श्याम सुंदर दास
श्याम सुंदर दास (जन्म- 14 जुलाई, 1876, वाराणसी, मृत्यु- 1945) प्रसिद्ध हिंदी सेवी के साथ-साथ साहित्यकार और संपादक भी थे। हिंदी का भंडार भरने के लिए उन्होंने कोश, इतिहास, भाषाविज्ञान, काव्य शास्त्र, शोधकार्य, पाठ्यपुस्तक और प्राचीन पांडुलिपयों की खोज जैसे महत्त्वपूर्ण काम किये।
परिचय
प्रसिद्ध हिंदी सेवी श्याम सुंदर दास जन्म 14 जुलाई, 1876 ई. वाराणसी में हुआ था। उन्होंने 1897 में बी.ए की परीक्षा पास की और काशी के हिंदू स्कूल में अध्यापक नियुक्त हो गए। बाद में कई वर्षों तक लखनऊ के कालीचरण स्कूल में हेडमास्टर रहे। 1921 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष पद पर उनकी नियुक्ति हुई। वे हिंदी के अनन्य प्रेमी थे। उन्होंने कोश, इतिहास, भाषाविज्ञान, काव्य शास्त्र, शोधकार्य, पाठ्यपुस्तक और प्राचीन पांडुलिपयों की खोज जैसे कार्य और हिंदी का भंडार भरने के लिए अपने जीवन के 50 वर्ष हिंदी की सेवा में लगाए। हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा डी. लिट् की मानद उपाधि से उन्हें नवाजा गया था।[1]
हिंदी प्रेम
हिंदी प्रेमी बाबू श्याम सुंदर दास को हिंदी से इतना लगाव था कि उन्होंने अपने जीवन के 50 वर्ष हिंदी की सेवा में लगा दिये। हिंदी में उस समय विश्वविद्यालय स्तर की पाठ्यपुस्तकों का अभाव था। इसकी पूर्ति के लिए उन्होंने स्वयं पाठ्य पुस्तकों की रचना की। ऐसे ग्रंथों में लेखक का नाम रहता था- श्याम सुंदर दास बी.ए.। उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर 'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' की स्थापना की। न्यायालयों में हिंदी के प्रवेश के लिये आंदोलन चलाया और हस्तलिखित ग्रंथों की खोज की। उन्होंने 'हिंदी शब्द सागर' का और 'सरस्वती' पत्रिका का संपादन किया।
कृतियां
श्याम सुंदर दास द्वारा रचित ग्रंथों की व्याख्या बहुत बड़ी है उनमें से कुछ मौलिक कृतियां इस प्रकार हैं-
- नागरी वर्णमाला
- हिंदी कोविद रत्नमाल
- साहित्यालोचन
- भाषा विज्ञान
- हिंदी भाषा का विकास आदि।
हस्तलिखित ग्रंथ
श्याम सुंदर दास के हस्तलिखित हिंदी ग्रंथों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
- गद्यकुसुमावली
- हिंदी भाषा और साहित्य
- गोस्वामी तुलसीदास
- रूपक रहस्य
- भाषा रहस्य
- हिंदी गध के निर्माता आदि।
संपादन कार्य
श्याम सुंदर दास ने 30 से अधिक ग्रंथों का संपादन किया। जिनमें प्रमुख इस प्रकार हैं-
- पृथ्वीराज रासो
- हिंदी वैज्ञानिक कोश
- विनीता विनोद
- बालविनोद
- हिंदी शब्द सागर
- दीनदयाल गिरि ग्रंथावली
- अशोक की धर्म लिपियां
- सतसई सप्तक
- मनोरंजन पुस्तक माला आदि।
उन्होंने जीवनभर विभिन्न विषयों पर रचनाएं प्रस्तुत कीं। उनके इस योगदान के लिए हिंदू विश्वविद्यालय ने उन्हें डी. लिट् की मानद उपाधि देकर सम्मानित किया था।
मृत्यु
प्रसिद्ध हिंदी सेवी बाबू श्याम सुंदर दास का 1945 में निधन हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 862 |
बाहरी कड़ियाँ
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