इसलिए ये क्षेत्र गर्म होते हैं। प्रायः शुष्क और अत्यधिक शुष्क भूमि वास्तव में रेगिस्तान को और अर्धशुष्क भूमि घास के मैदानों को दर्शाती हैं। जिन क्षेत्रों में शीत ऋतु का औसत तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से कम होता है वे इलाके 'ठंडे रेगिस्तान' या 'शीत रेगिस्तान कहलाते' हैं। ध्रुवीय क्षेत्र के रेगिस्तान ठंडे होते हैं तथा वर्ष भर बर्फ से ढके रहते हैं। यहाँ वर्षा नगण्य होती है तथा धरती की सतह पर सदैव बर्फ की चादर सी बिछी रहती है। जिन क्षेत्रों में जमाव बिंदु एक विशेष मौसम में ही होता है, उन ठंडे रेगिस्तानों को 'टुंड्रा' कहते हैं। जहाँ पूरे वर्ष तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से कम रहता है, ऐसे स्थान सदैव बर्फ आच्छादित रहते हैं। ध्रुवीय प्रदेश के अलावा अन्य क्षेत्रों में जल की उपस्थिति बहुत कम होने के कारण रेगिस्तान गर्म होते हैं।

वर्षा की स्थिति

प्रायः रेगिस्तान का निर्धारण वार्षिक वर्षा की मात्रा, वर्षा के कुल दिनों, तापमान, नमी आदि कारकों के द्वारा किया जाता है। इस संबंध में सन 1953 में यूनेस्को के लिए पेवरिल मीग्स द्वारा किया गया वर्गीकरण लगभग सर्वमान्य है। उन्होंने वार्षिक वर्षा के आधार पर विश्व के रेगिस्तानों को 3 विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया है।

  1. अति शुष्क भूमि - जहाँ लगातार 12 महीनों तक वर्षा नहीं होती तथा कुल वार्षिक वर्षा का औसत 25 मि.मी. से कम ही रहता है।
  2. शुष्क भूमि - जहाँ पर वर्षा 250 मि.मी. प्रति वर्ष से कम हो।
  3. अर्धशुष्क भूमि - जहाँ पर औसत वार्षिक वर्षा 250 से 500 मि.मी. से कम होती है।

इन सब बातों के आधार पर भी केवल वर्षा की कमी ही किसी क्षेत्र को रेगिस्तान के रूप में निर्धारित नहीं कर सकती। उदाहरण के लिए फोनिक्स व एरीजोना क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा का स्तर 250 मि.मी. से कम होता है, लेकिन उन क्षेत्रों को रेगिस्तान की मान्यता प्राप्त है। दूसरी ओर अलास्का ब्रोक रेंज के उत्तरी ढलान, में भी वार्षिक वर्षा का स्तर भी 250 मि.मी. से कम होता है, परंतु इन क्षेत्रों को रेगिस्तान नहीं माना जाता है।

वर्गीकरण

भूमंडलीय स्थिति तथा मौसम के प्रभाव के आधार पर रेगिस्तान को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है-

  1. व्यापारिक पवन रेगिस्तान
  2. मध्य अक्षांश रेगिस्तान
  3. वर्षावृष्टि रेगिस्तान
  4. तटीय रेगिस्तान
  5. मानसूनी रेगिस्तान
  6. ध्रुवीय रेगिस्तान

स्थलाकृति

रेगिस्तानी भूमि को किसी विशेष रेगिस्तान प्रारूप के आधार पर भी वर्गीकृत किया जा सकता है। सामान्यतः इस वर्गीकरण के अनुसार रेगिस्तान 6 प्रकार के माने गये हैं-

  1. पर्वतीय और द्रोणी रेगिस्तान
  2. शैली रेगिस्तान - ये पठार जैसी स्थलाकृति के होते हैं।
  3. रेग्स - चट्टानी क्षेत्र
  4. अर्गस - ये रेत के विशाल समुद्र से निर्मित होते हैं।
  5. अंतरापर्वतीय द्रोणियाँ
  6. उत्खात भूमि


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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