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एक स्थानीय किंवदंती के अनुसार यह स्थान [[वाल्मीकि|वाल्मीकि ऋषि]] के नाम पर बलिया कहलाता है। इनकी स्मृति में एक मंदिर भी यहाँ था, जो अब विद्यमान नहीं है। नगर के उत्तर में धर्मारण्य नामक एक ताल है, जिसके निकट अति प्राचीन काल में [[बौद्ध|बौद्धों]] का एक 'संघाराम' स्थित था। इसका वर्णन चीनी यात्री [[फ़ाह्यान]] ने 'विशालशांति' नाम से किया है। [[युवानच्वांग]] ने भी इस संघाराम का वर्णन करते हुए यहाँ अविद्वकर्ण साधुओं का निवास बताया है। धर्मारण्य पोखर के निकट [[भृगु]] का [[आश्रम]] बताया जाता है। इसकी स्थापना [[बौद्ध धर्म]] की अवनति के पश्चात प्राचीन संघाराम के स्थान पर की गई होगी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=612|url=}}</ref>
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एक स्थानीय किंवदंती के अनुसार यह स्थान [[वाल्मीकि|वाल्मीकि ऋषि]] के नाम पर बलिया कहलाता है। इनकी स्मृति में एक मंदिर भी यहाँ था, जो अब विद्यमान नहीं है। नगर के उत्तर में धर्मारण्य नामक एक ताल है, जिसके निकट अति प्राचीन काल में [[बौद्ध|बौद्धों]] का एक 'संघाराम' स्थित था। इसका वर्णन चीनी यात्री [[फ़ाह्यान]] ने 'विशालशांति' नाम से किया है। [[युवानच्वांग]] ने भी इस संघाराम का वर्णन करते हुए यहाँ अविद्वकर्ण साधुओं का निवास बताया है। धर्मारण्य पोखर के निकट [[भृगु]] का [[आश्रम]] बताया जाता है। इसकी स्थापना [[बौद्ध धर्म]] की अवनति के पश्चात् प्राचीन संघाराम के स्थान पर की गई होगी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=612|url=}}</ref>
 
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बलिया में एक महाविद्यालय भी है। प्रतिवर्ष बलिया में पशु मेले का भी आयोजन होता है। बलिया का क्षेत्र [[गंगा]] और [[घाघरा नदी|घाघरा]] के बीच के जलोढ़ मैदानों में स्थित है। अक्सर बाढ़ग्रस्त रहने वाले इस उपजाऊ क्षेत्र में [[चावल]], [[जौ]], [[मटर]], [[ज्वार]]-[[बाजरा]], [[दाल|दालें]], [[तिलहन]] और [[गन्ना]] बड़ी मात्रा में उगाया जाता है।
 
बलिया में एक महाविद्यालय भी है। प्रतिवर्ष बलिया में पशु मेले का भी आयोजन होता है। बलिया का क्षेत्र [[गंगा]] और [[घाघरा नदी|घाघरा]] के बीच के जलोढ़ मैदानों में स्थित है। अक्सर बाढ़ग्रस्त रहने वाले इस उपजाऊ क्षेत्र में [[चावल]], [[जौ]], [[मटर]], [[ज्वार]]-[[बाजरा]], [[दाल|दालें]], [[तिलहन]] और [[गन्ना]] बड़ी मात्रा में उगाया जाता है।

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बलिया बिहार राज्य से लगे पूर्वी उत्तर प्रदेश राज्य का एक भाग है। बलिया नगर वाराणसी (भूतपूर्व बनारस) के पूर्वोत्तर में 120 कि.मी. कि दूरी पर गंगा नदी के किनारे स्थित है। प्राचीन आवासीय क्षेत्र रहे इस नगर को कई बार नदी के बहाव में आए परिवर्तनों के कारण उत्तर की ओर ले जाना पड़ा। बलिया, वाराणसी और अन्य उत्तर भारतीय शहरों से रेलमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है।

इतिहास

एक स्थानीय किंवदंती के अनुसार यह स्थान वाल्मीकि ऋषि के नाम पर बलिया कहलाता है। इनकी स्मृति में एक मंदिर भी यहाँ था, जो अब विद्यमान नहीं है। नगर के उत्तर में धर्मारण्य नामक एक ताल है, जिसके निकट अति प्राचीन काल में बौद्धों का एक 'संघाराम' स्थित था। इसका वर्णन चीनी यात्री फ़ाह्यान ने 'विशालशांति' नाम से किया है। युवानच्वांग ने भी इस संघाराम का वर्णन करते हुए यहाँ अविद्वकर्ण साधुओं का निवास बताया है। धर्मारण्य पोखर के निकट भृगु का आश्रम बताया जाता है। इसकी स्थापना बौद्ध धर्म की अवनति के पश्चात् प्राचीन संघाराम के स्थान पर की गई होगी।[1]

कृषि

बलिया में एक महाविद्यालय भी है। प्रतिवर्ष बलिया में पशु मेले का भी आयोजन होता है। बलिया का क्षेत्र गंगा और घाघरा के बीच के जलोढ़ मैदानों में स्थित है। अक्सर बाढ़ग्रस्त रहने वाले इस उपजाऊ क्षेत्र में चावल, जौ, मटर, ज्वार-बाजरा, दालें, तिलहन और गन्ना बड़ी मात्रा में उगाया जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 612 |
  • ऐतिहासिक स्थानावली | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख