देश में हुए 1998 के आम चुनाव में किसी भी पार्टी को पूरी तरह बहुमत नहीं मिला था, लेकिन एआईडीएमके के समर्थन से एनडीए ने केंद्र में सरकार बनाई थी। 13 महीने के बाद एआईडीएमके ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और सरकार अल्पमत में आ गई। राष्ट्रपति ने सरकार को अपना बहुमत साबित करने के लिए कहा। बसपा सुप्रीमो मायावती ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लेने की बात कही थी, लेकिन आखिरी वक्त पर उन्होंने सदन में जाकर सरकार के खिलाफ वोट दिया।[1]
17 अप्रैल1999 को लोकसभा अविश्वास प्रस्ताव पर जब वोटिंग हुई, तब सरकार एक ही वोट से हार गई और इस तरह सरकार गिर गई। उस वक्त ओडिशा के मुख्यमंत्री गिरधर गमांग ने सरकार के खिलाफ वोट दिया। जब गिरिधर गमांग ओडिशा के मुख्यमंत्री बने, तब सांसद भी थे; लेकिन विधायक नहीं थे। छह महीने के अंदर उनको विधायक बनकर मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल को आगे बढ़ाना था। सांसद के पद से उन्होंने इस्तीफ़ा नहीं दिया था। सांसद के रूप में गिरिधर गमांग वोट देने पहुंचे और कांग्रेस के सदस्य होने के नाते सरकार के खिलाफ वोट दिया। किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि सरकार एक ही वोट से गिर जाएगी और जब ऐसा हो गया तो गिरिधर गमांग सुर्खियों में आ गए। मुख्यमंत्री रहते हुए वोट देने के लिए पहुंचने पर उनकी आलोचना भी हुई थी।