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परिहार राजाओं के बाद यह [[चन्देल वंश|चन्देलों]] के अधिकार में रहीं। चन्देल राजाओं के पराभव के बाद ओरछा श्रीहीन हो गया। उसके बाद में बुंदेलों ने ओरछा को राजधानी बनाया और इसने पुनः अपना गौरव प्राप्त किया। राजा रुद्रप्रताप (1501-03ई.) वर्तमान ओरछा को बसाने वाले थे। 1531 ई. में इस नगर की स्थापना की गई और क़िले के निर्माण में आठ वर्ष का समय लगा। ओरछा के महल भारतीचन्द के समय 1539 ई. में बनकर पूर्ण हुए और राजधानी भी इसी वर्ष पुरानी राजधानी गढ़कुंडार से ओरछा लायी गयी। | परिहार राजाओं के बाद यह [[चन्देल वंश|चन्देलों]] के अधिकार में रहीं। चन्देल राजाओं के पराभव के बाद ओरछा श्रीहीन हो गया। उसके बाद में बुंदेलों ने ओरछा को राजधानी बनाया और इसने पुनः अपना गौरव प्राप्त किया। राजा रुद्रप्रताप (1501-03ई.) वर्तमान ओरछा को बसाने वाले थे। 1531 ई. में इस नगर की स्थापना की गई और क़िले के निर्माण में आठ वर्ष का समय लगा। ओरछा के महल भारतीचन्द के समय 1539 ई. में बनकर पूर्ण हुए और राजधानी भी इसी वर्ष पुरानी राजधानी गढ़कुंडार से ओरछा लायी गयी। | ||
[[चित्र:Orchha-Raj-Mahal.jpg|thumb|left|राजमहल, ओरछा]] | [[चित्र:Orchha-Raj-Mahal.jpg|thumb|left|राजमहल, ओरछा]] | ||
[[अकबर]] के समय यहां के राजा मधुकर शाह थे जिनके साथ मुग़ल सम्राट के कई युद्ध किए थे। [[जहांगीर]] ने वीरसिंहदेव बुंदेला को जो ओरछा राज्य की बड़ौनी जागीर के स्वामी थे पूरे ओरछा राज्य की गद्दी दी थी। वीरसिंहदेव ने ही अकबर के शासनकाल में जहांगीर के कहने से अकबर के विद्वान् दरबारी [[अबुल फज़ल|अबुलफजल]] की हत्या करवा दी थी। [[शाहजहां]] ने बुन्देलों से कई असफल लड़ाइयां लड़ीं। किंतु अंत में जुझारसिंह को ओरछा का राजा स्वीकार कर लिया गया। [[बुन्देलखण्ड]] की लोक-कथाओं का नायक हरदौल वीरसिंहदेव का छोटा पुत्र एवं जुझारसिंह का छोटा भाई था। [[औरंगजेब]] के राज्यकाल में [[छत्रसाल]] की शक्त् बुंदेलखंड में बढ़ी हुई थी। ओरछा की रियासत वर्तमान काल तक बुंदेलखंड में अपना विशेष महत्त्व रखती आई है। यहाँ के राजाओं ने [[हिन्दी]] के [[कवि|कवियों]] को सदा प्रश्रय दिया है। महाकवि [[केशवदास]] वीरसिंहदेव के राजकवि थे। | [[अकबर]] के समय यहां के राजा मधुकर शाह थे जिनके साथ मुग़ल सम्राट के कई युद्ध किए थे। [[जहांगीर]] ने [[वीरसिंहदेव बुंदेला]] को जो ओरछा राज्य की बड़ौनी जागीर के स्वामी थे पूरे ओरछा राज्य की गद्दी दी थी। वीरसिंहदेव ने ही अकबर के शासनकाल में जहांगीर के कहने से अकबर के विद्वान् दरबारी [[अबुल फज़ल|अबुलफजल]] की हत्या करवा दी थी। [[शाहजहां]] ने बुन्देलों से कई असफल लड़ाइयां लड़ीं। किंतु अंत में जुझारसिंह को ओरछा का राजा स्वीकार कर लिया गया। [[बुन्देलखण्ड]] की लोक-कथाओं का नायक हरदौल वीरसिंहदेव का छोटा पुत्र एवं जुझारसिंह का छोटा भाई था। [[औरंगजेब]] के राज्यकाल में [[छत्रसाल]] की शक्त् बुंदेलखंड में बढ़ी हुई थी। ओरछा की रियासत वर्तमान काल तक बुंदेलखंड में अपना विशेष महत्त्व रखती आई है। यहाँ के राजाओं ने [[हिन्दी]] के [[कवि|कवियों]] को सदा प्रश्रय दिया है। महाकवि [[केशवदास]] वीरसिंहदेव के राजकवि थे। | ||
==ऐतिहासिक इमारतें== | ==ऐतिहासिक इमारतें== | ||
ओरछे में जिन पुरानी इमारतों के खंडहर हैं, उनमें मुख्य हैं- जहांगीर-महल जिसे वीरसिंहदेव ने जहांगीर के लिए बनवाया था यद्यपि जहांगीर इस महल में वीरसिंहदेव के जीवनकाल में कभी न ठहर सका, केशवदास का भवन, प्रवीण राय का भवन (प्रवीण राय, वीरसिंह देव के दरबार की प्रसिद्ध गायिका थी जिसकी केशवदास ने अपने ग्रंथों में बहुत प्रशंसा की है)। | ओरछे में जिन पुरानी इमारतों के खंडहर हैं, उनमें मुख्य हैं- जहांगीर-महल जिसे वीरसिंहदेव ने जहांगीर के लिए बनवाया था यद्यपि जहांगीर इस महल में वीरसिंहदेव के जीवनकाल में कभी न ठहर सका, केशवदास का भवन, प्रवीण राय का भवन (प्रवीण राय, वीरसिंह देव के दरबार की प्रसिद्ध गायिका थी जिसकी केशवदास ने अपने ग्रंथों में बहुत प्रशंसा की है)। |
11:03, 3 जुलाई 2013 का अवतरण

ओरछा मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड सम्भाग में बेतवा नदी के किनारे स्थित आधुनिक मध्य काल में परिहार राजाओं की राजधानी थी।
इतिहास
परिहार राजाओं के बाद यह चन्देलों के अधिकार में रहीं। चन्देल राजाओं के पराभव के बाद ओरछा श्रीहीन हो गया। उसके बाद में बुंदेलों ने ओरछा को राजधानी बनाया और इसने पुनः अपना गौरव प्राप्त किया। राजा रुद्रप्रताप (1501-03ई.) वर्तमान ओरछा को बसाने वाले थे। 1531 ई. में इस नगर की स्थापना की गई और क़िले के निर्माण में आठ वर्ष का समय लगा। ओरछा के महल भारतीचन्द के समय 1539 ई. में बनकर पूर्ण हुए और राजधानी भी इसी वर्ष पुरानी राजधानी गढ़कुंडार से ओरछा लायी गयी।

अकबर के समय यहां के राजा मधुकर शाह थे जिनके साथ मुग़ल सम्राट के कई युद्ध किए थे। जहांगीर ने वीरसिंहदेव बुंदेला को जो ओरछा राज्य की बड़ौनी जागीर के स्वामी थे पूरे ओरछा राज्य की गद्दी दी थी। वीरसिंहदेव ने ही अकबर के शासनकाल में जहांगीर के कहने से अकबर के विद्वान् दरबारी अबुलफजल की हत्या करवा दी थी। शाहजहां ने बुन्देलों से कई असफल लड़ाइयां लड़ीं। किंतु अंत में जुझारसिंह को ओरछा का राजा स्वीकार कर लिया गया। बुन्देलखण्ड की लोक-कथाओं का नायक हरदौल वीरसिंहदेव का छोटा पुत्र एवं जुझारसिंह का छोटा भाई था। औरंगजेब के राज्यकाल में छत्रसाल की शक्त् बुंदेलखंड में बढ़ी हुई थी। ओरछा की रियासत वर्तमान काल तक बुंदेलखंड में अपना विशेष महत्त्व रखती आई है। यहाँ के राजाओं ने हिन्दी के कवियों को सदा प्रश्रय दिया है। महाकवि केशवदास वीरसिंहदेव के राजकवि थे।
ऐतिहासिक इमारतें
ओरछे में जिन पुरानी इमारतों के खंडहर हैं, उनमें मुख्य हैं- जहांगीर-महल जिसे वीरसिंहदेव ने जहांगीर के लिए बनवाया था यद्यपि जहांगीर इस महल में वीरसिंहदेव के जीवनकाल में कभी न ठहर सका, केशवदास का भवन, प्रवीण राय का भवन (प्रवीण राय, वीरसिंह देव के दरबार की प्रसिद्ध गायिका थी जिसकी केशवदास ने अपने ग्रंथों में बहुत प्रशंसा की है)।
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वीथिका
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ओरछा का एक दृश्य (1818)
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ओरछा, मध्य प्रदेश
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ओरछा, मध्य प्रदेश
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लक्ष्मीनारायण मंदिर, ओरछा (1869)
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ओरछा का एक दृश्य (1818)
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ओरछा, मध्य प्रदेश
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सावन भादों पैलेस, ओरछा (1882)
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख