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अमिताभ बच्चन की सबसे प्रसिद्ध फ़िल्मों में कुछ इस प्रकार है-  
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10:34, 16 दिसम्बर 2011 का अवतरण

कात्या सिंह/अभ्यास पन्ना
अमिताभ बच्चन
अमिताभ बच्चन
पूरा नाम अमिताभ हरिवंश श्रीवास्तव
अन्य नाम बिग बी, एंग्री यंग मैन, शहंशाह
जन्म 11 अक्टूबर, 1942
जन्म भूमि इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
पति/पत्नी जया भादुड़ी बच्चन
संतान अभिषेक बच्चन, श्वेता नंदा
कर्म भूमि मुंबई
कर्म-क्षेत्र अभिनेता, निर्माता, गायक
मुख्य फ़िल्में शोले, दीवार 1975, त्रिशूल (1978), मुकद्दर का सिकंदर, काला पत्थर (1979), शक्ति (1982), ब्लैक, मोहब्बतें, पा आदि
शिक्षा एम. ए.
विद्यालय ज्ञान प्रबोधिनी, बॉयज़ हाई स्कूल (बी.एच.एस.), शेरवुड कॉलेज, नैनीताल, किरोड़ीमल कॉलेज, दिल्ली
पुरस्कार-उपाधि पद्म श्री, पद्म भूषण, चार बार राष्ट्रीय पुरस्कार
प्रसिद्धि अमिताभ बच्चन सहस्त्राब्दी के महानायक कहे जाने वाले अभिनेता हैं।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी इंटरनेट पर हुए एक सर्वेक्षण में सहस्त्राब्दी का सर्वाधिक लोकप्रिय एशियाई व्यक्ति चुने जाने के बाद लंदन के विख्यात संग्रहालय, 'मैडम तुसाद वैक्स म्यूज़ियम' में अमिताभ का मोम प्रतिरूप रखा गया।
बाहरी कड़ियाँ अमिताभ बच्चन

अमिताभ बच्चन भारतीय सिनेमा के महान सितारे, जो चार दशक से भी अधिक समय से हिन्दी फ़िल्म उद्योग पर छाये हुए हैं। अमिताभ बच्चन सहस्त्राब्दी के महानायक कहे जाते हैं। अभिनय के अलावा अमिताभ बच्चन पार्श्वगायक, फ़िल्म निर्माता और टीवी प्रस्तुता और भारतीय संसद के एक निर्वाचित सदस्य के रूप में भी रहे हैं। 1970 के दशक में बॉलीवुड सिनेमा के 'एंग्री यंग मैन' कहलाए और भारतीय फ़िल्म इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण शख्सियत बन गए। 40 साल बाद भी आज बॉलीवुड में उनके कद के सामने कोई नहीं है और 69 की उम्र में भी वे बॉलीवुड के सबसे व्यस्त अभिनेताओं में गिने जाते है। शुरू में जिस आवाज़ के कारण निर्देशकों ने अमिताभ को अपनी फ़िल्मों से लेने को मना कर दिया था, वही आवाज़ आगे चलकर उनकी विशिष्टता बनी।

जीवन परिचय

जन्म और परिवार

अमिताभ बच्चन का जन्म 11 अक्टूबर, 1942 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश राज्य में हुआ था। हिन्दी काव्य में हालावाद के प्रवर्तक और अमिताभ के पिताजी हरिवंशराय और उनका परिवार अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति का है और उनके घर में रामचरित मानस तथा श्रीमद् भगवत् गीता का नियमित पाठ होता है। संस्कारवश स्वयं अमिताभ भी गीता-रामायण का नियमित पारायण करते हैं। अमिताभ की माता श्रीमती तेजी बच्चन जन्म से सिख थीं, लेकिन वे भी हनुमानजी की अनन्य भक्त थीं। कवि बच्चन से तेजी सूरी का विवाह जनवरी 1942 में ही हुआ था और उसी साल उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हो गई। तेजी से कवि बच्चन का दूसरा विवाह हुआ था। अमिताभ, हरिवंश राय बच्चन के दो बेटो में सबसे बड़े हैं उनके दूसरे बेटे का नाम अजिताभ है। इनकी माता की थिएटर में गहरी रुचि थी और उन्हें फ़िल्म में भी रोल की पेशकश की गई थी किंतु इन्होंने गृहणी बनना ही पसंद किया। अमिताभ के कैरियर के चुनाव में इनकी माता का भी कुछ हिस्सा था क्योंकि वे हमेशा इस बात पर भी ज़ोर देती थी कि उन्हें सेंटर स्टेज को अपना कैरियर बनाना चाहिए। बच्चन के पिता का देहांत 2003 में हो गया था जबकि उनकी माता की मृत्यु 21 दिसंबर, 2007 को हुई थीं।

अमिताभ बच्चन

बचपन

सन्‌ 1942 की जिन सर्दियों में अमिताभ बच्चन का जन्म हुआ, बच्चन दंपति इलाहाबाद में बैंक रोड पर मकान नंबर 9 में रहता था। कविवर सुमित्रानंदन पंत भी सर्दियों में अलमोड़ा छोड़कर इलाहाबाद आ जाते थे। वे बच्चन जी के घर के निकट रहते थे। नर्सिंग होम में पंत जी ने नवजात शिशु की तरफ इशारा करते हुए कवि बच्चन से कहा था, 'देखो तो कितना शांत दिखाई दे रहा है, मानो ध्यानस्थ अमिताभ।' तभी बच्चन दंपति ने अपने पुत्र का नाम अमिताभ रख दिया था।

इंकलाब राय

बच्चन जी के एक प्राध्यापक मित्र अमरनाथ झा ने सुझाव दिया था कि भारत छोड़ो आंदोलन की पृष्ठभूमि में जन्मे बालक का नाम 'इंकलाब राय' रखना बेहतर होगा, इससे परिवार के नामकरण शैली की परंपरा भी कायम रहेगी। झा ने इसी तरह बच्चन जी के दूसरे पुत्र अजिताभ का नाम देश की आजादी के वर्ष 1947 को देखते हुए 'आजाद राय' रखने का सुझाव दिया था। लेकिन पंतजी ने कहा था, 'अमिताभ के भाई का नाम तो अजिताभ ही हो सकता है।' कालांतर में माता-पिता के लिए अमिताभ सिर्फ 'अमित' रह गया और उनकी माता उन्हें मुन्ना कहकर पुकारती थीं। तेजी जी की बहन गोविंद ने अजिताभ का घरेलू नाम 'बंटी' रखा।

बचपन में मिली सीख

ढाई साल की उम्र में अमिताभ लाहौर रेलवे स्टेशन पर अपने माता-पिता से बिछड़कर ओवरब्रिज पर पहुँच गए थे, जब वे अपने नाना के घर मीरपुर जा रहे थे। बच्चन दंपति ने पहली बार अपने बेटे को सीख दी थी कि माता-पिता को बताए बगैर बच्चों को कहीं नहीं जाना चाहिए। इस बिछोह के समय तेजी टिकट लेने गई थीं और अमित पिता का हाथ छूट जाने से भीड़ में खो गए थे। मीरपुर में अपने नाना खजानसिंह के लंबे केश देखकर अमित को पहली बार आश्चर्य हुआ था कि ये औरतों जैसे लंबे बाल क्यों रखते हैं। लेकिन तेजी ने अपने बच्चों को सिख बनाए रखने की कोई चेष्टा नहीं की। श्रीवास्तव परंपरा के अनुसार अमित का चौल-कर्म (मुंडन संस्कार) विंध्य पर्वत पर देवी की प्रतिमा के आगे बकरे की बलि के साथ होना चाहिए था, मगर बच्चन जी ने ऐसा कुछ नहीं किया। दुर्योग देखिए कि बालक अमित के मुंडन के दिन ही एक सांड उनके द्वार पर आया और अमित को पटकनी देकर चला गया। अमित रोया नहीं, जबकि उसके सिर में गहरा जख्म हुआ था और कुछ टाँके भी लगे थे। वे इतना जरूर कहते हैं कि यह भिड़ंत उनकी उस सहन शक्ति का 'ट्रायल रन' थी, जिसे उन्होंने अपनी आगे की जिंदगी में विकसित किया।[1]

विवाह

अमिताभ पत्नी जया भादुडी के साथ

अमिताभ बच्चन का विवाह 3 जून, 1973 को बंगाली संस्कार के अनुसार अभिनेत्री जया भादुड़ी से हुआ। अभिनेत्री के रूप में जया की भी अपनी विशिष्ट उपलब्धियाँ रही हैं और वे फ़िल्म क्षेत्र की आदरणीय अभिनेत्रियों में गिनी जाती हैं। आज के अनेक युवा कलाकारों के लिए वे मातृवत स्नेह का झरना हैं। रचनात्मकता को बढ़ावा देना उनका स्वभाव तथा जीवन का ध्येय जैसा है। अभिनय से उन्हें दिली-लगाव है। वे कई वर्षों तक चिल्ड्रन्स फ़िल्म सोसायटी की अध्यक्ष रह चुकी हैं। रमेश तलवार के नाटक 'माँ रिटायर होती है' के माध्यम से रंगकर्म की दुनिया में उन्होंने अपनी सनसनीखेज वापसी दर्ज की थी। सत्तर के दशक में उन्होंने फ़िल्म 'कोरा कागज' (1975) और 'नौकर' (1980) में अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फ़िल्मफेयर पुरस्कार भी प्राप्त किए थे। जया और अमिताभ का परिचय ऋषिकेश मुखर्जी ने अपनी फ़िल्म 'गुड्डी' के सेट पर कराया था।

संतान

अमिताभ बच्चन और जया भादुडी की दो संतान हैं, श्वेता नंदा और अभिषेक बच्चन, जो एक अभिनेता हैं और जिनका विवाह प्रसिद्ध अभिनेत्री ऐश्वर्या राय से हुआ है।

शिक्षा

अमिताभ बच्चन ने दो बार एम. ए. की उपाधि ग्रहण की है। इन्होंने इलाहाबाद के ज्ञान प्रबोधिनी और बॉयज़ हाई स्कूल (बी.एच.एस.) तथा उसके बाद नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में पढाई की जहाँ कला संकाय में प्रवेश दिलाया गया। उसके बाद अध्ययन करने के लिए ये दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज चले गए जहाँ इन्होंने विज्ञान स्नातक की उपाधि प्राप्त की। अपनी आयु के 20 के दशक में बच्चन ने अभिनय में अपना कैरियर आजमाने के लिए कोलकता की एक शिपिंग फर्म 'बर्ड एंड कंपनी' में किराया ब्रोकर की नौकरी छोड़ दी।

कोलकाता में प्रवास

अमिताभ अपने बच्चों (अभिषेक और श्वेता) के साथ

मुंबई जाने से पहले अमिताभ बच्चन ने 1963 और 68 के बीच साढ़े पाँच साल कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में व्यतीत किये। इस बीच उन्होंने दो प्राइवेट कंपनियों में एक्जीक्यूटिव के रूप में काम किया। नौकरी वे दिल लगाकर करते थे, लेकिन साथ ही थिएटर सिनेमा का शौक भी चलता रहता। अमिताभ का कलकत्ता निवास नियति ने शायद उनकी अभिनय प्रतिभा निखारने के लिए ही रचा था, क्योंकि वहाँ अमिताभ ने रंगकर्म में सक्रिय भागीदारी की। साथ ही वे खेलों का शौक भी पूरा करते रहे। कोयले का व्यवसाय करने वाली 'बर्ड एंड हिल्जर्स' कंपनी में उनकी पहली तन्ख्वाह पाँच सौ रुपए माह थी, जबकि दूसरी कंपनी ब्लैकर्स में उनकी अंतिम तन्ख्वाह 1680 रुपए मात्र थी।

कलकत्ता पहली बार

अमिताभ पहली बार 1954 में माता-पिता के साथ कलकत्ता आए थे। तब वे 12 साल के थे। तब उन्होंने भरी बरसात में एक फुटबॉल मैच देखा था और वे इस शहर पर मुग्ध हो गए थे। अपना कर्म-जीवन शुरू करने के लिए 1963 में जब वे फिर इस शहर में आए तो यह नगर बहुत बदला-बदला था। भागमभाग और चकाचौंध बढ़ गई थी। शुरू में कुछ दिन वह अपने पिता के मित्र के घर टालीगंज में ठहरे और नौकरी मिलने के बाद कार्यस्थल के आसपास ही पेइंगगेस्ट या दोस्तों के साथ किराए के मकान में रहने लगे। शेरवुड में उन्होंने स्वतंत्रता की साँस ली थी, तो कलकत्ता में वे अपने पैरों पर खड़ा होने आए थे। इस बीच डेढ़ साल दोनों भाई साथ भी रहे। दोनों का रहन-सहन उच्च स्तरीय था। दोनों भाइयों के सम्बंध मित्रवत थे। अजिताभ अपने 'दादा' की अभिनय प्रतिभा से बहुत प्रभावित थे। दोनों मुम्बइया मसाला सिनेमा के कटु आलोचक थे। अमिताभ के थिएटर के शौक के अजिताभ साक्षी थे और साथ ही दादा के भावी कैरियर के सपने भी बुन रहे थे। अभिनेता बनने के आकांक्षी अमिताभ बच्चन का पहला फोटो अलबम अजिताभ ने ही तैयार किया था और स्वयं उन्होंने ही अमिताभ की तस्वीरें खींची थीं।

नाटकों में अभिनय

साठ के दशक में गैर-सरकारी कंपनियों में काम करने वाले कुछ नौजवानों ने, जो स्वयं को 'बॉक्सवाला' कहते थे, एक नाटक मंडली कायम की- 'द ऍमेचर्स।' अधिकारी-वर्ग के इन नौजवानों की विदेशी नाटकों में दिलचस्पी थी। उस समय कलकत्ता में 'द ड्रामेटिक क्लब' नामक एक अन्य नाटक मंडली भी अंग्रेज़ी नाटक खेलती थी, लेकिन उसमें किसी भारतीय का प्रवेश-निषिद्ध था। द ऍमेचर्स क्लब इसी का प्रतिकार था। दिसंबर 1960 में जन्मी इस नाटक मंडली के काम की शुरुआत धीमी रही, लेकिन अगले वर्ष इसके दो नाटकों (ऑर्थर मिलर का 'ए व्यू फ्रॉम द ब्रिज' और शेक्सपीयर के 'जूलियस-सीजर' ने तहलका मचा दिया।

सौदागर के एक दृश्य में अमिताभ और नूतन

ऍमेचर्स के संस्थापक सदस्यों में डिक रॉजर्स, दिलीप सरकार, जगबीर मलिक, विमल और कमल भगत जैसे आठ-नौ लोग ही थे। 1962-63 में यह आँकड़ा साठ के करीब पहुँच गया। अगले 3-4 वर्षों में सदस्य संख्या सौ तक हो गई। अमिताभ और उनके मित्र विजय कृष्ण 1965 में ऍमेचर्स में दाखिल हुए। उस समय अमिताभ 'बर्ड' की नौकरी छोड़कर 'ब्लैकर्स' में पहुँच चुके थे। विजय कृष्ण 'इंडिया स्टीमशिप' में थे। कुछ ही दिनों बाद किशोर भिमानी भी इस संस्था में दाखिल हुए और दो वर्ष बाद 1967 में उन्होंने 'द क्वीन एंड द रिबेल' नाटक का निर्देशन किया। अमिताभ ने इस नाटक के स्टेज मैनेजर की जिम्मेदारी निभाई थी।[2]

नौकरी छोड़ने का निर्णय

हीरो बनने की धुन में इतनी अच्छी नौकरी छोड़ने के अमिताभ के निर्णय को उनके दोस्तों ने उस समय उचित नहीं माना था। अमिताभ के लिए यह किस्मत दाँव पर लगाने का सबसे अच्छा अवसर था। माता-पिता की तरफ से वह निश्चिंत हो चुके थे। केंद्र में श्रीमती गाँधी का शासन था और उनके पिता डॉ. बच्चन राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हो गए थे। भाई बंटी (अजिताभ) डेढ़ साल कलकत्ता में उनके साथ रह चुके थे और 'शॉ वॉलेस' की नौकरी करते हुए वे कलकत्ता से मद्रास और फिर मुंबई पहुँच चुके थे। मुंबई में नर्गिस और सुनील दत्त का सहारा भी था, जो उनके पारिवारिक मित्र थे।

अभिनय की शुरुआत

हिन्दी के प्रख्यात कवि हरिवंश राय बच्चन के पुत्र अमिताभ बच्चन ने अपने अभिनय की शुरुआत ख़्वाजा अहमद अब्बास द्वारा निर्देशित फ़िल्म सात हिंदुस्तानी (1969) से की थी।

पहली फ़िल्म

अजिताभ ने अमिताभ की कुछ तस्वीरें निकाली थीं, उन्हें ख्वाजा अहमद अब्बास के पास भिजवा दिया गया था। उन दिनों वे सात हिन्दुस्तानी फ़िल्म बनाने की तैयारी कर रहे थे। इन सात में एक मुस्लिम युवक का रोल अमिताभ को प्राप्त हुआ। इस चुनाव के वक्त अब्बास साहब को यह नहीं मालूम था कि अमिताभ कवि बच्चन के पुत्र हैं। उन्होंने उनसे अपने नाम का अर्थ पूछा था। तब उन्होंने कहा था, अमिताभ का अर्थ है सूर्य, और यह गौतम बुद्ध का एक नाम भी है। अब्बास साहब ने अमिताभ से साफ कह दिया था कि वे इस फ़िल्म के मेहनताने के रूप में पाँच हजार रुपए से अधिक नहीं दे सकेंगे। इसके बाद जब अनुबंध पर लिखा-पढ़ी की का समय आया और अमिताभ के पिता का नाम पूछा गया तो कवि बच्चन के सुपुत्र होने के कारण अब्बास साहब ने साफ कह दिया था कि वह उनके पिता से आज्ञा लेकर ही उन्हें काम देंगे। अमिताभ को कोई आपत्ति नहीं थी। अंततः उन्हें चुन लिया गया। 1969 में जब अमिताभ की यह पहली फ़िल्म (सात हिन्दुस्तानी) दिल्ली के शीला सिनेमा में रिलीज हुई, तब अमिताभ ने पहले दिन अपने माता-पिता के साथ इसे देखा। उस समय अमिताभ जैसलमेर में सुनील दत्त की फ़िल्म 'रेशमा और शेरा' की शूटिंग से छुट्टी लेकर सिर्फ इस फ़िल्म को देखने दिल्ली आए थे। उस दिन वे अपने पिता के ही कपड़े कुर्ता-पाजामा शॉल पहनकर सिनेमा देखने गए थे, क्योंकि उनका सामान जैसलमेर और मुंबई में था। इसी शीला सिनेमा में कॉलेज से भागकर उन्होंने कई फ़िल्में देखी थीं। उस दिन वे खुद की फ़िल्म देख रहे थे।

मीना कुमारी द्वारा प्रशंसा

अब्बास साहब अपने ढंग के निराले फ़िल्मकार थे। उन्होंने कभी कमर्शियल सिनेमा नहीं बनाया। उनकी फ़िल्मों में कोई न कोई सीख अवश्य होती थी। यह फ़िल्म चली नहीं, लेकिन प्रदर्शित हुई, यही बड़ी बात थी। रिलीज होने से पहले मीना कुमारी ने इस फ़िल्म को देखा था। अब्बास साहब मीना कुमारी का बहुत आदर करते थे। वे अपनी हर फ़िल्म के ट्रायल शो में उन्हें जरूर बुलाते थे। वे उनकी सर्वप्रथम टीकाकार थीं। ट्रायल शो में मीनाकुमारी ने अमिताभ के काम की तारीफ की थी, तब अमिताभ लजा गए थे।

संघर्ष का समय

संघर्ष के दिनों में अमिताभ को मॉडलिंग के ऑफर मिल रहे थे, लेकिन इस काम में उनकी कोई रुचि नहीं थी। जलाल आगा ने एक विज्ञापन कंपनी खोल रखी थी, जो विविध भारती के लिए विज्ञापन बनाती थी। जलाल, अमिताभ को वर्ली के एक छोटे से रेकॉर्डिंग सेंटर में ले जाते थे और एक-दो मिनट के विज्ञापनों में वे अमिताभ की आवाज का उपयोग किया करते थे। प्रति प्रोग्राम पचास रुपए मिल जाते थे। उस दौर में इतनी-सी रकम भी पर्याप्त होती थी, क्योंकि काफी सस्ता जमाना था। वर्ली की सिटी बेकरी में आधी रात के समय टूटे-फूटे बिस्कुट आधे दाम में मिल जाते थे। अमिताभ ने इस तरह कई बार रातभर खुले रहने वाले कैम्पस कॉर्नर के रेस्तराओं में टोस्ट खाकर दिन गुजारे और सुबह फिर काम की खोज शुरू।[3]

फिर ह्रषिकेश मुखर्जी की फ़िल्म 'आनंद' (1970) की व्यावसायिक सफलता के बाद ही लोगों का ध्यान इस शर्मीले लंबे युवक पर गया, जो जल्द ही अपने आप में एक उद्योग बनने वाला था। हालांकि उनकी कई शुरुआती फ़िल्मों में उन्हें विचारों में डूबे अकेले व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया, लेकिन 'ऐंग्री यंग मैन'[4] के रूप में उनकी फ़िल्मी छवि 1970 के दशक के मध्य में बनी ज़ंजीर, दीवार और शोले के माध्यम से स्थापित हुई।

प्रसिद्ध फ़िल्में

विभिन्न फ़िल्मों में अमिताभ बच्चन के विभिन्न चरित्र

फ़िल्म- सौदागर में मोती

फ़िल्म- डॉन में डॉन

फ़िल्म- दीवार में विजय वर्मा

फ़िल्म- शोले में जय

फ़िल्म- अमर अक़बर एंथनी में एंथनी

फ़िल्म- सत्ते पे सत्ता में बाबू

फ़िल्म- रोटी कपड़ा और मकान में विजय

फ़िल्म- अग्निपथ में विजय दीनानाथ चौहान

फ़िल्म- द लास्ट लीयर में हरीश मिश्रा

फ़िल्म- ब्लैक में देवराज सहाय

अमिताभ बच्चन का फ़िल्मी सफ़र
वर्ष फ़िल्म
1969 सात हिन्दुस्तानी
भुवन शोम (केवल आवाज़)
1970 आनन्द
1971 रेशमा और शेरा
संजोग
परवाना
गुड्डी
प्यार की कहानी
1972 बावर्ची
जबान
पिया का घर
बंसी बिरजू
एक नज़र
रास्ते का पत्थर
बॉम्बे टू गोआ
1973 नमक हराम
गहरी चाल
बंधे हाथ
बड़ा कबूतर (अतिथि भूमिका)
सौदागर
अभिमान
ज़ंजीर
1974 कसौटी
कुँवारा बाप (अतिथि भूमिका)
दोस्त (अतिथि भूमिका)
रोटी कपड़ा और मकान
बेनाम
मज़बूर
1975 ज़मीर
चुपके चुपके
फ़रार
दीवार
मिली
शोले
1976 बलिका वधू
हेरा फेरी
छोटी सी बात
दो अनजाने
अदालत
कभी कभी
1977 ईमान धर्म
परवरिश
चरनदास
ख़ून पसीना
शतरंज के खिला़ड़ी (अतिथि भूमिका)
आलाप
अमर अकबर एंथनी
1978 बेशरम
क़स्मे वादे
मुकद्दर का सिकन्दर
गंगा की सौगन्ध
त्रिशूल
डॉन
1979 गोल माल (अतिथि भूमिका)
एहसास
काला पत्थर
जुर्माना
सुहाग
मिस्टर नटवरलाल
द ग्रेट गैम्बलर
मंज़िल
1980 दो और दो पाँच
दोस्ताना
राम बलराम
शान
1981 चश्मेबद्दूर (अतिथि भूमिका)
विलायती बाबू (अतिथि भूमिका)
कालिया
कमांडर (अतिथि भूमिका)
बरसात की एक रात
याराना
नसीब
लावारिस
सिलसिला
1982 नमक हलाल
शक्ति
खुद्दार
सत्ते पे सत्ता
बेमिसाल
देश प्रेमी
1983 फ़िल्म ही फ़िल्म (विशेष भूमिका)
महान
पु्कार
नास्तिक
कुली
अंधा क़ानून
1984 पेट प्यार और पाप
शराबी
इंकलाब
1985 नया बकरा
मर्द
अमीर आदमी ग़रीब आदमी
1986 आख़िरी रास्ता
1987 जलवा
1988 सूरमा भोपाली (अतिथि भूमिका)
कौन जीता कौन हारा (अतिथि भूमिका)
गंगा जमुना सरस्वती
हीरो हीरालाल
शहँशाह
1989 मैं आज़ाद हूँ
तूफ़ान
जादूगर
बंटवारा (केवल आवाज़)
1990 क्रोध (विशेष भूमिका)
अग्निपथ
आज का अर्जुन
1991 अज़ूबा
इन्द्रजीत
हम
अकेला
1992 ख़ुदागवाह
1994 इंसानियत
1995 तेरे मेरे सपने (केवल आवाज़)
1997 मृत्युदाता
1998 मेज़र साब
बड़े मियाँ छोटे मियाँ
1999 हिन्दुस्तान की कसम
लाल बादशाह
सूर्यवंशम
कोहराम
हेलो ब्रदर (केवल आवाज़)
बीवी नं-1 (स्वयं)
2000 मोहब्बतें
2001 एक रिश्ता
अक्स
कभी खुशी कभी ग़म
2002 काँटे
लगान (केवल आवाज़)
हम किसी से कम नहीं
आँखें
अग्निवर्षा (विशेष भूमिका)
2003 बूम
फंटूश (केवल आवाज़)
मुंबई से आया मेरा दोस्त (केवल आवाज़)
खुशी (केवल आवाज़)
अरमान
बाग़बान
2004 वीर - ज़ारा
क्यूँ ! हो गया ना
एतबार
दीवार
हम कौन हैं?
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
लक्ष्य
ख़ाकी
देव
रुद्राक्ष (केवल आवाज़)
इंसाफ (केवल आवाज़)
2005 पहेली
ब्लैक
वक़्त
रामजी लंदनवाले (स्वयं)
सरकार
दिल जो भी कहे
एक अजनबी
विरुद्ध
बंटी और बबली
अमृतधारे (स्वयं)
परिणीता (केवल आवाज़)
2006 फैमिली
डरना ज़रूरी है
बाबुल
कभी अलविदा ना कहना
2007 ओम शाँति ओम (स्वयं)
झूम बराबर झूम
शूट आउट एट लोखंडवाला
नि:शब्द
राम गोपाल वर्मा की आग
चीनी कम
एकलव्य
2008 जोधा अकबर (केवल आवाज़)
सरकार राज
भूतनाथ
गॉड तुस्सी ग्रेट हो
द लास्ट लियर (अंग्रेज़ी)
यार मेरे ज़िन्दगी
2009 दिल्ली 6 (अतिथि भूमिका)
जॉनी मस्ताना
अलादीन
पा
2010 रन
तीन पत्ती
कंधार
2011 बुड्ढ़ा होगा तेरा बाप
आरक्षण
2012 डिपार्टमेंट
2013 द ग्रेट गेट्सबाय
सत्याग्रह
महाभारत 3D (भीष्म की आवाज़)
2014 भूतनाथ रिटर्न्स
2015 षमिताभ

अमिताभ बच्चन की सबसे प्रसिद्ध फ़िल्मों में कुछ इस प्रकार है-

  • आनंद
  • जंजीर
  • अभिमान
  • दीवार
  • शोले
  • अमर अक़बर एंथनी
  • त्रिशूल (1978)
  • मुकद्दर का सिकंदर
  • काला पत्थर (1979)
  • शक्ति (1982)
  • अग्निपथ (1990)
  • सरकार
  • ब्लैक
  • पा

जिनकी सफलता का श्रेय अमिताभ बच्चन को जाता है, हालांकि हल्की-फुल्की हास्य फ़िल्में चुपके-चुपके (1976) और रोमांस आधारित कभी-कभी (1976) जैसी फ़िल्में अमिताभ बच्चन की बहुमुखी प्रतिभा की परिचायक हैं। 1980 के दशक के अंतिम वर्षों तक बच्चन का जादू सिर चढ़कर बोलता रहा, जिसका लाभ उन्हें अपने संक्षिप्त राजनीतिक जीवन में भी मिला, लेकिन शहंशाह (1988) के बाद उनकी लोकप्रियता में तेज़ी से गिरावट आई। फिर भी 1990 के दशक के आरम्भिक वर्षों में उनकी तीन महत्त्वपूर्ण फ़िल्में- अग्निपथ, हम और ख़ुदागवाह सफल हुई। अग्निपथ के लिए अमिताभ को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।

राजनीति

राजनीति अमिताभ को पसंद नहीं आई। अभिनय का यह खिलाड़ी राजनीति के मैदान में सफल नहीं हो पाया और उन्होंने राजनीति को जल्द ही अलविदा कह दिया। अपने दोस्त राजीव गाँधी के कहने पर अमिताभ ने राजनीति में प्रवेश किया था। उस समय राजीव को अपने लोगों की जरूरत थी और अमिताभ ने दोस्त होने का अपना कर्तव्य पूरा किया। उन्होंने अपने नगर इलाहाबाद से चुनाव लड़ा। चुनाव में उनके प्रतिद्वंदी एच.एन. बहुगुणा थे। अमिताभ ने बहुगुणा को भारी अंतर से हराया। राजनीति में आने वाला समय अमिताभ के लिए कठिनाई भरा साबित हुआ। ‘बोफोर्स कांड’ में अमिताभ और उनके भाई पर आरोप लगाये गये। अमिताभ ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन्हें इतने कटु अनुभव होंगे। अमिताभ तुरंत समझ गये कि राजनीति उनके बस की बात नहीं है। वह इस खेल के दाँवपेंच से अनभिज्ञ थे। तीन वर्ष बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया और फिर राजनीति से सन्यास ले लिया।

फ़िल्मों में वापसी

स्वेच्छा से फ़िल्मों से अलग रहने के बाद बच्चन ने मृत्युदाता (1997) के माध्यम से वापसी का प्रयास किया, लेकिन यह फ़िल्म तथा अन्य कई उत्तरवर्ती फ़िल्में इस दिशा में कमज़ोर कोशिश साबित हुईं। इसमें बहुचर्चित फ़िल्म मेजर साब (1998) भी शामिल है, जो बॉक्स ऑफ़िस पर उनके गौरव को पुनर्स्थापित करने में नाकाम रही। 1988 में अमिताभ बच्चन की फ़िल्म 'शहंशाह' रिलीज हुई जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया। इसके बाद 1990 में आई 'अग्निपथ' में निभाया गया 'विजय दीनानाथ चौहान' का किरदार आज भी दर्शकों को रोमांचित कर देता है। इस फ़िल्म के लिए उन्हें पहली बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से नवाजा गया। अगले ही साल 1991 में 'हम' फ़िल्म ने फिर उन्हें सफलता की सीढ़ियों पर खड़ा कर दिया। इस फ़िल्म के लिए उन्हें फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के अवार्ड से सम्मानित किया गया। 1992 में 'खुदा गवाह' की सफलता के बाद अमिताभ ने कुछ समय के लिए फ़िल्मों से ब्रेक ले लिया।

लोकप्रियता

इंटरनेट पर हुए एक सर्वेक्षण में सहस्त्राब्दी का 'सर्वाधिक लोकप्रिय एशियाई व्यक्ति' चुने जाने के बाद लंदन के विख्यात संग्रहालय, मैडम तुसाद के 'वैक्स म्यूज़ियम' में उनका मोम प्रतिरूप रखा गया।

स्वास्थ्य

1982 में कुली के दौरान लगी चोट

1982 में आई उनकी फ़िल्म “कुली” में एक स्टंट करते हुए उन्हें चोट लग गई थी। इस स्टंट में उन्हें टेबल के ऊपर से ज़मीन पर कूदना था। वह टेबल की तरफ कूदे और ग़लती से टेबल के कोने से जा टकराए जिसकी वजह से उन्हें गंभीर चोट लग गई। उन्हें फ़िल्म बीच में ही छोड़कर अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। उस समय अमिताभ के प्रशंसकों के बीच आलम यह था कि अस्पताल के बाहर घंटों उनके जल्दी स्वस्थ होने की दुआएं देने के लिए लोगों का हुजूम लग रहता था। 1983 में फ़िल्म जब रिलीज हुई तो एक ब्लॉकबस्टर साबित हुई। अमिताभ की बीमारी की वजह से फ़िल्म का अंत भी बदल दिया गया था।

पेट में दर्द की शिकायत

नवंबर 2005 में, अमिताभ बच्चन को एक बार लीलावती अस्पताल की आईसीयू (ICU) में छोटी आँत की सर्जरी लिए भर्ती किया गया। उनके पेट में दर्द की शिकायत के कुछ दिन बाद ही ऐसा हुआ। इस अवधि के दौरान और ठीक होने के बाद उसकी ज़्यादातर परियोजनाओं को रोक दिया गया जिसमें 'कौन बनेगा करोड़पति' का संचालन करने की प्रक्रिया भी शामिल थी। अमिताभ मार्च 2006 में काम करने के लिए वापस लौट आए।

एबीसीएल

अमिताभ ने 1996 में कम्पनी की स्थापना की। किंतु कई कारणों से उनकी होम प्रोडक्शन कंपनी एबीसीएल (अमिताभ बच्चन कॉर्पोरेशन लिमिटेड) ठीक से कार्य नहीं कर पायी और अमिताभ पर आर्थिक संकट छाने लगा। तेरे मेरे सपने, मृत्युदाता और मेजर साब जैसी फ़िल्मों ने एबीसीएल को नुकसान पहुँचाया। एबीसीएल 1997 में बंगलौर में आयोजित 1996 की मिस वर्ल्ड सौंदर्य प्रतियोगिता का प्रमुख प्रायोजक था और इसके खराब प्रबंधन के कारण इसे करोड़ों रूपए का नुकसान उठाना पड़ा था। साल 2000 में कौन बनेगा करोड़पति में अपने आप को एक सफल एंकर के तौर पर प्रस्तुत किया। बच्चन ने केबीसी का आयोजन नवंबर 2005 तक किया और इसकी सफलता ने फ़िल्म की लोकप्रियता के प्रति इनके द्वार फिर से खोल दिए। 2010 और 2011 में भी केबीसी में एंकर की भूमिका अमिताभ ने ही निभाई। फ़िल्म 'मोहब्बतें' और कौन बनेगा करोड़पति के बाद वे फिर चर्चा के केंद्र में आ गए।

सम्मान और पुरस्कार

अमिताभ बच्चन को मिले सम्मान और पुरस्कार
वर्ष विवरण
1969 राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ नवोदित कलाकार (सात हिंदुस्तानी)
1970 सरस्वती अवार्ड (आनंद)
1971 फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार (आनंद)
1971 फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक भूमिका (आनंद)
1973 फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार (नमक हराम)
1975 सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार (मिली)
1977 फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार (अमर अकबर एंथॉनी)
1978 फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार (डॉन)
1980 उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अवध सम्मान
1984 पद्म श्री, भारत सरकार का चौथा बड़ा नागरिक सम्मान
1989 रोटरी क्लब ऑफ बॉम्बे (मुंबई) द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
1990 फ़िल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड, पहले प्राप्तकर्ता
1991 फ़िल्म फेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार (हम)
1991 राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (अग्निपथ)
1995 उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश का श्रेष्ट नागरिक सम्मान 'यश भारती सम्मान'
1997 'प्रतिष्ठति पूर्व छात्र अवार्ड' राजधानी के सबसे बड़े केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्लेटिनम जुबली उद्घाटन समारोह के मौके पर
2000 फ़िल्मफेयर सुपर स्टार ऑफ द मिलेनियम
2000 फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार (मोहब्बतें)
2000 आईआईएफए स्पेशल ऑनररी अवार्ड बेस्ट आर्टिस्ट ऑफ मिलेनियम
2000 हीरो हंडा एंड फाइल स्टारडस्ट मैग्जीन द्वारा बॉलीवुड पीपुल्स च्वाइस अवार्ड्स: बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर फॉर मोहब्बतें आल इंडिया क्रिटिक्स एसोसिएशन
2000 सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार (सूर्यवंशम) सैंसुई व्यूवर्स च्वाइस अवार्ड्स
2000 बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर (मोहब्बते) स्क्रीन वीडियोकॉन अवार्डस
2001 इंडियन टैली अवार्ड: टीवी पर्सनैलिटी ऑफ द इयर कौन बनेगा करोड़पति के लिए
2001 हीरो-हंडा इंडियन टेलीविजन अकाडमी अवार्ड: बेस्ट हॉस्ट फॉर कौन बनेगा करोड़पति
2001 जी गोल्ड अवार्डस: क्रिटिक्स अवार्डस फॉर बेस्ट मेल फ़ॉर मोहब्बतें
2001 आईआईएफए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार फॉर मोहब्बतें
2001 बॉलीवुड मूवी अवार्ड: क्रिटिक्स अवार्ड मेल फ़ॉर मोहब्बतें
2001 फ़िल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड फ़ॉर बेस्ट परफ़ॉर्मेंस फ़ॉर अक्स
2001 पद्मभूषण, भारत सरकार द्वारा, भारत का तीसरा बड़ा नागरिक सम्मान
2002 दयावती मोदी अवार्ड, भारत में कला संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र से जुडा़ बड़ा सम्मान
2002 राष्ट्रीय किशोर कुमार अवार्ड, मध्य प्रदेश सरकार द्वारा
2002 बेहतरीन अभिनय और फ़िल्म इंडस्ट्री में योगदान के लिए आईआईएफए पर्सनाल्टी आफ द ईयर
2002 आईकान ऑफ द मिलेनियम अवार्ड 32वें एआईएफए (आईफ़ा) अवार्ड बांद्रा में लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
2002 सैंसुई व्यूवर्स च्वाइस मूवी अवार्डस द्वारा इंडियन टेलीविजन: बेस्ट टेलीविजन एंकर अवार्ड कौन बनेगा करोड़पति के लिए
2002 इंडियन टेली अवार्ड्स: टीवी एंकर आफ द ईयर फ़ॉर कौन बनेगा करोड़पति के लिए
2003 एमटीवी लाइक्रा अवार्ड्स: महा स्टाइल आईकान ऑफ द इयर (पहले प्राप्तकर्ता)
2003 बॉलीवुड का लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्डस: लंदन बेस्ड एशियन गिल्ड द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड: संगीत सेरेमनी अवार्ड में फ़िल्मफेयर पावर अवार्ड
2003 स्टार स्क्रीन अवार्ड जोड़ी नं-1 हेमामालिनी के साथ (बागबान)
2003 डिस्टिंक्शन इन एक्टिंग अवार्ड फ़ॉर बागबान
2003 स्टारडस्ट अवार्ड फ़ॉर लाइफटाइम अचीवमेंट
2003 सत्यजीत रे लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
2003 जी सिने अवार्ड फ़ॉर लाइफटाइम अचीवमेंट
2003 बॉलीवुड मूवी अवार्ड: मोस्ट सेंसेनल एक्टर फ़ॉर कांटे
2003 एफपीएफएसी अचीवर अवार्डस: अचीवर ऑफ द ईयर अवार्ड
2004 गोल्डन ग्रेड अवार्ड स्पेशल अवार्ड फ़ॉर द फ़िल्म बागबान
2004 मोस्ट आउटस्टैंडिंग परसनैलिटी रेडियो वाइस ऑफ द ईयर अवार्ड
2004 सैंसुई व्यूवर्स च्वाइस मूवी अवार्डस: पर्सनैल्टी ऑफ द ईयर
2004 स्पोर्ट्स वर्ल्डस जोड़ी ऑफ द ईयर हेमामालिनी के साथ बागबान के लिए
2004 आनररी डॉक्टरेट झांसी विश्वविद्यालय द्वारा
2004 लिविंग लीजेंड अवार्ड फिक्की द्वारा
2005 दीनानाथ मंगेशकर अवार्ड फ़िल्म और संगीत में योगदान के लिए
2005 स्टार स्क्रीन अवार्ड सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (ब्लैक)
2005 फ़िल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड फ़ॉर बेस्ट परफ़ॉर्मेंस फ़ॉर ब्लैक
2005 फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार फ़ॉर ब्लैक
2005 स्पेशल अवार्ड फ़ॉर द फ़िल्म ब्लैक सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (ब्लैक)
2005 'मोस्ट पापुलर स्टार इन इंडिया' हंसा रिसर्च के नये सिंडिकेटेड स्टडी सेलेब्रटी ट्रैक में आंके गए द इंटरनेशनल जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट द्वारा
2005 डायमंड ऑफ इंडिया अवार्ड इंडियन टेली अवार्डस: बेस्ट एंकर अवार्ड फ़ॉर कौन बनेगा करोड़पति-2
2006 स्टारडस्ट स्टार ऑफ द इयर अवार्ड- मेल फॉर ब्लैक
2006 राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (ब्लैक)
2006 आईआईएफए वाल ऑफ फेम आइफा सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार फ़ॉर ब्लैक
2006 बॉलीवुड मूवी अवार्ड- सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (ब्लैक)
2006 अप्सरा अवार्ड: सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (ब्लैक)
2006 जी सिने अवार्ड बेस्ट एक्टर: मेल फ़ॉर ब्लैक
2006 बॉलीविस्टा फ़िल्म अवार्ड्स: सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (ब्लैक)
2006 बॉलीवुड पीपुल्स च्वाइस अवार्ड्स: सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (ब्लैक)
2006 रेडिफ मूवी अवार्ड्स: सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (ब्लैक)
2006 लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड: एएक्सएन एक्शन अवार्डस
2006 आनररी डॉक्टरेट डिग्री अपने अल्मा मटर दिल्ली यूनिवर्सिटी द्वारा
2007 भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए स्पेशल अवार्ड नौवें एमएएमआई के मौके पर
2007 चीनी कम के लिए स्टार स्क्रीन अवार्ड्स फ़ॉर बेस्ट एक्टर (क्रिटिक्स)
2007 इंडियन टेलीविजन अकाडमी अवार्ड फ़ॉर अचीविंग द अल्टीमेट एमीनेंस इन द वर्ल्ड ऑफ इंटरटेनमेंट
2009 स्टारडस्ट सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार फ़ॉर द लास्ट लीयर
2009 इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में 40 साल पूरे करने पर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड 11 वें एमएएमआई के मौके पर
2009 मोस्ट पावरफुल एंटरटेनर ऑफ द डिकेड अवार्ड भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए
2009 आईफा-फिक्की द्वारा दशक के 5 सबसे प्रभावशाली भारतीयों में शुमार
2010 लाइंस गोल्ड अवार्ड: बेस्ट एक्टर फ़ॉर पा
2010 फिक्की फ्रेम्स 2010 एक्सीलेंस अवार्डस: बेस्ट एक्टर फ़ॉर पा
2010 टाइमलेस आईकान अवार्ड एट द हेलो हाल ऑफ फेम
2010 लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड मसाला अवार्ड के मौके पर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड एशियानेट फ़िल्म अवार्डस द्वारा
2010 स्टारडस्ट स्टार ऑफ द इयर अवार्ड- मेल फ़ॉर पा
2010 राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (पा)
2010 आइफा सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार (पा)
2010 स्टार स्क्रीन अवार्ड बेस्ट एक्टर फ़ॉर पा
2010 स्टार स्क्रीन अवार्ड जोड़ी नं-1 अभिषेक बच्चन के साथ फ़िल्म पा के लिए
2010 अप्सरा अवार्डस: लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड्स
2011 अप्सरा अवार्ड्स: बेस्ट एक्टर फ़ॉर पा
2011 फ़िल्मफेयर स्पेशल अवार्ड भारतीय फ़िल्म उद्योग में 40 साल पूरा करने पर
2011 स्टारडस्ट प्राइड ऑफ इंडस्ट्री अवार्ड

अमिताभ बच्चन को भारत सरकार ने पद्मश्री और पद्म भूषण (2000) से सम्मानित किया है। अमिताभ बच्चन को अब तक चार बार राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है। इनमें फ़िलहाल उन्हें फ़िल्म "पा" में उनके अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला है। अमिताभ बच्चन ने यह पुरस्कार तीसरी बार जीता है। इससे पहले उनको यह पुरस्कार फ़िल्म "अग्निपथ" और "ब्लैक" के लिए मिल चुका है। इसके अलावा वह 'सात हिन्दुस्तानी' के लिए सर्वश्रेष्ठ नवोदित कलाकार का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं।

निर्माता

अमिताभ बच्चन ने कुछ फ़िल्मों का निर्माण किया है। जिनके नाम ये है:-

  • तेरे मेरे सपने (1996)
  • उलासाम (तमिल 1997)
  • मृत्युदाता (1997)
  • मेजर साब (1998)
  • अक्स (2001)
  • विरूद्ध (2005)
  • फैमिली- टायस ऑफ़ ब्लड (2006)।

अमिताभ के आदर्श

अमिताभ बच्चन बहुतों के आदर्श हैं, लेकिन उनके आदर्श अभिनय सम्राट दिलीप कुमार हैं। अपने ब्लॉग पर अमिताभ ने लिखा, "11 दिसम्बर को वह 89 साल के हो जाएंगे। जन्म के लिहाज से वह मुझसे 20 साल बड़े होंगे। लेकिन पेशे में मुझसे 2000 साल आगे हैं। वह मेरे आदर्श हैं और तब से हैं जब से मैने उनका काम पहली बार देखा।"[5]

पसंद

फ़िल्म "पा" शूटिंग के दौरान, अमिताभ बच्चन
मनपसंद अभिनेता
  • एल पचिनो
  • दिलीप कुमार
  • मार्लिन ब्रैन्डो
  • रॉबर्ट डी निरो
  • शिवाजी गणेशन
  • उत्तम कुमार
मनपसंद अभिनेत्री
मनपसंद निर्देशक
मनपसंद कवि
मनपसंद फ़िल्में
  • अनुपमा
  • चारुलता
  • गंगा जमुना
  • गॉन विथ द विन्ड
  • कागज के फूल
मनपसंद गायक

यादगार फ़िल्में

अमिताभ बच्चन ने अनेक यादगार फ़िल्मों में काम किया है। उनकी श्रेष्ठ फ़िल्में हैं-

फ़िल्म वर्ष पात्र का नाम निर्देशक विवरण
आनंद 1971 डॉ. भास्कर के. बैनर्जी हृषिकेश मुखर्जी इस फ़िल्म के नायक सत्तर के दशक के सुपर सितारे राजेश खन्ना थे। 'बाबू मोशाय' के रूप में अमिताभ सहायक अभिनेता थे। अपने सशक्त अभिनय से अमिताभ ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। ‘आनंद’ राजेश खन्ना की श्रेष्ठ फ़िल्म मानी जा सकती हैं, लेकिन फ़िल्म देखने के बाद अमिताभ याद रह जाते हैं। सहनायक की भूमिका होने पर भी अमिताभ अपने अभिनय के बल पर इस फ़िल्म को यादगार बना दिया।
जंजीर 1973 विजय खन्ना प्रकाश मेहरा प्रकाश मेहरा को जब दिग्गज नायकों ने यह फ़िल्म करने से मना कर दिया तो हारकर उन्होंने अमिताभ को चुना। प्राण के कहने पर ही प्रकाश मेहरा ने यह रोल अमिताभ को दिया था। अमिताभ इस समय तक एक सफल फ़िल्म पाने को प्रयासरत थे। प्राण के साथ जब अमिताभ ने पहला शॉट दिया तो प्राण ने मेहरा को कोने में ले जाकर कहा कि यह लड़का एक दिन सुपरस्टार बनेगा। अमिताभ की 'एंग्री यंग मैन' की छवि 'जंजीर' से ही बनी। अमिताभ की इस छवि को निर्माता-निर्देशकों ने लंबे समय तक प्रयोग किया।
अभिमान 1975 सुबीर कुमार हृषिकेश मुखर्जी एक अभिनेता के रूप में अमिताभ को इस फ़िल्म में कई शेड्स दिखाने का अवसर मिला। रोमांस, संगीत और ईर्ष्या जैसी भावनाओं को मिलाकर उनका चरित्र गढ़ा गया था। अमिताभ ने अपने दमदार अभिनय से भूमिका को यादगार बना दिया। अमिताभ और जया द्वारा साथ की गई श्रेष्ठ फ़िल्मों में से एक फ़िल्म है।
दीवार 1975 विजय खन्ना यश चोपड़ा इस समय हीरो नकारात्मक भूमिका करना पसंद नहीं करते थे। 'दीवार' में अमिताभ का चरित्र ग्रे-शेड लिए हुए था। अपने ईमानदार और आदर्श भाई के मुकाबले वह अपराध की दुनिया चुनता है। उसके इस कदम से नाखुश उसकी माँ भी उसका साथ छोड़ देती है। नकारात्मक भूमिका होने के बावजूद दर्शकों की सहानुभूति अमिताभ बटोर लेते हैं। भगवान पर गुस्सा होने और मंदिर की सीढि़यों पर माँ की गोद में दम तोड़ते हुए अमिताभ के दृश्य, हिंदी फ़िल्मों के उम्दा दृश्यों में से एक हैं।
शोले 1975 जय (जयदेव) रमेश सिप्पी हिंदी फ़िल्मों की सफलतम फ़िल्मों में से एक ‘शोले’ में जय और वीरू की जोड़ी ने गजब कर दिया था। वीरू के मुकाबले में जय कम बोलता था। अमिताभ बच्चन ने बिना संवाद बोले अपनी आँखों और चेहरे के भावों के जरिए कई दृश्यों को यादगार बना दिया। फ़िल्म में जया बच्चन के साथ उनका रोमांस सिर्फ खामोशी के जरिए बयां हुआ। गब्बर को पकड़ने के लिए जय ने अपनी जान की बाज़ी लगा दी तो सिनेमाघर में लोगों की आँखों से आँसू निकल आए। जय को क्यों मार दिया? यह सवाल अभी भी लोग के दिलों को कचोटता है।
अमर अकबर एंथनी 1977 एंथनी गोंजाल्विस मनमोहन देसाई मनमोहन देसाई की मसाला फ़िल्मों में से एक ‘अमर अकबर एंथोनी’ में अमिताभ एंथनी बने थे। इस फ़िल्म में उन्होंने लात-घूँसे भी चलाए और वे सारी हरकतें कीं, जो देसाई की फ़िल्मों में होती थी। फ़िल्म के एक दृश्य में घायल अमिताभ आइने के सामने खड़े होकर आइने में मौजूद अपने अक्स की मरहम-पट्टी करते हैं। अकेले अमिताभ ने फिजूल की बातें करते हुए दर्शकों को खूब हँसाया था। यह ऐसा दौर था, जब अमिताभ परदे पर कुछ भी कर सकते थे और दर्शक कोई तर्क-वितर्क नहीं करते थे।
मुकद्दर का सिकंदर 1978 सिकंदर प्रकाश मेहरा प्रकाश मेहरा की फ़िल्मों में अमिताभ के अभिनीत पात्र वक्त के मारे रहते थे। किस्मत कभी उनका साथ नहीं देती थी। 'मुकद्दर का सिकंदर' की कहानी 'देवदास' से मिलती-जुलती थी। सिकंदर के रूप में अमिताभ त्याग और बलिदान करते रहते हैं। अपने दोस्त की खुशी के लिए उसके हिस्से का जहर भी खुद पी लेते हैं। फ़िल्म में कई लंबे-लंबे दृश्य हैं, जिनमें अमिताभ का अभिनय देखने लायक है।
शक्ति 1982 विजय कुमार रमेश सिप्पी इस फ़िल्म में दर्शकों को दो महान अभिनेताओं को साथ देखने का अवसर मिला था। अमिताभ के सामने खुद उनके आदर्श महानायक दिलीप कुमार थे। उनका चरित्र अपने पिता से नाराज रहता है। अमिताभ ने खुद स्वीकारा था कि दिलीप साहब के सामने खड़े होकर अभिनय करना आसान नहीं था। उन्हें कई बार रीटेक देने पड़ते थे।
सरकार 2005 सुभाष नागरे रामगोपाल वर्मा अमिताभ का पात्र बाल ठाकरे से प्रेरित है। एक ऐसा व्यक्ति जो समानांतर सरकार चलाता है। जिसके इशारे पर सारे लोग नाचते हैं, वह अपने घर वालों को नियंत्रण स्थापित नहीं कर पाता। बड़े बेटे से उसके संबंध ठीक नहीं है। अमिताभ ने अपनी भूमिका इतनी विश्वसनीयता के साथ निभाई कि दर्शकों ने इस फ़िल्म को सफल बना दिया। इस फ़िल्म का सीक्वल 'सरकार राज' (2008) भी प्रदर्शित हुआ, जिसमें अमिताभ अपने बेटे की मौत का बदला लेते हैं।
ब्लैक 2005 देबराज सहाय संजय लीला भंसाली अमिताभ को लगता है कि देबराज सहाय की भूमिका निभाकर अपने अभिनय के शिखर को उन्होंने छुआ है। इस फ़िल्म पर उन्हें गर्व है। एक सख्त अध्यापक अपने विद्यार्थी के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है। इस फ़िल्म को देखने के बाद लगता है कि उनके अभिनय की कोई सीमाएँ नहीं हैं। एक अभिनेता के रूप में उनमें अनंत संभावनाएँ हैं। देबराज सहाय को केवल वे ही पर्दे पर उतार सकते थे।

अमिताभ की नायिकाएँ

अपने लंबे करियर में अमिताभ बच्चन परदे पर कई नायिकाओं के नायक बने हैं। नूतन, माला सिन्हा जैसी सीनियर नायिका के भी वे नायक रहे हैं तो दूसरी ओर मनीषा कोइराला और शिल्पा शेट्टी जैसी कम उम्र की नायिकाओं के साथ भी उन्होंने फ़िल्में की हैं। कुमुद छुगानी (बंधे हाथ), लक्ष्मी छाया (रास्ते का पत्थर), सुमिता सान्याल (आनंद) जैसी गुमनाम नायिकाओं के साथ भी उन्होंने काम किया। कुछ नायिकाओं के साथ उनकी जोड़ी खूब सराही गई।

अमिताभ बच्चन के साथ नायिकाओं की जोड़ी
अभिनेत्री फ़िल्मों के नाम
जया बच्चन जया बच्चन के साथ अमिताभ ने अपने जीवन की श्रेष्ठ फ़िल्में की हैं। साथ काम करते हुए दोनों में रोमांस हुआ और जया बच्चन रील लाइफ से निकलकर रीयल लाइफ में भी अमिताभ की नायिका बनी। बंसी बिरजू, शोले, मिली, अभिमान, चुपके-चुपके, सिलसिला, जंजीर, एक नज़र और कभी खुशी कभी गम जैसी यादगार फ़िल्में दोनों ने दी।
राखी राखी अमिताभ की नायिका भी बनी और बाद में माँ भी। बेमिसाल, त्रिशूल, कभी-कभी, काला पत्थर, बरसात की एक रात, कस्मे-वादे और जुर्माना में दोनों साथ नजर आएँ। ‘शक्ति’ और लावारिस में राखी ने अमिताभ की माँ की भूमिका अदा की थी।
परवीन बॉबी ग्लैमरस परवीन बॉबी 8 फ़िल्मों में अमिताभ की नायिका बनीं और दोनों की जोड़ी को भी दर्शकों ने खूब पसंद किया। दीवार, खुद्दार, शान, दो और दो पाँच, महान, मजबूर, कालिया और अमर अकबर एंथोनी में दोनों साथ दिखाई दिए। इनमें से पाँच फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट रहीं।
ज़ीनत अमान ज़ीनत अमान और अमिताभ 'द ग्रेट गैम्बलर', डॉन, लावारिस, दोस्ताना, पुकार और महान में साथ दिखाई दिए।
रेखा रेखा और अमिताभ का अभिनय तालमेल दर्शकों को बेहद पसंद आया। 9 फ़िल्मों में रेखा, अमिताभ की नायिका बनीं। दो अंजाने, आलाप, गंगा की सौगंध, खून-पसीना, मि.नटवरलाल, मुकद्दर का सिकंदर, सुहाग, राम बलराम और सिलसिला। इनमें से पाँच फ़िल्में सुपरहिट रहीं।
जयाप्रदा जया नाम की नायिका के साथ अमिताभ की जोड़ी दूसरी बार जमी। शराबी, गंगा जमुना सरस्वती, आखिरी रास्ता, जादूगर, इंद्रजीत और 'आज का अर्जुन' में अमिताभ और जयाप्रदा साथ नजर आएँ। इनमें से तीन फ़िल्में सुपरहिट हुईं।
हेमा मालिनी सत्ते पे सत्ता, देश प्रेमी, नास्तिक, नसीब, बाबुल और बागबाग में स्वप्न सुंदरी हेमा मालिनी अमिताभ की नायिका बनीं। जिसमें से तीन फ़िल्म सफल रही। हेमामालिनी 'गहरी चाल' में अमिताभ की बहन बनी थीं। इसके अतिरिक्त हेमा मालिनी और अमिताभ फ़िल्म 'अंधा क़ानून' में भी साथ दिखें लेकिन उसमें वे एक दूसरे के नायक नायिका नहीं थे।

कौन बनेगा करोड़पति

अमिताभ बच्चन ने छोटे परदे पर उस समय प्रवेश किया, जब उनके फ़िल्मी कैरियर में कोई हलचल नहीं हो रही थी। सन 2000 में उन्हें 'कौन बनेगा करोड़पति' शो के संचालन का ऑफर मिला। उन्होंने अपने दोस्तों और परिवार से सलाह ली। अमिताभ ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और करोड़ों लोगों के घर में टीवी सेट के जरिये वे रोजाना प्रस्तुत होने लगे। अमिताभ के प्रशंसकों ने इस कार्यक्रम को हाथो-हाथ लिया। इस कार्यक्रम की लोकप्रियता के पीछे अमिताभ का हाथ था। अपनी विनम्रता, ज्ञान, भाषा और बात करने के अंदाज से मानो उन्होंने लोगों को सम्मोहित कर दिया। एक आम आदमी से भी वे इस तरह पेश आते थे, मानो वह महानायक हो। महिलाओं से बात करते समय उनका शिष्टाचार देखते बनता था। इस कार्यक्रम ने लोकप्रियता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। 2005 में अमिताभ ने इस शो का द्वितीय संस्करण 'कौन बनेगा करोड़पति द्वितीय' दो करोड़ की इनामी राशि के साथ पेश किया। 'कौन बनेगा करोड़पति 3' को शाहरुख खान ने पेश किया था। अमिताभ ने 'कौन बनेगा करोड़पति' को करके छोटे और बड़े पर्दे की दूरी मिटाने में अहम योगदान दिया।

पार्श्व गायक

शोले की शूटिंग के दौरान कैमरे के पीछे चट्टान पर पहली बार जेलर की वर्दी पहने हुए असरानी के अभ्यास पर हँसते हुए अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, संजीव कुमार व अमजद ख़ान

अमिताभ बच्चन ने कई फ़िल्मों में गाने भी गाये है:-

  • द ग्रेट गैम्बलर
  • मि. नटवरलाल
  • लावारिस (1981)
  • नसीब (1981)
  • सिलसिला (1981)
  • महान (1983)
  • पुकार (1983)
  • शराबी (1984)
  • तूफ़ान (1989)
  • जादूगर (1989)
  • खुदागवाह (1992)
  • मेजर साब (1998)
  • सूर्यवंशम (1999)
  • अक्स (2001)
  • कभी ख़ुशी कभी ग़म (2001)
  • आँखें (2002)
  • अरमान (2003)
  • बागबान (2003)
  • देव (2004)
  • एतबार (2004)
  • बाबुल (2006)
  • निशब्द (2007)
  • चीनी कम (2007)
  • भूतनाथ (2008)
  • पा (2009)

रोचक तथ्य

  • यदि हरिवंश राय बच्चन अपना उपनाम 'बच्चन' नहीं करते, तो आज वह अमिताभ श्रीवास्तव कहलाते।
  • हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत ने बच्चन दंपति के इस शिशु का नाम अमिताभ रखा था जिसका अर्थ होता है सूर्य।
  • अमिताभ का अर्थ बुद्ध भी है।
  • हरिवंश राय बच्चन के मित्र प्रो. अमरनाथ झा ने अमिताभ का नाम 'इंकलाब राय' और अजिताभ का नाम 'आजाद राय' रखा था।
  • हरिवंश राय बच्चन ने महू और सागर में फौजी प्रशिक्षण लिया था और लेफ्टिनेंट बनकर कंधे पर दो सितारे लगाने का अधिकार पाया था।
  • बच्चन परिवार की नेहरू परिवार से आत्मीयता कराने का श्रेय भारत कोकिला सरोजिनी नायडू को है, जिन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • अमिताभ के चौथे जन्मदिन पर इंदिरा जी अपने ढाई साल के बेटे राजीव को धोबी की फेंसी ड्रेस में लेकर आई थीं।
  • रानी के बाग में प्रवेश के लिए अमिताभ ने अपने घर से चार आने चुराए थे।
  • हाईस्कूल में दीवार पर पेंसिल से लकीरें खींचने पर प्राचार्य रिचर्ड डूट ने अमिताभ की हथेली पर बेंत मारी थीं, इस घटना का प्रयोग अभिमान फ़िल्म में किया गया था।
  • अमिताभ छोटे भाई अजिताभ को अपनी साईकिल के डंडे पर बैठाकर स्कूल ले जाते थे।
  • 1955 में इंदौर के होल्कर कॉलेज के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ. शिवमंगलसिंह सुमन ने हरिवंश राय बच्चन को कवि सम्मेलन की अध्यक्षता के लिए आमंत्रित किया था।
  • नेहरू जी ने बच्चन परिवार को तीन मूर्ति भवन में चाय पर आमंत्रित किया था। यहीं पर अमिताभ-अजिताभ और राजीव-संजय पुनः मिले और दोस्त बने।
  • अमिताभ की पहला वेतन पाँच सौ रुपए था और कलकत्ता छोड़ते समय उनका वेतन एक हजार छः सौ अस्सी रुपए प्रति माह था।
  • हरिवंश राय बच्चन के लंदन जाते समय अमिताभ ने लंदन से अपने लिए एक बंदूक लाने को कहा था।
  • अमिताभ और अजिताभ कलकत्ता निवास के समय बहुत नाटक-फ़िल्में देखते थे, किंतु मुंबइया मसाला सिनेमा के कटु आलोचक थे।
  • अमिताभ का अपनी मित्र मंडली में और सामूहिक लंच के समय वनमैन-शो होता था।
  • अमिताभ का मुंबई के रूपतारा स्टूडियो में स्क्रीन टेस्ट फ़िल्मकार मोहन सहगल ने किया था। उसका परिणाम आज तक अमिताभ को नहीं बताया गया है।
  • ख्वाजा अहमद अब्बास ने जब फ़िल्म सात हिन्दुस्तानी के लिए अमिताभ बच्चन का चयन किया, तो उन्हें नहीं मालूम था कि यह डॉ. हरिवंशराय बच्चन के पुत्र हैं।
  • सात हिन्दुस्तानी फ़िल्म में काम करके अमिताभ को पाँच हजार रुपए मिले थे।
  • अमिताभ ने फ़िल्म सात हिन्दुस्तानी दिल्ली के शीला सिनेमा हॉल में अपने माता-पिता के साथ देखी थी। वह अपने पिता का कुर्ता-पायजामा पहनकर आए थे।
  • सात हिन्दुस्तानी देखकर मीना कुमारी ने अमिताभ की तारीफ की थी।
  • अभिनेता जलाल आगा की विज्ञापन कंपनी में अपनी आवाज के लिए अमिताभ को प्रति विज्ञापन पचास रुपए मिलते थे।
  • फ़िल्मों में काम की तलाश के समय अमिताभ वर्ली की सिटी बेकरी से बिस्किट-टोस्ट के कट-पीस आधे दाम में खरीदकर चाय के साथ खाते थे।
  • अमिताभ की आवाज के कारण सुनील दत्त ने फ़िल्म 'रेशमा और शेरा' में उन्हें गूँगे का रोल इसलिए दिया था कि उनकी संवाद अदायगी कमजोर साबित न हो?
  • वहीदा रहमान को अमिताभ अपनी सर्वोत्तम पसंद की अभिनेत्री मानते हैं। लेकिन वहीदा की शिकायत है कि अमिताभ को फ़िल्म लावारिस का गाना- मेरे अँगने में तुम्हारा क्या काम है- नहीं गाना चाहिए था।
  • चरित्र अभिनेता ओमप्रकाश और खलनायक प्राण ने यह घोषणा की थी कि यह कलाकार एक दिन सुपर सितारा बनेगा।
  • फ़िल्म जंजीर (1973) के पहले लगातार कई फ़िल्में पिट जाने से अमिताभ को फ़िल्म इंडस्ट्री में असफल हीरो माना जाने लगा था।
  • उनका फ़िल्मों में मनपसंद नाम विजय रहा और 20 से ज्यादा फ़िल्मों में ये नाम इस्तेमाल किया।
  • फ़िल्म 'कुली' में काम करते वक़्त उन्हें आँतों में गहरी चोट लगी और वे मौत के मुँह में जाते जाते बाल बाल बचे। उनके लिए हज़ारों करोड़ों दर्शकों ने मन्नतें मांगी।
  • अभिनेत्री 'निरूपा रॉय' ने अधिकतम फ़िल्मों में उनकी माँ का किरदार निभाया।
  • 1996 में उन्होंने संगीत एल्बम 'एबी बेबी' रिलीज़ किया।
  • वे ही एक अभिनेता है जिन्होंने लगातार 15 साल तक हर साल कम से कम एक सफल फ़िल्म दी।


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टीका टिप्पणी

  1. अमिताभ का बचपन (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 10 दिसम्बर, 2011।
  2. अमिताभ : कलकत्ता के वो साढ़े पाँच साल (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 10 दिसम्बर, 2011।
  3. जीरो थे हीरो अमिताभ (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 10 दिसम्बर, 2011।
  4. क्रुद्ध नौजवान
  5. बहुतों के आदर्श हैं अमिताभ बच्चन, उनके आदर्श दिलीप कुमार (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 10 दिसम्बर, 2011।

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