अमोनिया

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  • (अंग्रेज़ी:Ammonia) अमोनिया गैस सर्वप्रथम 1771 में प्रीस्टले ने नौसादर (अमोनिया क्लोराइड) को चूने के सार्थ गर्म करके प्राप्त की थी।
  • यह इसके विभिन्न लवणों के रूप में जीव-जंतुओं व पेड़-पौधों के सड़ने व ज्वालामुखी पर्वतों से निकली राख में पायी जाती है।
  • औद्योगिक रूप से अमोनिया का निर्माण हैबर प्रक्रिया के द्वारा किया जाता है।
  • यह एक तीक्ष्ण गंध वाली गैस है, व वायु से कुछ हल्की होती है।
  • अमोनिया का उपयोग बर्फ़ बनाने के कारखानों, धुलायी तथा उर्वरक के रूप में किया जाता है।
  • अमोनिया एक क्षारीय गैस है तथा जल में घुलकर अमोनिया हाइड्राक्साइड बनाती है।
  • कृत्रिम रेशे व आँसू गैस बनाने में भी अमोनिया गैस का प्रयोग किया जाता है।

अमोनिया तीव्र तथा विशेष प्रकार की तीक्ष्ण गंधवाली गैस है। इसके कुछ यौगिक, विशेषकर नौसादर (साल अमोनिएक, या अमोनियम क्लोराइड), बहुत पहले ही ज्ञात थे। परंतु स्वतंत्र अमोनिया गैस के अस्तित्व के बारे में ठीक ज्ञान 1774 ई. में जे. प्रीस्टली द्वारा इसे तैयार किए जाने पर हुआ। इस गैस का नाम उन्होंने 'एल्कलाइन एयर' रखा। 1777 ई. में सी. डब्ल्यू. शेले ने इस गैस में नाइट्रोजन की उपस्थिति बताई; 1785 में सी. एल. बेरटोले ने विद्युत्‌ चिनगारी द्वारा इसे विघटित कर इसमें हाइड्रोजन तथा नाइट्रोजन की मात्राएँ ज्ञात कीं।

अमोनिया कई विधियों से स्वत: बनती है और बनाई जा सकती है। अल्प मात्रा में अमोनिया हवा तथा वर्षा के जल में पाई जाती है; नदी, तालाब और समुद्र के जल में भी (समुद्रजल में लगभग 0.1 मिलीग्राम प्रति लीटर की मात्रा में) यह मिलती है। पशुओं शारीरिक भाग एवं पौधों के सड़ने से (नाइट्रोजन युक्त कार्बनिक पदार्थों के विघटन द्वारा) अमोनिया तथा इसके लवण बनते हैं। अमानिया के कुछ यौगिक खनिजों में, मिट्टी में और फलों के रस या पौधों के अन्य भागों में भी पाए जाते हैं।

अमोनिया बनाने की विधियाँ विशेषत: दो प्रकार की हैं - नाइट्रोजन और हाइड्रोजन तत्व के सीधे संयोग से अथवा नाइट्रोजन या अमोनिया के यौगिकों से। नाइट्रोजन तथा हाइड्रोजन के गैसीय मिश्रण में विद्युत्‌ चिनगारी, या डिस्चार्ज, उत्पन्न करने से अमोनिया बनती है, जिसका समीकरण यह है: ना2+ 3हा2«2 नाहा3 (ना=नाइट्रोजन, हा= हाइड्रोजन)। यह क्रिया उत्प्रेरक (कैटालिस्ट) की अनुपस्थिति में न्यून मात्रा में होती है। इस प्रत्यावर्ती क्रिया के रासायनिक संतुलन के विशेष अध्ययन से हाबर ने ज्ञात किया कि अमोनिया की मात्रा गैसीय मिश्रण की दाब तथा ताप पर विशेष रूप से निर्भर है।

अमोनिया के औद्योगिक उत्पादन के लिए हाबर की तथा कई अन्य संशोधित विधियाँ हैं (जैसे कैसले, क्लाउड इत्यादि की)। इनमें विशेषकर गैस की दाब, ताप, उत्प्रेरक के चुनाव तथा तैयार अमोनिया के अलग करने के ढंग में भिन्नता है। साधारणतया 200-1000 वायुमंडल (ऐटमॉस्फियर) की दाब, 400-6000 सेंटीग्रेड का ताप, लोह, आस्मियम, मोलिब्डिनम, यूरेनिया, टाइटेनियम, टंग्स्टन इत्यादि जैसे उत्प्रेरक तथा अल्कलाइन आक्साइड (जैसे सोडियम या पोटैसियम आक्साइड) के साथ उसके समर्थक (प्रोमोटर), जैसे ऐल्यूमिनियम, सिलिकन, ज़िरकोनियम आदि के आक्साइड का उपयोग होता है। हाइड्रोजन प्राप्त करने के स्रोत, नाइट्रोजन प्राप्त करने के लिए हवा से आक्सीजन अलग करने की विधि तथा इनको शुद्ध करने की रीति में भी अंतर है।

नाइट्रोजन के आक्साइड, नाइट्रिक अम्ल एवं नाइट्रेट के अवकरण से अमोनिया प्राप्त की जा सकती है। उदाहरणत:, हाइड्रोजन के साथ नाइट्रिक आक्साइड गरम प्लैटिनम-स्पांज अथवा प्लैटिनाइज्ड-ऐस्बेस्टस पर प्रवाहित करने से अमोनिया प्राप्त होती है। इसी प्रकार नाइट्रिक अम्ल से भी अमोनिया बनती है। इसमें गरम नली में रध्रंमय पत्थर (जैसे प्यूमिसस्टोन) की सतह की उपस्थिति तथा ताँबा, जस्ता, राँगा के आक्साइड या फेरिक आक्साइड आदि उत्प्रेरक की आवश्यकता पड़ती है। नाइट्रस तथा नाइट्रिक अम्ल पर हाइड्रोजन सल्फाइड, राँगा, लोहा, या जस्ता की क्रिया से भी अमोनिया मिलती है। नाइट्रेट या नाइट्राइट लवण के क्षारसहित घोल में जस्ता, जस्ता तथा प्लैटिनम, ऐल्यूमिनियम या सोडियम अमैल्गम की क्रिया से भी अमोनिया बनती है (इन लवणों की मात्रा ज्ञात करने के विचार से यह क्रिया महत्वपूर्ण है)। नाइट्रेट तथा नाइट्राइट का अवकरण जीवाणुओं द्वारा भी होता है।

नाइट्रोजन के कुछ यौगिक जैसे फास्फाइड, सल्फाइड, आयोडाइड या क्लोराइड पर और कुछ धातुओं (जैसे लिथियम, कैल्सियम, मैग्नीशियम) के नाइट्राइट पर पानी की क्रिया से अमोनिया बनती है। कई साइनाइड भी अतितप्त (सुपरहीटेड) भाप द्वारा अमोनिया बनाते हैं। कैल्सियम साइनामाइड तथा पानी की क्रिया द्वारा हवा का नाइट्रोजन अमोनिया जैसे उपयोगी रासायनिक यौगिक में परिवर्तित किया जा सकता है। यह फ्रैंक तथा कैरो की विधि है।

नाइट्रोजन युक्त कुछ कार्बनिक यौगिकों से भी अमोनिया प्राप्त होती है। प्रारंभ में इसका मूल स्रोत मूत्र तथा पशुओं का सींग, खुर इत्यादि था। साधारण मूत्र में 20 से 25 ग्राम प्रतिलीटर यूरिया होती है सड़ने पर अमोनियम कारबोनेट बनाता है। चमड़ा, सींग, बाल तथा पशुओं के अन्य भागों को बंद बर्तनों में गरम करने से अमोनिया तथा काला तेल सा पदार्थ, जिसे डिपेल ऑयल कहते हैं, प्राप्त होता है और जांतव कोयल (ऐनिमल चारकोल) बच रहता है। पत्थर के कोयले को गरम करने पर (कोयले के संयुक्त नाइट्रोजन से) अमोनिया प्राप्त होती है। अत: कोल गैस, जलाने योग्य कोयला (कोक) बनाने में प्राप्त गैस, प्रोड्यूसर गैस और ब्लास्ट फरनेस गैस से अमोनिया उपजात (बाइप्रॉडक्ट) के रूप में मिलती है। प्रयोगशाला में साधारणतया नौसादर की तीव्र या बुझाए सूखे चूने के साथ गरम करके अमोनिया गैस तैयार की जाती है।

अमोनिया के घोल के कई बार आसवन से, अथवा द्रव अमोनिया से प्रभावति आसवन (फ्ऱैक्शनल डिस्टिलेशन) द्वारा प्राप्त गैस को पिघलाते हुए ऐल्कैली हाइड्राक्साइड में सुखाने से शुद्ध अमोनिया मिलती है। अमोनिया से क्रिया करने के कारण इस कार्य के लिए सामान्य सुखानेवाली वस्तएँ, जैसे कैलिसयम क्लोराइड, गंधक का अम्ल तथा फ़ास्फ़ोरस पेंटाक्साइड, प्रयुक्त नहीं की जा सकती हैं।

गुण - अमोनिया रंगहीन गैस है। इसे सहसा सूँघने पर आँख में आँसू आ जाता है। अधिक मात्रा से घुटन उत्पन्न होती है तथा इस गैस में बंद करने से जानवर की मृत्यु हो जाती है। गैस का घनत्व 0.5963 (वायु=1), या 0.5395 (आक्सीजन=1), या 0.7710 ग्राम प्रति लीटर (0° सेंटीग्रेड, 760 मिलीमीटर दाब पर) होता है। अमोनिया गैस सरलता से रंगहीन तरल तथा बर्फ सदृश ठोस में परिवर्तित की जा सकती है। क्रांतिक (क्रिटिकल) ताप 132.4° सें. दाब 115.5 वायुमंडल तथा तरल का घनत्व 0.235 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है। अमोनिया का द्रवणांक-77.7 सें. तथा क्वथनांक-33.35° सें. है, संगलन उष्मा (-75° सें. पर) 108.1 तथा वाष्पायन उष्मा-33.4°, -20°, -10° तथा 0° सें. पर क्रमानुसार 327.1, 317.6, 309.7 और 301.6 कैलारी प्रति ग्राम है। (इस लेख में सर्वत्र कैलोरी से ग्राम-कैलारी (15° सें.) समझना चाहिए।)

पानी, एलकोहल तथा बहुत से अन्य द्रवों में अमोनिया घुलनशील है। पानी में इसकी घुलनशीलता अत्यधिक है। 00 सें. तथा 760 मिलीमीटर पर पानी अपने आयतन के हजार गुने से भी अधिक अमोनिया घोल लेता है। इस क्रिया में ताप उत्पन्न होता है। ठंडे घोल को गरम करके अमोनिया अंशत: या पूर्णत: बाहर निकाली जा सकती है। अमोनिया का वाष्प दबाव विभिन्न तापों पर इस प्रकार है: 1 10 40 100 400 760 मिली. मि. -109.1 -91.9 -79.2 -68.4 -45.4 -36.6 सें.-अमोनिया का विशिष्ट ताप ठोस के लिए (-103° सें. से-188° सें. तक ताप पर) 0.502 है, द्रव के लिए (-60° सें. पर) 1.047 है, तथा गैस के लिए (15° सें. और 1 वायुमंडल की स्थिर दाब पर) 0.5232 (कैलोरी/ग्राम/डिगरी सें.) है; स्थिर दाब तथा स्थिर आयतन के विशिष्ट ताप का अनुपात (अर्थात l) =1.310 है। गैेस तथा द्रव अमोनिया की निर्माण उष्मा (18° सें. तथा 1 वायुमंडल दाब पर) क्रमानुसार 10.94 तथा 15.84 किलो-कैलोरी है।

आक्सीजन में अमोनिया गैस जलती है, जिससे नाइट्रोजन, जल एवं अल्प मात्रा में अमोनियम नाइट्रेट और नाइट्रोजन पराक्साइड बनते है। गरम नली में आक्सीजन के साथ अमोनिया प्रवाहित करने से नाइट्रोजन के आक्साइड हैं। यह क्रिया उत्प्रेरक (जैसे लोहा, ताँबा, निकल और विशेषकर प्लैटिनम) की उपस्थिति में भी होती है। अमोनिया से शोरे का अम्ल बनाने की ऑस्टवाल्ट विधि इसी पर आधारित है।

गरम करने अथवा विद्युत्‌ चिनगारी या डिस्चार्ज से अमोनिया स्वत: नाइट्रोजन तथा हाइड्रोजन में विघटित होती है। इस क्रिया की गति (अथवा विघटित अमोनिया की मात्रा) ताप, स्पर्श पृष्ठ की प्रकृति एवं उत्प्रेरक की उपस्थिति पर निर्भर है। अल्ट्रावायलेट या रेडियम के ऐल्फा किरण से भी अमोनिया का विघटन होता है। क्लोरीन में गैस शीघ्रता से जलती है। इस क्रिया में अमोनियम क्लोराइड तथा नाइट्रोजन बनते हैं। ब्रोमीन तथा आयोडीन के साथ भी यौगिक बनते हैं। वाष्पीय गंधक को अमोनिया के साथ गरम नली में प्रवाहित करने पर अमोनियम मोनो तथा पॉली-सल्फाइड प्राप्त होते हैं। गरम कार्बन पर अमोनिया की क्रिया से साइनाइड बनता है। कुछ धातुओं को (जैसे मैग्नीशियम, जस्ता, टाइटेनियम इत्यादि का) अमोनिया में गरम करने पर नाइट्राइड बनते हैं। इसी तरह गरम ऐल्कली धातु सूखी अमोनिया से अमाइड बनाते हैं,:- सोडियम अमाइड या सोडामाइड, पोटैशामाइड इत्यादि। बहुत से लवण अमोनिया के संयोग से नए यौगिक बनाते हैं, जैसे कैल्सियम, जस्ता या चाँदी के क्लोराइड से उनके अमीनो-क्लोराइड प्राप्त होते हैं। इस तरह के कुछ यौगिक (जैसे मैंगनीज़ अमीनो-सल्फेट) हवा में रखने से और कुछ यौगिक (जैसे ज़िंक अमीनो सल्फेट) गरम करने से अमोनिया देते हैं। द्रव में रूपांतरण के लिए फैराडे ने इसी विधि द्वारा अमोनिया गैस प्राप्त की थी।

निम्न तापक्रम पर अध्ययन से ज्ञात हुआ कि पानी के साथ अमोनिया के दो हाइड्रेट, नाहा3. हा2 और (औ=आक्सीजन) (छोटे रंगहीन रवेवाला) और नाहा3, ½हा2 और (सुई के आकार रवेवाला), बनते हैं। अमोनिया का पानी में घोल क्षारीय है और अम्ल के साथ क्रिया करने पर अमोनियम लवण बनता है; जैसे अमोनियम क्लोराइड, अमोनियम नाइट्रेट, अमोनियम सल्फेट। अमोनिया के घोल में कुछ आक्साइड, हाइड्राक्साइड तथा लवण भी घुल जाते हैं, जैसे सिल्वर आक्साइड, कापर हाइड्राक्साइड, सिल्वर क्लोराइड। इस प्रकार के कापर हाइड्राक्साइड का घोल नकली रेशम (रेयन) बनाने में उपयुक्त होने के कारण औद्योगिक महत्व की वस्तु है।

द्रव अमोनिया अच्छा घोलक है। इसमें बहुत सी धातुएँ, लवण और अन्य यौगिक घुल जाते हैं। कुछ लवण, जो पानी में सूक्ष्म मात्रा में ही घुल सकते हैं, अमोनिया में अच्छी तरह घुल जाते हैं; जैसे सिवलर आयोडाइड। बहुत से कार्बनिक यौगिक भी अमोनिया में घुलते हैं। अमोनिया के घोल में यौगिकों की संगत (ऐसोसिएशन) करने अथवा घोलक के साथ यौगिक बनाने की प्रवृत्ति है।

कुछ अम्ल अमोनियम लवण के रूप में द्रव अमोनिया में घुल जाते हैं तथ पोटैसियम, सोडियम और मैगनीशियम धातु की क्रिया से हाइड्रोजन देते हैं, जैसे ऐसिटामाइड, सोडियम अमाइड तथा पोटैशियम ऐसिटामाइड। अमोनिया के घोल में भी इनसे विभक्त अयन क्रिया करते हैं और अम्ल तथा क्षार मिलकर लवण बनाते हैं।[1]

अमोनिया की पहचान उसकी विशेष गंध या गीले लाल लिटमस को नील करने या हल्दी के कागज को भूरा लाल करने अथवा नेसलर के रीएजेंट में भूरा रंग उत्पन्न करने से की जाती है। किसी मंद क्षारसूचक, जैसे मिथाइल आरेंज या मिथाइल रेड की उपस्थिति में प्रामाणिक अम्ल से अनुमापन (टाइट्रेशन) करने अथवा क्लोरोप्लैटिनिक अम्ल से प्राप्त अवक्षेप को तौलकर (या जलाने पर प्राप्त प्लैटिनम को तौलकर) घोल में अमोनिया की मात्रा ज्ञात की जाती है।[2]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 208-10 |
  2. सं.ग्रं.-जे.एफ़. थॉर्प और एम.ए. ह्वाइटले: थॉर्प्स डिक्शनरी ऑव ऐप्लाइड केमिस्ट्री: जे.आर. पारटिंगटन: ए टेक्स्टबुक ऑव अनआर्गैनिक केमिस्ट्री (1950)।

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