कइकुल
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:11, 26 अक्टूबर 2021 का अवतरण (''''कइकुल''' - (काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी) संज्ञा प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
कइकुल - (काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी) संज्ञा पुल्लिंग (संस्कृत कवि+कुल)[1]
कविसमूह। कविवर्ग।
उदाहरण-
अक्खर रस वुज्झनिहार नहि कइकुल भिक्खारि भउँ। - कीर्तिलता[2]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 732 |
- ↑ कीर्तिलता, पृष्ठ 18, सम्पादक बाबूराम सक्सेना, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, तृतीय संस्करण
संबंधित लेख
|