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'''अमजद ख़ान''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Amjad Khan'' जन्म: [[12 नवंबर]], [[1940]] - निधन: [[27 जुलाई]], [[1992]]) हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता थे। इनके द्वारा [[शोले (फ़िल्म)|शोले]] फ़िल्म में अभिनीत किरदार 'गब्बर सिंह' [[भारतीय सिनेमा]] के यादगार खलनायकों में से एक है। अपने करियर में उन्होंने 'शोले', 'परवरिश', 'मुकद्दर का सिकंदर', 'लावारिस', 'हीरालाल-पन्नालाल', 'सीतापुर की गीता', 'हिम्मतवाला' और 'कालिया' जैसी करीब 130 फ़िल्मों में काम किया था। | '''अमजद ख़ान''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Amjad Khan'' जन्म: [[12 नवंबर]], [[1940]] - निधन: [[27 जुलाई]], [[1992]]) हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता थे। इनके द्वारा [[शोले (फ़िल्म)|शोले]] फ़िल्म में अभिनीत किरदार 'गब्बर सिंह' [[भारतीय सिनेमा]] के यादगार खलनायकों में से एक है। अपने करियर में उन्होंने 'शोले', 'परवरिश', 'मुकद्दर का सिकंदर', 'लावारिस', 'हीरालाल-पन्नालाल', 'सीतापुर की गीता', 'हिम्मतवाला' और 'कालिया' जैसी करीब 130 फ़िल्मों में काम किया था। | ||
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बॉलीवुड की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म शोले के किरदार गब्बर सिंह ने अमजद ख़ान को फ़िल्म इंडस्ट्री में सशक्त पहचान दिलायी लेकिन फ़िल्म के निर्माण के समय गब्बर सिंह की भूमिका के लिये पहले डैनी का नाम प्रस्तावित था। फ़िल्म शोले के निर्माण के समय गब्बर सिंह वाली भूमिका डैनी को दी गयी थी लेकिन उन्होंने उस समय धर्मात्मा में काम करने की वजह से उन्होंने शोले में काम करने से इन्कार कर दिया। शोले के कहानीकार सलीम ख़ान की सिफारिश पर रमेश सिप्पी ने अमजद ख़ान को गब्बर सिंह का किरदार निभाने का अवसर दिया। जब सलीम ख़ान ने अमजद ख़ान से फ़िल्म शोले में गब्बर सिंह का किरदार निभाने को कहा तो पहले तो अमजद ख़ान घबरा से गये लेकिन बाद में उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और चंबल के डाकुओं पर बनी किताब अभिशप्त चंबल का बारीकी से अध्ययन करना शुरू किया। बाद में जब फ़िल्म शोले प्रदर्शित हुई तो अमजद ख़ान का निभाया किरदार गब्बर सिंह दर्शकों में इस कदर लोकप्रिय हुआ कि लोग गाहे-बगाहे उनकी आवाज़ और चालढ़ाल की नकल करने लगे।<ref>{{cite web |url=http://www.jansandesh.com/%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%9C%E0%A4%A6-%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%97%E0%A4%AC/2293 |title=जानें कैसे अमजद ख़ान बने गब्बर |accessmonthday=[[29 जुलाई]] |accessyear=[[2016]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=जन संदेश |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | बॉलीवुड की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म शोले के किरदार गब्बर सिंह ने अमजद ख़ान को फ़िल्म इंडस्ट्री में सशक्त पहचान दिलायी लेकिन फ़िल्म के निर्माण के समय गब्बर सिंह की भूमिका के लिये पहले डैनी का नाम प्रस्तावित था। फ़िल्म शोले के निर्माण के समय गब्बर सिंह वाली भूमिका डैनी को दी गयी थी लेकिन उन्होंने उस समय धर्मात्मा में काम करने की वजह से उन्होंने शोले में काम करने से इन्कार कर दिया। शोले के कहानीकार सलीम ख़ान की सिफारिश पर रमेश सिप्पी ने अमजद ख़ान को गब्बर सिंह का किरदार निभाने का अवसर दिया। जब सलीम ख़ान ने अमजद ख़ान से फ़िल्म शोले में गब्बर सिंह का किरदार निभाने को कहा तो पहले तो अमजद ख़ान घबरा से गये लेकिन बाद में उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और चंबल के डाकुओं पर बनी किताब अभिशप्त चंबल का बारीकी से अध्ययन करना शुरू किया। बाद में जब फ़िल्म शोले प्रदर्शित हुई तो अमजद ख़ान का निभाया किरदार गब्बर सिंह दर्शकों में इस कदर लोकप्रिय हुआ कि लोग गाहे-बगाहे उनकी आवाज़ और चालढ़ाल की नकल करने लगे।<ref>{{cite web |url=http://www.jansandesh.com/%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%9C%E0%A4%A6-%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%97%E0%A4%AC/2293 |title=जानें कैसे अमजद ख़ान बने गब्बर |accessmonthday=[[29 जुलाई]] |accessyear=[[2016]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=जन संदेश |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
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− | अनेक बरसों से हिन्दी सिनेमा में डाकू का एक परम्परागत चेहरा चला आ रहा था। धोती-कुरता, सिप पर लाल गमछा, आँखें हमेशा गुस्से से लाल, मस्तक पर लम्बा-सा तिलक, कमर में कारतूस की पेटी, कंधे पर लटकी बंदूक, हाथों में घोड़े की लगाम और मुँह से आग उगलती गालियाँ। फ़िल्म शोले के गब्बर सिंह उर्फ अमजद ख़ान ने डाकू की इस परम्परागत रूप को एकदम से अलग शैली में बदल दिया। उसने ड्रेस पहनना पसंद किया। कारतूस की पेटी को कंधे पर लटकाया। गंदे दाँतों के बीच दबाकर [[तम्बाकू]] खाने का निराला अंदाज। अपने आदमियों से सवाल-जवाब करने के पहले खतरनाक ढंग से हँसना। फिर गंदी गाली थूक की तरह बाहर फेंकते पूछना- कितने आदमी थे? अमजद ने अपने हावभाव, वेषभूषा और कुटिल चरित्र के जरिए [[हिन्दी सिनेमा]] के डाकू को कुछ इस तरह पेश किया कि वर्षों तक डाकू गब्बर के अंदाज में पेश होते रहे। शोले फ़िल्म के गब्बर सिंह को दर्शक चाहते हुए भी कभी नहीं भूल सकते। दरअसल अमजद को जो गेट-अप दिया गया, उस कारण उनका चरित्र एकदम से लार्जर देन लाइफ हो गया। पश्चिम के डाकूओं जैसा लिबास पहनकर, मटमैले दाँतों से अट्टहास करती हँसी हँसना, बढ़ी हुई काँटेदारदाढ़ी और डरावनी हँसी के जरिये अमजद ने सीन-चुराने की कला में महारत हासिल कर | + | अनेक बरसों से [[हिन्दी सिनेमा]] में डाकू का एक परम्परागत चेहरा चला आ रहा था। धोती-कुरता, सिप पर लाल गमछा, आँखें हमेशा गुस्से से लाल, मस्तक पर लम्बा-सा तिलक, कमर में कारतूस की पेटी, कंधे पर लटकी बंदूक, हाथों में घोड़े की लगाम और मुँह से आग उगलती गालियाँ। फ़िल्म शोले के गब्बर सिंह उर्फ अमजद ख़ान ने डाकू की इस परम्परागत रूप को एकदम से अलग शैली में बदल दिया। उसने ड्रेस पहनना पसंद किया। कारतूस की पेटी को कंधे पर लटकाया। गंदे दाँतों के बीच दबाकर [[तम्बाकू]] खाने का निराला अंदाज। अपने आदमियों से सवाल-जवाब करने के पहले खतरनाक ढंग से हँसना। फिर गंदी गाली थूक की तरह बाहर फेंकते पूछना- कितने आदमी थे? अमजद ने अपने हावभाव, वेषभूषा और कुटिल चरित्र के जरिए [[हिन्दी सिनेमा]] के डाकू को कुछ इस तरह पेश किया कि वर्षों तक डाकू गब्बर के अंदाज में पेश होते रहे। शोले फ़िल्म के गब्बर सिंह को दर्शक चाहते हुए भी कभी नहीं भूल सकते। दरअसल अमजद को जो गेट-अप दिया गया, उस कारण उनका चरित्र एकदम से लार्जर देन लाइफ हो गया। पश्चिम के डाकूओं जैसा लिबास पहनकर, मटमैले दाँतों से अट्टहास करती हँसी हँसना, बढ़ी हुई काँटेदारदाढ़ी और डरावनी हँसी के जरिये अमजद ने सीन-चुराने की कला में महारत हासिल कर ली और संवाद अदायगी में 'पॉज' का इस्तेमाल तो उनका कमाल का था। क्रूरता गब्बर के चेहरे से टपकती थी और दया करना तो जैसे वह जानता ही नहीं था। उसकी क्रूरता ही उसका मनोरंजन होती थी। उसने बसंती को काँच के टुक्रडों पर नंगे पैर नाचने के लिए मजबूर किया। इससे दर्शक के मन में गब्बर के प्रति नफरत पैदा हुई और यही पर अमजद कामयाब हो गए। |
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अमजद ख़ान ने अपने लंबे करियर में ज्यादातर नकारात्मक भूमिकाएँ निभाईं। [[अमिताभ बच्चन]], [[धर्मेन्द्र]] जैसे सितारों के सामने दर्शक उन्हें खलनायक के रूप में देखना पसंद करते थे और वे स्टार विलेन थे। इसके अलावा उन्होंने कुछ फ़िल्मों में चरित्र और हास्य भूमिकाएँ अभिनीत की, जिनमें शतरंज के खिलाड़ी, दादा, कुरबानी, लव स्टोरी, याराना प्रमुख हैं। निर्देशक के रूप में भी उन्होंने हाथ आजमाए। चोर पुलिस (1983) और अमीर आदमी गरीब आदमी (1985) नामक दो फ़िल्में उन्होंने बनाईं, लेकिन इनकी असफलता के बाद उन्होंने फिर कभी फ़िल्म निर्देशित नहीं की। अमजद अपनी सफलता और अभिनेता के करियर को इतनी ऊँचाई देने का श्रेय पिता जयंत को देते हैं। पिता को गुरु का दर्जा देते हुए उन्होंने कहा था कि रॉयल अकादमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट अपने छात्रों को जितना सिखाती है, उससे ज्यादा उन्होंने अपने पिता से सीखा है। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में यदि उन्होंने प्रवेश लिया होता, तो भी इतनी शिक्षा नहीं मिल पाती। उनके पिता उन्हें आखिरी समय तक अभिनय के मंत्र बताते रहे। | अमजद ख़ान ने अपने लंबे करियर में ज्यादातर नकारात्मक भूमिकाएँ निभाईं। [[अमिताभ बच्चन]], [[धर्मेन्द्र]] जैसे सितारों के सामने दर्शक उन्हें खलनायक के रूप में देखना पसंद करते थे और वे स्टार विलेन थे। इसके अलावा उन्होंने कुछ फ़िल्मों में चरित्र और हास्य भूमिकाएँ अभिनीत की, जिनमें शतरंज के खिलाड़ी, दादा, कुरबानी, लव स्टोरी, याराना प्रमुख हैं। निर्देशक के रूप में भी उन्होंने हाथ आजमाए। चोर पुलिस (1983) और अमीर आदमी गरीब आदमी (1985) नामक दो फ़िल्में उन्होंने बनाईं, लेकिन इनकी असफलता के बाद उन्होंने फिर कभी फ़िल्म निर्देशित नहीं की। अमजद अपनी सफलता और अभिनेता के करियर को इतनी ऊँचाई देने का श्रेय पिता जयंत को देते हैं। पिता को गुरु का दर्जा देते हुए उन्होंने कहा था कि रॉयल अकादमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट अपने छात्रों को जितना सिखाती है, उससे ज्यादा उन्होंने अपने पिता से सीखा है। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में यदि उन्होंने प्रवेश लिया होता, तो भी इतनी शिक्षा नहीं मिल पाती। उनके पिता उन्हें आखिरी समय तक अभिनय के मंत्र बताते रहे। | ||
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06:44, 30 जुलाई 2016 का अवतरण
अमजद ख़ान
| |
पूरा नाम | अमजद ख़ान |
जन्म | 12 नवंबर, 1940 |
जन्म भूमि | पेशावर, भारत (आज़ादी से पूर्व) |
मृत्यु | 27 जुलाई, 1992 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | फ़िल्म अभिनेता, फ़िल्म निर्देशक |
मुख्य फ़िल्में | शोले, 'परवरिश', 'मुकद्दर का सिकंदर', 'लावारिस', 'हीरालाल-पन्नालाल', 'सीतापुर की गीता', 'हिम्मतवाला', 'कालिया' आदि |
प्रसिद्धि | गब्बर सिंह का किरदार |
विशेष योगदान | अमजद ख़ान ने हिन्दी सिनेमा के खलनायक की भूमिका के लिए इतनी लंबी लकीर खींच दी थी कि आज तक उससे बड़ी लकीर कोई नहीं बना पाया है। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | अमजद ख़ान ने बतौर कलाकार अपने अभिनय जीवन की शुरूआत वर्ष 1957 में प्रदर्शित फ़िल्म अब दिल्ली दूर नहीं से की थी। इस फ़िल्म में अमजद ख़ान ने बाल कलाकार की भूमिका निभायी। |
अमजद ख़ान (अंग्रेज़ी: Amjad Khan जन्म: 12 नवंबर, 1940 - निधन: 27 जुलाई, 1992) हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता थे। इनके द्वारा शोले फ़िल्म में अभिनीत किरदार 'गब्बर सिंह' भारतीय सिनेमा के यादगार खलनायकों में से एक है। अपने करियर में उन्होंने 'शोले', 'परवरिश', 'मुकद्दर का सिकंदर', 'लावारिस', 'हीरालाल-पन्नालाल', 'सीतापुर की गीता', 'हिम्मतवाला' और 'कालिया' जैसी करीब 130 फ़िल्मों में काम किया था।
जीवन परिचय
12 नवंबर 1940 जन्मे अमजद ख़ान को अभिनय की कला विरासत में मिली। उनके पिता जयंत फ़िल्म इंडस्ट्री में खलनायक रह चुके थे। अमजद ख़ान ने बतौर कलाकार अपने अभिनय जीवन की शुरूआत वर्ष 1957 में प्रदर्शित फ़िल्म अब दिल्ली दूर नहीं से की थी। इस फ़िल्म में अमजद ख़ान ने बाल कलाकार की भूमिका निभायी। वर्ष 1965 में अपनी होम प्रोडक्शन में बनने वाली फ़िल्म 'पत्थर के सनम' के जरिये अमजद ख़ान बतौर अभिनेता अपने करियर की शुरूआत करने वाले थे लेकिन किसी कारण से फ़िल्म का निर्माण नहीं हो सका। सत्तर के दशक में अमजद ख़ान ने मुंबई से अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद बतौर अभिनेता काम करने के लिये फ़िल्म इंडस्ट्री का रूख किया। वर्ष 1973 में बतौर अभिनेता उन्होंने फ़िल्म 'हिंदुस्तान की कसम' से अपने करियर की शुरूआत की लेकिन इस फ़िल्म से दर्शकों के बीच वह अपनी पहचान नहीं बना सके।
गब्बर सिंह
बॉलीवुड की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म शोले के किरदार गब्बर सिंह ने अमजद ख़ान को फ़िल्म इंडस्ट्री में सशक्त पहचान दिलायी लेकिन फ़िल्म के निर्माण के समय गब्बर सिंह की भूमिका के लिये पहले डैनी का नाम प्रस्तावित था। फ़िल्म शोले के निर्माण के समय गब्बर सिंह वाली भूमिका डैनी को दी गयी थी लेकिन उन्होंने उस समय धर्मात्मा में काम करने की वजह से उन्होंने शोले में काम करने से इन्कार कर दिया। शोले के कहानीकार सलीम ख़ान की सिफारिश पर रमेश सिप्पी ने अमजद ख़ान को गब्बर सिंह का किरदार निभाने का अवसर दिया। जब सलीम ख़ान ने अमजद ख़ान से फ़िल्म शोले में गब्बर सिंह का किरदार निभाने को कहा तो पहले तो अमजद ख़ान घबरा से गये लेकिन बाद में उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और चंबल के डाकुओं पर बनी किताब अभिशप्त चंबल का बारीकी से अध्ययन करना शुरू किया। बाद में जब फ़िल्म शोले प्रदर्शित हुई तो अमजद ख़ान का निभाया किरदार गब्बर सिंह दर्शकों में इस कदर लोकप्रिय हुआ कि लोग गाहे-बगाहे उनकी आवाज़ और चालढ़ाल की नकल करने लगे।[1]
खलनायकी को दी नई दिशा
अनेक बरसों से हिन्दी सिनेमा में डाकू का एक परम्परागत चेहरा चला आ रहा था। धोती-कुरता, सिप पर लाल गमछा, आँखें हमेशा गुस्से से लाल, मस्तक पर लम्बा-सा तिलक, कमर में कारतूस की पेटी, कंधे पर लटकी बंदूक, हाथों में घोड़े की लगाम और मुँह से आग उगलती गालियाँ। फ़िल्म शोले के गब्बर सिंह उर्फ अमजद ख़ान ने डाकू की इस परम्परागत रूप को एकदम से अलग शैली में बदल दिया। उसने ड्रेस पहनना पसंद किया। कारतूस की पेटी को कंधे पर लटकाया। गंदे दाँतों के बीच दबाकर तम्बाकू खाने का निराला अंदाज। अपने आदमियों से सवाल-जवाब करने के पहले खतरनाक ढंग से हँसना। फिर गंदी गाली थूक की तरह बाहर फेंकते पूछना- कितने आदमी थे? अमजद ने अपने हावभाव, वेषभूषा और कुटिल चरित्र के जरिए हिन्दी सिनेमा के डाकू को कुछ इस तरह पेश किया कि वर्षों तक डाकू गब्बर के अंदाज में पेश होते रहे। शोले फ़िल्म के गब्बर सिंह को दर्शक चाहते हुए भी कभी नहीं भूल सकते। दरअसल अमजद को जो गेट-अप दिया गया, उस कारण उनका चरित्र एकदम से लार्जर देन लाइफ हो गया। पश्चिम के डाकूओं जैसा लिबास पहनकर, मटमैले दाँतों से अट्टहास करती हँसी हँसना, बढ़ी हुई काँटेदारदाढ़ी और डरावनी हँसी के जरिये अमजद ने सीन-चुराने की कला में महारत हासिल कर ली और संवाद अदायगी में 'पॉज' का इस्तेमाल तो उनका कमाल का था। क्रूरता गब्बर के चेहरे से टपकती थी और दया करना तो जैसे वह जानता ही नहीं था। उसकी क्रूरता ही उसका मनोरंजन होती थी। उसने बसंती को काँच के टुक्रडों पर नंगे पैर नाचने के लिए मजबूर किया। इससे दर्शक के मन में गब्बर के प्रति नफरत पैदा हुई और यही पर अमजद कामयाब हो गए।
चरित्र और हास्य भूमिकाएँ
अमजद ख़ान ने अपने लंबे करियर में ज्यादातर नकारात्मक भूमिकाएँ निभाईं। अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र जैसे सितारों के सामने दर्शक उन्हें खलनायक के रूप में देखना पसंद करते थे और वे स्टार विलेन थे। इसके अलावा उन्होंने कुछ फ़िल्मों में चरित्र और हास्य भूमिकाएँ अभिनीत की, जिनमें शतरंज के खिलाड़ी, दादा, कुरबानी, लव स्टोरी, याराना प्रमुख हैं। निर्देशक के रूप में भी उन्होंने हाथ आजमाए। चोर पुलिस (1983) और अमीर आदमी गरीब आदमी (1985) नामक दो फ़िल्में उन्होंने बनाईं, लेकिन इनकी असफलता के बाद उन्होंने फिर कभी फ़िल्म निर्देशित नहीं की। अमजद अपनी सफलता और अभिनेता के करियर को इतनी ऊँचाई देने का श्रेय पिता जयंत को देते हैं। पिता को गुरु का दर्जा देते हुए उन्होंने कहा था कि रॉयल अकादमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट अपने छात्रों को जितना सिखाती है, उससे ज्यादा उन्होंने अपने पिता से सीखा है। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में यदि उन्होंने प्रवेश लिया होता, तो भी इतनी शिक्षा नहीं मिल पाती। उनके पिता उन्हें आखिरी समय तक अभिनय के मंत्र बताते रहे।
दरियादिल इंसान
पर्दे पर खलनायकी के तेवर दिखाने वाले अमजद निजी जीवन में बेहद दरियादिल और शांति प्रिय इंसान थे। अमिताभ बच्चन ने एक साक्षात्कार में बताया था कि अमजद बहुत दयालु इंसान थे। हमेशा दूसरों की मदद को तैयार रहते थे। यदि फ़िल्म निर्माता के पास पैसे की कमी देखते, तो उसकी मदद कर देते या फिर अपना पारिश्रमिक नहीं लेते थे। उन्हें नए-नए चुटकुले बनाकर सुनाने का बेहद शौक था। अमिताभ को वे अक्सर फोन कर लतीफे सुनाया करते थे।
मोटापा बना करियर में बाधा
एक कार दुर्घटना में अमजद बुरी तरह घायल हो गए। एक फ़िल्म की शूटिंग के सिलसिले में लोकेशन पर जा रहे थे। ऐसे समय में अमिताभ बच्चन ने उनकी बहुत मदद की। वे तेजी से रिकवर होने लगे। लेकिन डॉक्टरों की बताई दवा के सेवन से उनका वजन और मोटापा इतनी तेजी से बढ़ा कि वे चलने-फिरने और अभिनय करने में कठिनाई महसूस करने लगे। वैसे अमजद मोटापे की वजह खुद को मानते थे। उन्होंने एक साक्षात्कार में बताया था कि ‘शोले’ की रिलीज के पहले उन्होंने अल्लाह से कहा था कि यदि फ़िल्म सुपरहिट होती है तो वे फ़िल्मों में काम करना छोड़ देंगे। फ़िल्म सुपरहिट हुई, लेकिन अमजद ने अपना वादा नहीं निभाते हुए काम करना जारी रखा। ऊपर वाले ने मोटापे के रूप में उन्हें सजा दे दी। इसके अलावा वे चाय के भी शौकीन थे। एक घंटे में दस कप तक वे पी जाते थे। इससे भी वे बीमारियों का शिकार बने। मोटापे के कारण उनके हाथ से कई फ़िल्में फिसलती गई। 27 जुलाई 1992 को उन्हें दिल का दौरा पड़ा और दहाड़ता गब्बर हमेशा के लिए सोया गया। अमजद ने हिन्दी सिनेमा के खलनायक की इमेज के लिए इतनी लंबी लकीर खींच दी थी कि आज तक उससे बड़ी लकीर कोई नहीं बना पाया है।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जानें कैसे अमजद ख़ान बने गब्बर (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) जन संदेश। अभिगमन तिथि: 29 जुलाई, 2016।
- ↑ अमजद ख़ान : धधकते शोलों से उपजा अमजद (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेबदुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 29 जुलाई, 2016।
बाहरी कड़ियाँ
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