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'''वाचस्पति पाठक''' (जन्म- [[5 सितम्बर]], [[1905]], [[काशी]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[19 नवम्बर]], [[1980]]) का नाम प्रसिद्ध उपन्यासकारों के साथ लिया जाता है। इन्होंने 'कागज की टोपी' नामक कहानी से लोकप्रियता पाई थी।<ref>{{cite web |url=http://www.kashikatha.com/%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0/ |title=काशी के साहित्यकार|accessmonthday= 12 जनवरी|accessyear=2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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'''वाचस्पति पाठक''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Vachaspati Pathak'', जन्म: [[5 सितम्बर]], [[1905]] - मृत्यु: [[19 नवम्बर]], [[1980]]) का नाम प्रसिद्ध उपन्यासकारों के साथ लिया जाता है। इन्होंने 'कागज की टोपी' नामक [[कहानी]] से विशेष लोकप्रियता पाई थी। वाचस्पति पाठक अपने समय के एक महत्वपूर्ण कथाकार तो रहे ही, उल्लेखनीय संपादक भी रहे।
==जीवन परिचय==
काशी (वर्तमान [[बनारस]]) के नवाब गंज मुहल्ले में वाचस्पति पाठक जी का जन्म हुआ था। उन दिनों [[उपन्यासकार]] '[[प्रेमचन्द]]', '[[रायकृष्णदास]]' और '[[जयशंकर प्रसाद]]' की त्रिमूर्ति के तीन नवयुवक लेखकों का नाम [[काशी]] में अग्रणी था। उनमें '[[पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र']] और [[विनोद शंकर व्यास]] के साथ वाचस्पति पाठक का नाम भी अनन्य है। वाचस्पति पाठक जी ने ‘कागज की टोपी’ [[कहानी]] से प्रसिद्धि प्राप्त की थी। ‘द्वादशी’ तथा 'प्रदीप' नामक पुस्तकों में इनकी कहानियाँ संकलित हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.kashikatha.com/%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0/ |title=काशी के साहित्यकार|accessmonthday= 12 जनवरी|accessyear=2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
==साहित्यिक योगदान==
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==निधन==
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*‘द्वादशी’ तथा 'प्रदीप' नामक पुस्तकों में इनकी कहानियाँ संकलित हैं।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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09:44, 31 अगस्त 2014 का अवतरण

वाचस्पति पाठक वाचस्पति पाठक (अंग्रेज़ी: Vachaspati Pathak, जन्म: 5 सितम्बर, 1905 - मृत्यु: 19 नवम्बर, 1980) का नाम प्रसिद्ध उपन्यासकारों के साथ लिया जाता है। इन्होंने 'कागज की टोपी' नामक कहानी से विशेष लोकप्रियता पाई थी। वाचस्पति पाठक अपने समय के एक महत्वपूर्ण कथाकार तो रहे ही, उल्लेखनीय संपादक भी रहे।

जीवन परिचय

काशी (वर्तमान बनारस) के नवाब गंज मुहल्ले में वाचस्पति पाठक जी का जन्म हुआ था। उन दिनों उपन्यासकार 'प्रेमचन्द', 'रायकृष्णदास' और 'जयशंकर प्रसाद' की त्रिमूर्ति के तीन नवयुवक लेखकों का नाम काशी में अग्रणी था। उनमें 'पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र' और विनोद शंकर व्यास के साथ वाचस्पति पाठक का नाम भी अनन्य है। वाचस्पति पाठक जी ने ‘कागज की टोपी’ कहानी से प्रसिद्धि प्राप्त की थी। ‘द्वादशी’ तथा 'प्रदीप' नामक पुस्तकों में इनकी कहानियाँ संकलित हैं।[1]

साहित्यिक योगदान

वाचस्पति पाठक ने अपनी पहचान साहित्यिक आंदोलन के सक्रिय योद्धा के रूप में बनाई। वह अपने समय के एक महत्वपूर्ण कथाकार के साथ-साथ उल्लेखनीय संपादक भी रहे। कलाप्रेमी तो आप थे ही, कला-संग्राहक भी थे। छायावाद के सभी प्रमुख रचनाकारों की रचनाएं इनके प्रकाशन से आईं। उत्कृष्ट रचनाओं को सम्मान दिलाने में आपकी सक्रियता देखते ही बनती थी। सन्‌ 1936 में आपके द्वारा संपादित 'इक्कीस कहानियां' और सन्‌ 1952 में संपादित 'नए एकांकी' उल्लेखनीय संग्रह हैं। आपके दो कहानी संग्रह 'द्वादशी' व 'प्रदीप' भी प्रकाशित हुए। 'प्रसाद, निराला, पंत और महादेवी की श्रेष्ठ रचनाएं' का संपादन भी आपने किया। प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद और रायकृष्णदास के साथ जिन तीन रचनाकार नवयुवकों के नाम उस वक्त काशी में लिए जाते थे, उनमें वाचस्पति पाठक भी एक थे। शेष थे-उग्र और विनोदशंकर व्यास। आजादी के बाद जब 'अखिल भारतीय हिन्दी प्रकाशक संघ' की स्थापना दिल्ली में की गई तो इसका संयोजक भी पाठकजी को ही बनाया गया।[2]

निधन

वाचस्पति पाठक का निधन 19 नवम्बर, 1980 को हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. काशी के साहित्यकार (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 12 जनवरी, 2014।
  2. वाचस्पति पाठक (हिन्दी) हिन्दी के गौरव (हिन्दी भवन)। अभिगमन तिथि: 31 अगस्त, 2014।

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