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विवरण देवनागरी वर्णमाला में चवर्ग का चौथा व्यंजन है।
भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह तालव्य, स्पर्श, घोष तथा महाप्राण व्यंजन है। 'झ' वर्ण का अल्पप्राण वर्ण 'ज' है।
व्याकरण [ संस्कृत झट्‌ + ड ] पुल्लिंग- 'झन-झन' ध्वनि, झनकार, झंकार, बृहस्पति, झंझावात।
विशेष 'झ' महाप्राण वर्ण है अत: 'झ' से पहले या बाद में कोई महाप्राण वर्ण नहीं आ सकता। 'झ' का द्वित्व भी नहीं हो सकता।
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अन्य जानकारी 'झ' वर्ण के व्यंजनों से संयुक्त (व्यंजन-गुच्छ वाले) शब्द बहुत कम हैं। हिंदी की क्षेत्रीय बोलियों में या पद्यगत प्रयोगों में 'ज्‌' का पहले आकर 'झ' से मिलना 'मिज्झ' जैसे शब्दों में तथा 'ञ्‌' का संयुक्त रूप 'सञ्झ' जैसे शब्दों में अपनी खड़ी रेखा को त्यागने से बनता है।

देवनागरी वर्णमाला में चवर्ग का चौथा व्यंजन है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह तालव्य, स्पर्श, घोष तथा महाप्राण व्यंजन है। 'झ' वर्ण का अल्पप्राण वर्ण 'ज' है।

विशेष-
  • 'झ' वर्ण का प्रयोग प्राय: शब्दों के आदि और मध्य में होता है (झगड़ा, सुझाव)।
  • 'झ' वर्ण में स्वरों की मात्राएँ सामान्य रूप से ही लगती हैं और उनके अनुनासिक रूप क्रमश: झँ, झाँ, झिँ, झीँ इत्यादि हैं परंतु शिरोरेखा के ऊपर ई, ए, ऐ, इत्यादि की मात्रा होने से चंद्रबिंदु (ँ) के स्थान पर अनुनासिक चिह्‌न (बिंदु) के समान ही बिंदु का प्रयोग लेखन, टंकण या मुद्रण में सुविधा के लिए किया जाता है (झीँगुर- झींगुर, झेँपना - झेंपना, झोँक - झोंक) परंतु उक्त बिंदी को पंचम वर्ण 'ञ' (अथवा 'न्‌' या 'म्‌') समझने का भ्रम हो सकता है।
  • 'झ' वर्ण के व्यंजनों से संयुक्त (व्यंजन-गुच्छ वाले) शब्द बहुत कम हैं। हिंदी की क्षेत्रीय बोलियों में या पद्यगत प्रयोगों में 'ज्‌' का पहले आकर 'झ' से मिलना 'मिज्झ' जैसे शब्दों में तथा 'ञ्‌' का संयुक्त रूप 'सञ्झ' जैसे शब्दों में अपनी खड़ी रेखा को त्यागने से बनता है। 'र' पहले आकर 'झ' के ऊपर रेफ़ का रूप ग्रहण करता है (झर्झर, निर्झर)।
  • 'झ' महाप्राण वर्ण है अत: 'झ' से पहले या बाद में कोई महाप्राण वर्ण नहीं आ सकता। 'झ' का द्वित्व भी नहीं हो सकता।
  • [ संस्कृत झट्‌ + ड ] पुल्लिंग- 'झन-झन' ध्वनि, झनकार, झंकार, बृहस्पति, झंझावात।[1]

झ की बारहखड़ी

झा झि झी झु झू झे झै झो झौ झं झः

झ अक्षर वाले शब्द



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुस्तक- हिन्दी शब्द कोश खण्ड-1 | पृष्ठ संख्या- 1025

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