"भुवनेश्वर": अवतरणों में अंतर
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'''भुवनेश्वर''', [[उड़ीसा]] की प्राचीन राजधानी, शहर और पूर्वी [[भारत]] का एक राज्य है। इसको पहले [[एकाम्रकानन]] भी कहते थे। भुवनेश्वर को बहुत प्राचीन काल से ही [[उत्कल]] की राजधानी बने रहने का सौभाग्य मिला है। | '''भुवनेश्वर''', [[उड़ीसा]] की प्राचीन राजधानी, शहर और पूर्वी [[भारत]] का एक राज्य है। इसको पहले [[एकाम्रकानन]] भी कहते थे। भुवनेश्वर को बहुत प्राचीन काल से ही [[उत्कल]] की राजधानी बने रहने का सौभाग्य मिला है। | ||
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केसरी वंशीय राजाओं ने चौथी शती ई. के उत्तरार्ध से 11वीं शती ई. के पूर्वार्ध तक, प्रायः 670 वर्ष या 44 पीढ़ियों तक उड़ीसा पर शासन किया और इस लम्बी अवधि में उनकी राजधानी अधिकतर भुवनेश्वर में ही रही। एक अनुश्रुति के अनुसार राजा | केसरी वंशीय राजाओं ने चौथी शती ई. के उत्तरार्ध से 11वीं शती ई. के पूर्वार्ध तक, प्रायः 670 वर्ष या 44 पीढ़ियों तक उड़ीसा पर शासन किया और इस लम्बी अवधि में उनकी राजधानी अधिकतर भुवनेश्वर में ही रही। एक अनुश्रुति के अनुसार राजा ययातिकेसरी ने 474 ई. में भुवनेश्वर में पहली बार अपनी राजधानी बनाई थी। कहा जाता है कि केसरीनरेशों ने भुवनेश्वर को लगभग सात सहस्र सुन्दर मन्दिरों से अलंकृत किया था। अब कुल केवल पाँच सौ मन्दिरों के ही अवशेष विद्यमान हैं। इनका निर्माण काल 500 ई. से 1100 ई. तक है। | ||
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इनमें से विंदु सरोवर और ब्रह्मकुंड में स्नान तथा अन्य तीर्थों में मार्जन तर्पण होता है। ब्रह्मकुंड के घेरे में ही अशोक कुण्ड, मेघतीर्थ अबालु तीर्थ हैं। भुवनेश्वर बाज़ार के समीप विंदू सरोवर है। वहाँ से दो फर्लांग पर ब्रह्मकुण्ड है। इसमें [[गोमुख]] से बराबर [[जल]] आता है तथा अन्य मार्ग से निकलता रहता है। कोटितीर्थ मुख्यमार्ग के समीप है और देवो पापहरा तीर्थ मंदिर में ही है। | |||
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भुवनेश्वर, उड़ीसा की प्राचीन राजधानी, शहर और पूर्वी भारत का एक राज्य है। इसको पहले एकाम्रकानन भी कहते थे। भुवनेश्वर को बहुत प्राचीन काल से ही उत्कल की राजधानी बने रहने का सौभाग्य मिला है।
ऐतिहासिकता
केसरी वंशीय राजाओं ने चौथी शती ई. के उत्तरार्ध से 11वीं शती ई. के पूर्वार्ध तक, प्रायः 670 वर्ष या 44 पीढ़ियों तक उड़ीसा पर शासन किया और इस लम्बी अवधि में उनकी राजधानी अधिकतर भुवनेश्वर में ही रही। एक अनुश्रुति के अनुसार राजा ययातिकेसरी ने 474 ई. में भुवनेश्वर में पहली बार अपनी राजधानी बनाई थी। कहा जाता है कि केसरीनरेशों ने भुवनेश्वर को लगभग सात सहस्र सुन्दर मन्दिरों से अलंकृत किया था। अब कुल केवल पाँच सौ मन्दिरों के ही अवशेष विद्यमान हैं। इनका निर्माण काल 500 ई. से 1100 ई. तक है।
मन्दिरों का नगर
इसके ऐतिहासिक एवं तीसरी सदी ई.पू. के प्रसिद्ध कलिंग युद्ध के युद्धस्थल होने की जानकारी समीप स्थित धौलगिरि में प्राप्त शिलालेखों से मिलती है। पाँचवीं तथा दसवीं शताब्दी के मध्य में कई हिन्दू राजवंशों की प्रान्तीय राजधानी और शैव मत का प्रमुख धार्मिक केन्द्र रहा। 7वीं से 14वीं शताब्दी के मध्य निर्मित अनेक मन्दिर (परशुरामेश्वर, मुक्तेश्वर, राजारानी, लिंगराज, और अनन्त वासुदेव) ओड़िसी स्थापत्य के प्रत्येक दौर का प्रतिनिधित्व करने वाली मंजूषाएँ हैं।

लिंगराज मन्दिर
यहाँ का मुख्य मन्दिर लिंगराज है, जिसे ललाटेडुकेशरी (617-657 ई.) ने बनवाया था। यह जगत् प्रसिद्ध मन्दिर उत्तरी भारत के मन्दिरों में रचना सौंदर्य तथा शोभा और अलंकरण की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इस मन्दिर का शिखर भारतीय मन्दिरों के शिखरों के विकास क्रम में प्रारम्भिक अवस्था का शिखर माना जाता है। यह नीचे तो प्रायः सीधा तथा समकोण है किन्तु ऊपर पहुँचकर धीरे-धीरे वक्र होता चला गया है और शीर्ष पर प्रायः वर्तुल दिखाई देता है।
अन्य निकटवर्ती तीर्थ
यहाँ स्नान के लिए तीर्थ 9 प्रसिद्ध हैं-
1. विंदु सरोवर 2. पाप नाशिनी 3. गंगा यमुना 4. कोटितीर्थ 5. देवीपापहरा 6. मेधतीर्थ 7. अलाबुतीर्थ 8. अशोक कुंड 9. ब्रह्मकुंड
इनमें से विंदु सरोवर और ब्रह्मकुंड में स्नान तथा अन्य तीर्थों में मार्जन तर्पण होता है। ब्रह्मकुंड के घेरे में ही अशोक कुण्ड, मेघतीर्थ अबालु तीर्थ हैं। भुवनेश्वर बाज़ार के समीप विंदू सरोवर है। वहाँ से दो फर्लांग पर ब्रह्मकुण्ड है। इसमें गोमुख से बराबर जल आता है तथा अन्य मार्ग से निकलता रहता है। कोटितीर्थ मुख्यमार्ग के समीप है और देवो पापहरा तीर्थ मंदिर में ही है।
वर्तमान भुवनेश्वर

आज वर्तमान भुवनेश्वर में एक तरफ़ पुराना शहर, जिससे लगभग 30 प्राचीन मन्दिर और दूसरी तरफ़ 1948 के बाद का सुनियोजित नगर क्षेत्र है, जिसे कटक से स्थानान्तरित करके नई राजधानी बनाया गया। इस नवनिर्मित क्षेत्र में सचिवालय व विधानसभा की इमारतों सहित अनेक सरकारी ईमारतें, प्रान्तीय संग्रहालय, उत्कल विश्वविद्यालय (जो पहले 1944 में कटक में संस्थापित हुआ था), प्रान्तीय कृषि एवं तकनीकी विश्वविद्यालय, क्षेत्रीय भौतिक अनुसंधान केन्द्र, अनेक महाविद्यालय, भव्य इस्कान मन्दिर (अंतराष्ट्रीय कृष्ण अनुयायी संघ द्वारा निर्मित) तथा अव्यवस्थित ढंग से बिखरे अनेक व्यापारिक केन्द्र हैं। समीप ही इससे लगकर पहाड़ों को काटकर बनाई गई खंडगिरि एवं उदयगिरि की गुफ़ाएँ, नन्दन कानन प्राणी एवं वनस्पति उद्यान एवं शिशुपालगढ़ के प्राचीन उत्खनित स्थान पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र हैं। शहर के मध्य में इन्दिरा गांधी की स्मृति में बनाया गया उद्यान है। भुवनेश्वर कोलकाता-चेन्नई राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है एवं दक्षिण-पूर्वी रेलमार्ग का एक प्रमुख केन्द्र है। यहाँ पर एक आधुनिक हवाई अड्डा है।
जनसंख्या
जनगणना (2001) के अनुसार भुवनेश्वर की जनसंख्या न. नि. क्षेत्र 6,47,302 है।
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वीथिका
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केदार गौरी मंदिर, भुवनेश्वर
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तपता पानी मंदिर, भुवनेश्वर
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राजारानी मन्दिर, भुवनेश्वर
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- (पुस्तक 'ऐतिहासिक स्थानावली' से) पेज नं. 647
- (पुस्तक 'भारत ज्ञानकोश' से) पेज नं. 231
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