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'''शिवराम महादेव परांजपे''' (जन्म- [[27 जून]], [[1864]], [[कोलाबा ज़िला]], मृत्यु- [[27 सितंबर]], [[1929]]) [[मराठी भाषा]] के प्रसिद्ध पत्रकार, [[लेखक‍]], राजनीतिक चिंतक एवं ओजस्वी वक्ता थे।
'''शिवराम महादेव परांजपे''' (जन्म- [[27 जून]], [[1864]], [[कोलाबा ज़िला]], मृत्यु- [[27 सितंबर]], [[1929]]) [[मराठी भाषा]] के प्रसिद्ध पत्रकार, [[लेखक‍]], राजनीतिक चिंतक एवं ओजस्वी वक्ता थे।
==परिचय==
==परिचय==
[[मराठी भाषा]] के प्रसिद्ध पत्रकार, [[लेखक‍]], राजनीतिक चिंतक और ओजस्वी वक्ता शिवराज महादेव परांजपे का जन्म [[27 जून]], 1864 ई. को [[कोलाबा ज़िला|कोलाबा जिले]] के महाद्र नामक स्थान में चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने [[संस्कृत]] की उच्च शिक्षा प्राप्त की। उनके जीवन को दिशा देने में [[लोकमान्य तिलक]] का बड़ा प्रभाव रहा है।  शिक्षा पूरी करने के बाद परांजपे ने महाराष्ट्र कॉलेज, [[पूना]] में संस्कृत के अध्यापक के रूप में काम आरंभ किया। वे तिलक के कहने पर पूना सार्वजनिक सभा के सचिव भी बन गए। इसी बीच शिवाजी और गणपति उत्सव में उनके जोशीले भाषणों की सरकार की तरफ से बड़ी आलोचना हुई और पराजंपे ने कॉलेज से त्यागपत्र दे दिया।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=845|url=}}</ref>
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==जन-जागरण==
==जन-जागरण==
शिवराम महादेव परांजपे ने जन-जागरण के लिए [[1895]] में मराठी साप्ताहिक 'काल' का प्रकाशन आरंभ किया। इस पत्र में लिखे लेख के कारण उन्हें 19 महीने की सजा भोगनी पड़ी।  और भारी जमानत मांगे जाने पर पत्र को ही बंद कर देना पड़ा। [[1920]] में उन्होंने 'स्वराज्य' साप्ताहिक निकाल कर [[गांधी जी]] के [[असहयोग आंदोलन]] का समर्थन किया।   
शिवराम महादेव परांजपे ने जन-जागरण के लिए [[1895]] में मराठी [[साप्ताहिक पत्रिका|साप्ताहिक]] 'काल' का प्रकाशन आरंभ किया। इस पत्र में लिखे लेख के कारण उन्हें 19 [[महीने]] की सज़ा भोगनी पड़ी और भारी जमानत मांगे जाने पर पत्र को ही बंद कर देना पड़ा। [[1920]] में उन्होंने 'स्वराज्य' साप्ताहिक निकाल कर [[गांधी जी]] के [[असहयोग आंदोलन]] का समर्थन किया।   
==प्रभावपूर्ण लेखनी==
==प्रभावपूर्ण लेखनी==
शिवराम महादेव की लेखनी में बड़ा प्रभाव एवं भाषणों में ओज था। वे सभी विषयों पर निर्बाध रुप से लिखा करते थे। उनके लेखों के संकलन 10 खंडों में प्रकाशित हुए। इन पर उसी समय विदेशी सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था जो देश के स्वतंत्र होने पर ही समाप्त हुआ। इसके अतिरिक्त उन्होंने चार [[नाटक]], दो [[उपन्यास]] और मराठा युद्ध का [[इतिहास]] जैसे [[ग्रंथ]] लिखे तथा कई संस्कृत ग्रंथों के अनुवाद किए। अपने भाषणों से श्रोताओं को मुग्ध करने की परांजपे में बड़ी क्षमता थी। [[1928]] में बेलगांव के मराठी साहित्य संमेलन की अध्यक्षता आपने ही की थी।
शिवराम महादेव की लेखनी में बड़ा प्रभाव एवं भाषणों में ओज था। वे सभी विषयों पर निर्बाध रुप से लिखा करते थे। उनके लेखों का संकलन 10 खंडों में प्रकाशित हुआ। इन पर उसी समय [[ब्रिटिश सरकार|विदेशी सरकार]] ने प्रतिबंध लगा दिया था जो देश के स्वतंत्र होने पर ही समाप्त हुआ। इसके अतिरिक्त उन्होंने चार [[नाटक]], दो [[उपन्यास]] और 'मराठा युद्ध का इतिहास' जैसे [[ग्रंथ]] लिखे तथा कई [[संस्कृत]] ग्रंथों के अनुवाद किए। अपने भाषणों से श्रोताओं को मुग्ध करने की परांजपे में बड़ी क्षमता थी। [[1928]] में बेलगांव के '''मराठी साहित्य संमेलन''' की अध्यक्षता आपने ही की थी।
==मृत्यु==
==मृत्यु==
[[मराठी भाषा]] के प्रसिद्ध पत्रकार, [[लेखक‍]] एवं  ओजस्वी वक्ता शिवराज महादेव परांजपे का मधुमेह के कारण [[27 सितंबर]], [[1929]] ई. को निधन हो गया।
[[मराठी भाषा]] के प्रसिद्ध पत्रकार, [[लेखक‍]] एवं  ओजस्वी वक्ता शिवराज महादेव परांजपे का [[मधुमेह]] के कारण [[27 सितंबर]], [[1929]] ई. को निधन हो गया।





11:28, 22 जुलाई 2018 का अवतरण

शिवराम महादेव परांजपे (जन्म- 27 जून, 1864, कोलाबा ज़िला, मृत्यु- 27 सितंबर, 1929) मराठी भाषा के प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक‍, राजनीतिक चिंतक एवं ओजस्वी वक्ता थे।

परिचय

मराठी भाषा के प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक‍, राजनीतिक चिंतक और ओजस्वी वक्ता शिवराज महादेव परांजपे का जन्म 27 जून, 1864 ई. को कोलाबा जिले के महाद्र नामक स्थान में चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने संस्कृत की उच्च शिक्षा प्राप्त की। उनके जीवन को दिशा देने में लोकमान्य तिलक का बहुत प्रभाव रहा है। शिक्षा पूरी करने के बाद परांजपे ने महाराष्ट्र कॉलेज, पूना में संस्कृत के अध्यापक के रूप में काम आरंभ किया। वे तिलक के कहने पर पूना सार्वजनिक सभा के सचिव भी बन गए। इसी बीच 'शिवाजी' और 'गणपति उत्सव' में उनके जोशीले भाषणों की सरकार की तरफ से बड़ी आलोचना हुई और पराजंपे ने कॉलेज से त्यागपत्र दे दिया।[1]

जन-जागरण

शिवराम महादेव परांजपे ने जन-जागरण के लिए 1895 में मराठी साप्ताहिक 'काल' का प्रकाशन आरंभ किया। इस पत्र में लिखे लेख के कारण उन्हें 19 महीने की सज़ा भोगनी पड़ी और भारी जमानत मांगे जाने पर पत्र को ही बंद कर देना पड़ा। 1920 में उन्होंने 'स्वराज्य' साप्ताहिक निकाल कर गांधी जी के असहयोग आंदोलन का समर्थन किया।

प्रभावपूर्ण लेखनी

शिवराम महादेव की लेखनी में बड़ा प्रभाव एवं भाषणों में ओज था। वे सभी विषयों पर निर्बाध रुप से लिखा करते थे। उनके लेखों का संकलन 10 खंडों में प्रकाशित हुआ। इन पर उसी समय विदेशी सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था जो देश के स्वतंत्र होने पर ही समाप्त हुआ। इसके अतिरिक्त उन्होंने चार नाटक, दो उपन्यास और 'मराठा युद्ध का इतिहास' जैसे ग्रंथ लिखे तथा कई संस्कृत ग्रंथों के अनुवाद किए। अपने भाषणों से श्रोताओं को मुग्ध करने की परांजपे में बड़ी क्षमता थी। 1928 में बेलगांव के मराठी साहित्य संमेलन की अध्यक्षता आपने ही की थी।

मृत्यु

मराठी भाषा के प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक‍ एवं ओजस्वी वक्ता शिवराज महादेव परांजपे का मधुमेह के कारण 27 सितंबर, 1929 ई. को निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 845 |

बाहरी कड़ियाँ

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