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'''वसु बारस''' अथवा 'वसु बरस' अथवा 'वसु बारस' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Vasu Baras'') भारतीय राज्य [[महाराष्ट्र]] की संस्कृति से जुड़ा प्रमुख पर्व है। यह महाराष्ट्र में [[दीपावली]] के त्योहार की शुरुआत का प्रतीक है। यह पर्व [[कार्तिक|कार्तिक माह]] में [[कृष्ण पक्ष]] की [[द्वादशी|द्वादशी तिथि]] को मनाया जाता है।
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==विस्तार==
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==महत्त्व==
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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*[https://www.smitcreation.com/govatsa-dwadashi-vasu-baras-hindi-wishes-messages-images/ गोवत्स द्वादशी / बछ बारस हिन्दी शुभकामना संदेश इमेजेस]
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*[https://hindi.mpanchang.com/festivals/vasu-baras/ 2022 वसु बरस]
 
==संबंधित लेख==
 
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10:29, 21 अक्टूबर 2022 के समय का अवतरण

वसु बारस
Vasu-Baras.jpg
विवरण 'वसु बारस' महाराष्ट्र में दीपावली के त्योहार की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने परिवार की अच्छी सेहत एवं ऐश्वर्य के लिए श्रीकृष्ण के साथ-साथ गायों की पूजा-अर्चना करती हैं।
अन्य नाम वसु बरस', 'वसु बारस', 'बछ बारस'
देश भारत
तिथि कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि
संबंधित लेख गोवत्स द्वादशी, दीपावली, श्रीकृष्ण
अन्य जानकारी इस पर्व को गुजरात एवं आंध्र प्रदेश में ‘वाघ बरस’ तथा देश के अन्य हिस्सों में ‘गुरु द्वादशी’ या ‘गोवत्स द्वादशी’ के नाम से भी मनाया जाता है।
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विस्तार

महाराष्ट्र में दीपावली के महापर्व की शुरुआत ‘वसु बारस’ के रूप में होती है। कार्तिक मास की द्वादशी के दिन मनाये जाने वाले इस पर्व को गुजरात एवं आंध्र प्रदेश में ‘वाघ बरस’ तथा देश के अन्य हिस्सों में ‘गुरु द्वादशी’ या ‘गोवत्स द्वादशी’ के नाम से भी मनाया जाता है। इस पर्व को मनाने का मुख्य औचित्य कृषि-धन का आधार यानी गाय को सम्मानित करना है। हिन्दू धर्म में गायों को मानव जाति को पोषण के लिए बहुत पवित्र और माँ समान माना जाता है।[1]

इस दिन विवाहित महिलाएं अपने परिवार की अच्छी सेहत एवं ऐश्वर्य के लिए श्रीकृष्ण के साथ-साथ गायों की पूजा-अर्चना करती हैं।

पूजा-विधान

कार्तिक के कृष्ण पक्ष की द्वाद्वशी के दिन प्रातः काल गाय और बछड़े को स्नान कराया जाता है। यह पूजा मुख्य रूप से गोधुली बेला में की जाती है, जब सूर्य देवता पूरी तरह अस्त नहीं हुए हों। पूजा से पूर्व उन्हें रंग-बिरंगे कपड़े एवं फूलों की माला पहनाई जाती है। उनके मस्तक पर सिंदूर अथवा हल्दी का तिलक लगाया जाता है।

कुछ स्थानों पर गाय एवं बछड़े की मूर्ति रखी जाती है। उन्हें भोग स्वरूप गेहूँ के उत्पाद, चना और मूंग की फलियाँ खिलाई जाती हैं। इसके बाद आरती उतारी जाती है, चूंकि गाय भारत के कई गांवों में मातृत्व और आजीविका का मुख्य स्त्रोत हैं, इसलिए इस पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन महिलाएं अपने बच्चों की भलाई के लिए व्रत रखती हैं।

महत्त्व

भविष्यपुराण में वसु बारस (गोवत्स द्वादशी) का महात्म्य उल्लेखित है। इसे बछ बारस का पर्व भी कहते हैं। इस पर्व को नंदिनी व्रत के नाम से भी मनाया जाता है, क्योंकि नंदिनी और नंदी (बैल) दोनों को शैव परंपरा में काफी पवित्र माना जाता है। यह पर्व मूलतः मानव जीवन के प्रति गौ-वंशों को आभार प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। इसीलिए इस दिन गाय और बछियों की संयुक्त पूजा की जाती है। पूजा के दरम्यान गेहूं से तैयार उत्पादों को उन्हें खिलाया जाता है।[1]

मान्यता है कि गोवत्स द्वादशी की सबसे पहली पूजा राजा उत्तानपाद (स्वयंभुव मनु के पुत्र) एवं उनकी पत्नी सुनीति ने उपवास रखकर मनाया था। उनकी प्रार्थना एवं उपवास के कारण उन्हें ध्रुव नामक सुपुत्र प्राप्त हुआ था। वसु बारस के दिन पूजा करने वाले गेहूँ और दूध से बने उत्पादों का सेवन नहीं करते। कुछ उत्तरी राज्यों में इस दिन को वाघ के रूप में संदर्भित किया जाता है, जिसका अर्थ है वित्तीय ऋणों को चुकाना। इस दिन व्यवसायी अपने खातों की साफ-सफाई करते हैं। इस दिन नए खातों में लेन-देन नहीं करते। मान्यता है कि इन व्रत और पूजा से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 कब है वासु बरस का पर्व? जानें इसकी पूजा-विधान एवं महत्व! (हिंदी) hindi.latestly.com। अभिगमन तिथि: 21 अक्टूबर, 2022।

बाहरी कड़ियाँ

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