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'''कुंडी भंडारा''' अथवा 'खूनी भंडारा' [[मध्य प्रदेश]] के बुरहानपुर जिले में स्थित है। [[मध्यकालीन भारत]] की इंजीनियरिंग कितनी समृद्ध रही होगी, यह [[बुरहानपुर]] के कुंडी भंडारे को देखने से ही पता चलता है। 400 साल पुरानी ये जल यांत्रिकी आधुनिक युग के लिए भी एक कठिन पहेली है। उस समय कैसे सतपुड़ा की पहाड़ियों के पत्थरों को चीरकर नगर की [[जल]] आवश्यकताओं को पूरा किया गया होगा, जब न तो आज की तरह मशीनें थीं और न ही भू-गर्भ में बहते पानी के श्रोतों का पता लगाने वाले यंत्र। कुंडी भंडारा नगरवासियों को पेयजल उपलब्ध करवाने की एक जीवित भू-जल संरचना है।<br /> | '''कुंडी भंडारा''' अथवा 'खूनी भंडारा' [[मध्य प्रदेश]] के बुरहानपुर जिले में स्थित है। [[मध्यकालीन भारत]] की इंजीनियरिंग कितनी समृद्ध रही होगी, यह [[बुरहानपुर]] के कुंडी भंडारे को देखने से ही पता चलता है। 400 साल पुरानी ये जल यांत्रिकी आधुनिक युग के लिए भी एक कठिन पहेली है। उस समय कैसे [[सतपुड़ा की पहाड़ियाँ|सतपुड़ा की पहाड़ियों]] के पत्थरों को चीरकर नगर की [[जल]] आवश्यकताओं को पूरा किया गया होगा, जब न तो आज की तरह मशीनें थीं और न ही भू-गर्भ में बहते पानी के श्रोतों का पता लगाने वाले यंत्र। कुंडी भंडारा नगरवासियों को पेयजल उपलब्ध करवाने की एक जीवित भू-जल संरचना है।<br /> | ||
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*[[मुग़ल]] बादशाह [[अकबर]] के शासनकाल में बुरहानपुर एक प्रमुख सैनिक छावनी थी। सुप्रसिद्ध असीरगढ़ के किले से थोड़ी दूरी पर स्थित बुरहानपुर को दक्कन का द्वार माना जाता था। | *[[मुग़ल]] बादशाह [[अकबर]] के शासनकाल में बुरहानपुर एक प्रमुख सैनिक छावनी थी। सुप्रसिद्ध असीरगढ़ के किले से थोड़ी दूरी पर स्थित बुरहानपुर को दक्कन का द्वार माना जाता था। | ||
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*रहीम ने इस कार्य के लिए अभियांत्रिकी में कुशल अपने कारीगरों से मशविरा किया और इस [[जल]] को नगर तक लाने के लिए 1612 ई. में जमीन से 80 फीट नीचे घुमावदार नहरों के निर्माण पर कार्य शुरू हो गया। | *रहीम ने इस कार्य के लिए अभियांत्रिकी में कुशल अपने कारीगरों से मशविरा किया और इस [[जल]] को नगर तक लाने के लिए 1612 ई. में जमीन से 80 फीट नीचे घुमावदार नहरों के निर्माण पर कार्य शुरू हो गया। | ||
*दो साल तक अनवरत चले खनन कार्य और पत्थरों से चिनाई के बाद तीन किलोमीटर लंबी नहर के जरिए शुद्ध पेयजल को को 1615 ई. में जाली करंज तक पहुंचाया गया। | *दो [[साल]] तक अनवरत चले खनन कार्य और पत्थरों से चिनाई के बाद तीन किलोमीटर लंबी नहर के जरिए शुद्ध पेयजल को को 1615 ई. में जाली करंज तक पहुंचाया गया। | ||
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12:37, 20 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण

कुंडी भंडारा अथवा 'खूनी भंडारा' मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में स्थित है। मध्यकालीन भारत की इंजीनियरिंग कितनी समृद्ध रही होगी, यह बुरहानपुर के कुंडी भंडारे को देखने से ही पता चलता है। 400 साल पुरानी ये जल यांत्रिकी आधुनिक युग के लिए भी एक कठिन पहेली है। उस समय कैसे सतपुड़ा की पहाड़ियों के पत्थरों को चीरकर नगर की जल आवश्यकताओं को पूरा किया गया होगा, जब न तो आज की तरह मशीनें थीं और न ही भू-गर्भ में बहते पानी के श्रोतों का पता लगाने वाले यंत्र। कुंडी भंडारा नगरवासियों को पेयजल उपलब्ध करवाने की एक जीवित भू-जल संरचना है।
- मुग़ल बादशाह अकबर के शासनकाल में बुरहानपुर एक प्रमुख सैनिक छावनी थी। सुप्रसिद्ध असीरगढ़ के किले से थोड़ी दूरी पर स्थित बुरहानपुर को दक्कन का द्वार माना जाता था।
- दिल्ली के सुल्तान इसी जगह से दक्कन के भूभाग पर नियंत्रण के लिए सैन्य अभियान संचालित करते थे।
- असीरगढ़ के किले पर विजय के बाद अकबर ने अब्दुर्रहीम ख़ान-ए-ख़ाना को बुरहानपुर का सुबेदार नियुक्त किया। लेकिन सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीच बसे इस शहर में पेयजल की भारी किल्लत थी, जिसे दूर करने के लिए रहीम ने शहर के आस-पास जल स्रोतों की तलाश शुरू कर दी।
- शहर से 6 किलोमीटर दूर सतपुड़ा की तलहटी में ख़ान-ए-ख़ाना को एक जल स्रोत मिला और उनके मन में इस जल को नगर तक पहुंचाने का विचार पलने लगा।
- रहीम ने इस कार्य के लिए अभियांत्रिकी में कुशल अपने कारीगरों से मशविरा किया और इस जल को नगर तक लाने के लिए 1612 ई. में जमीन से 80 फीट नीचे घुमावदार नहरों के निर्माण पर कार्य शुरू हो गया।
- दो साल तक अनवरत चले खनन कार्य और पत्थरों से चिनाई के बाद तीन किलोमीटर लंबी नहर के जरिए शुद्ध पेयजल को को 1615 ई. में जाली करंज तक पहुंचाया गया।
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