"हरिभाऊ उपाध्याय": अवतरणों में अंतर
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हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म 24 मार्च, 1892 को [[मध्य प्रदेश]] में [[उज्जैन ज़िला|उज्जैन ज़िले]] के भौंरोसा नामक गाँव में हुआ था। विद्यार्थी जीवन से ही इनके मन में [[साहित्य]] के प्रति चेतना जाग्रत हो गई थी। [[संस्कृत]] के नाटकों तथा [[अंग्रेज़ी]] के प्रसिद्ध उपन्यासों के अध्ययन के बाद ये [[उपन्यास]] लेखन की अग्रसर हुए। | हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म 24 मार्च, 1892 को [[मध्य प्रदेश]] में [[उज्जैन ज़िला|उज्जैन ज़िले]] के भौंरोसा नामक [[गाँव]] में हुआ था। विद्यार्थी जीवन से ही इनके मन में [[साहित्य]] के प्रति चेतना जाग्रत हो गई थी। [[संस्कृत]] के [[नाटक|नाटकों]] तथा [[अंग्रेज़ी]] के प्रसिद्ध उपन्यासों के अध्ययन के बाद ये [[उपन्यास]] लेखन की अग्रसर हुए। | ||
==पत्रकारिता जगत में पदार्पण== | ==पत्रकारिता जगत में पदार्पण== | ||
हरिभाऊ उपाध्याय ने हिन्दी सेवा से सार्वजनिक जीवन आरम्भ किया और पहले पहल 'औदुम्बर' मासिक पत्र के प्रकाशन द्वारा [[हिन्दी]] पत्रकारिता जगत में पर्दापण किया। सबसे पहले सन [[1911]] ई. में वे 'औदुम्बर' के सम्पादक बने। पढ़ते-पढ़ते ही इन्होंने इसके सम्पादन का कार्य भी आरम्भ किया। | हरिभाऊ उपाध्याय ने हिन्दी सेवा से सार्वजनिक जीवन आरम्भ किया और पहले पहल 'औदुम्बर' मासिक पत्र के प्रकाशन द्वारा [[हिन्दी]] पत्रकारिता जगत में पर्दापण किया। सबसे पहले सन [[1911]] ई. में वे 'औदुम्बर' के सम्पादक बने। पढ़ते-पढ़ते ही इन्होंने इसके सम्पादन का कार्य भी आरम्भ किया। | ||
====महावीर प्रसाद द्विवेदी का सान्निध्य==== | ====महावीर प्रसाद द्विवेदी का सान्निध्य==== | ||
'औदुम्बर' में अनेक विद्वानों के विविध विषयों से सम्बद्ध पहली बार लेखमाला निकली, जिससे हिन्दी भाषा की स्वाभाविक प्रगति हुई। इसका श्रेय हरिभाऊ के उत्साह और लगन को ही है। सन [[1915]] ई. में हरिभाऊ उपाध्याय [[महावीर प्रसाद द्विवेदी]] के सान्निध्य में आये। हरिभाऊ जी स्वयं लिखते हैं कि- "औदुम्बर की सेवाओं ने मुझे आचार्य द्विवेदी जी की सेवा में पहुंचाया।" द्विवेदी जी के साथ '[[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती]]' में कार्य करने के पश्चात् हरिभाऊ उपाध्याय ने 'प्रताप', 'हिन्दी नवजीवन' (सन [[1921]]) और 'प्रभा' के सम्पादन में योगदान दिया और स्वयं 'मालव मयूर' (सन [[1922]]) नामक पत्र निकालने की योजना बनायी; किंतु यह पत्र अधिक दिन नहीं चल सका।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी साहित्य कोश, भाग-2|लेखक=|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन=डॉ. धीरेन्द्र वर्मा (प्रधान सम्पादक)|पृष्ठ संख्या=673|url=}}</ref> | 'औदुम्बर' में अनेक विद्वानों के विविध विषयों से सम्बद्ध पहली बार लेखमाला निकली, जिससे [[हिन्दी|हिन्दी भाषा]] की स्वाभाविक प्रगति हुई। इसका श्रेय हरिभाऊ के उत्साह और लगन को ही है। सन [[1915]] ई. में हरिभाऊ उपाध्याय [[महावीर प्रसाद द्विवेदी]] के सान्निध्य में आये। हरिभाऊ जी स्वयं लिखते हैं कि- "औदुम्बर की सेवाओं ने मुझे आचार्य द्विवेदी जी की सेवा में पहुंचाया।" द्विवेदी जी के साथ '[[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती]]' में कार्य करने के पश्चात् हरिभाऊ उपाध्याय ने 'प्रताप', 'हिन्दी नवजीवन' (सन [[1921]]) और 'प्रभा' के सम्पादन में योगदान दिया और स्वयं 'मालव मयूर' (सन [[1922]]) नामक पत्र निकालने की योजना बनायी; किंतु यह पत्र अधिक दिन नहीं चल सका।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी साहित्य कोश, भाग-2|लेखक=|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन=डॉ. धीरेन्द्र वर्मा (प्रधान सम्पादक)|पृष्ठ संख्या=673|url=}}</ref> | ||
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हरिभाऊ उपाध्याय की [[हिन्दी साहित्य]] को विशेष देन उनके द्वारा बहुमूल्य पुस्तकों का रूपांतरण है। कई मौलिक रचनाओं के अतिरिक्त उन्होंने [[जवाहरलाल नेहरू]] की 'मेरी कहानी' और [[पट्टाभि सीतारमैया]] द्वारा लिखित 'कांग्रेस का इतिहास' का | हरिभाऊ उपाध्याय की [[हिन्दी साहित्य]] को विशेष देन उनके द्वारा बहुमूल्य पुस्तकों का रूपांतरण है। कई मौलिक रचनाओं के अतिरिक्त उन्होंने [[जवाहरलाल नेहरू]] की 'मेरी कहानी' और [[पट्टाभि सीतारमैया]] द्वारा लिखित 'कांग्रेस का इतिहास' का हिन्दी में अनुवाद किया। हरिभाऊ जी का प्रयास हमें भारतेन्दु काल की याद दिलाता है, जब प्राय: सभी हिन्दी लेखक [[बंगला भाषा|बंगला]] से [[हिन्दी]] में अनुवाद करके [[साहित्य]] की अभिवृद्धि करते थे। अनुवाद करने में भी उन्होंने इस बात का सदा ध्यान रखा कि पुस्तक की भाषा लेखक की [[भाषा]] और उसके व्यक्तित्व के अनुरूप हो। अनुवाद पढ़ने से यह अनुभव नहीं होता कि अनुवाद पढ़ रहे हैं। यही अनुभव होता है कि मानो स्वयं मूल लेखक की ही वाणी और विचारधारा अविरल रूप से उसी मूल स्त्रोत से बह रही है। इस प्रकार हरिभाऊ जी ने अपने साथी जननायकों के ग्रंथों का अनुवाद करके हिन्दी साहित्य को व्यापकता प्रदान की। | ||
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हरिभाऊ उपाध्याय
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पूरा नाम | हरिभाऊ उपाध्याय |
जन्म | 24 मार्च, 1892 |
जन्म भूमि | भौंरोसा गाँव, उज्जैन, मध्य प्रदेश |
मृत्यु | 25 अगस्त, 1972 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | हिन्दी साहित्य तथा राष्ट्रसेवा |
मुख्य रचनाएँ | 'बापू के आश्रम में', 'सर्वोदय की बुनियाद', 'साधना के पथ पर', 'विश्व की विभूतियाँ', 'प्रियदर्शी अशोक', 'हमारा कर्त्तव्य और युगधर्म' आदि। |
भाषा | हिन्दी, संस्कृत |
प्रसिद्धि | साहित्यकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | हरिभाऊ जी की हिन्दी साहित्य को विशेष देन उनके द्वारा बहुमूल्य पुस्तकों का रूपांतरण है। कई मौलिक रचनाओं के अतिरिक्त उन्होंने जवाहरलाल नेहरू की 'मेरी कहानी' और पट्टाभि सीतारमैया द्वारा लिखित 'कांग्रेस का इतिहास' का हिन्दी में अनुवाद किया। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
हरिभाऊ उपाध्याय (अंग्रेज़ी: Haribhau Upadhyaya ; जन्म- 24 मार्च, 1892, उज्जैन, मध्य प्रदेश; मृत्यु- 25 अगस्त, 1972) भारत के प्रसिद्ध साहित्यकार तथा राष्ट्रसेवी थे। उनकी हिन्दी साहित्य को विशेष देन उनके द्वारा बहुमूल्य पुस्तकों का रूपांतरण है। कई मौलिक रचनाओं के अतिरिक्त उन्होंने जवाहरलाल नेहरू की 'मेरी कहानी' और पट्टाभि सीतारमैया द्वारा लिखित 'कांग्रेस का इतिहास' का हिन्दी में अनुवाद किया। हरिभाऊ जी की अनेक पुस्तकें आज हिन्दी साहित्य जगत को प्राप्त हो चुकी हैं। महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर हरिभाऊ उपाध्याय राष्ट्रीय आन्दोलन में कूद पड़े थे। पुरानी अजमेर रियासत में उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे अजमेर के मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए थे।
जन्म
हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म 24 मार्च, 1892 को मध्य प्रदेश में उज्जैन ज़िले के भौंरोसा नामक गाँव में हुआ था। विद्यार्थी जीवन से ही इनके मन में साहित्य के प्रति चेतना जाग्रत हो गई थी। संस्कृत के नाटकों तथा अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध उपन्यासों के अध्ययन के बाद ये उपन्यास लेखन की अग्रसर हुए।
पत्रकारिता जगत में पदार्पण
हरिभाऊ उपाध्याय ने हिन्दी सेवा से सार्वजनिक जीवन आरम्भ किया और पहले पहल 'औदुम्बर' मासिक पत्र के प्रकाशन द्वारा हिन्दी पत्रकारिता जगत में पर्दापण किया। सबसे पहले सन 1911 ई. में वे 'औदुम्बर' के सम्पादक बने। पढ़ते-पढ़ते ही इन्होंने इसके सम्पादन का कार्य भी आरम्भ किया।
महावीर प्रसाद द्विवेदी का सान्निध्य
'औदुम्बर' में अनेक विद्वानों के विविध विषयों से सम्बद्ध पहली बार लेखमाला निकली, जिससे हिन्दी भाषा की स्वाभाविक प्रगति हुई। इसका श्रेय हरिभाऊ के उत्साह और लगन को ही है। सन 1915 ई. में हरिभाऊ उपाध्याय महावीर प्रसाद द्विवेदी के सान्निध्य में आये। हरिभाऊ जी स्वयं लिखते हैं कि- "औदुम्बर की सेवाओं ने मुझे आचार्य द्विवेदी जी की सेवा में पहुंचाया।" द्विवेदी जी के साथ 'सरस्वती' में कार्य करने के पश्चात् हरिभाऊ उपाध्याय ने 'प्रताप', 'हिन्दी नवजीवन' (सन 1921) और 'प्रभा' के सम्पादन में योगदान दिया और स्वयं 'मालव मयूर' (सन 1922) नामक पत्र निकालने की योजना बनायी; किंतु यह पत्र अधिक दिन नहीं चल सका।[1]
हिन्दी साहित्य की सेवा
हरिभाऊ उपाध्याय की हिन्दी साहित्य को विशेष देन उनके द्वारा बहुमूल्य पुस्तकों का रूपांतरण है। कई मौलिक रचनाओं के अतिरिक्त उन्होंने जवाहरलाल नेहरू की 'मेरी कहानी' और पट्टाभि सीतारमैया द्वारा लिखित 'कांग्रेस का इतिहास' का हिन्दी में अनुवाद किया। हरिभाऊ जी का प्रयास हमें भारतेन्दु काल की याद दिलाता है, जब प्राय: सभी हिन्दी लेखक बंगला से हिन्दी में अनुवाद करके साहित्य की अभिवृद्धि करते थे। अनुवाद करने में भी उन्होंने इस बात का सदा ध्यान रखा कि पुस्तक की भाषा लेखक की भाषा और उसके व्यक्तित्व के अनुरूप हो। अनुवाद पढ़ने से यह अनुभव नहीं होता कि अनुवाद पढ़ रहे हैं। यही अनुभव होता है कि मानो स्वयं मूल लेखक की ही वाणी और विचारधारा अविरल रूप से उसी मूल स्त्रोत से बह रही है। इस प्रकार हरिभाऊ जी ने अपने साथी जननायकों के ग्रंथों का अनुवाद करके हिन्दी साहित्य को व्यापकता प्रदान की।
प्रमुख रचनाएँ
हरिभाऊ उपाध्याय की अनेक पुस्तकें आज हिन्दी साहित्य जगत को प्राप्त हो चुकी हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं-
- 'बापू के आश्रम में'
- 'स्वतंत्रता की ओर'
- 'सर्वोदय की बुनियाद'
- 'श्रेयार्थी जमनालाल जी'
- 'साधना के पथ पर'
- 'भागवत धर्म'
- 'मनन'
- 'विश्व की विभूतियाँ'
- 'पुण्य स्मरण'
- 'प्रियदर्शी अशोक'
- 'हिंसा का मुकाबला कैसे करें'
- 'दूर्वादल' (कविता संग्रह)
- 'स्वामी जी का बलिदान'
- 'हमारा कर्त्तव्य और युगधर्म'
भाषा-शैली
इन सभी रचनाओं से हिन्दी साहित्य निश्चित ही समृद्ध हुआ है। हरिभाऊ जी की रचनाएँ भाव, भाषा और शैली की दृष्टि से बड़ी आकर्षक हैं। इनमें रस है, मधुरता और उज्ज्वलता है। इनमें सत्य और अहिंसा की शुभ्रता है, धर्म की समंवयबुद्धि है और लेखनी की सतत साधना और प्रेरणा है।
राजनीतिक जीवन
महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर हरिभाऊ उपाध्याय 'भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन' में कूद पड़े थे। पुरानी अजमेर रियासत में इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ये अजमेर के मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए थे। हरिभाऊ जी हृदय से ये अत्यंत कोमल थे, किंतु सिद्धांतों पर कोई समझौता नहीं करते थे। राजस्थान की सब रियासतों को मिलाकर राजस्थान राज्य बना और इसके कई वर्षों बाद मोहनलाल सुखाड़िया मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने अत्यंत आग्रहपूर्वक हरिभाऊ उपाध्याय को पहले वित्त फिर शिक्षामंत्री बनाया था। बहुत दिनों तक ये इस पद पर रहे, किंतु स्वास्थ्य ठीक न रहने के कारण अंतत: त्यागपत्र दे दिया। हरिभाऊ उपाध्याय कई वर्षों तक राजस्थान की 'शासकीय साहित्य अकादमी' के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने 'महिला शिक्षा सदन', हटूँडी (अजमेर) तथा 'सस्ता साहित्य मंडल' की स्थापना की थी।
निधन
हरिभाऊ उपाध्याय का निधन 25 अगस्त, 1972 को हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी साहित्य कोश, भाग-2 |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: डॉ. धीरेन्द्र वर्मा (प्रधान सम्पादक) |पृष्ठ संख्या: 673 |
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